प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आर्थिक नीतियां देश को नई आर्थिक मजबूती तो दे ही रही हैं, साथ ही देशवासियों के अंदर भरोसा भी बढ़ा रही हैं। यही वजह है कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। यह बात हर भारतीय को गौरवान्वित कर रही है। जिस देश से 1947 में हमने आजादी पाई थी, विकास के मायनों में आज उसे ही हमने पीछे छोड़ दिया। यह लोगों का भरोसा ही है कि शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। देश के इतिहास में पहली बार डीमैट खाते की संख्या 10 करोड़ के पार हुई है। डीमैट खातों की संख्या में इजाफा खुदरा निवेशकों की बाजार में हिस्सेदारी बढ़ने का संकेत है। IPO मार्केट ने भी रिटेल निवेशकों और कामकाजी महिलाओं को शेयर बाजार की तरफ आकर्षित किया है।अगस्त में ही खुले 22 लाख से ज्यादा नए डीमैट खाते, यह चार माह में सबसे अधिक
देश में डीमैट खातों की संख्या पहली बार अगस्त 2022 में 10 करोड़ के पार पहुंच गई। डिपॉजिटरी फर्म एनएसडीएल और सीडीएसएल के आंकड़ों में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक बीते अगस्त में 22 लाख नए डीमैट खाता खोले गए, जो पिछले चार महीनों का सबसे अधिक है। इसके साथ ही देश में कुल डीमैट खातों की संख्या 10.05 करोड़ पहुंच गई। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें खुदरा यानी छोटे निवेशकों का योगदान सबसे अधिक है। इसी का परिणाम है कि देश में खुदरा निवेशकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ने विदेशी निवेशकों पर निर्भरता घटेगी और तेज उतार-चढ़ाव को रोकने में मदद करेगी।
मोदी सरकार की बेहतर नीतियों के चलते ढाई साल में ढाई गुना बढ़ोत्तरी
मार्च 2020 तक देश में कुल 4.09 करोड़ डीमैट खाता थे। महज ढाई साल में इनमें ढाई गुना से अधिक का इजाफा हुआ है। डीमैट खाता की संख्या में तेजी इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों के प्रति लोगों का भरोसा निरंतर बढ़ रहा है। इसी विश्वास का सुपरिणाम है कि देश में शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बेहतर नीतियों के चलते बाजार गुलजार है और निवेशकों का भरोसा फिर से बढ़ा है। ज़ी बिजनेस के रिसर्च एनलिस्ट कुशल गुप्ता के मुताबिक डीमैट खातों की संख्या में आगे भी बढ़त देखने को मिलेगी। क्योंकि आने वाले दिनों में काफी IPO खुलेंगे। ऐसे में डीमैट खातों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी।दो तरह के डीमैट खाते…इनके बिना शेयरों को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता
शेयरों और सिक्योरिटीज को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जिन खातों में रखा जाता है, उसे डीमैट खाता कहते हैं। शेयर बाजार यानी सेंसेक्स और निफ्टी से स्टॉक खरीदने या बेचने के लिए डीमैट खाते का होना जरूरी है। डीमैट को छोड़कर किसी अन्य रूप में शेयरों को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता है। शेयर मार्केट में हाल ही में शुरुआत करने वालों के लिए रेगुलर डीमैट खाता खुलवाया जाता है। इसमें निवेशक देश में ही रह कर यहीं के शेयर में निवेश करते हैं। नॉन-रेजिडेंट इंडियन्स के लिए रिपाट्राइबल डीमैट अकाउंट होता है। इसके जरिए NRI लोगों को शेयर बाजार में निवेश करने का मौका मिलता है।खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ने से विदेशी निवेशकों पर निर्भरता घटेगी
आईआईएफएल के उपाध्यक्ष अनुज गुप्ता के मुताबिक डीमैट खातों की संख्या में इजाफा खुदरा निवेशकों की बाजार में हिस्सेदारी बढ़ने का संकेत है। खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ने विदेशी निवेशकों पर निर्भरता घटेगी और यह बाजार के तेज उतार-चढ़ाव को रोकने में सहायक होने के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में मददगार साबित होगी। आंकड़ों में बात करें तो 1980 में वैश्विक जीडीपी में मात्र 1 फीसदी भारत की हिस्सेदारी थी। 1993 तक वैश्विक जीडीपी में 1.4 फीसदी भारत की हिस्सेदारी हो पाई। लेकिन अब मोदी सरकार की विजनरी आर्थि नीतियों के चलते 2027 तक 4 फीसदी वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी होने का अनुमान है।आर्थिक ताकत में ब्रिटेन के बाद जर्मनी को भी पछाड़ सकता है भारत
भारत हाल ही में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। जिस मुल्क से 1947 में हमने आजादी पाई थी, विकास के मायनों में आज उसे ही हमने पीछे छोड़ दिया। मोदी सरकार के नेतृत्व में हमने कई ऐतिहासिक आर्थिक मुकाम हासिल किए हैं और सफलता का यह सफर जारी है। कुछ क्षेत्रों में हमें खुद को और मजबूत करना होगा। माना जा रहा है कि भारत चुनौतियों को पार करते हुए विकास की गति को कायम रखता है तो वह जल्द जापान को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। भारत एक दशक पहले दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 11वें स्थान पर था। उस समय ब्रिटेन पांचवें स्थान पर था। भारत अब केवल अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी से पीछे है। जापान और जर्मनी की जीडीपी में बहुत ज्यादा का अंतर नहीं है।भारत 2034 तक जापान को पीछे छोड़ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा
ब्रिटेन के सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स ऐंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2026 तक जर्मनी को पीछे छोड़ भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और इसके बाद 2034 तक जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत वर्ष 2026 तक ही 5 ट्रिलियन डॉलर (5 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। यानी इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत अगले सात साल में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन जाएगा। वर्ल्ड इकोनॉमिक लीग टेबल 2020 शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत ने निर्णायक बढ़त हासिल करते हुए 2019 में ही फ्रांस और यूके को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी का दर्जा हासिल कर लिया है।