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गुलामीकाल के प्रतीक चिह्नों को मिटाने के PM Modi के आह्वान का असर, कर्नाटक के मंदिरों में अब सलाम आरती की जगह होगी संध्या आरती, टीपू सुल्तान का दिया तीन सदी पुराना नाम बदला

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से दिए पंच प्राण में से एक गुलामी के सारे प्रतीक चिह्नों के खात्मे का आह्वान किया था। ताकि आजादी के अमृतकाल में विकसित भारत की ओर कदम बढ़ा रहा देश स्वाभिमानी भारत बन सके। मोदी सरकार ने इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। ब्रिटिश काल के कई कानूनों के खात्मे से लेकर राजपथ से कर्तव्य पथ तक।  कर्नाटक में तीन सौ साल से कुछ मंदिरों में होने वाली सलाम आरती का नाम बदल दिया गया है। अब इसे संध्या आरती के नाम से जाना जाएगा। यह फैसला हिंदुत्व संगठनों की मांग पर लिया गया। इन संगठनों ने राज्य सरकार से टीपू सुल्तान के नाम पर होने वाले अनुष्ठानों को खत्म करने की मांग की थी, जिसमें सलाम आरती भी शामिल थी। माना जाता है कि 18वीं शताब्दी में मैसूर शासक टीपू ने इन मंदिरों में अपनी यात्रा के दौरान आरती का नामकरण सलाम आरती किया था।मानसिक गुलामी की दासता से मुक्त होकर स्वाभिमानी और समृद्ध राष्ट्र में सांस लें
हम अंग्रेजी राज की गुलामी से भले ही आजाद हो गए हों, लेकिन उसकी दासता के निशान अभी भी देश के कोने-कोने में बिखरे दिखाई पड़ते हैं। सड़कों से लेकर बस्तियों के नाम और न जाने कौन-कौन से प्रतीक हमें उसी दासता के बंधन से जोड़े हुए हुए हैं। यही वजह है कि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो पांच प्रण लेने का आह्वान किया, उनमें से एक गुलाम मानसिकता से मुक्ति का भी था। अच्छी बात है कि अब इस मोर्चे पर कुछ सकारात्मक संकेत दिखने लगे हैं। यह सही समय है जब हम गुलामी के प्रतीक चिह्नों से पीछा छुड़ाकर देश को मानसिक गुलामी की दासता से मुक्त करें, ताकि नई पीढ़ी एक स्वाभिमानी और समृद्ध राष्ट्र में सांस ले सकें। समग्रता में देखें तो 2014 से अब तक मोदी सरकार ने लगभग अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाने वाले सैकड़ों कानूनों को तिलांजलि दी है।पीएम मोदी सरकार ने अंग्रेजों के कानूनों से लेकर गुलामी के कई प्रतीकों को बदला
प्रधानमंत्री ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करने का सराहनीय फैसला किया। राजपथ का नामकरण इंग्लैंड के महाराज किंग जार्ज पंचम के सम्मान में किया गया था। गुलामी के उस प्रतीक को हटाना अनिवार्य हो गया था। मोदी सरकार ने यहां पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगाने का निर्णय किया, जिन्हें स्वतंत्र भारत के कथित इतिहासकारों ने वह स्थान नहीं दिया, जिसके वह सर्वथा सुपात्र थे। इसी प्रकार नौ सेना के नए ध्वज से ब्रिटिश नौसेना के उस प्रतीक को हटा दिया गया, जो पता नहीं किन कारणों से इन 75 वर्षों तक हमारी सामुद्रिक सेना के ध्वज से चिपका रहा। यह उचित ही है कि अब नौसेना के ध्वज में स्वाभिमान के पर्याय छत्रपति शिवाजी के प्रतीक की छाप अब नजर आ रही है। इससे पहले गणतंत्र दिवस पर बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में कई वर्षों से बजाई जाने वाली अंग्रेजी धुन के बजाय भारतीयता से ओतप्रोत धुन को वरीयता दी गई। टीपू सुल्तान ने शुरू कराई थी सलाम आरती, स्टेट अथॉरिटी मुजरई ने की संध्या आरती
अब वापस कर्नाटक पर आते हैं। दरअसल कर्नाटक के मेलकोट में ऐतिहासिक चालुवनारायण स्वामी मंदिर है। जहां हैदर अली और उसके बेटे टीपू सुल्तान के शासनकाल से हर दिन शाम 7 बजे सलाम आरती (मशाल सलामी) होती आ रही है। स्कॉलर और कर्नाटक धर्मिका परिषद के सदस्य कशेकोडि सूर्यनारायण भट ने इसका नाम बदलने की मांग की थी। भट ने कहा था सलाम शब्द हमारा नहीं टीपू का दिया हुआ है। मांड्या जिला प्रशासन ने इस प्रस्ताव को हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (मुजरई) को सौंप दिया था। हिंदू मंदिरों की देखरेख करने वाले स्टेट अथॉरिटी मुजरई ने नए नामकरण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग का सभी मंदिरों पर लागू होगा
हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (मुजरई) सीएम बसवराज बोम्मई से अंतिम मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहा है। इस कदम के बाद जल्द ही एक आधिकारिक आदेश जारी किया जाएगा, जिसके बाद न केवल मेलकोट में बल्कि कर्नाटक के सभी मंदिरों में आरती सेवाओं का नाम बदल दिया जाएगा। मुजरई मंत्री शशिकला जोले ने कहा, “इन फारसी नामों को बदलने और मंगला आरती नमस्कार या आरती नमस्कार जैसे पारंपरिक संस्कृत नामों को बनाए रखने के प्रस्ताव और मांगें थीं। इतिहास को देखें तो हम वही वापस लाए हैं जो पहले चलन में था।”विश्व हिंदू परिषद ने भी अनुष्ठान को “प्रदोष पूजा” कहने का आग्रह किया था
इससे पहले विश्व हिंदू परिषद ने कोल्लूर मंदिर के अधिकारियों से सुधार के लिए जाने और अनुष्ठान को “प्रदोष पूजा” कहने का आग्रह किया था। हालांकि मंदिर के कार्यकारी अधिकारी ने स्पष्ट किया था कि मंदिर के रिकॉर्ड में कहीं भी शाम की आरती का नाम “सलाम मंगलाआरथी” नहीं था। लेकिन टीपू सुल्तान की यात्रा के दौरान यह अस्तित्व में आया और बाद में इसका चलन हो गया था। लेकिन अब हिंदू मंदिरों की देखरेख करने वाले स्टेट अथॉरिटी मुजरई के नए नामकरण संध्या आरती को मंजूरी मिल जाने के कारण मंदिरों में सलाम आरती की जगह संध्या आरती ही की जाएगी। यह सही समय है जब हम गुलामी के प्रतीक चिह्नों से पीछा छुड़ाकर देश को मानसिक गुलामी की दासता से मुक्त करें, ताकि नई पीढ़ी एक स्वाभिमानी और समृद्ध राष्ट्र में सांस ले सकें।हिंदूवादी संगठन द्वारा टीपू सुल्तान का विरोध करने के ये हैं प्रमुख आधार
• यह ऐतिहासिक तथ्य है कि टीपू धर्मनिरपेक्ष नहीं, बल्कि एक असहिष्णु और निरंकुश शासक था। 2015 में आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में भी टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में एक लेख छपा था, जिसमें टीपू को दक्षिण का औरंगजेब बताया गया था।
• टीपू सुल्तान के संबंध में मशहूर लेखक चिदानंद मूर्ति कहते हैं, ‘वो बेहद चालाक शासक था। उसने दिखावे के लिए मैसूर में हिंदुओं पर अत्याचार नहीं किया, लेकिन तटीय क्षेत्र जैसे मालाबार में हिंदुओं पर बेहद अत्याचार किए।’
• 19वीं सदी में ब्रिटिश गवर्मेंट के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब ‘मालाबार मैनुअल’ में लिखा है कि टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी। टीपू सुल्तान ने पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी और इस दौरान उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध कर लटकाया गया। इस किताब में विलियम ने टीपू सुल्तान पर मंदिर, चर्च तोड़ने और जबरन शादी जैसे कई आरोप भी लगाए हैं।
• 1964 में प्रकाशित केट ब्रिटलबैंक की किताब ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ में कहा गया है कि सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा हिंदुओं और 70,000 से ज्यादा ईसाइयों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। जिन लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया, उन्हें मजबूरी में अपने-अपने बच्चों को शिक्षा भी इस्लाम के अनुसार देनी पड़ी। इनमें से कई लोगों को बाद में टीपू सुल्तान की सेना में शामिल किया गया।
• एकेडमिक माइकल सोराक के मुताबिक इस वक्त टीपू की छवि कट्टर मुगल बादशाह के तौर पर पेश करने के लिए उन फैक्ट को आधार बनाया गया, जो 18वीं सदी में अंग्रेज अधिकारी टीपू सुल्तान के लिए इस्तेमाल करते थे।
• भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने नवंबर 2018 में कहा था कि ‘टीपू ने अपने शासन का प्रयोग हिंदुओं का धर्मांतरण करने के लिए किया और यही उनका मिशन था। इसके साथ ही उसने हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा। हिंदू महिलाओं की इज्जत पर प्रहार किया और ईसाइयों के चर्चों पर हमले किए। इस वजह से हम ये मानते हैं कि उनकी जयंती पर समारोह आयोजित करने से युवाओं में गलत संदेश जाता है।’

 

 

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