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मोदी राज में बढ़ रही है धाक: अमेरिका ने भी माना- वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है भारत

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत लगातार तरक्की कर रहा है और नए मुकाम हासिल कर रहा है। मोदी राज में भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है । अमेरिका ने भी माना है कि भारत अब ताकतवर हो रहा है और वह क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के रूप में उभरते भारत का स्वागत करता है।नई दिल्ली में भारत और अमेरिका के बीच होने वाली 2+2 मंत्रीस्तरीय बैठक से पहले विदेश मंत्रालय ने एक फैक्ट शीट में कहा कि भारत के एक क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति बनकर उभरने का अमेरिका स्वागत करता है। अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के आगामी कार्यकाल के दौरान उसके साथ निकटता से काम करने को भी उत्सुक है। अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर और विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ नई दिल्ली में राजनाथ सिंह और एस. जयशंकर के साथ 2+2 मंत्रीस्तरीय बैठक करेंगे।

चीन ने भी माना- बढ़ रही है भारत की ताकत
इसके पहले चीन ने भी कहा कि भारत की राष्ट्रीय ताकत बढ़ रही है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी स्थिति मजबूत हो रही है। हिंदुस्तान के अनुसार चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारत और अमेरिका के बीच 2+2 बैठक और संभावित बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन अग्रीमेंट (BECA) को लेकर विस्तार से लेख छापा है। फुदान यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन स्टडीज सेंटर के डायरेक्टर और अमेरिकन स्टडीज सेंटर के प्रफेसर झांग जियाडोंग ने कहा है कि अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते मजबूत हो रहे हैं। लेख में कहा गया है कि इस मल्टीपोलर दुनिया में अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते मजबूत होंगे और इसमें बदलाव भी आएगा।

भारत बना एशिया का चौथा सबसे शक्तिशाली देश
मोदी राज में अब भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाला चौथा सबसे शक्तिशाली देश बन गया है। सिडनी स्थित लॉवी इंस्टीट्यूट ने 2020 के एशिया पावर इंडेक्स में 26 देशों और क्षेत्रों की सूची जारी की है। इसमें पहले स्थान पर अमेरिका, चीन दूसरे और जापान तीसरे स्थान पर है।

शोध अध्ययन के प्रमुख और लॉवी के एशिया पावर एंड डिप्लोमेसी प्रोग्राम के निदेशक हर्वे लेमाहियु ने बताया कि भारत ने सालभर में अपनी आर्थिक क्षमता में वृद्धि की है और सैन्य क्षमताओं को भी बढ़ाया है। चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत लगातार मजबूत हो रहा है। इस इंडेक्स के आधार पर रक्षा नेटवर्क के लिहाज से भारत अब चीन से इक्कीस है। एशिया पावर इंडेक्स के अनुसार आक्रामक नीति के कारण चीन के कूटनीतिक दबदबे में काफी गिरावट दर्ज की गई है।

पीएम मोदी के लीडरशिप में भारत न केवल विश्व क्षितिज पर दमदार स्थिति में आया है बल्कि ग्लोबल ताकत बन गया है। आइये हम ऐसे ही कुछ उदाहरण देखते हैं-

संयुक्त राष्ट्र ने की इजरायल-फिलिस्तीन के बीच मध्यस्थता के लिए भारत को आगे आने की बात
आज दुनिया भर में भारत की आवाज प्रभावी तरीके से सुनी जा रही है। अब संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि भारत इजरायल और फिलिस्तीन के बीच मध्यस्थता करे। संयुक्त राष्ट्र इजरायल और फिलिस्तीन को शांति समझौते के वास्ते राजी करने के लिए भारत की भूमिका चाहता है, क्योंकि नई दिल्ली का दोनों के साथ अच्‍छे संबंध है।

ईरान ने भी अमेरिका के साथ मध्यस्था की बात
हाल ही में अमेरिका-ईरान तनाव के बीच भारत में ईरान के राजदूत अली चेगेनी ने कहा कि दोनों देश के बीच तनाव को कम करने के लिए अगर भारत की तरफ से कोई पहल होती है तो ईरान उसका स्वागत करेगा। अली चेगेनी ने उम्मीद जताई कि अगर प्रधानमंत्री मोदी मध्यस्थता करें तो कुछ हल निकल सकता है। अली चेगेनी ने कहा है कि हम युद्ध नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि हम क्षेत्र में सभी के लिए शांति और समृद्धि चाहते हैं। इसके पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ईरान और अमेरिका के विदेश मंत्री से बात कर संयम बरतने की अपील की।

जर्मनी ने कहा सुरक्षा परिषद में भारत का न होना हमें मंजूर नहीं
हाल ही में जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को शामिल किए जाने की जोरदार वकालत की। भारत में जर्मनी के राजदूत वाल्टर लिंडनर ने कहा कि ये अचरज की बात है कि 140 करोड़ की आबादी वाला भारत सुरक्षा परिषद का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जल्द ही बदलाव नहीं किया जाता है तो लोग उस पर भरोसा करना छोड़ देंगे। लोग समझेंगे कि ये वास्तविकता से काफी दूर है। हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार उन्होंने कहा कि भारत को इसमें जरूर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यूएन में रिफॉर्म का अर्थ होगा इसे और ज्यादा विश्वसनीय और स्वीकार्य बनाना। राजदूत लिंडनर ने कहा कि आज की वैश्विक परिस्थितियों को देखे हुए भारत और जर्मनी यूएनएससी में शामिल किए जाने के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार हैं।

इंडिया नहीं तो RCEP में हम भी नहीं- जापान
हाल ही में RCEP को लेकर भारत को बड़ी रणनीतिक कामयाबी हासिल हुई है। जापान ने साफ कहा है कि अगर भारत रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप यानि RCEP का सदस्य नहीं बनता है तो जापान भी इसमें शामिल नहीं होगा। इकनॉमिक टाइम्स के अनुसार जापान के उप व्यापार मंत्री हिदेकि माकीहारा ने शुक्रवार को कहा कि हम अभी इस बारे सोच भी नहीं रहे हैं। हम भारत सहित सभी के साथ बातचीत के बारे में सोच रहे हैं। यह जापान के लिए सुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर अच्छा रहेगा, अगर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इस डील पर साइन कर लेता है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजों आबे दिसंबर में भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। यात्रा से पहले जापान का यह बयान काफी मायने रखता है।

भारत ने इसी महीने थाईलैंड में हुई RCEP की बैठक में ऐलान किया कि देश के किसानों और कारोबारियों के हितों को देखते हुए इस समझौते से दूर रहेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 4 नवंबर को बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि भारत 16 देशों के बीच होने वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक ढंग से समाधान नहीं किए जाने की वजह से ये फैसला लिया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत पिछले सात सालों के नेगोशियशन पर नजर रखे हुए है, लेकिन मौजूदा आरईसीपी समझौता पहले की मूल भावना से अलग है। आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है। भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी उत्पाद का हित संरक्षित होगा।

चीन की ओर से RCEP शिखर बैठक के दौरान समझौते को पूरा करने को लेकर काफी दबाव बनाया जा रहा था। भारत अपने उत्पादों के लिये बाजार पहुंच का मुद्दा काफी जोरशोर से उठा रहा था। भारत मुख्यतौर पर अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिये कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाये हुये था। देश के कई उद्योगों को ऐसी आशंका थी कि भारत यदि इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो देश में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी। भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी उत्पाद का हित संरक्षित होगा।

भारतीय हितों की रक्षा को लिए RECP समझौते में शामिल नहीं होने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऐलान की देशभर में प्रशंसा हो रही है। उद्योग जगत, कृषि जगत, कारोबारी जगत और राजनीतिक गिलयारों में हर कहीं इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ की जा रही है।

‘कट्टर तिकड़ी’ को एक साथ साध गए पीएम मोदी
विदेश नीति के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की उपलब्धियां आंकी जाए तो इस बात से अंदाजा लग जाएगा कि किस तरह उन्होंने इजरायल और फिलीस्तीन जैसे आपस में दुश्मन देशों के बीच संतुलन स्थापित किया। विशेष यह कि प्रधानमंत्री ने बारी-बारी दोनों ही देशों का दौरा किया और भारत की विदेश नीति के अपने स्टैंड पर कायम रहे। दोनों ही देशों ने भारत के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। जब प्रधानमंत्री ने फिलीस्तीन का दौरा किया तो ऐसा अद्भुत नजारा दिखा जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। जॉर्डन के हेलिकॉप्टर पर सवार प्रधानमंत्री मोदी फिलीस्तीन के आसमान में उड़ रहे थे और उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रही थी इजरायल की वायुसेना। विश्व राजनीति के लिए ऐसा अनोखा काम कोई और नही हो सकता है।


अमेरिका और रूस से एक साथ दोस्ती
अमेरिका और रुस की अदावत सभी जानते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की के कूटनीतिक कौशल के कारण आज दोनों ही देश भारत के साथ खड़े दिखते हैं। ब्रिक्स सम्मेलन में जिस तरह से रुस ने भारत का साथ देते हुए चीन की हेकड़ी गुम कर दी वह काबिले तारीफ है। ठीक इसी तरह पाकिस्तानपरस्त रहे अमेरिका को भारत की तरफ ले आना भी बड़ी बात है। आज अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका ने भारत से दोस्ती की खातिर आज पाकिस्तान को हर मंच पर अकेला छोड़ दिया है।

Asean देशों को चीन के ‘चंगुल’ से छुड़ाया
26 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली के राजपथ पर विश्व ने एक और अनोखा दृश्य तब देखा जब आसियान देशों के 10 राष्ट्राध्यक्ष भारत की जमीन पर एक साथ दिखे। थाइलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस और ब्रुनेई आसियान के नेताओं ने भारत को अपनी इस इच्छा से अवगत कराया है कि रणनीतिक तौर पर अहम भारत-प्रशांत क्षेत्र में ज्यादा मुखर भूमिका निभाए। साफ है कि आसियान देशों के नेताओं का पीएम मोदी पर भरोसा व्यक्त किया जाना विश्व राजनीति में भारत के दबदबे को दिखा रहा है।

जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा
जलवायु परिवर्तन पर काम करने के लिए भारत वैश्विक नेतृत्व को प्रेरित कर रहा है क्योंकि भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरत का 40% हिस्सा 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया है। भारत ने ऊर्जा के लिए कोयले से सौर की तरफ रूख करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। सौर और पवन ऊर्जा में भारी निवेश से बिजली की कीमतें भी कम हुई हैं। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार यह साहस भी दिखाया है जब अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग किया तो दुनिया की नजर भारत पर ठहर गई। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व मंच पर अपनी ताकतवर उपस्थिति दर्ज करा दी है। प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर ही इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का गठन हुआ जिसमें 121 देश शामिल हैं।

आतंकवाद पर दुनिया ने स्वीकारा पीएम मोदी का आह्वान
आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, आतंकवाद तो बस आतंकवाद होता है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की यही बात पहले अनसुनी रह जाती थी, लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक सुर में आतंक की निंदा कर रही है। आतंक के खिलाफ आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं। पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल हमारे साथ हैं। जी-20 हो या हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन, एससीओ हो, ब्रिक्स हो या सार्क समिट सभी ने हमारे साथ आतंकवाद को मानवता का दुश्मन बताते हुए दुनिया को इसके खिलाफ एक होने का आह्वान किया है।

भारत ने जीता अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन का चुनाव
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातर बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत को एक और कामयाबी मिली है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन का चुनाव जीत लिया है। कुल 10 सदस्यों वाले इस संगठन का भारत 1959 से सदस्य है। फिलहाल जो चुनाव हुआ है वह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन की एक काउंसिल के लिए हुआ है। यहां वह काउंसिल कैटेगरी बी की है जिसके लिए पहली बार चुनाव हुआ है। नौवहन मंत्री नितिन गडकरी ने खुद लंदन जाकर IMO के वार्षिक समारोह में हिस्सा लिया था और भारत के लिए सपोर्ट भी मांगा था। IMO यूएन की ऐसी एजेंसी है जो नौवहन के बचाव और सुरक्षा पर नजर रखती हैं। यह एजेंसी जहाजों द्वारा फैलाए जाने वाले प्रदूषण पर भी नजर रखती है। भारत और जर्मनी के साथ ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा, स्पेन, ब्राजील, स्वीडन, नीदरलैंड और यूएई इसके सदस्य हैं।

ICJ में भारत का झंडा बुलंद
संयुक्त राष्ट्र में भारत को बड़ी जीत तब मिली जब दलवीर भंडारी लगातार दूसरी बार अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में जज बन गए। दलवीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था, लेकिन आखिरी दौर में अपनी हार देखते हुए उन्हें नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। दरअसल शुरुआती ग्यारह राउंड में दलवीर भंडारी संयुक्त राष्ट्र महासभा की वोटिंग में ग्रीनवुड पर भारी बढ़त बनाए हुए थे, लेकिन सुरक्षा परिषद में ग्रीनवुड आगे हो जाते थे। यूएन महासभा में दलवीर भंडारी को 183 वोट मिले, जबकि उन्हें सुरक्षा परिषद के सभी 15 वोट मिले। गौर करें तो यह जीत भंडारी की नहीं बल्कि भारत के उस बढ़े कद की है जो पिछले पांच सालों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बढ़ा है। कभी दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटेन आज भारत के सामने बौना साबित हो रहा है।

जा‍निए आखिर कैसे दलवीर भंडारी की वजह से पहली बार ब्रिटेन को मिली हार

प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर बना ‘अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन’
दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए चिंता जता रही थी, लेकिन भारत ने बड़ी पहल की और वैश्विक स्तर पर अमेरिका और फ्रांस के साथ इसके लिए इनोवेशन की तरफ कदम बढ़ाया गया। 26 जनवरी, 2016 को गुरुग्राम में जब प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ (आईएसए) के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया तो एक ‘नये अध्याय’ की शुरुआत हुई। दरअसल ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई पहल का परिणाम है और इसकी घोषणा भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवंबर 2015 को पेरिस में की गई थी। आईएसए के गठन का लक्ष्य सौर संसाधन समृद्ध देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और इसे बढ़ावा देना है। 

डोकलाम पर चीन ने देखी भारत की धमक
अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक-टैंक हडसन इंस्टिट्यूट के सेंटर ऑन चाइनीज स्ट्रैटजी के डायरेक्टर माइकल पिल्स्बरी नो कहा कि चीन की बढ़ती ताकत के समक्ष मोदी अकेले खड़े हैं। दरअसल ये टिप्पणी उन्होंने ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना को ध्यान में रखते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और उनकी टीम चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के खिलाफ मुखर रही है। दरअसल अमेरिकी थिंक टैंक का मानना बिल्कुल सही है, क्योंकि भारत ने चीन को डोकलाम विवाद में भी अपनी दृढ़ता का परिचय करा दिया है और चीन को अपनी सेना को वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा। चीन ने भारत को युद्ध की भी धमकी दी लेकिन पीएम मोदी की नीतियों से चीन अकेला हो गया और पश्चिमी देशों ने उसे संयम बरतने की सलाह दी। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े रहे।

अंतरिक्ष कूटनीति से सार्क को दी नई दिशा
प्रधानमंत्री मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरूरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।

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प्रधानमंत्री मोदी की नीति से पस्त हुआ पाकिस्तान
मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति के प्रभाव से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति में ऐसा घिरा है कि उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। हाल में ही जब चीन ने पाकिस्तान की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर ओबीओआर को नुकसान पहुंचाने के लिए भारत की साजिश की बात कही थी। दूसरी ओर अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है तथा वह पाकिस्तान से सहयोग में भी लगातार कटौती कर रहा है। पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत को दुनिया का साथ
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। जम्मू-कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 29 सितम्बर 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैठ को तबाह किया तो विश्व समुदाय भारत के साथ खड़ा रहा। इस के साथ ही पहली बड़ी सफलता 28 सितंबर को तब मिली जब पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद तीन अन्य देशों (बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान) ने उसका समर्थन करते हुए सम्मेलन में ना जाने की बात कही। वहीं नेपाल ने सम्मेलन की जगह बदलने का प्रस्ताव दिया और पाकिस्तान के आंतकवाद के कारण सार्क सम्मेलन न हो सका। इसके अलावा चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली।

सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता को कई देशों का समर्थन
2014-15 में प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न देशों की यात्राएं कीं। कई लोगों ने इन यात्राओं पर तंज भी कसे और कुछ ने तो उन्हें ‘एनआरआई प्रधानमंत्री’ तक कह डाला, लेकिन इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी नुख्ताचीनी पर बिना ध्यान दिये अपनी यात्रा को व्यापक बना रहे थे। इन यात्राओं में वे तीन प्रमुख एजेंडों के साथ आगे बढ़ रहे थे। अलग-अलग देशों के साथ संबंधों में सुधार, निवेश आमंत्रित करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सीट के लिए समर्थन जीतना उनका प्रमुख उद्देश्य था। दरअसल भारतीय इतिहास में कोई और प्रधानमंत्री नहीं जिन्होंने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए इतनी मेहनत की है। अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देशों के राजदूत और नेताओं को भारत के पक्ष में लाकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए लगभग सभी देशों का समर्थन हासिल कर लिया। यह समर्थन इस अंतरराष्ट्रीय मंच की स्थिति के लिए भारत की पात्रता दिखाने के उनके प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम था।

पीएम मोदी के आह्वान से योग को दुनिया ने दिया समर्थन
प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर 21 जून, 2015 को विश्व के 192 देश जब ‘योगपथ’ पर चल पड़े तो सारे संसार में योग का डंका बजने लगा। आधुनिकता के साथ अध्यात्म का मोदी मंत्र दुनिया के देशों को भी भाया और इसी कारण पीएम मोदी की पहल को 192 देशों का समर्थन मिला। 177 देश योग के सह प्रायोजक के तौर पर इस आयोजन से जुड़ भी गए। अब पूरी दुनिया योग शक्ति से आपस में जुड़ी हुई महसूस होने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनथक प्रयास से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। यह अनायास नहीं है कि पूरी दुनिया में योग का डंका बज रहा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारत की नीति और भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति से प्रभावित प्रधानमंत्री मोदी ने योग का पूरी दुनिया में प्रसार किया है।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की एक ऐसी शक्ति बनकर उभरा है जिसे झुकाया नहीं जा सकता। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का अहम स्थान है, तो सामरिक क्षेत्र में भी भारत ने अपनी हनक का अहसास कराया है। सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में भारत ने जहां अपनी जिम्मेदारी निभाई है, वहीं पर्यावरण संतुलन जैसे मुद्दे पर भी भारत की पहल सराहनीय रही है। आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख ने जहां देश-दुनिया को सोचने को मजबूर किया है, वहीं विश्व शांति की ओर भारत के प्रयासों को दुनिया के देशों ने मान्यता दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। विदेश नीति के तौर पर उनकी उपलब्धियां आंकी जाए तो पीएम मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातार बढ़ रहा है।

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