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राजीव गांधी के बोफोर्स स्कैम से भी बड़ा है, राहुल-सोनिया का राफेल घोटाला!

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जिस राफेल डील को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी झूठ पर झूठ बोल रहे हैं, शायद इसके पीछे कांग्रेस का बोफोर्स से भी बड़े स्कैम का मंसूबा छुपा है। इस बात का खुलासा न्यूज पोर्टल mynation में छपी एक लेख से होता है। लेख में ये सवाल उठाया गया है कि राहुल गांधी फ्रांस के जहाजों की कीमत, उसके सौदे-मसौदे और एयर फोर्स की आवश्यकताओं को दरकिनार कर, 10 सालों तक डील को लटकाने के पीछे का सच क्यों नहीं बता रहे हैं?

दरअसल, राफेल को लेकर कांग्रेस दो दावे कर रही है। पहला, एनडीए सरकार ने यूपीए की तुलना में फाइटर जेट के लिए अधिक भुगतान किया और दूसरा, सरकार ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की जगह एक निजी कंपनी को प्राथमिकता दी। लेकिन, इन दोनों बातों में वो झूठ बोल रही है।

यूपीए ने राष्ट्रहित से किया खिलवाड़
सच्चाई ये है कि भारतीय वायुसेना को वर्ष 2000 में ही 126 फाइटर जेट की आवश्यकता थी और इसे 2010 तक MIG-21 की जगह तैनाती होनी थी। ताकि, दुश्मन के खिलाफ एयर फोर्स की धार मजबूत बनी रहे। वायुसेना मुख्यालय 2003 में ही इसके लिए टेंडर जारी करने के लिए तैयार था, लेकिन डिफेंस एक्युजिशन काउंसिल ने 29 जून, 2007 को इसे हरी झंडी दिखाया। लेकिन, इसके बाद भी 2007 से 2014 तक यूपीए की दो सरकारें एयर फोर्स की जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रहीं। नतीजा, वायु सेना के लड़ाकू बेड़े को फाइटर जेट की कमी झेलने को मजबूर होना पड़ा। एक तरह से यूपीए ने ऐसा कर के राष्ट्रहित के साथ खिलवाड़ किया। इसके लिए शुरू में 6 कंपनियों ने बोलियां लगाई, जिनमें से एयर फोर्स के मूल्यांकन समिति ने 2010 में दो जहाजों यूरोफाइटर टाइफून और राफेल को पसंद किया।

क्या यूपीए में दलाली के चलते फंसी डील ?
तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने इन सिफारिशों पर विचार करते-करते पहले तो एक साल और गंवा दिया। अगले दो साल तक उठापटक के बाद दोनों में से Dassault Aviation (राफेल निर्माता) विजेता बनकर उभरी। उसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और दूसरी कंपनियों से भी अलग से समझौते करने थे। लेकिन, Dassault Aviation को ही एयर फोर्स को सभी 126 विमान उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी लेनी थी, जिनमें से 108 विमान भारत में बनाए जाने थे। बाद में कंपनी इस बात पर कायम नहीं रह सकी और सरकार के साथ गतिरोध शुरू हो गया। पहले तो यूपीए सरकार ने कंपनी को बिना कोई चेतावनी दिए सौदे से पीछे हटने को कह दिया और फिर अचानक ए के एंटनी ने उससे जुड़े दस्तावेजों को पुनर्विचार के नाम पर फिर अपने पास मंगा लिया। सरकार के इस रवैये ने बातचीत से जुड़े अधिकारियों के सामने भी बड़ा असमंजस खड़ा कर दिया। वो समझ नहीं पा रहे थे कि सरकार का मन आगे-पीछे क्यों हो रहा है?

मोदी सरकार ने राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी
एयर फोर्स की जरूरतों के प्रति यूपीए सरकार की असंवेदनशीलता के बीच मई, 2014 में बनी मोदी सरकार पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी। सरकार ने रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों से कहा कि जितनी जल्दी हो, गतिरोध खत्म करे। जब, नवंबर 2014 में मनोहर पर्रिकर रक्षा मंत्री बने तो उन्होंने महसूस किया कि पिछली सरकार ने फाइटर जेट खरीद प्रक्रिया को इतना उलझा दिया था कि उसे आगे बढ़ाना आवश्यकताओं को देखते हुए उचित नहीं था। एयर फोर्स की ओर से उन्हें साफ कर दिया गया था कि अब फाइटर जेट खरीदने में देरी करना किसी भी परिस्थिति में सही नहीं होगा। एयर फोर्स नेतृत्व की ओर से उन्हें बताया गया कि वे राफेल की क्षमता से वे खुश हैं और उपलब्ध विकल्पों की तुलना में वही बेहतरीन भी है। पर्रिकर ने प्रधानमंत्री को भी यह बात बताई और कहा कि पुरानी सरकार की प्रक्रिया पर आगे बढ़ना अब कानूनी रूप से भी सही नहीं रह गई है। सीवीसी की गाइडलाइंस के मुताबिक बोली में दूसरे नंबर पर आने वाली कंपनी से करार करना भी संभव नहीं था। ऐसी परिस्थितियों में टेंडर को खत्म कर के वायु सेना की तत्कालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ फाइटर राफेल विमान खरीदने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा था। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। 10 अप्रैल, 2015 को पेरिस में प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ हुए साझा प्रेस कांफ्रेंस में 36 राफेल जेट खरीदने की नीतिगत घोषणा की गई।

यूपीए के सौदे से बेहतर है, एनडीए की डील
राफेल सौदे के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अगुवाई में रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कड़ी सौदेबाजी की, जिसमें करीब 15 महीने लग गए। लेकिन, इसके चलते एयर फोर्स को जो राफेल मिलेगा वो पहले के प्रस्तावित सौदे से कहीं ज्यादा बेहतर और सस्ता है। इसके साथ जो मिसाइल और हथियार जुड़ेंगे वह इसकी मारक क्षमता को कई गुना उन्नत बनाती है। भारतीय वायुसेना को जो राफेल मिलने वाले हैं, वो 13 विशेष क्षमताओं से लैस हैं और दूसरे देशों को मिले राफेल में मौजूद नहीं है। भारत को मिलने जा रहे राफेल को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि फाइटर पायलट एक साथ कई चुनौतियों का अकेला सामना कर सकता है।

अब सवाल उठता है कि जब यूपीए के समय कोई डील फाइनल हुई ही नहीं  तो कीमतों की तुलना की बात ही कहां उठती है। यही नहीं अभी तक कोई ऑफसेट ठेका भी तय नहीं किया गया है। यानि, एनडीए सरकार ने जिन परिस्थितियों में राफेल विमान खरीदने का फैसला किया वो आपातकालीन परिस्थितियों में हुआ, क्योंकि देश की सुरक्षा के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। जबकि, यूपीए सरकार ने 10 वर्षों से अधिक जिन परिस्थितियों में वायु सेना की जरूरतों को अजरअंदाज किया, उससे दलाली की बू आना स्वभाविक है। जबकि इसके चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ किया गया। 

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