Home समाचार कट्टर मुस्लिम संगठन के आगे उद्धव ठाकरे की इज्जत हुई तार-तार

कट्टर मुस्लिम संगठन के आगे उद्धव ठाकरे की इज्जत हुई तार-तार

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हिंदुत्व और मराठा गौरव के बल पर अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली शिवसेना उद्धव ठाकरे के पुत्रमोह के कारण अब न घर की रही न घाट की। कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की चाह में बीजेपी का साथ छोड़ने वाले उद्धव ठाकरे का हाल धोबी के कुत्ते सा हो गया है। सेकुलर के नाम पर कट्टर मुस्लिम संगठनों के आगे सिर झुकाने वाली कांग्रेस ने शिवसेना की इज्जत तार-तार कर दी है। कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख अरशद मदनी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा है। पत्र में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कांग्रेस से शिवसेना को समर्थन नहीं देने की अपील की है। इस पत्र में साफ कहा गया है कि शिवसेना को समर्थन देना कांग्रेस के लिए घातक साबित होगा। अरशद मदनी ने लिखा, ‘मैं आपका ध्यान महाराष्ट्र के राजनीति की तरफ आकर्षित करना चाहता हूं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप शिवसेना का समर्थन करने के बारे में सोच रही हैं। यह कांग्रेस के लिए बहुत ही खतरनाक और घातक कदम साबित होगा। उम्मीद है कि आप मेरा निवेदन अच्छी भावना के साथ लेंगी।’

जमीयत उलेमा-ए-हिंद वही मुस्लिम संगठन है जिसने हिंदुवादी नेता कमलेश तिवारी के हत्यारों को मदद की पेशकश की थी। हत्या का विरोध करने और हत्यारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की बात करने के बजाय जमीयत उलेमा-ए-हिंद हत्यारों के बचाव में सामने आया था।

इसी कट्टरपंथी संगठन से पत्र मिलने के बाद सोनिया गांधी से मिलने वाले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि सरकार बनाने को लेकर कोई बात नहीं हुई। शरद पवार ने कहा कि शिवसेना ने विधानसभा चुनाव कांग्रेस-एनसीपी के खिलाफ लड़ा था। ऐसे में उसके सरकार कैसे बनाई जा सकती है। साफ है बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाने का सपना देखने वाली शिवसेना की उम्मीदें बिखर गई है। जबकि बीच में खबर आने लगी थी कि कांग्रेस के कहने पर शिवसेना अपनी हिंदुत्व के पहचान को छोड़ने को भी तैयार है। कांग्रेस एनसीपी का मौजूदा रुख शिवसेना के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है।

पुत्रमोह में हो रही फजीहत
महाराष्ट्र में कभी शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे की तूती बोलती थी, लेकिन पुत्रमोह में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के सामने पार्टी की फजीहत करा दी है। सत्ता के लिए उद्धव ठाकरे ने पार्टी के साथ-साथ बाला साहेब ठाकरे के आदर्शों की बलि चढ़ा बीजेपी का 30 साल पुराना साथ छोड़ दिया। शिवसेना जिन पार्टियों को रावण का दर्जा देती थी, सत्ता मोह में उन्हीं के साथ चलने को तैयार हो गई। 

कांग्रेस ने उद्धव ठाकरे के पुत्र और सत्ता मोह का पूरा फायदा उठाकर शिवसेना को ना सिर्फ विचारधारा से अलग कर दिया, बल्कि एनडीए से भी बाहर करवा दिया। कम सीट मिलने पर भी बीजेपी से जहां बिना किसी शर्त शिवसेना को डिप्टी सीएम का पद मिल रहा था, वहीं विचारधारा की तिलांजलि देने के साथ शर्त मानने पर भी कांग्रेस एनसीपी से कुछ मिलता नहीं दिख रहा है। मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के मुद्दे से अलग होने के बाद शिवसेना की हालत माया मिली ना राम जैसी हो गई है।

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