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PoK पर गरजे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह- बाबा अमरनाथ हमारे पास हैं तो शारदा शक्तिपीठ LOC के पार कैसे? PoK भारत का अभिन्न हिस्सा था और है…जानिए शारदा पीठ का पूरा इतिहास

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पाकिस्तान पर शानदार विजय के 23वें कारगिल दिवस के मौके पर जम्मू में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय सेना के बलिदान को याद किया। पाकिस्तान की नापाक हरकत के रूप में सामने आए कारगिल युद्ध दिवस पर उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) भारत का अभिन्न अंग है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर, भारत का अभिन्न हिस्सा था, भारत का हिस्सा है और हमेशा-हमेशा रहेगा। रक्षा मंत्री ने कहा कि ऐसा कैसे संभव है कि बाबा अमरनाथ शिव के रूप में हमारे साथ हैं तो मां शारदा की शक्तिपीठ LOC के दूसरी तरफ कैसे रह सकती है। कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी मां शारदा की इस पीठ पर हिंदू देवी सरस्‍वती का मंदिर है, जिन्‍हें शारदा भी कहा जाता है। रक्षा मंत्री राजनाथ ने शारदा पीठ का जिक्र करते हुए कहा कि संसद में PoK के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित हो चुका है।धार्मिक मान्यता है कि यहां सती का दायां हाथ गिरा था, यह शक्तिपीठों में से एक है
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के इस बयान के बाद मां शारदा शक्ति पीठ के इस मंदिर को लेकर चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई, जो 75 सालों से PoK में है। यह हिंदू धर्म की देवी सरस्वती का एक प्राचीन मंदिर है, जो अब खंडहर में तब्दील हो रहा है। इस पीठ का इतिहास सदियों पुराना है और शारदा पीठ को महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यहां माता सती का दायां हाथ गिरा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती की मृत्यु के बाद शोकाकुल भगवान शिव सती के शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से 51 हिस्सों में काट दिया था। ये सभी हिस्से धरती पर जहां गिरे, वे सभी पवित्र स्थल बन गए और शक्ति पीठ कहलाए।

भारत-पाक बंटवारे से पहले तीन प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल था शारदा पीठ
यह पीठ नीलम, मधुमती और सरगुन नदी की धाराओं के संगम के पास हरमुख पहाड़ी पर करीब 6500 फीट की ऊंचाई पर है, जो PoK के मुजफ्फराबाद से 140 किलोमीटर और कश्मीर के कुपवाड़ा से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे से पहले शारदा पीठ, मार्तंड सूर्य मंदिर और अमरनाथ गुफा के साथ जम्मू-कश्मीर के तीन प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल था। अब मंदिर खंडहर हालत में है बिना किसी साज-सज्जा वाले मंदिर में अब बस पत्थरों के स्लैब ही बचे हैं। 2009 में प्रकाशित हुई किताब ‘कल्चरल हेरिटेज ऑफ कश्मीरी पंडित्स’ में कश्मीरी लेखक अयाज रसूल नाजकी ने शारदा पीठ से जुड़ी एक लोक कथा का जिक्र किया है। इस कथा के अनुसार- अच्छाई और बुराई के बीच युद्ध के दौरान देवी शारदा ने ज्ञान के पात्र की रक्षा की थी। शारदा देवी ये पात्र लेकर घाटी में गईं और उसे एक गहरे गड्ढे में छिपा दिया। इसके बाद उन्होंने उस पात्र को ढंकने के लिए खुद को एक ढांचे में बदल लिया। अब यही ढांचा शारदा पीठ के रूप में खड़ा है।कश्मीरी पंडितों की कुल देवी हैं मां शारदा, उनका तीर्थस्थल है शारदा पीठ
‘नमस्ते शारदा देवी कश्मीर पुर वासिनी त्वम अहम् प्रथये नित्यं विद्याधनं चे दे ही माही।’ इसका अर्थ है- ‘आपको प्रणाम, शारदा देवी, कश्मीर की निवासी, मैं आपकी हमेशा प्रशंसा करता हूं, मुझे ज्ञान का धन दो।’ ये प्रार्थना कश्मीरी पंडितों की मां शारदा की रोज की पूजा का हिस्सा है। शारदा देवी कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी हैं और शारदा पीठ कश्मीरी पंडितों के लिए एक तीर्थस्थल है। शारदा पीठ को 18 अष्टादश महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है।

कश्मीर के ताकतवर हिंदू राजा ललितादित्य ने बनवाया था शारदा पीठ मंदिर
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो इस मंदिर के निर्माण हजारों साल पुराना है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शारदा पीठ का निर्माण 5 हजार साल पहले 273 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के समय में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पहली सदी में कुषाण वंश के शासन के दौरान हुआ था। शारदा मंदिर पर केस स्टडी करने वाले फैज उर रहमान का कहना है कि शिक्षाविदों के मुताबिक शारदा पीठ का निर्माण कश्मीर पर शासन करने वाले कर्कोटा राजवंश के ताकतवर हिंदू शासक ललितादित्य मुक्तपीड ने कराया था। ललितादित्य ने कश्मीर पर 724 ईस्वी से 760 ईस्वी तक शासन किया था। इस दावे को इसलिए भी सही माना जाता है कि क्योंकि राजा ललितादित्य बड़े-बड़े मंदिरों के निर्माण में माहिर थे।

11-12वीं सदी के कवियों की पुस्तकों में भी है मां शारदा पीठ का उल्लेख
शारदा पीठ मंदिर आर्किटेक्चर, डिजाइन और कंस्ट्रक्शन स्टाइल में अनंतनाग स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर से काफी मिलता-जुलता है। मार्तंड मंदिर का निर्माण भी ललितादित्य ने ही कराया था। 11वीं सदी में कश्मीरी कवि बिल्हण ने शारदा पीठ के अध्यात्म और शिक्षा की अहमियत के बारे में लिखा था। 11वीं सदी में भारत आने वाले फारसी विद्धान अल-बरूनी ने मुल्तान सूर्य मंदिर, स्थानेश्वर महादेव मंदिर और सोमनाथ मंदिर के साथ ही शारदा पीठ का जिक्र भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे चर्चित मंदिरों के रूप में किया था। 12वीं सदी में प्रसिद्ध कश्मीरी कवि कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में शारदा पीठ का जिक्र एक प्रमुख पूजा स्थल के रूप में किया गया था।

शंकराचार्य और कश्मीरी कवि कल्हण समेत कई विद्वानों ने की शारदा यूनिवर्सिटी में पढ़ाई
शारदा पीठ का सबसे पुराना लिखित जिक्र छठी से आठवीं सदी के दौरान नीलमत पुराण में मिलता है। नीलमत पुराण, कश्मीर के इतिहास के बारे में सबसे प्राचीन पुस्तक है। छठी से 12वीं शताब्दी के दौरान शारदा पीठ न केवल एक मंदिर,बल्कि शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र भी था। शारदा पीठ के परिसर में शारदा यूनिवर्सिटी थी, जहां पढ़ने के लिए देश-विदेश से छात्र आते थे। इसी में शंकराचार्य और कश्मीरी कवि कल्हण भी पढ़े हैं। शारदा यूनिवर्सिटी में करीब 5 हजार छात्र पढ़ते थे और वहां दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी थी। उस समय शारदा यूनिवर्सिटी की गिनती नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षा के चर्चित केंद्रों में होती थी।

धर्म-अध्यात्म और शिक्षा का केंद्र शारदा पीठ खंडहर में कैसे हुआ तब्दील?
इतिहासकारों का कहना है कि भारत में मुस्लिम शासन के दौरान शारदा पीठ को लगातार नजरअंदाज किया गया और मंदिर के विकास को दबाने की कोशिशें हुई थीं। शारदा पीठ में हर साल तीर्थ यात्रियों का एक सालाना मेला लगता था, जो 1947 में मंदिर के PoK में जाने के बाद बंद हो गया था। इसके अलावा ये मंदिर जिस इलाके में है, वहां काफी भूकंप आते हैं। मंदिर के खंडहर होने की एक वजह यहां आने वाले भूकंपों को भी माना जाता है। अक्टूबर 2005 में PoK में आए एक जोरदार भूकंप में मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था। इसकी देखरेख का जिम्मा पाकिस्तान ऑर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट के पास है, लेकिन पाक सरकार ने इसके जीर्णोद्धार के लिए कभी कोई काम नहीं किया है।आदि शंकराचार्य ने खोला था शारदा पीठ का चौथा द्वार
14वीं सदी में लिखे गए माधवीय शंकर विजयम में ‘सर्वजन पीठम’ नाम की परीक्षा का जिक्र है। शारदा पीठ के चार द्वार थे और कोई विद्वान ही इन्‍हें खोल सकता था। ये द्वार पहले भी खोले जा चुके थे, मगर दक्षिणी द्वार को कोई नहीं खोल सका था। शंकराचार्य ने चुनौती स्‍वीकार कर ली। केरल से पैदल चलकर कश्‍मीर पहुंचे। लोगों ने उनका स्‍वागत किया, मगर विद्वान तुनक गए। जैसे ही वह दक्षिणी द्वार के पास पहुंचे, उन्‍हें न्‍याय दर्शन, बौद्ध, दिगंबर जैन के विद्वानों ने रोक लिया। फिर आदि शंकराचार्य ने उन सबको शास्‍त्रार्थ में पराजित कर दिया। जैसे ही शंकराचार्य प्रवेश करने को थे, उन्‍हें देवी शारदा ने चुनौती दी। उस आवाज ने कहा कि प्रवेश के लिए केवल सर्वज्ञानी होना पर्याप्‍त नहीं, पवित्र भी होना चाहिए और चूंकि शंकराचार्य राजा अमरूक के महल में रहे थे, पवित्र नहीं हो सकते। शंकराचार्य ने जवाब दिया कि उनके शरीर ने कभी कोई पाप नहीं किया है और किसी और के पाप उन पर नहीं लादे जा सकते। मां शारदा ने शंकराचार्य का तर्क स्‍वीकार कर लिया और उन्‍हें अनुमति दे दी। दक्षिण भारत के ब्राह्मण आज भी शारदा पीठ को नमन करके कर्मकांड करते हैं।

करतारपुर कॉरिडोर के साथ तेज हुई शारदा पीठ के दर्शन की अनुमति देने की मांग
भारतीय तीर्थयात्रियों को शारदा पीठ जाने की अनुमति दिए जाने की मांग अतीत में भी उठ चुकी है। ये मांग नवंबर 2019 में करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद और तेज हो गई। करतारपुर कॉरिडोर बनने से भारतीय सिखों के पाकिस्तान स्थित गुरद्वारा दरबार साहिब जाने का रास्ता खुल गया। साल 2007 में देश के पूर्व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान सरकार से शारदा पीठ के जीर्णोद्धार की मांग की थी। 2019 में कई मीडिया रिपोर्ट्स में पाकिस्तानी सरकार के भारतीयों के शारदा पीठ दर्शन के लिए एक कॉरिडोर बनाने की खबरें आई थीं, लेकिन बाद में पाकिस्तानी सरकार ने इस दिशा में आगे कोई प्रयास नहीं किया।

सुपरहिट फिल्म कश्मीर फाइल्स में भी शारदा पीठ का जिक्र

फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में भी शारदा शक्तिपीठ का जिक्र आया है। इसी फिल्म के एक डायलॉग ने 73 साल पुरानी परंपरा को फिर से जिंदा कर दिया है। इस डायलॉग का सिरा पकड़कर चित्तौड़गढ़ के आर्किटेक्ट व्यवसायी चंद्रशेखर चंगेरिया ने पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित शारदा पीठ की मौजूदा स्थिति को जाना। देश की 51 शक्तिपीठों में से एक शारदा पीठ की ‘दुर्दशा’ से चंगेरिया आहत हुए और उन्होंने मित्रों की मदद से 73 साल बाद नवरात्र में शारदा पीठ पर मां की वर्चुअल पूजा-अर्चना कराई। मंत्रोचार हुए और पुष्प अर्पित किए गए। 

अनुपम खेर के डायलॉग से शारदा पीठ को खोजकर पूजा कराने का इरादा किया
शारदा पीठ के लिए ये पहल वहां से 900 किमी दूर बसे चित्तौड़गढ़ के आर्किटेक्ट व्यवसायी चंद्रशेखर चंगेरिया ने की। दरअसल, चंद्रशेखर कुछ दिन पहले द कश्मीर फाइल्स मूवी देख रहे थे। फिल्म में पुष्कर नाथ पंडित का रोल कर रहे अनुपम खेर का डायलॉग था ‘जहां शिव, सरस्वती, ऋषि कश्यप, शंकराचार्य हुए, वो कश्मीर हमारा, जहां पंचतंत्र लिखा गया, वो कश्मीर हमारा’। फिल्म देखने के बाद चंद्रशेखर ने जानकारी जुटाई तो शारदा पीठ के बारे में पता चला। चंद्रशेखर ने चैत्र नवरात्रि में यहां पूजा करवाने की ठानी।

सरस्वती को समर्पित शारदा पीठ ज्ञान और हिंदू जागरण का प्रमुख केंद्र
इस स्टोरी के आगे जाने से पहले शारदा पीठ का इतिहास जान लेने जरूरी हो जाता है। शारदा पीठ को कई हजार साल पुराना माना जाता है। यह श्रीनगर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर पीओके में है। प्रमुख शक्तिपीठों में से एक यह पीठ कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। हालांकि अब इसके अवशेष ही बचे हैं। कहा जाता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान 237 ईसा पूर्व में शारदा मंदिर की स्थापना हुई थी। हिंदू देवी सरस्‍वती को शारदा भी कहते हैं। उन्‍हीं को समर्पित शारदा पीठ प्राचीन कश्‍मीर में ज्ञान और हिंदू जागरण का केंद्र था।

शारदा बचाओ कमेटी और गांव के युवाओं के सहयोग से पीठ पर पहुंची पूजा सामिग्री
इस शारदा पीठ के महत्व को जान लेने के बाद अब आते हैं वर्तमान में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ निवासी चंद्रशेखर की भक्ति पर। द कश्मीर फाइल्स देखने के बाद उन्होंने इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि शारदा पीठ POK के नीलम घाटी जिले के शारदा गांव में है। चंद्रशेखर ने कश्मीरी पंडितों के हक के लिए संघर्षरत और शारदा बचाओ कमेटी से जुड़े रविन्द्र पंडित से संपर्क किया। उन्होंने भी कुछ जानकारी दी। इसके बाद चंद्रशेखर ने इंटरनेट के जरिए ही शारदा गांव के कुछ दुकानदारों के फोन नंबर जुटाए। गांव में रह रहे एक युवक से बात की तो वह शारदा पीठ तक पूजा सामग्री पहुंचाने के लिए राजी हो गया। इस युवक का उसके दो स्थानीय दोस्तों ने भी सहयोग किया।

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से शारदा पीठ पर की गई वर्चुअल पूजा अर्चना
इस तरह चंद्रशेखर ने चैत्र नवरात्रि के पहले दिन खंडहर हो चुकी शारदा पीठ में वीडियो कॉल के जरिए फूल-फल, अगरबत्ती और नोट बुक-कलम भेंट करते हुए ऑनलाइन पूजा की। चंद्रशेखर ने बताया कि ऑनलाइन पूजा के दौरान उनके मित्र भरत सोनी, एकता शर्मा, प्रकाश कुमावत, दिलीप लोढ़ा, हर्षित जीनगर, राजेश साहू, सोनू वैष्णव, हितेश नाहर एवं मांडलगढ़ से ऋषि कुमावत ने शारदा पीठ के दर्शन किए। शारदापीठ मंदिर पर पूजा के लिए चंगेरिया और उनकी मदद करने वाले लोगों ने मंदिर तक पहुंचने के लिए तीर बार कोशिश की। आर्मी एरिया होने से वहां पहुंचना संभव नहीं था। इसके बाद शनिवार को तीनों मंदिर में पहुंच गए और पूजा-अर्चना की।कभी सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक शारदा पीठ अब खंडहर में तब्दील
चंद्रशेखर के मुताबिक शारदा पीठ कभी कश्मीरी पंडितों समेत सभी हिंदुओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थल है। 73 साल से यहां पूजा-अर्चना भी बंद थी। इस मंदिर को ऋषि कश्यप के नाम पर कश्यपपुर के नाम से भी जाना जाता था। शारदा पीठ भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक था। शैव संप्रदाय के जनक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ही यहां आए और महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। 11वीं शताब्दी में लिखी गई संस्कृत ग्रन्थ राज तरंगिणी में शारदा देवी के मंदिर का उल्लेख है। फोटो साभार-दैनिक भास्कर।

 

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