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कांग्रेस ने 1984 के दंगों में क्लीनचिट देने वाले चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को भेजा था राज्यसभा

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 16 मार्च को पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। राज्य सभा के सदस्यों की वर्तमान संख्या 245 है, जिनमें 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति नामांकित करते हैं। इन्हें ‘नामित सदस्य’ कहा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है। अन्य सदस्यों का चुनाव होता है। राज्यसभा में सदस्य 6 साल के लिए चुने जाते हैं, जिनमे एक-तिहाई सदस्य हर 2 साल में सेवानिवृत होते हैं।

सिख विरोधी दंगों में क्लीनचिट देने वाले जस्टिस को भेजा राज्यसभा
जस्टिस गोगोई से पहले भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि जस्टिस गोगोई जहां नामित सदस्य के तौर पर राज्यसभा सांसद बने हैं, वहीं पहले वाले जज कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे थे। इससे पहले कांग्रेस ने पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्रा को वर्ष 1998 में राज्यसभा के लिए भेजा था। जस्टिस मिश्रा वर्ष 1998 से 2004 तक राज्यसभा के सांसद थे। 

हिन्दुस्तान की खबर के अनुसार जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सांसद बनाए जाने पर सवाल उठे थे। उस समय कहा गया था कि 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच रिपोर्ट में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को क्लीनचिट देने का उन्हें इनाम दिया गया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 26 अप्रैल 1985 में रंगनाथ मिश्रा आयोग बनाया था। जस्टिस मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस को क्लीनचिट दी थी। जस्टिस मिश्रा को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन भी बनाया गया था।

जगन्नाथ मिश्रा को क्लीनचिट देने वाले जस्टिस को बनाया सांसद
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बहरुल इस्लाम का मामला तो काफी दिलचस्प है। शायद यह पहला मामला है कि कोई व्यक्ति राज्यसभा सांसद बनने के बाद जज बना हो। जस्टिस बहरुल इस्लाम पहले राज्यसभा सांसद बने फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज बने। बहरुल इस्लाम 1962 में असम से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए।

कांग्रेस पार्टी ने उन्हें दूसरी बार 1968 में फिर राज्यसभा भेजा, लेकिन कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उन्हें 1972 में तत्कालीन असम और नागालैंड हाईकोर्ट (गुवाहाटी हाईकोर्ट) का जज बना दिया गया।

विकीपीडिया के अनुसार जस्टिस इस्लाम 1980 में रिटायर होने के बाद सक्रिय राजनीति में चले गए, लेकिन इंदिरा गांधी ने हाई कोर्ट के जज के रूप में रिटायर होने के 9 महीने बाद फिर से उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया। एक रिटायर जज का फिर से जज बनाने का फैसला अपनेआप में अकेला था।

ऑपइंडिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में उन्होंने बिहार के उस समय के कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के खि‍लाफ जालसाजी और भ्रष्टाचार के मामले में क्लीन चिट देते हुए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने से मना कर दिया था। 1983 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद उन्हें तीसरी बार कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया।

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