Home समाचार आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद ने कहा- 27 मंदिरों को तोड़कर बनाई गई कुतुब...

आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद ने कहा- 27 मंदिरों को तोड़कर बनाई गई कुतुब मीनार के पास मस्जिद, ऐसी गलतियों को सुधारने के बारे में सोचना चाहिए, भारत सिर्फ इसलिए सेक्युलर क्योंकि यहां हिंदू ज्यादा

SHARE

अपनी विरासत और धरोहर का संरक्षण हम सभी का दायित्व है। ये हमारा कर्तव्य है कि हम इसे नई पीढ़ी तक पहुचाएं। सोने की चिड़िया कहा जाने वाला हमारा देश हमारी सभ्यता, संस्कृति और धरोहरों के कारण ही विख्यात है। इसमें विश्व की संस्कृति को समाहित करने की क्षमता है। देश में प्राचीन मंदिरों को सहेजने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक केके मोहम्मद ने कहा कि एक सच्चा पुरातत्वेता और इतिहासकार वही है, जो टुकड़ों को जोड़ दे। उन्होंने कहा कि हमारे धरोहर ही हमारी संस्कृति, संस्कार की पहचान हैं। यह सभ्य समाज का दायित्व है कि वह अपने धरोहरों की रक्षा करने के लिए हर संभव प्रयास करे। राम मंदिर के इतिहास के प्रमाण की खोज करने वाले पुरातत्विद (आर्कियोलॉजिस्ट) के. के. मोहम्मद ने कहा है कि दिल्ली स्थित कुतुब मीनार के पास कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण 27 मंदिरों को तोड़कर किया गया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में स्थित कुतुबमीनार के पास भी कई मंदिरों के अवशेष मिले हैं। जिसमें गणेश मंदिर आसपास है। इससे सिद्ध होता है कि वहां गणेश मंदिर थे और उनकी स्थापना की भी नियम अनुसार सरकार तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा कि बाबरी की तरह देश में अभी कई मुद्दे हैं और अगर सभी पक्षों ने इसका हल नहीं निकाला तो ये बड़ी समस्या बन जाएंगी। उन्होंने कहा कि देश में कई मंदिर हैं, जिन्हें तोड़कर मस्जिद बनाया गया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता इसीलिए बनी हुई है क्योंकि यहां हिंदुओं संख्या ज्यादा है।

अयोध्या की खुदाई में हिंदू मंदिर के 52 खम्भे, टेराकोटा की बनीं मूर्तियां मिली थी

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद ने बताया, ‘मैं पहली बार एक छात्र के तौर पर अयोध्या की खुदाई में शामिल हुआ था। तब से मेरा जुड़ाव है। बाद में, जब दोबारा आदेश मिले तो मैंने ASI की तरफ से अयोध्या में खुदाई शुरू की। दूसरी खुदाई में यहां हिंदू मंदिर के 52 खम्भे, टेराकोटा की बनीं मूर्तियां मिलीं, जिससे सिद्ध हुआ कि मस्जिद के नीचे एक समय में मंदिर था।’ उन्होंने कहा कि श्री राम मंदिर निर्माण से उनकी जिंदगी सफल हो गई है। देश में इसी तरह के और भी कई मुद्दे हैं। इन मुद्दों को प्रशासन को बैठकर, सभी पक्षों को सुनकर हल करना चाहिए। अगर हल नहीं करेंगे, तो यह बड़ी समस्या बन सकते हैं, जो कि देश को पीछे खीचेंगी। केके मुहम्मद 1976-77 में पहली बार अयोध्या में जाकर राम मंदिर और बाबरी मस्जिद वाली विवादित जगह पर खुदाई की थी। उन्होंने बाबरी के नीचे मंदिर के अवशेषों का पता लगाने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने कहा था कि मंदिर के खंम्भों पर मस्जिद बनाई गई थी।

27 मंदिरों को तोड़कर कुतुब मीनार के पास बनाई गई मस्जिद

केके मुहम्मद ने कहा था कि 27 मंदिरों को तोड़कर दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनाई गई है। उन्होंने कहा था कि मंदिरों को तोड़कर निकाले गए पत्थरों से ही यह मस्जिद बनी है। उन्होंने कहा कि उस जगह पर अरबी में लिखे अभिलेखों में इस बात का उल्लेख भी किया गया है। ताजूर मासिर नामक किताब में भी इसका जिक्र है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा कुतुबमीनार परिसर स्थित कुव्वतउलइस्लाम मस्जिद में लोहे की दो जाली हटाने के बाद भगवान गणेश की मूर्तियां स्पष्ट देखने को मिली। इन मूर्तियों को दो साल पहले लोहे की दो जाली से ढक दिया गया था जिन्हें अब सफाई के बाद ASI ने बुलेटप्रूफ शीशे से ढक दिया है। 

भारत सेक्युलर है, क्योंकि यहां हिंदुओं की मैजॉरिटी हैः केके मुहम्मद

केके मुहम्मद ने कहा कि मैं हमेशा मुसलमानों से कहता हूं कि पाकिस्तान से अलग होने के बावजूद भारत सेक्युलर है, क्योंकि यहां हिंदुओं की मैजॉरिटी है। ज्ञानवापी मुद्दे पर उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मामला एक लीगल केस है। इसमें अभी तो हमारा कोई रोल नहीं है। मुझे लगता है कि मथुरा और काशी के ज्ञानवापी मामले को जल्द हल करना चाहिए। यहां प्रमाण की कमी नहीं है। बस, यहां सच को सच मानकर समझने की जरूरत है।

‘अपने समुदाय का विरोध झेलना पड़ता है’

केके मुहम्मद ने कहा- अयोध्या मामले में हिंदू मंदिर की बात पुरजोर तरीके से रखने के कारण मुझे मेरी कम्युनिटी का विरोध झेलना पड़ता है। लोगों के विरोध को फेस न करना पड़े, इसके लिए मैं अपने प्रोफेशन से धोखा नहीं कर सकता। खुदाई में मंदिर के अवशेष मिले। ये फैक्ट था, बतौर आर्कियोलॉजिस्ट मैंने वही बताए। इतिहास के फैक्ट्स को सही ढंग से रखना ही मेरा धर्म है।

अयोध्या में खुदाई पर प्रोफेसर बीबी लाल के बयान से मची थी हलचल

जीन्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, साल था 1976, अयोध्या में पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की टीम पुरातात्विक महत्व के लिए खुदाई कर रही थी। बी बी लाल विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे और उनके नेतृत्व में ही सर्वेक्षण और खुदाई का काम जारी था। भूमि की गहराई में वह सत्य दबा था जिसके लिए धरातल पर संघर्ष जारी था। बीबी लाल ने सर्वेक्षण के आधार पर कहा अयोध्या में राम का अस्तित्व है। उनका यह कहना ही था कि मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई। मंदिर के लिए संघर्ष को और पुख्ता हवा मिल गई और शायद तत्कालीन सरकार को यह हवा अपने विरुद्ध भी लगी होगी। अपने बयान के लिए बीबी लाल को विभागीय कार्रवाई का सामना करना पड़ा।

अयोध्या में खुदाई करने वाली प्रोफेसर बीबी लाल की टीम में थे केके मुहम्मद

जब बीबी लाल पर कार्रवाई हुई तो केके मुहम्मद ने डटकर कहा- झूठ बोलने से अच्छा है मैं मर जाऊं। वह अपने बयान पर कायम रहे। उन्होंने बीबी लाल के बयान का पूर्ण समर्थन किया साथ ही कई ऐसे साक्ष्य भी सामने रखे जो कि जोर -शोर से गवाही देते थे कि विवादित स्थल के नीचे का ढांचा एक प्राचीन कालीन मंदिर था। केके मुहम्मद पुरातत्वविद तो थे ही साथ ही उनमें प्राचीनता को लेकर गहरा रुझान था। उन्होंने कई प्राचीन मंदिर और स्थल जो कि आक्रमण की आंधी में जमींदोज थे उन्हें खोजकर बाहर निकाला।

केके मुहम्मद ने अयोध्या प्रकरण पर लिखी किताब

अयोध्या प्रकरण और खुदाई के पूरे विवरण को समेटते हुए केके मुहम्मद ने किताब भी लिखी। नाम है ‘मैं हूं भारतीय’। इस किताब में वह लिखते हैं कि वह लिखते हैं कि प्रो बीबी लाल की अगुवाई में अयोध्या में खुदाई करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट टीम में दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के 12 छात्रों में से एक मैं भी था। किताब में उन्होंने लिखा है कि 1976 की खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, इनमें 52 मजदूर मुस्लिम समाज से थे। खुदाई शुरू हुई और शुरुआती ही कुछ चोट में परतें उधड़ने लगी। वह लिखते हैं कि मैं हैरान हूं कि कथित बाबरी की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखते थे। यह खंभे ब्लैक बसाल्ट पत्थरों से बने थे और इनके निचले भाग में पूर्ण कलश बने हुए थे। मंदिर निर्माण कला में पूर्ण कलश ऐश्वर्य चिह्नों की प्रतीक हैं। यह निर्माण 11वीं-12 सदी की तरह ही था।

मिर्जाजान और हाजी मोहम्मद हसन ने भी मंदिर तोड़े जाने की बात किताब में लिखी थी

केके मोहम्मद अकेले ऐसे विद्वान नहीं है, जिन्होंने यह स्वीकार किया है कि वहां मंदिर था, बल्कि उनसे बहुत पहले भी ‘मिर्जाजान’ ने अपनी किताब ‘हदिकाए शहदा’ में इसका जिक्र किया है। हाजी मोहम्मद हसन ने भी 1878 में लिखी अपनी किताब ‘जियाए अख्तार’ में राम मंदिर और सीता की रसोई तोड़े जाने की बात कही है। इसके आलावा ‘मौलवी अब्दुल करीम’ आदि विद्वानों ने भी अपने ग्रंथों में इस बात को स्वीकार किया है कि वहाँ मंदिर था।

वामपंथी इतिहासकार न होते तो कब का सुलझ गया होता राम मंदिर मुद्दा

केके मुहम्मद ने अपनी किताब में वामपंथी इतिहासकारों पर खुलकर आरोप लगाए हैं। लिखा है कि वह शुरू से ही निष्पक्ष नहीं थे और उनकी सारी खोज बतौर इतिहासकार नहीं, बल्कि एकतरफा प्रतिनिधि के तौर पर थी। इस पूरी खुदाई की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक मजिस्ट्रेट भी कर रहे थे। और जब हाईकोर्ट ने मंदिर के पक्ष में अपना फैसला रखा तो भी वामपंथी इतिहासकार अपनी भूल-गलती मानने को तैयार नहीं हुए। के के मोहम्मद’ ने मलयालम में लिखी अपनी आत्मकथा ‘नज्न एन्ना भारतीयन’ (मैं एक भारतीय) में सीधे तौर पर ‘रोमिला थापर’ और ‘इरफ़ान हबीब’ पर बाबरी मस्जिद विवाद को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का आरोप लगाते हुए लिखा है – 1976-1977 में जब प्रो. बी लाल की अगुआई में वहां पर खुदाई हुई थी, तो उसमें भी वहां मंदिर के साक्ष्य पाए गए थे। मोहम्मद के इस मत से इतिहासकार ‘एमजीएस नारायन’ ने भी सहमति जताई है। बावजूद इसके इन तमाम वामपंथी इतिहासकारों ने यह बात कभी नही स्वीकार की कि वहां पर कभी किसी मंदिर का ध्वंस हुआ था। इन्होंने जानबूझकर इतिहास का विरूपण किया। यह जानते हुए भी कि ‘इतिहास का विरूपण एक गंभीर अपराध है।’ के. के. मोहम्मद ने अपनी किताब में खुदाई स्थल पर 14 स्तंभों वाले आधार मिलने की बात स्वीकारी है।

वामपंथी इतिहासकारों ने माहौल खराब करने की कोशिश कीः अरुण शौरी

मशहूर पत्रकार ‘अरुण शौरी’ ने अपनी किताब ‘जाने-माने इतिहासकार : उनके छल-छद्म और कार्यविधि’ में साफ-साफ़ लिखा है- अयोध्या मुद्दा बहुत पहले ही सुलझ गया होता, यदि उसमें मिले खुदाई के अवशेषों को पूर्वाग्रह से मुक्त होकर देखा गया होता। परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। रोमिला थापर, बिपिन चन्द्रा, प्रो.धनेश्वर मंडल, शीरीन मौसवी, डीएन झा, आर एस शर्मा, प्रो. सुप्रिया वर्मा आदि सभी इतिहासकारों ने माहौल खराब करने की कोशिश के चलते ऐसा किया और इसमें इनका निजी स्वार्थ भी शामिल था। वह स्वार्थ पूरा भी हुआ। जिसके तहत इन्हें सालों तक ‘इतिहास अनुसन्धान परिषद’ में कई अन्य-अन्य पदों पर ‘आसीन’ किया गया। इन्हें वहाँ से कई प्रकार के ‘प्रोजेक्ट’ मिले। जिनमें से कुछ को तो इन्होने ‘आज तक’ पूरा नही किया। आराम से सरकार का पैसा लेते रहे और इस बीच अपनी-अपनी यूनिवर्सिटियों के पठन-पाठन से भी दूर रहे और वहां से भी सरकार का पैसा डकारतें रहे।

वामपंथी इतिहासकारों का झूठ अदालत में हुआ बेपर्दा

वामपंथी इतिहासकारों के लिए यह अशुभ घड़ी है। रोमिला थापर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो. इरफान हबीब, डीएन झा आदि की मान्यताएं लगातार खारिज हो रही हैं। रोमिला का मत था कि अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि सिद्ध किया जाना असंभव है। झा के अनुसार इतिहास को आस्था के अनुसार नहीं लिखा जा सकता। हबीब ने अन्य ऐसी बातों के साथ एएसआइ की रिपोर्ट को भी एकतरफा बताया था। इस रिपोर्ट में लगभग तीन हजार वर्ष ईसा पूर्व के तथ्य थे। रिपोर्ट के अनुसार एक गोलाकार मंदिर दसवीं सदी का था। एक अन्य मंदिर और खंभों के अवशेष का भी उल्लेख था। मंदिर 1500 ई0 तक था।

वामपंथी इतिहासकारों ने हिंदुओं को इस तरह ठगा, झूठ पकड़े जाने पर लिया यूटर्न

1. वामपंथी इतिहासकार और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर धनेश्वर मंडल ने कोर्ट के आगे ये कबूला कि बाबरी ढांचे की जगह खुदाई का वर्णन करती उनकी पुस्तक दरअसल उन्होंने बिना अयोध्या गए ही लिख दी थी।

2. वामपंथी इतिहासकार सुशील श्रीवास्तव ने जज के आगे कबूला कि प्रमाण के तौर पर पेश की गई उनकी किताब में संदर्भ के तौर पर दिए पुस्तकों का उल्लेख उन्होंने बिना पढ़े ही कर दिया है।

3. जेएनयू की इतिहास प्रोफ़ेसर सुप्रिया वर्मा ने ये माना कि उन्होंने खुदाई से जुड़ी रेडार सर्वे की रिपोर्ट को पढ़े बगैर ही रिपोर्ट के गलत होने की गवाही दे दी थी।

4. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर जया मेनन ने ये स्वीकारा कि वो तो खुदाई स्थल पर गई ही नहीं थीं, लेकिन ये गवाही दे दी कि मंदिर के खंभे बाद में वहां रखे गए थे।

5. एक्सपर्ट के तौर पर उपस्थित वामपंथी सुवीरा जायसवाल जब क्रॉस एग्जामिनेशन में पकड़ी गईं, तब माना कि उन्हें राम जन्मभूमि बाबरी मुद्दे पर कोई एक्सपर्ट ज्ञान नहीं है। जो भी जानकारी है वो सिर्फ अखबारी खबरों के आधार पर है।

6. वामपंथी आर्कियोलॉजिस्ट शीरीन रत्नाकर ने सवाल-जवाब में ये स्वीकार किया कि दरअसल उन्हें बाबरी मसले से जुड़ी कोई “फील्ड-नॉलेज” है ही नहीं।

7. “एक्सपर्ट” प्रोफ़ेसर धनेश्वर मंडल ने ये भी माना था कि “मुझे बाबर के विषय में इसके अलावा कि वो सोलहवीं सदी का एक शासक था और कुछ नहीं पता है। जज ने ये सुन कर कहा था कि इनके ये बयान विषय के बारे में इनके छिछले ज्ञान को दर्शाते हैं।
8. वामपंथी सूरजभान मध्यकालीन इतिहासकार के तौर पर गवाही दे रहे थे पर क्रॉस एग्जामिनेशन में ये तथ्य सामने आया कि वे तो इतिहासकार थे ही नहीं,सिर्फ पुरातत्ववेत्ता थे।

9. सूरजभान ने ये भी स्वीकारा कि डीएन झा और आरएस शर्मा के साथ लिखी उनकी पुस्तिका “हिस्टोरियंस रिपोर्ट टू द नेशन” दरअसल खुदाई की रिपोर्ट पढ़े बिना ही (मंदिर संबंधी प्रमाणों को झुठलाने के दबाव में) सिर्फ छह हफ्ते में ही लिख दी गई थी।

10. वामपंथी शीरीन मौसवी ने क्रॉस एग्जामिनेशन में खुद कबूला है कि उन्होंने झूठ कहा था कि राम जन्मस्थली का ज़िक्र मध्यकालीन इतिहास में है ही नहीं।

ऐसे दृष्टान्तों की लिस्ट और लंबी है, पर विडंबना तो ये है कि लाज-हया को ताक पर रख कर वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने इन्हीं फरेबी वामपंथी इतिहासकारों और अन्य वामपंथियों का नेतृत्व करते हुए उच्च न्यायालय के इसी फैसले के खिलाफ लंबे-लंबे पर्चे भी लिख डाले थे।

Leave a Reply