कांग्रेस के पूर्व और भावी अध्यक्ष राहुल गांधी पेट्रोल और डीजल की कीमत को लेकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। लेकिन वो अपने ट्वीट के माध्यम से यूपीए शासन काल में गरीबों के साथ हुए अन्याय और अमीरों को तरजीह देने की पोल खोल रहे हैं। उन्होंने अपने ट्वीट में एक खबर शेयर किया है, जिसमें लिखा है, “हवाई जहाज के ईंधन से भी महंगा है, आपकी कार-बाइक में इस्तेमाल होने वाला पेट्रोल”। राहुल गांधी शायद भूल गए थे कि यूपीए शासन में हवाई जहाज के ईंधन की कीमत पेट्रोल और डीजल की कीमत से कम थी। सात साल बाद उन्होंने इस मद्दे को उठाकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
Jet Fuel got cheaper than petrol in 2011.
In 2021, Rahul Gandhi suddenly wakes up and calls it Behad Gambhir Mudda. pic.twitter.com/jBHXpcEYSP
— Ankur (@iAnkurSingh) October 18, 2021
दरअसल 2004 में आम आदमी के नाम पर चुनाव जीतकर सत्ता में आई मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने गरीबों के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात किया था। भीषण महंगाई ने गरीबों की कमर तोड़ दी थी, वहीं अमीर मालामाल हो रहे थे। खाद्य पदार्थों की कीमत आसमान छू रही थी। 2011 में हवाई जहाज के ईंधन की कीमत पेट्रोल की कीमत से कम थी। जहां एक लीटर हवाई जहाज के ईंधन की कीमत 56.5 रुपये थी, वहीं पेट्रोल 63 से 68 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था।
गौरतलब है कि मई 2004 में यूपीए 1 जब सत्ता में आई और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 33.71 रुपये प्रति लीटर थी। वहीं नरेन्द्र मोदी ने मई 2014 में सत्ता संभाली तो पेट्रोल दिल्ली में 71.41 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था। यानि पेट्रोल की कीमत दस साल के यूपीए शासन के अंतराल में 38 रुपये बढ़ चुकी थी।
यूपीए के शासन में सरकार ने जानबूझकर महंगाई को बढ़ने दिया। महंगाई इस कारण नहीं बढ़ी कि कहीं कोरोना जैसी महामारी आ गयी थी या फसल नष्ट हो गई, ऐसी कोई बात नहीं थी। सरकार ने अमीरों और कालाबाजारियों को फायदा पहुंचाने की कोशिशें कीं। कमॉडिटी एक्सचेंज किया, जमाखोरों को बढ़ावा दिया, बड़े-बड़े उद्योगपतियों को रिटेल में काम करने दिया और एफसीआई की बजाय इन लोगों को सारी चीजें कंट्रोल करने की छूट दीं और गेहूं का आयात किया, इन सभी कारणों से महंगाई बढ़ी।
आइए देखते हैं ‘तेल का खेल’, जिसमें मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जनता के साथ किस तरह विश्वासघात किया था…
देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। इससे जहां तेल उपभोक्ता पेरशान है, वहीं इस पर सियासत भी खूब हो रही है। लेकिन आम लोगों को पता नहीं है कि तेल की कीमत क्यों बढ़ी है। कीमत बढ़ने की वजह जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बढ़ोतरी के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती यूपीए सरकार जिम्मेदार है।
सब्सिडी के बदले तेल कंपनियों को आयल बांड्स
दरअसल पूर्ववर्ती यूपीए शासन में तेल की कीमतों को लेकर खूब राजनीति होती थी, उसका खामियाजा मौजूदा केंद्र सरकार और आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। पूर्व में कच्चे तेल के महंगा होने पर उसका पूरा बोझ आम जनता पर नहीं डाला जाता था, बल्कि सब्सिडी दी जाती थी। इस सब्सिडी की राशि के बदले तेल कंपनियों को आयल बांड्स जारी किए जाते थे। इन बांड्स की परिपक्वता अवधि 10 से 20 वर्ष होती थी। ये बांड्स परिपक्व हो रहे हैं और इनका भुगतान अब शुरू होगा।
1.31 लाख करोड़ रुपये का आयल बांड्स जारी हुआ था
पूर्व की सरकारों की तरफ से जारी 1.31 लाख करोड़ रुपये के आयल बांड्स का भुगतान मौजूद और आगामी केंद्र सरकार को इस वर्ष अक्टूबर से लेकर मार्च 2026 के बीच करना होगा। वित्त मंत्रालय के मुताबिक इस वर्ष अक्टूबर और नवंबर में पांच-पांच हजार करोड़ रुपये के बांड्स के भुगतान का बोझ केंद्र सरकार को उठाना है। एक दशक पहले केंद्र सरकार की तरफ से जारी इन मूल्यों के दो बांड्स के लिए अब मूल व ब्याज के तौर पर 20 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना है।
केंद्र सरकार पर आयल बांड्स के भुगतान का बोझ
वर्ष | बांड्स का भुगतान |
2021 | 20 हजार करोड़ रुपये |
2023 | 22 हजार करोड़ रुपये |
2024 | 40 हजार करोड़ रुपये |
2025 | 20 हजार करोड़ रुपये |
2026 | 37 हजार करोड़ रुपेय |
बांड्स के भुगतान से तेल की कीमतों में बढ़तोरी
वर्ष 1996-97 के बाद से केंद्र सरकार ने तेल कंपनियों के घाटे की भरपाई के लिए आयल बॉड्स जारी करने का फॉर्मूला निकाला था। वर्ष 2004 में आई यूपीए सरकार ने एक नया फॉर्मूला निकाला था, जिसके तहत वह कुछ बोझ आम जनता पर डालती थी और कुछ बोझ बतौर आयल बांड्स तेल कंपनियों को जारी कर दिए जाते थे। आयल बांड्स जारी कर तत्कालीन यूपीए सरकार ने फौरी तौर पर तो ग्राहकों के लिए दाम स्थिर रखकर राहत दे दी थी और तेल की सियासत पर विराम लगा दिया था, लेकिन अब उसका भुगतान आम ग्राहकों की जेब से होना है। इसकी वजह से तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है और उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।