Home समाचार बिजली-कोयला संकट पर ‘कोरी अफवाह’: मोदी विरोधियों ने साध ली चुप्पी

बिजली-कोयला संकट पर ‘कोरी अफवाह’: मोदी विरोधियों ने साध ली चुप्पी

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देश में न तो कोयला संकट था, न बिजली संकट था और ना हुआ। कोयले और बिजली संकट पर बेकार गई मोदी विरोधियों की ‘कोरी राजनीति’। देश के उर्जा मंत्री आरके सिंह भरोसा दिलाते रहे की कोयले की कोई कमी नहीं है , बिजली संकट की बात कोरी अफवाह है, लेकिन मोदी विरोधी अफवाह फैलाने में जुटे रहे। देश में कोयले की कमी के आरोपों पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बेवजह करार दिया था और कहा था कि इस तरह की कोई कमी नहीं होने वाली है जिससे बिजली आपूर्ति में बाधा पहुंचे, उन्होंने कहा था कि भारत एक पावर सरप्लस देश हैं। लेकिन मोदी विरोधी देश में बिजली संकट का डर खड़ा करने में जुटे रहे।

मोदी विरोधियों की बिना सिर पैर की राजनीति का सच सामने आया 

मोदी विरोधी दल सिर पीटते रहे लेकिन देश में बिजली-कोयला संकट दूर-दूर तक नहीं दिखाई दिया। विपक्षी दलों की इस बिना सिर पैर की राजनीति को लेकर लोग सोशल मीडिया पर मजे ले रहे हैं।

देश में बिजली और कोयले का संकट सामने आया नहीं, लेकिन इस मामले पर मोदी सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश हुई। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख कर कहा कि कोयले और गैस को बिजली पैदा करने वाले प्लांट में डायवर्ट करें। वहीं डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा है कि केंद्र यह मानने को तैयार नहीं है कि देश में कोयला संकट है। ऑक्सीजन संकट की तरह ही केंद्र सरकार इस बार भी मुंह फेर रही है। कोयला संकट पर केंद्र सरकार आंख मूंदे बैठी है। लेकिन सोशल मीडिया पर मोदी विरोधियों के इन दावों की हवा निकल गई । 

मोदी विरोधियों ने देश में कई पॉवर प्लांट के बंद होने या बिजली के कम उत्पादन का आरोप लगाए गए थे, लेकिन इनमें अब पहले की तरह बिजली का उत्पादन हो रहा है।

नवरात्रि और दुर्गा पूजा समाप्त होने के बाद कोयले की आपूर्ति और तेजी होगी, देश के उत्तरी राज्यों में तापमान में कमी से बिजली की मांग कम होगी। यही वजह है कि चंद दिनों बिजली संकट का अफवाह उड़ाने और गंदी राजनीति का खेल खेलने के बाद मोदी सरकार विरोध पर उतरी राजनीतिक पार्टियों ने चुप्पी साध ली है। लेकिन देश देख रहा है कि कैसे चीन जैसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी कोयला संकट का सामना कर रही है। लेकिन मोदी सरकार ने हर चुनौती का मजबूती से मुकाबला किया है।

देश में बिजली संकट के झूठ की खुली पोल, सामने आया अफवाह का सच

देश में बिजली संकट को लेकर हो रही राजनीति कि हकीकत ये है कि मोदी सरकार की चेतावनियों को राज्यों और पावर प्लांट्स ने नजरअंदाज किया और बिजली और कोयला संकट को लेकर हाहाकार मचाया

देश में विपक्ष शासित राज्य सरकारें अपनी नाकामी से जनता का ध्यान भटकाने के लिए ‘कृत्रिम संकट’ पैदा कर ‘खौफ की सियासत’ करती है। इसकी पोल कोयला मंत्रालय के पत्रों ने खोली है। जिनमें बार-बार राज्य सरकारों और बिजली प्लांट्स को आगाह किया गया था कि मानसून के चलते कोयला माइनिंग पर असर पड़ सकता है। इसलिए पहले से कोयला का स्टॉक तैयार कर लें। लेकिन केंद्र सरकार की चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया। कोयला मंत्रालय ने 25 फरवरी से पहले जितनी जल्दी हो सके राज्य सरकारों और निजी बिजली प्लांट्स को आवंटन के अनुसार कोयला उठाने के लिए कहा था। एक पत्र में कोयला सचिव अनिल जैन ने यह भी संकेत दिया था कि यदि कोयला नहीं उठाया गया तो आत्म-प्रज्वलन के कारण कोल इंडिया के पिथेड भंडार में आग लग सकती है।

कोयला सचिव के बाद बिजली सचिव आलोक कुमार और अतिरिक्त सचिव विवेक कुमार देवांगन की ओर से महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और राजस्थान को कई पत्र लिखे गए, जिनमें लोड-शेडिंग की चेतावनी दी गई थी। कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 28 सितंबर को महाराष्ट्र के बिजली मंत्री नितिन राउत को पत्र लिखकर भारी बारिश के चलते राज्यों में कोयले को लेकर पैदा हुई स्थिति के बारे में जानकारी दी। इसके बावजूद स्टेट यूटिलिटी ने कोयला उठाने से मना कर दिया। दरअसल ये संकट राज्यों की वजह से खड़ा हुआ है। राज्यों ने कोल इंडिया के भंडार से अपना कोटा नहीं हटाया और हाहाकार मचाने लगे। कई राज्यों ने बिजली की मांग में बढ़ोतरी की तैयारी करने की बजाय डर पैदा करने की कोशिश की।

NTPC ने केजरीवाल के दावे की निकाली हवा

NTPC ने केजरीवाल सरकार के बिजली कटौती के दावे को खारिज करते हुए कहा कि दिल्‍ली को जितनी बिजली मुहैया कराई, डिस्‍कॉम्‍स उसका केवल 70 प्रतिशत ही इस्तेमाल कर पाया। यानि 30 प्रतिशत बिजली सरप्‍लस रही। दिल्‍ली के डिस्‍कॉम्‍स को दादरी स्थित थर्मल स्‍टेशन की यूनिट-1 से 756 मेगावॉट का अलॉकेशन है। लेकिन नवंबर 2020 से डिस्‍कॉम्‍स इस स्‍टेशन से बिजली नहीं ले रहा जबकि फिक्‍स्‍ट रेट 97 पैसे प्रति किलोवाट घंटा है जो कि वर्तमान रेट 3.20 रुपये प्रति kWh से काफी कम है।

पूरे साल सोयी रही राजस्थान की कांग्रेस सरकार

कोल इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल के मुताबिक राजस्थान ने पूरे साल अपने हिस्से का कोयला नहीं लिया। बकाया 500-600 करोड़ रुपये भी नहीं दिए। अचानक कोयला की मांग करने लगे। राजस्थान के पावर प्लांट को जितनी जरूरत है, उतना कोयला दिया जा रहा है। कम कोयला आवंटन की बात गलत है। प्रमोद अग्रवाल ने सवाल किया कि राजस्थान की खुद की अपनी माइंस हैं, वे खुद क्यों नहीं कोयले का उत्पादन शुरू करते ? जब स्टॉक करना था, तब राज्यों ने कोयला नहीं लिया।

‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ की कहावत चरितार्थ कर रही है राजस्थान सरकार

देश में बिजली संकट का अफवाह उड़ाने वाली कांग्रेस शासित राज्यों में तो हालात और भी खराब है । बिजली उत्पादन को लेकर राज्य सरकार की लापरवाही कई बार सामने आ चुकी है। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह राजस्थान सरकार भी कोयले की कमी का रोना रो रही है। सरकार भी केजरीवाल की उसी राह पर है कि प्राब्लम तो अपनी वजह से है और इसका ठीकरा केंद्र सरकार और कोल इंडिया के सिर मढ़कर खुद पाक-साफ हो लें। कोरोनाकाल में राजस्थान सरकार ने कोल इंडिया और पीकेसीएल का करोंड़ों का बकाया तो अदा किया नहीं…अलबत्ता उन पर ही कोयले की कम आपूर्ति का आरोप लगा रही है।

राजस्थान की छह बड़ी बिजली उत्पादन कंपनियों के पास सोमवार तक 2.17 लाख मीट्रिक टन कोयले का स्टॉक है। दरअसल, राज्य के कुछ पावर प्लांट कोयले की कमी और कुछ तकनीकी खराबी से जूझ रहे हैं। ऐसे में बिजली संकट तो खड़ा होना ही था। वर्तमान में बिजली की डिमांड 12500 मेगावाट है और उपलब्ध 8500 मेगावाट ही हो पा रही है।

600 करोड़ चुकाए नहीं, और मांग रहे कोयला
कोयले की कमी को लेकर राजस्थान सरकार ‘उल्टा तोर कोतवाल को डांटे’ की कहावत ही चरितार्थ कर रहा है। राजस्थान ने कोल इंडिया को पिछली खरीद के ही 600 करोड़ नहीं चुकाए हैं। बकाया अदा करना का बजाए वह कोल इंडिया पर आरोप लगा रहा है कि वह कोयले की आपूर्ति नहीं कर रहा है। इसके चलते राजस्थान में बिजली संकट उत्पन्न हो रहा है। इसी प्रकार पीकेसीएल (अडानी) के भी 1700 करोड़ रुपए बकाया चल रहे हैं।

साढ़े 14 हजार करोड़ सब्सिडी के भी नहीं दिए
दरअसल, कांग्रेस ने लोक-लुभावन में सब्सिडी देने की घोषणाएं तो कर दीं, लेकिन अब इनकी भरपाई नहीं कर पा रही है। राजस्थान सरकार ने कृषि और बीपीएल कनेक्शनों की सब्सिडी के करीब 14000 करोड़ रुपए जयपुर, जोधपुर और अजमेर डिस्कॉम को जारी नहीं किए हैं। सरकारी विभाग भी बिल के डिस्कॉम को 1900 करोड़ रुपए नहीं दे रहे हैं। इससे डिस्कॉम बिजली कंपनियों के 30 हजार करोड़ रुपए नहीं चुका पा रही हैं।

एक साल से कोयले की डिमांड ही जेनरेट नहीं कीं
राजस्थान सरकार बिजली संकट के लिए कोयले की कमी को जिम्मेवार मान रही है और इसके लिए कोल इंडिया को दोषी ठहरा रही है कि उसे वहां से कोयला समय पर नहीं मिल रहा। इसके चलते ही समुचित बिजली उत्पादन नहीं हो पा रहा और राज्य में बिजली संकट खड़ा हो गया है। हैरानी की बात है कि राजस्थान सरकार ने पूरे साल न डिमांड जेनरेट की और न ही कोल इंडिया से कोयला लिया।

राजस्थान की खुद की माइंस, इनमें भी उत्पादन नहीं
कोयले को लेकर राजस्थान सरकार की लापरवाही का आलम यह है कि उसने न तो साल भर से कोल इंडिया से कोयला लिया है और अब बारिश के मौसम में अचानक डिमांड खड़ी कर दी। कोल इंडिया ने वाजिब सवाल उठाया है कि जब राजस्थान के पास कोल माइंस हैं तो इनमें कोयला का समुचित उत्पादन क्यों नहीं हो रहा है ?

एक्शन में केन्द्र सरकार, बनाई कोर मैनेजमेंट टीम
केन्द्र सरकार इसके लिए पूरे प्रयास कर रही है कि राज्यों में कोयले की कमी न आने पाए। इसके लिए केंद्र सरकार ने शनिवार को कोर मैनेजमेंट टीम का भी गठन किया है। यह टीम कोयले की रोजाना की आपूर्ति पर नजर रखेगी। कोल इंडिया लिमिटेड और रेलवे के साथ मिलकर सभी राज्यों में कोयले की उचित आपूर्ति भी सुनिश्चित करेगी और इसके लिए राज्यों के संपर्क में रहेगी।

फोटो सौजन्य

संकट बढ़ा तो अफसरों से एसी न चलाने की अपील
समय रहते कोयले की आपूर्ति को सुनिश्चित करने में विफल रही गहलोत सरकार अब प्रदेश में बिजली संकट का होव्वा खड़ा कर शहरों और गांवों में बिजली कटौती करने जा रही है। मुख्यमंत्री ने भी अपनी बैठक में अधिकारियों को एयर कंडीशनर न चलाने की अपील की। लेकिन सारे पावर प्लांट कैसे चलें और कोयले की खरीद कैसे हो, इस पर कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया है। यह दीगर है कि एसी न चलाने की सीएम की अपील का अफसरों पर कोई असर नहीं हुआ।

सरकार ने न कोयले की डिमांड की, न बकाया दिया
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी गहलोत सरकार को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने एक बयान में कहा है कि राज्य में बिजली संकट के लिए पूरी तरह गहलोत सरकार दोषी है। दरअसल, सरकार न तो कोयला की डिमांड करती है और न ही बकाया पैसा अदा कर पा रही है। ऐसे में कोयला कहां से आएगा ? बारिश का बहाना भी गलत है, क्योंकि यह तो हर बार आती है और हर बार खानों में पानी भरता है। सरकार को इससे पहले ही यथोचित इंतजाम करने चाहिए थे।

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