कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति में मजबूत करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही हैं। सोनिया गांधी की हरसंभव कोशिश पार्टी पर परिवार की पकड़ बनाए रखने की होती है। इस क्रम में राजस्थान के उदयपुर में हाल ही में संपन्न चिंतन शिविर में राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने के लिए माहौल बनाने की कोशिश की कई। इसी चिंतन शिविर को लेकर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर- पीके ने तंज कसते हुए कहा कि यह कुछ भी सार्थक हासिल करने में विफल रहा है, जिससे गुजरात और हिमाचल प्रदेश में होने वाले चुनावों में भी पार्टी हारेगी। पीके ने ट्वीट करते लिखा, “मेरे खयाल से ये चिंतन शिविर कुछ भी सार्थक हासिल करने में विफल रहा है। ये सिर्फ यथास्थिति को लंबा खींचने और कांग्रेस नेतृत्व को समय देने के अलावा कुछ और नहीं है… कम से कम गुजरात और हिमाचल प्रदेश में मिलने वाली हार तक…”
I’ve been repeatedly asked to comment on the outcome of #UdaipurChintanShivir
In my view, it failed to achieve anything meaningful other than prolonging the status-quo and giving some time to the #Congress leadership, at least till the impending electoral rout in Gujarat and HP!
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) May 20, 2022
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में ये भविष्यवाणी कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पडेगा। सोशल मीडिया पर इसी की चर्चा हो रही है।
Outcome of Chiran Shivir is clearly visible after exit of many leaders. Congress is a sinking ship. There is no point to sail it.
We must get rid of it & find a new & fresh alternative ( AAP).https://t.co/7mvGrvb5Ry
— Ajinkya Vyawahare ???? (@vajinkya16) May 20, 2022
Prashant Kishor Predicts BJP’s Win in Gujarat and Himachal Pradesh’s Next Assembly Election. https://t.co/a5MfPUsbMP
— My Vadodara (@MyVadodara) May 20, 2022
कुछ भी कर लो 20-30 साल तक भाजपा ही रहेगी सत्ता में राजनीतिक विशेषज्ञ प्रशांत किशोर……. pic.twitter.com/HzZBWpheP0
— Hem Lata Sharma (@HemSharms) May 20, 2022
सवाल ये उठता है कि आखिर रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक और चुनाव में कांग्रेस के हार की भविष्यवाणी क्यों की?
कांग्रेस का तुरुप का आखिरी पत्ता भी फेल
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अब तक के सबसे खराब नतीजों का सामना करना पड़ा है। अपने बेटे राहुल गांधी को राजनीति में जमाने में नाकाम रहने पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी पर परिवार का नियंत्रण बनाए रखने के लिए बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा के रूप में अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा। लेकिन यूपी में सोनिया का ब्रह्मास्त्र फुस्स रह गया। राहुल गांधी के नेतृत्व में साल 2012 से ही कांग्रेस को मिल रही लगातार हार के बाद गांधी परिवार की आखिरी उम्मीद प्रियंका गांधी वाड्रा पर आ टिकी थी। पार्टी के चाटुकारों ने दादी इंदिरा गांधी से तुलना कर प्रियंका को झाड़ पर चढ़ा दिया। पर्दे के पीछे से परिवार की राजनीति करने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा साल 2019 में राष्ट्रीय महासचिव बना दी गईं। पार्टी के बिना जनाधार वाले नेताओं और पक्षकारों ने ये माहौल बनाने की कोशिश की कि प्रियंका कांग्रेस के डूबते हुए जहाज को किनारे लगा देंगी, लेकिन 2022 के चुनाव ने सोनिया गांधी के साथ सभी के उम्मीदों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस का तुरुप का पत्ता पहले ही दांव में बेकार चला गया। राहुल के बाद लोगों में प्रियंका वाड्रा को लेकर जो भ्रम बना हुआ था वो टूट गया।
प्रियंका को चुनाव में मिली पूरी छूट, पर रही नाकाम
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सब कुछ प्रियंका गांधी वाड्रा के मन मुताबिक हुआ। चुनाव अभियान का पूरा नियंत्रण प्रियंका के हाथों में था। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक किसी नेता का कोई दखल नहीं था। टिकट बंटवारे से लेकर रोड शो और रैली तक सब कुछ प्रियंका के निर्देश पर हुआ। सोनिया गांधी ने भी अपने सारे सितारे प्रियंका के साथ लगा दिए थे। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और सचिन पायलट सहित कई बड़े नेताओं ने यूपी में आकर रैलियां की। कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश की गई। खुद प्रियंका ने राज्य में 167 रैलियां और 42 रोड शो किए। कुल 209 रैलियां और रोड शो के बाद भी प्रियंका का जादू नहीं चला। कांग्रेस के 403 उम्मीदवारों में से सिर्फ दो ही जीत पाने में कामयाब रहे। चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 6.2 प्रतिशत से घटकर 2.3 प्रतिशत पर आ गया।
सिर्फ दो राज्यो में सिमट कर रह गई कांग्रेस
सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के भरोसे रहने वाली कांग्रेस अब सिर्फ दो राज्यों में सिमट कर रह गई है। अब सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ सरकार में भागीदार है। पार्टी पर परिवार की पकड़ के कारण जनाधार वाले नेताओं की पूछ नहीं हो रही है। उत्तर प्रदेश में ही प्रियंका वाड्रा के कारण कई पुराने और जनाधार वाले नेता पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, ललितेश त्रिपाठी सहित करीब 40 नेताओं ने पार्टी को बॉय बोल दिया।
राहुल-प्रियंका के सियासी भविष्यपर सवाल
साफ है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की परिवार के बल पर पार्टी चलाने की कोशिश सफल नहीं हो पा रही है। राहुल गांधी को वर्ष 2012 के बाद से ही भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया जाता रहा है। लेकिन चुनावों में लगातार खराब प्रदर्शन के कारण यूपीए के नेताओं ने राहुल को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में खारिज करना शुरू कर दिया। ऐसे में प्रियंका को आगे बढ़ाया गया, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव के बाद प्रियंका गांधी को ये दूसरी बड़ी हार मिली है। पंचायत चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। यहां तक की पारंपरिक गढ़ अमेठी और रायबरेली में भी वोटरों ने परिवार को नकार दिया। प्रियंका के आने के बाद भी पार्टी के कुछ खास ना कर पाने से उसके सियासी भविष्य ही सवाल उठने लगे हैं।
परिवारवाद के साये में पार्टी
सोनिया गांधी ने भले ही कांग्रेस पर अपनी लगाम कस दी हो, लेकिन आज स्थिति ये है कि पार्टी परिवारवाद के साये में पूरी तरह घिर चुकी है। अवसर की तलाश में युवा नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। वंशवाद की राजनीति के इस ढांचे में कांग्रेस के अनुभवी नेता भी सरेंडर कर चुके हैं। नेहरू-गांधी परिवार इनके दिमाग पर राज करे, इसे शायद ये अपनी नियति मानकर चलते हैं। क्योंकि पार्टी के कई वरिष्ठ नेता अतीत में नेहरू-गांधी परिवार के कदम के विरोध में आवाज उठाने वाले नेताओं का हश्र देख चुके हैं।
आइए एक नजर डालते हैं राहुल- प्रियंका काल में कैसे सिकुड़ता चला गया कांग्रेस का जनाधार-
2022: विधानसभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ। पांच राज्यों के कुल 690 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 54 सीटों पर सिमट गई है। इन राज्यों के चुनावों में केवल 7.8 प्रतिशत सीटें ही कांग्रेस को मिलीं। कांग्रेस को पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त तरीके से हराया। उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी पार्टी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। उत्तर प्रदेश में 2.3 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ सिर्फ दो सीटें जीतने में सफल रही।
2019: 52 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस
मतदाताओं का कांग्रेस से विश्वास उठ चला रहा है। कांग्रेस लोकसभा में नेता विपक्ष बनने लायक पार्टी भी नहीं बची है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 52 सीटों पर संतोष करना पड़ा। आज पार्टी की हालत ये हो गई है कि पुराने नेता भी किनारा करने लगे हैं। लगातार मिल रही हार के बाद अब तो पार्टी की अस्मिता पर सवाल उठने लगा है।
2018: हार से नए साल का स्वागत
साल 2018 भी कांग्रेस के लिए शुभ साबित नहीं हुआ। नए साल में पूर्वोत्तर में भी पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिए राहुल गांधी ने पूर्वोत्तर में ताबड़तोड़ कई रैलियां की, लेकिन यहां कामयाब नहीं हो सके। त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
2017 में सात में से छह राज्यों में शिकस्त
वर्ष 2017 में सात राज्यों में हुए चुनाव के नतीजों ने भी राहुल गांधी की पोल खोल दी। यूपी, उत्तराखंड, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को भारी हार मिली। पंजाब में जीत कैप्टन अमरिंदर सिंह की विश्वसनीयता और मेहनत की हुई। गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सरकार बनाने में नाकाम रही। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की चमत्कारिक जीत और कांग्रेस की अब तक की सबसे करारी हार के रूप में हमारे सामने है। सवा सौ साल से भी किसी पुरानी पार्टी के लिए इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है कि देश के उस प्रदेश में जहां कभी उसका सबसे बड़ा जनाधार रहा हो, वहीं पर, उसे 403 में से सिर्फ 7 सीटें मिलती हों। दूसरी ओर इन चुनावों में भी राहुल के मुकाबले अखिलेश एक युवा नेता के तौर पर जनता के सामने उभरकर आए। अखिलेश में लोगों ने राहुल के मुकाबले अधिक उम्मीद देखी जबकि राहुल अपने भाषण की शैली आज भी पुराने ढर्रे की अपनाए हुए हैं। न तो उनके भाषण में कोई तीखापन है और नही वे जनता को कोई विजन ही दे पाए हैं।
2015-16 में मिली जबरदस्त हार
2015 में महागठबंधन के चलते बिहार में जीत मिली, लेकिन दिल्ली में तो सूपड़ा साफ हो गया। यहां पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। 2016 में असम के साथ केरल और पश्चिम बंगाल में हार का मुंह देखना पड़ा। पुडुचेरी में सरकार जरूर बनी। इस स्थिति में अब साफ तौर पर देखने को मिल रहा है कि कांग्रेस पार्टी कोमा में चली गई है। दरअसल कांग्रेस ने सिर्फ बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के विरोध को ही सबसे बड़ा काम मान लिया है। इस कारण देश की जनता के मन में कांग्रेस के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी कांग्रेस ने कोई खास सबक नहीं सीखा। उल्टे राहुल गांधी अपने फटे कुर्ते के प्रदर्शन की बचकानी हरकतें करते रहें, लेकिन उन्हें कोई रोकने तो दूर, टोकनेवाला भी नहीं मिला।
2014 में 44 सीटों पर सिमट गई
दरअसल कांग्रेस के लिए यह विश्लेषण का दौर है, लेकिन वह वंशवाद और परिवारवाद के चक्कर में इस विश्लेषण की ओर जाना ही नहीं चाहती है। पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की भूमिका सीमित कर दी गई है और युवा नेतृत्व के नाम पर राहुल को थोप दिया गया है। 2014 में पार्टी की किरकिरी हर किसी को याद है। जब 44 सीटों पर जीत मिलने के साथ ही पार्टी प्रमुख विपक्षी दल तक नहीं बन पाई। इसी तरह महाराष्ट्र व हरियाणा से सत्ता गंवा दी। यही स्थिति झारखंड और जम्मू-कश्मीर में रही जहां करारी हार मिलने से पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। पिछले पंद्रह सालों से लगातार कोशिशें करने के बावजूद राहुल गांधी देश के राजनैतिक परिदृश्य में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और जगह बना पाने में असफल रहे हैं।
2012 में कांग्रेस की जबरदस्त हार
कांग्रेस की हालत खराब होती जा रही है। लगातार होती हार पर हार राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ पर सवालिया निशान खड़े कर रही हैं। दरअसल वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मजबूत बनकर उभरी तो यूपी से 21 सांसदों के जीतने का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया। 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी खुले शब्दों में कहा कि वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने को तैयार हैं, लेकिन राहुल को नेतृत्व दिये जाने की बात ही चली कि पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 28 सीटें आई। वहीं पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन होने से वहां दोबारा सरकार बन गई। ठीकरा कैप्टन अमरिंदर सिंह पर फोड़ा गया। दूसरी ओर गोवा भी हाथ से निकल गया। हालांकि हिमाचल और उत्तराखंड में जैसे-तैसे कांग्रेस की सरकार बन तो गई, लेकिन वह भी हिचकोले खाती रही। इसी साल गुजरात में भी हार मिली और त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की करारी हार हुई।