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पश्चिम बंगाल में अघोषित आपातकाल!, कोरोना की सच्चाई सामने लाने वाले पत्रकारों को ममता की धमकी

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पश्चिम बंगाल में कानून का राज नहीं बल्कि ममता बनर्जी की मनमर्जी चलती है। जी हां, पश्चिम बंगाल में वही होता है जो ममता बनर्जी और उनकी सरकार चाहती है, वहां ममता की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। कोरोना संकट के दौरान ममता सरकार लगातार सवालों के घेरे में है। ममसा सरकार पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि एक विशेष समुदाय के लोगों को बचाने के लिए ममता बनर्जी के निर्देश पर कोरोना पीड़ितों के वास्तविक आंकड़े जारी नहीं किए जा रहे हैं। वहां डॉक्टरों, विपक्षी दलों समेत समाज के कई वर्गों ने इसका अनुरोध किया है, लेकिन ममता है कि मानती ही नहीं।

अब कोरोना संक्रमण की सच्चाई बताने वाली खबरों को दिखाने और छापने वाले मीडिया संस्थानों और पत्रकारों से भी ममता बनर्जी नाराज हो गई हैं। गौरतलब है कि बुधवार यानि 30 अप्रैल, 2020 को ममता बनर्जी ने पत्रकारों को ढंग से बर्ताव करने की सलाह देते हुए उन्हें चेतावनती दी थी। ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर वे सही से बर्ताव नहीं करते, तो उन पर वे आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केस कर सकती हैं। इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि वे कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान पत्रकार भाजपा के लिए प्रचार कर रहे हैं। ममता बनर्जी ने कहा था, “मेरा मीडिया से एक अनुरोध है। जब कोई घटना होती है, तो आप सरकार की प्रतिक्रिया लेने की जहमत नहीं उठाते। बल्कि भाजपा की सुनकर एक तरफा, नकारात्मक और विनाशकारी वायरस वाहक बन जाते हैं।” इसके बाद उन्होंने मीडिया को कहा, “वर्तमान में हम आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत, कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। लेकिन हम नहीं कर रहे, क्योंकि बंगाल की संस्कृति है; हम मानवता में विश्वास करते हैं। सहिष्णुता हमारा धर्म है। ”

ममता बनर्जी की मीडिया को इस धमकी के बाद पश्चिम बंगाल की सियासत गर्मा गई है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने कहा है कि मुख्यमंत्री विभिन्न माध्यमों से मीडिया को नियंत्रित करने और डराने धमकाने की कोशिश कर रही हैं। मीडिया को डर में क्यों रखा जाएगा? आखिर एक सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं होना चाहिए। मीडिया लोकतंत्र का रीढ़ है। स्वतंत्र मीडिया आवश्यक तत्व है और इस तरह मीडिया कर्मियों को दबाव में रखना ठीक नहीं। उन्होंने अगले ट्वीट में लिखा, “चिंतित ममता बनर्जी ने मीडिया को ‘सही से बर्ताव’ करने की चेतावनी दी है। मीडिया को भय में क्यों रखना? छिपाने के लिए कुछ भी नहीं होना चाहिए।” गौरतलब है कि ममता बनर्जी सरकार पर कोरोना संक्रमण की हकीकत को छिपाने के आरोप लग रहे हैं।

आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ममता बनर्जी ने कुछ ऐसी बात कह दी थी, जिससे यह साबित हो गया था बंगाल में बड़ी तादात में कोरोना पीड़ित मरीज है, लेकिन ममता उनकी संख्या छिपा रही है। देखिए-

क्या बंगाल में हैं लाखों-लाख कोरोना मरीज? बंगाल की मुख्यमंत्री ममता ने माना!
कोरोना को परास्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, वहीं कुछ राज्य सरकारें इस महामारी पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रही हैं। आशंका जाहिर की जा रही है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या को छिपा रही हैं। एजेंसी के एक ट्वीट से यह आशंका ज्यादा गहरी हो गई है कि पश्चिम बंगाल में कोरोना मरीजों की संख्या लाखों में हो सकती है।  

समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि हमने एक निर्णय लिया है, अगर किसी व्यक्ति को कोरोना पॉजिटिव पाया जाता है और उसके पास अपने निवास पर खुद को आइसोलेट करने की जगह है तो वह शख्स खुद को क्वारंटाइन कर सकता है। लाखों लाख लोगों को क्वारंटीन नहीं किया जा सकता है, सरकारी की अपनी सीमाएं हैं। 

 

बता दें कि हाल ही में कोरोना के हालात का जायजा लेने बंगाल पहुंची केंद्र की एक टीम ने पश्चिम बंगाल सरकार को पत्र लिख कर उत्तर बंगाल में लॉकडाउन का और सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा था। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में मरीजों की कुल संख्या 649 पहुंच गई है, जबकि 105 लोग डिस्चार्ज किए जा चुके हैं। राज्य से कुल 20 कोरोना लोगों की कोरोना से अब तक मौत हुई है।

ममता बनर्जी इससे पहले देश की संवैधानिक संस्थाओं को भी ठेंगा दिखा चुकी है। डालते हैं एक नजर-

खुद को संविधान से ऊपर मानती हैं ममता बनर्जी!… कोरोना पर केंद्रीय टीम को इजाजत देने से किया इनकार
कोरोना से देश में1000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और इस कोरोना संकट काल में भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राजनीति से बाज नहीं आ रही है। ममता सरकार पर कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा छिपाने और लॉकडाउन का सख्ती से पालन नहीं करने का आरोप लगने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य में आईएमसीटी (इंटर मिनिस्ट्रीयल सेंट्रल टीम) भेजने का फैसला किया, लेकिन ममता बनर्जी ने केंद्रीय टीम को इजाजत देने से इनकार कर दिया। ममता ने साफ कहा है कि वह केंद्रीय टीम की इजाजत नहीं देंगी। हालांकि बाद में उन्होंने केंद्रीय टीम को इजाजत दे दी।

खुद को सर्वशक्तिमान मानती हैं ममता बनर्जी!
पश्चिम बंगाल की जनता ने वामपंथ के कुशासन से मुक्ति के लिए ममता बनर्जी को चुना था। मां, माटी और मानुष के नारे के बीच ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री बनाने वाली राज्य की आज खुद को ठगा महसूस कर रही है। ममता बनर्जी की तानाशाही में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता निरंकुश होते जा रहे हैं। मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठी ममता बनर्जी वोट की खातिर अपने ही राज्य की जनता की दुश्मन बन गई हैं। ममता बनर्जी का सिर्फ एक ही मकसद है हर कदम पर केंद्र की मोदी सरकार का विरोध करना। ममता सरकार के लिए केंद्र सरकार के कानूनों और केंद्रीय योजनाओं का विरोध करना कोई नई बात नहीं है, इससे पहले भी वे कई बार ऐसा कर चुकी हैं। इसका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ रहा है। मोदी सरकार के विरोध के चक्कर में ममता खुद को संविधान से ऊपर मानने लगी है।

नागरिकता संशोधन कानून पश्चिम बंगाल में लागू करने से इनकार
हाल ही में मोदी सरकार ने संसद में नागरिकता संशोधन कानून बनाया है, जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। लेकिन सीएम ममता बनर्जी ने इसे मानन से इनकार कर दिया। ममता बनर्जी ने साफ कहा कि नागरिकता संशोधन कानून को वो पश्चिम बंगाल में कभी भी लागू नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि वो इस देश के किसी वैध नागरिक को बाहर नहीं फेंक सकती हैं और न ही उसे शरणार्थी बना सकते हैं। हाल मे ही उन्होंने एनआरसी के मुद्दे पर कहा था, ”बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से निकालने की कोई कोशिश होगी तो ‘गृह युद्ध’ हो जाएगा।”

मोदी सरकार के विरोध में किसान विरोधी बन गईं ममता बनर्जी!
ममता बनर्जी ने अपनी सनक और केंद्र सरकार से विरोध में प्रदेशवासियों के कल्याण को ताक पर रख दिया है। देशभर में किसानों को मोदी सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि दी जा रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल के लाखों किसान इससे वंचित हैं, क्योंकि ममता बनर्जी को केंद्र सरकार की योजनाओं से नफरत है। ममता बनर्जी ने ऐसा कर के किसानों को मिलने वाले बड़े लाभ से वंचित कर दिया है। बताया जा रहा है कि राज्य के 70 लाख से अधिक किसान इस योजना से जुड़ना चाहते हैं। बड़ी संख्या में किसानों ने पीएम-किसान के लिए पंजीकरण भी करवा लिया है, लेकिन इन किसानों को पीएम-किसान सम्मान निधि का लाभ तभी मिल पाएगा, जब प्रदेश सरकार द्वारा इनके पात्र लाभार्थी होने का सत्यापन किया जाएगा।

पीएम-किसान सम्मान निधि में एक किसान परिवार को सालाना 6,000 रुपये सीधे हस्तांतरित किया जाता है। तीन किस्तों में इस राशि का भुगतान किया जाता है और प्रत्येक किस्त की राशि 2,000 रुपये होती है। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हठधर्मिता के कारण पश्चिम बंगाल के किसान अब तक लाभ पाने से वंचित रह गए हैं। यह राशि किसानों को कृषि कार्य में मदद के लिए दी जाती है, जिसका इस्तेमाल वे बीज व उर्वरक खरीदने व अन्य आवश्यकतों को पूरा करने में करते हैं।

पश्चिम बंगाल में बंद मोदी सरकार की ‘आयुष्मान भारत’ योजना
प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में अंधी हो चुकी ममता बनर्जी ने मोदी सरकार की महात्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना को पश्चिम बंगाल में बंद करने का ऐलान किया। आपको बता दें कि इस योजना के तहत मोदी सरकार गरीब परिवारों के लोगों को पांच लाख रुपये का सालाना चिकित्सा बीमा उपलब्ध कराती है। योजना लॉन्च होने के बाद से देशभर में करीब 92 लाख से अधिक लोग इसका लाभ ले चुके हैं। लेकिन ममता बनर्जी को गरीबों के स्वास्थ्य की कोई चिंता नहीं है। पश्चिम बंगाल को अपनी जागीर समझने वाली सीएम ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के इस महत्वपूर्ण योजना के लाभ से प्रदेश के लोगों को वंचित कर दिया है।

CAG ऑडिट से इनकार
ममता बनर्जी सरकार ने पिछले साल राज्य की कानून-व्यवस्था संबंधित खर्च और अन्य चीजों का ऑडिट करने से कैग (CAG) को मना कर दिया था। हालांकि कैग ने इस पर कड़ा ऐतराज जताते हुए राज्य सचिवालय कहा था कि पश्चिम बंगाल सरकार संविधान के दायरे से बाहर नहीं हैं। कैग ने साफ किया कि पश्चिम बंगाल की ढाई हजार किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा है। ऐसे में यहां कानून-व्यवस्था का पालन किस हिसाब से किया जा रहा है, इसकी जांच बेहद जरूरी है। जनसत्ता और दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार पश्चिम बंगाल गृह विभाग की ओर से कहा गया कि राज्य की कानून-व्यवस्था में कैग को किसी हाल में नहीं घुसने दिया जाएगा। हालांकि कैग ने कहा कि देश के परमाणु कार्यक्रमों एवं सेना के जहाजों की खरीद-बिक्री संबंधी बड़े मामलों का भी ऑडिट करता है तो क्या पश्चिम बंगाल सरकार की कानून- व्यवस्था उससे भी ऊंची चीज है? 

आपको बता दें कि संविधान के तहत हर तरह की सरकारी संस्थाओं के खर्च का ऑडिट कैग कर सकता है। किसी भी तरह की ऐसी संस्था जिसे सरकारी तौर पर सहायता राशि दी जाती है, कैग के दायरे में आती है। कानून- व्यवस्था भले ही राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन यह पूरी तरह से राज्य सरकार की ही नहीं है। पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए केंद्र सरकार धनराशि देती है। राज्य में आइपीएस अधिकारियों की तैनाती राष्ट्रपति के द्वारा होती है।

ब्लू बुक का फॉलो नहीं
ममता ने संविधान और सिस्टम को तब भी ठेंगा दिखाया जब बीते वर्ष 17 जुलाई को मेदनीपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली की थी। राज्य सरकार ने ‘ब्लू बुक’ फॉलो नहीं किया। पीएम की सुरक्षा के लिए SPG को संसाधन नहीं दिए गए और रैली स्थल से पांच किलोमीटर तक स्थानीय पुलिस की तैनाती नहीं की गई। 

ममता ने बदले केंद्रीय योजनाओं के नाम
ममता सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’ का नाम  ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया है।

स्वच्छ भारत सर्वेक्षण से परेशान ममता 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता अभियान के प्रति और जागरुकता पैदा करने और उसमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक स्वच्छता सर्वेक्षण करवाने का निर्णय किया। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने देश के 500 शहरों में ये सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया, लेकिन ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के 60 शहरों को इस सर्वेक्षण से बाहर कर लिया। 

‘स्मार्ट सिटी मिशन’ से पीछे हट गईं ममता
प्रधानमंत्री मोदी ने जून 2015 में 100 स्मार्ट शहरों के विकास की योजना का शुभारंभ किया। शुरुआत में पश्चिम बंगाल ने चार शहरों कोलकाता, विधान नगर, न्यू टाउन और हल्दिया को इस योजना के लिए नामांकित किया। लेकिन, बाद में न्यूटाउन जो 100 शहरों में से एक शहर चुना गया था उसे ममता बनर्जी ने स्मार्ट सिटी योजना से हटा लिया। 

RERA कानून भी नहीं बनने दिया
एक मई से पूरी तरह से लागू करने के लिए RERA कानून के तहत नियमों को नहीं बनाने वाले कुछ राज्यों में पश्चिम बंगाल भी शामिल है। मई 2016 में संसद ने घर खरीदने वालों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए इस कानून को पारित किया था। तब राज्यों को केन्द्र के कानून के आधार पर नियमों को अधिसूचित करने के लिए 27 नवंबर 2016 तक का समय दिया गया था।  

नदियों को जोड़ने की परियोजना के लिए तैयार नहीं
केंद्र की मोदी की सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के ध्येय को पूरा करने के उद्देश्य से मानस-संकोष-तिस्ता-गंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना शुरू करना चाहती है। इससे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी हो सकेगा। लेकिन ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की सरकार इस योजना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। 

वंदे मातरम पर प्रतिबंध 
बंकिंम चंद्र चटर्जी ने वन्दे मातरम गीत लिखा तो उन्हें कभी यह अंदेशा नहीं रहा होगा कि उनके ही प्रदेश में इसपर पाबंदी लग जाएगी। लेकिन यह हमारा दावा है कि आप बंगाल के बहुतेरे इलाकों में वंदे मातरम गुनगुना भी देंगे तो आपका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। ये ममता का सेक्युरिज्म का मॉडल है जहां आप अपना राष्ट्र गीत तक नहीं गा सकते हैं।

संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (JEE)का विरोध
देश के सभी इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए एकल संयुक्त परीक्षा के मोदी सरकार की पहल का ममता बनर्जी ने जमकर विरोध किया। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा, कि राज्य की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को रद्द करके एकल संयुक्त परीक्षा राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र का अतिक्रमण है। 

ममता मिटाना चाहती है विपक्षी दलों का नामो निशान
पिछले कई वर्षों से ऐसा साफ नजर आ रहा है कि ममता बनर्जी ने राज्य में विपक्ष को खत्म करने की योजना बना रखी है। उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के गुंडे कई सालों से सीपीएम और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के पीछे पड़े हुए हैं। यहां तक कि उनकी हत्या करवा रहे हैं। पंचायत चुनाव में जो कुछ हुआ वह सबके सामने है। एक महिला को ममता की पार्टी के गुंडों ने निर्वस्त्र तक कर दिया। मतदान केंद्र पर जाने से उन्हें रोका गया। बूथों पर कब्जा कर लिया गया। क्या यह सब राज्य की मुखिया की इजाज़त के बिना हो सकता है?

शाही इमाम को क्यों दी मनमानी की छूट ?
कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम को कानून को ताक पर रखकर लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमने की इजाजत ममता बनर्जी ने दी थी। जब पत्रकारों ने इमाम से पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, ये तो अब गैर-कानूनी है, तो उन्होंने जवाब दिया, ”ममता बनर्जी बोली आप जला के रखें, खूब जलाएं, आप घूमते रहें, हम हैं।” गौरतलब है कि मोदी सरकार ने एक मई, 2017 से लाल बत्ती की गाड़ियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। सिर्फ इमरजेंसी वाहनों को आवश्यकतानुसार लाल-नीली बत्ती के इस्तेमाल का अधिकार दिया गया है।

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