देश की नौकरशाही बदल रही है। ये सब इसलिए हो पाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बड़े अफसरों की नियुक्तियों के तरीके को ही बदलना शुरू कर दिया है। ये एक ऐसा क्षेत्र था, जिसके क्रिया-कलाप को कोई भी सरकार अबतक परिवर्तित नहीं कर सकी। लेकिन तीन साल के कार्यकाल में ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने धीरे-धीरे इसमें भी सुधार लाकर दिखा दिया है। उन्होंने तीन साल में नौकरशाही की परेशानियों को समझा है, उनके सामने उपस्थित चुनौतियों पर विचार किया है और उनकी कमियों को पास से परखने के बाद उसमें परिवर्तन लाना शुरू किया है।
बदल रही है नौकरशाही की चाल-ढाल
अंग्रेजी समाचार पोर्टल द इकॉनोमिक्स टाइम्स के अनुसार अपने आप में शायद अपरिवर्तन शील रही भारतीय नौकरशाही में भी बदलाव की प्रक्रिया शुरू है। अब बड़े पदों पर नियुक्तियों की परंपरागत व्यवस्थाएं समाप्त हो रही हैं। यानी नियुक्तियों के लिए एक मात्र आधार अफसरों की क्षमता और उनकी ईमानदारी पर ही निर्भर करेगा। न कि किसी तरह की चापलूसी या सत्ता से उनके संबंधों के आधार पर । यूं समझ लीजिए की ऊंची नौकरशाही की चाल-ढाल भी अब पूरी तरह से बदलने लगी है और ये संभव हुआ प्रधानमंत्री मोदी के विजन से।
360 डिग्री रिव्यू पर आधारित मूल्यांकन
ये परिवर्तन अफसरों के मूल्यांकन प्रक्रिया में किए जा रहे बदलाव के कारण आ रहा है, जो 360 डिग्री रिव्यू सिस्टम पर आधारित है। नियुक्ति, पदोन्नति और और परोक्ष रूप से चेतावनी देने के लिए भी यही सिस्टम काम कर रहा है। इसके चलते वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट पर निर्भरता कम हो रही है और बड़ी से बड़ी पोस्टिंग के तरीके में भी बदलाव आ रहा है। इसका परिणाम ये हुआ है कि तीन साल में नौकरशाही में गतिशीलता आ गई है। जैसे ऊंचे पदों पर नियुक्ति के लिए मंत्रियों या वरिष्ठ अफसरों के सामने लॉबिंग की आदतें अब समाप्त होने लगी हैं। सबसे बड़ी बात है कि प्रधानमंत्री ने स्वयं को भी इन नए प्रावधनों से अलग नहीं रखा है। अगर कोई नाम उनके कार्यालय से आया है, लेकिन वो नए मूल्यांकन प्रणाली से मैच नहीं खाता तो वो उस नाम पर विचार भी नहीं करना चाहते।
कांग्रेस की गंदगी दूर हो रही है!
दरअसल कांग्रेस की सत्ता के लंबे कार्यकाल ने नौकरशाही में कई तरह की गंदगियां भर दी थीं। तब सत्ता के प्रति निष्ठा ही ट्रांसफर-पोस्टिंग का एक मात्र आधार होता था। लेकिन, मोदी सरकार पहले दिन से भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने का संकल्प लेकर चल रही है। इसी के लिए पीएम मोदी ने ये नया तरीका निकाला है कि अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग उसके संपूर्ण मूल्यांकन के आधार पर ही किया जाएगा, न कि सिफारिशों और चापलुसियों के आधार पर। नई प्रणाली में अफसरों की फाइल निपटाने की क्षमता ही नहीं उसकी प्रतिभा, कौशल, सामाजिक और निजी पैरामीटरों का भी मूल्यांकन किया जाता है। ये सिर्फ अफसरों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट पर भी आधारित नहीं होगी। क्योंकि इसका उपयोग गलत तरीके से किये जाने की भी आशंका बनी रहती है।
गुपचुप तैयार की जाती है संपूर्ण मूल्यांकन रिपोर्ट
इस पूरी प्रक्रिया को निभाने के लिए सचिव स्तर के तीन रिटायर्ड अफसरों की नियुक्ति दो साल के लिए की जाती है। ये लोग स्वतंत्र तरीके से अधिकारियों के बारे में सारी जानकारियां जुटाते हैं। इन लोगों को ये पता नहीं होता है कि जिन अफसरों का वो मूल्यांकन कर रहे हैं, वो किस पोस्टिंग के लिए है। यूं समझ लीजिए कि इसमें किसी तरह की पक्षपात ये भेदभाव की संभावना ही नहीं रहने दी जाती। वो एक सतत प्रक्रिया के तहत अधिकारियों की बेहद गोपनीय रिपोर्ट तैयार करते चले जाते हैं और उसी आधार पर आवश्यकता अनुसार उनकी नियुक्ति हो जाती है।
संपूर्ण मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर ही नियुक्ति
ये रिटायर्ड अफसर जो गोपनीय रिपोर्ट देते हैं वो सचिव स्तर की नियुक्तियों में कैबिनेट सचिव के सामने और संयुक्त सचिव स्तर की नियुक्तियों में संबंधित मंत्रालयों के प्रमुखों के पैनल के सामने रखी जाती है। इन दोनों पैनल में पीएमओ के भी प्रतिनिधि होते हैं। इसके अलवा खुफिया सूचना और मंत्रालयों की संस्तुतियों पर भी गौर किया जाता है। लेकिन, तीन रिटार्ड अफसरों की गोपनीय रिपोर्ट को ही अधिक प्राथमिकता मिलती है।