आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का तानाशाही रवैया एक बार फिर सामने आया है। राज्यसभा में टिकट बंटवारे में अरविंद केजरीवाल ने कुमार विश्वास और आशुतोष जैसे बड़े नेताओं को दरकिनार करते हुए करीब एक महीने पहले कांग्रेस छोड़कर आए सुशील गुप्ता और पेश से सीए नारायण दास गुप्ता को राज्ससभा भेजने का फैसला लिया है। तीन सीटों में से एक पर आप नेता संजय सिंह का पहले ही एलान कर दिया गया था। अरविंद केजरीवाल के इस फैसले से पार्टी में बवाल मच गया है। पार्टी के तमाम पूर्व नेता केजरीवाल पर पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लगा रहे हैं।
On 28th Nov, Sushil Gupta came to submit his resignation-
I asked him-“Why”?
“सर,मुझे राज्य सभा का वायदा करा है”-was his answer!
“संभव नहीं”-I smiled
“सर आप नहीं जानते..”-He smiledLess than 40 days-Less said the better!
Otherwise,Sushil is a good man known for his charity! pic.twitter.com/DgrYhVaFJA
— Ajay Maken (@ajaymaken) 3 January 2018
केजरीवाल से 854 करोड़ का हिसाब मांगते हुए गुप्ता जी राज्य सभा चले गए ???? pic.twitter.com/XxS1kGaXtL
— Siddharth Tanwar (@Sidtanwar_) 3 January 2018
50 करोड़ का सौदा है
आंदोलन के पौधे को रौंदा है— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) 3 January 2018
कुमार विश्ववास ने साधा केजरीवाल पर निशाना
राज्यसभा टिकट के एलान के बाद आम आदमी पार्टी के संस्थापक और वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कटाक्ष करते हुए पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाए गए सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता को ‘आंदोलनकारियों की आवाज’ और ‘महान क्रांतिकारी’ बताया और कहा कि वह अपनी ‘शहादत’ स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर तमाम मुद्दों पर सच बोलने की सजा दी गई है। केजरीवाल पर बड़ा हमला बोलते हुए कुमार ने कहा कि उनसे असहमत होकर पार्टी में जीवित रहना संभव नहीं है। कुमार विश्वास ने कहा, ‘अरविंद ने मुझसे एक बार कहा था कि सर जी, आपको मारेंगे, पर शहीद नहीं होने देंगे। मैं अपनी शहादत स्वीकार करता हूं, बस एक निवेदन करता है कि युद्ध का भी एक छोटा सा नियम होता है कि शव के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाती। शहीद तो कर दिया, पर शव के साथ छेड़छाड़ न करें और आगे से पार्टी दुर्गंध ना फैलाए।’ कुमार ने इसके साथ ही एक ट्वीट भी किया। उन्होंने ट्वीट के साथ लिखा कि सबको लड़ने ही पड़े अपने-अपने युद्ध, चाहे राजा राम हो, चाहे गौतम बुद्ध”।
“सबको लड़ने ही पड़े अपने-अपने युद्ध
चाहे राजा राम हों, चाहे गौतम बुद्ध” ? pic.twitter.com/cY2z8ikygd— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) 3 January 2018
जानिए केजरीवाल कैसे करते हैं यूज एंड थ्रो की राजनीति
दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी सुविधा की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। समय-समय पर कई संगठनों और व्यक्तियों का उन्होंने सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल किया और आगे बढ़ते गए। इस यात्रा में जिस किसी ने भी उनकी सोच का विरोध किया, केजरीवाल ने उनका साथ छोड़ दिया। अलग-अलग क्षेत्र की हस्तियों को अपने राजनीतिक स्वार्थ में इस्तेमाल करने के बाद उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया। आइए डालते हैं एक नजर उन साथियों पर जिन्हें केजरीवाल ने ठेंगा दिखाया है।
अरुणा रॉय का साथ छोड़ा
अरविंद केजरीवाल का मन आईआरएस की नौकरी से ज्यादा अपनी संस्था ‘परिवर्तन’ में ही लगा रहता था। इसी दौरान उनको मैगसासे अवार्ड मिला और उसके धन से दिसबंर 2006 में एक नई संस्था पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन बनाया। इसके बाद सितंबर 2010 में अरुणा रॉय के नेतृत्व में स्वयंसेवी संस्थाओं के ग्रुप नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफॉरमेशन की लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बने। यहां से केजरीवाल को एक नये आंदोलन की रुपरेखा समझ में आयी और अरुणा राय को छोड़कर अन्ना हजारे के साथ महाआंदोलन की तैयारी करने लगे।
अन्ना का साथ लेना और फिर दरकिनार कर देना
अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल की ऐतिहासिक लड़ाई हुई, जिनके अनशन के सामने पूरी सरकार ने घुटने टेक दिए। पर, स्वार्थ का राजनीतिक फल खाने के लिए केजरीवाल ने अन्ना को ही ठेंगा दिखला दिया। केजरीवाल ने सारे आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया। केजरीवाल ने कहना शुरु कर दिया कि राजनीति का कीचड़ साफ करना है तो कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा। अन्ना के विरोध के बाद भी केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन कर दिया। अब अन्ना और केजरीवाल के सुर नहीं मिलते, अन्ना केजरीवाल पर धोखा देने तक का आरोप लगा चुके है।
मार्च 2013 में एक अंग्रेजी न्यूज चैनेल को दिए अपने इंटरव्यू में केजरीवाल ने कहा कि अन्ना और मेरे बीच विश्वास की कमी हो गई थी जिसकी वजह से हम दोनों के रास्ते अलग हो गये।
शांति भूषण को किनारे किया
पार्टी के वयोवृद्ध और संस्थापक नेता शांति भूषण ने केजरीवाल की तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की और आंतरिक लोकतंत्र का सवाल उठाया। उन्होंने पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप भी लगाए। बदले में केजरीवाल ने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया और बुरा-भला कहते हुए पार्टी के दरवाजे शांति भूषण के लिए बंद कर दिए। जबकि पार्टी को खड़ा करने में इन्होंने अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई भी लगाई थी।
प्रशांत भूषण भी हुए बाहर
अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी बनाने तक केजरीवाल ने जिन मुद्दों पर देश में सुर्खियां बटोरी, वो सारे कानूनी दांवपेंच प्रशांत भूषण ने अपनी मेहनत से जमा किया। प्रशांत पार्टी का थिंक टैंक माने जाते थे। पर जैसे ही केजरीवाल की मनमानी का प्रशांत भूषण ने विरोध किया, आंतरिक लोकतंत्र की बात उठायी – केजरीवाल ने उन्हें बेईज्जत कर पार्टी से निकालने में देर नहीं की।
योगेन्द्र यादव हुए तानाशाही के शिकार
अन्ना आंदोलन से लेकर आप के गठन तक में थिंक टैंक का हिस्सा रहे योगेन्द्र यादव। आप को शून्य से शिखर तक लाने में इनके राजनीतिक विश्लेषण का भरपूर इस्तेमाल किया गया। लेकिन जैसे ही इन्होंने केजरीवाल की मनमानी का विरोध किया, तो केजरीवाल ने उनके लिए गाली-गलौच करने से भी गुरेज नहीं की। बाद में बे-इज्जत कर पार्टी से भी निकाल दिया।
केजरीवाल ने शांति भूषण, प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव तीनों को पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया था। 28 मार्च 2015 को हुई दिल्ली के कापसहेड़ा में नेशनल कांउसिल की मीटिंग में जो हुआ उससे साफ पता चलता है कि केजरीवाल कितने तानाशाही प्रवृति के हैं। मीटिंग में प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, अजीत झा और प्रोफेसर आनंद कुमार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर निकाल दिया गया। इन्हें बाउंसर्स की मदद से उन्हें घसीटकर बाहर निकाल दिया गया।
प्रोफेसर आनन्द कुमार भी हुए बाहर
टीम केजरीवाल में थिंकटैंक का हिस्सा रहे प्रोफेसर आनन्द कुमार ने जब पार्टी और सरकार में एक व्यक्ति एक पद की बात उठायी तो अरविन्द केजरीवाल भड़क गये। पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफे का दांव खेलकर केजरीवाल ने प्रोफेसर आनन्द कुमार, योगेंद्र यादव और प्रशान्त भूषण को एक झटके में पार्टी से निकाल दिया।
किरण बेदी का भी साथ छोड़ा
अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन ‘लोकपाल आंदोलन’ साथ ही किया। दोनों ही टीम अन्ना के अहम सदस्य थे, लेकिन 2011 में शुरू हुआ लोकपाल आंदोलन डेढ़ साल बाद जब एक सामाजिक आंदोलन से एक राजनीतिक पार्टी की तरफ बढ़ चला तो किरण बेदी ने राजनीति में आने से इनकार करते हुए केजरीवाल के साथ चलने से मना कर दिया, और केजरीवाल से अलग हो गई। केजरीवाल की तानाशाही रवैये का उन्होंने हमेशा विरोध किया।
स्वामी रामदेव भी हुए अलग
अरविन्द केजरीवाल ने स्वामी रामदेव से तभी तक दोस्ती रखी जब तक कि उनका इस्तेमाल हो सकता था। अन्ना आंदोलन से जुड़कर और हटकर भी योगगुरू रामदेव ने कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन जारी रखा, लेकिन केजरीवाल ने उनका साथ देने से हमेशा खुद को पीछे रखा। दरअसल तानाशाही सोच रखने वाले केजरीवाल ने कभी चाहा ही नहीं कि उनसे अलग कोई बड़ा मूवमेंट हो।
जनरल वीके सिंह की नहीं हुई पूछ
अन्ना आंदोलन में खुलकर अरविन्द केजरीवाल के साथ रहे जनरल वीके सिंह को केजरीवाल ने पार्टी बनाने के बाद नहीं पूछा। अपनी उपेक्षा से नाराज रहे वीके अन्ना के साथ जुड़े रहे। केजरीवाल की स्वार्थपरक राजनीति देखने के बाद जनरल वीके ने बीजेपी का साथ देने का फैसला किया।
शाजिया इल्मी भी साइडलाइन
शाजिया इल्मी पत्रकारिता से अन्ना आंदोलन में आईं। आम आदमी पार्टी के चर्चित चेहरों में से एक थीं। जब शाजिया ने महसूस किया कि खुद केजरीवाल ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हराने का काम किया ताकि उनका कद ऊंचा ना हो सके, तो उन्होंने केजरीवाल पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी। अब शाजिया बीजेपी में हैं।
मेधा पाटकर का नहीं कोई मान
आम आदमी पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं मेधा पाटेकर ने अपनी उपेक्षा से नाराज होकर अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। मेधा ने केजरीवाल को मकसद से भटका हुआ बताया। दरअसल आम चुनाव में करारी हार के बाद केजरीवाल की सोच स्वार्थवश दिल्ली की सियासत तक सिमट गयी। फिर मेधा जैसे समाजसेवी उनके लिए यूजलेस और सियासी नजरिए से जूसलेस हो गयीं थीं।
जस्टिस संतोष हेगड़े भी हटे
जनलोकपाल का ड्राफ्ट जिन तीन लोगों ने मिलकर तैयार किया था उनमें से एक हैं जस्टिस संतोष हेगड़े। अन्ना आंदोलन में सक्रिय जुड़े रहे। पर, राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगने के बाद केजरीवाल ने हेगड़े को भी किनारा करना शुरू कर दिया। उपेक्षित और अलग-थलग महसूस करने के बाद जस्टिस हेगड़े ने टीम अन्ना से दूरी बना ली। वो इतने खिन्न हो गये कि केजरीवाल के शपथग्रहण समारोह में बुलाए जाने के बाद भी नहीं पहुंचे।
श्री श्री रविशंकर ने कहा जय श्री राम
श्री श्री रवि शंकर ने अन्ना आंदोलन को अपना समर्थन दिया था। अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक दल बनाने को भी उन्होंने गलत नहीं बताया था। पर, केजरीवाल ने अपनी गतिविधियों से उनको नाराज कर दिया। श्री श्री रविशंकर ने कहा कि केजरीवाल ने दिखा दिया कि वो अन्य राजनेताओं से अलग नहीं हैं। सस्ती लोकप्रियता, उनकी अतिमहत्वाकांक्षा और तानाशाही ने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। केजरीवाल और श्री श्री में ट्विटर पर भी खुली जंग हुई।
एडमिरल रामदास ने भी कहा राम-राम
आम आदमी पार्टी में आंतरिक लोकपाल पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल रामदास तब भौंचक रह गये जब उन्हें उनके पद से हटा दिया गया। एडमिरल रामदास ने कहा कि मैं यह जानकर चकित हूं कि अब पार्टी को मेरी जरूरत नहीं रही। आंदोलन से लेकर राजनीतिक दल बनने तक एडमिरल रामदास ने अरविन्द केजरीवाल का साथ दिया, लेकिन मौका मिलते ही उन्होंने उनसे इसलिए किनारा कर लिया क्योंकि लोकपाल के तौर पर उन्होंने किसी किस्म के समझौते से इनकार कर दिया था।
जेएम लिंग्दोह को दिया त्याग
पूर्व निर्वाचन आयुक्त लिंग्दोह की भूमिका जनलोकपाल बिल को तैयार करने में रही। लिंग्दोह उन चंद लोगों में शामिल रहे जिन्होंने खुलकर जनलोकपाल के लिए समर्थन दिया। राजनीतिक दल बना लेने के बाद केजरीवाल ने उन्हें भी त्याग दिया। दरअसल लिंग्दोह जैसे लोगों के रहते केजरीवाल के लिए पार्टी और सरकार में तानाशाही चलाना मुश्किल होता।
स्वामी अग्निवेश ने किया किनारा
एक समय अन्ना आंदोलन का चेहरा बन चुके थे अग्निवेश। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच बातचीत में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। पर, बाद में अरविन्द केजरीवाल ने उनसे किनारा कर लिया। स्वामी अग्निवेश को पार्टी बनाने से पहले ही केजरीवाल ने त्याग दिया था। टीम केजरीवाल ने उन्हे कांग्रेस का दलाल साबित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
विनोद कुमार बिन्नी निकाले गए
दिल्ली में सरकार बनने के बाद सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल की तानाशाही का विरोध विनोद कुमार बिन्नी ने ही किया था। बिन्नी ने खुलकर केजरीवाल के खिलाफ आरोप लगाए। इस वजह से उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। बिन्नी तब से अरविन्द केजरीवाल के साथ थे जब अन्ना आंदोलन शुरू भी नहीं हुआ था।
एमएस धीर- धैर्य ने दिया जवाब
आप सरकार में स्पीकर रहे एमएस धीर का अरविन्द केजरीवाल से ऐसा मोहभंग हुआ कि उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी। सिखों के प्रति केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर बताते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ी। उन्होंने नेतृत्व पर सिख दंगे में मारे गये लोगों के परिजनों को इंसाफ दिलाने में विफल रहने का आरोप उन्होंने लगाया।
अजित झा हो गए आजीज
प्रोफेसर आनन्द कुमार के साथ अजित झा ने भी पार्टी के भीतर लोकतंत्र की आवाज उठायी। आंदोलन और पार्टी में सक्रिय रहे। केजरीवाल ने चर्चित फोन टेप कांड में अजित झा के लिए भी अपशब्द कहे थे। योगेंद्र यादव, आनन्द कुमार, प्रशांत भूषण के साथ-साथ इन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
मुफ्ती शमून कासमी को किया किनारे
अन्ना हजारे को धोखा देने की वजह से अरविन्द केजरीवाल से खफा हो गये मुफ्ती शमून कासमी। उन्होंने केजरीवाल पर अन्ना के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने का आरोप लगाया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मौलाना की शरण में जाने के लिए भी कासमी ने केजरीवाल की निन्दा की और तभी कह दिया कि जरूरत पड़ी तो ये आदमी कांग्रेस से भी हाथ मिला सकता है। कासमी का दावा था कि केजरीवाल की सत्ता के लिए भूख सबसे पहले उन्होंने ही पहचानी।
कैप्टन गोपीनाथ ने छोड़ी पार्टी
भारत में कम कीमत के हवाई यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जी आर गोपीनाथ को भी पार्टी छोड़नी पड़ी। पार्टी छोड़ते हुए गोपीनाथ ने अरविन्द केजरीवाल की कार्यप्रणाली की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में रास्ते से भटक गयी है।
एसपी उदय कुमार नहीं कर सके एडजस्ट
विज्ञान के क्षेत्र में बड़े सम्मान से लिया जाने वाला नाम है एसपी उदयकुमार। उनके आम आदमी पार्टी में जुड़ने को बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया था। लेकिन केजरीवाल के साथ वे भी एडजस्ट नहीं कर सके। उन्होंने दक्षिणी राज्यों की उपेक्षा की वजह से पार्टी छोड़ दी। ये उपेक्षा तो होनी ही थी क्योंकि वहां कोई राजनीतिक लाभ केजरीवाल के लिए नहीं था।
तानाशाही से खिन्न मयंक गांधी ने भी साथ छोड़ा
योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और अन्य साथियों को जिस तरह से केजरीवाल ने साजिश के साथ बाहर निकाला था, उसका खुलासा मयंक गांधी अपने ब्लॉग में किया। वह जानते थे कि उनकी पारदर्शिता की मांग से एक न एक दिन उन्हें भी केजरीवाल बाहर का रास्ता दिखा ही देंगे। 11 नवंबर 2015 को मयंक गांधी ने भी केजरीवाल की तानाशाही प्रवृति से तंग आकर इस्तीफा दे दिया.
केजरीवाल ने आंदोलन और राजनीति में जिन लोगों का साथ लिया उनको अपनी सोच मनवाने के लिए मजबूर करते रहे, जो मजबूर नहीं हुए उन्होंने साथ छोड़ दिया और जो मजबूर हैं आज उनके साथ हैं।