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हिंसा पर सियासत कांग्रेस की पुरानी चाल!: लखीमपुर हिंसा में भी उठ रहे सवाल

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कांग्रेस की पुरानी आदत है सियासी फायदे के लिए हिंसा की आग में राजनीति की रोटियां सेंकना। जब भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई है, समर्थन बढ़ाने और हित साधने के लिए हिंसा और खूनखराबा करने वालों के साथ सांठगांठ से भी गुरेज नहीं करती। देश का अमन चैन भले की खतरे में पड़े, हिंसा में लोगों को जान गंवानी पड़े, आगजनी में जान माल की नुकसान हो, सरकारी संपत्ति की बर्बाद हो, लेकिन अगर इससे राजनीतिक फायदा है तो कांग्रेस को उससे परहेज नहीं।

लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की सूझबूझ से लखीमपुर खीरी को हिंसा के आग में धकेलने की मंशा पर पानी फिर गया। योगी सरकार ने एलान कर दिया की हिंसा में मारे गए चार किसानों के परिवारवालों को 45-45 लाख का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलेगी। साथ ही गंभीर रूप से घायल आठ किसानों को दस-दस लाख रुपये की आर्थिक मदद मिलेगी। साथ ही हिंसा की जांच हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस की निगरानी में होगी।

देश में हिंसा पर राजनीति कांग्रेस की पुरानी चाल !

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में हुई हिंसा के बाद एक बार फिर सोशल मीडिया पर कांग्रेस के पुराने रवैये को लेकर सवालों की बारिश हो रही है। लखीमपुर हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार सहित 9 लोगों की जान चली गई। लेकिन कांग्रेस का पुराना रवैया नहीं बदला। लोगों की लाशों पर राजनीति करने के लिए दिल्ली से लेकर लखीमपुर तक कांग्रेस नेताओं में होड़ मच गई।

लखीमपुर में हिंसा कैसे भड़की आखिर बवाल में जान मान का भारी नुकसान कैसे हुआ, इसकी सच्चाई जांच के बाद सामने आएगी। लेकिन लखीमपुर में मौके से आई तस्वीरों से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये भी है की लोगों को पीट-पीट कर लहूलुहान कर देने वालों के समर्थन में क्यों खड़ी है कांग्रेस। इसे लेकर सोशल मीडिया पर यूजर्स कांग्रेस पर सवालों की बौछार कर रहे हैं।

लखीमपुर हिंसा को लेकर सवालों में कांग्रेस

  • किसानों के आंदोलन की आड़ में हिंसा फैलाने वालों का समर्थन क्यों
  • प्रदर्शन के नाम पर हिंसा के खिलाफ क्यों नहीं बोलती कांग्रेस
  • भिंडरवाले की तस्वीर लेकर प्रदर्शन पर कांग्रेस चुप क्यों है
  • भिंडरवाले की टीशर्ट के साथ प्रदर्शन पर कांग्रेस का मौन क्यों
  • आंदोलन के नाम पर हिंसा और आगजनी का विरोध क्यों नहीं

प्रदर्शन करने वालों की बर्बरता पर कांग्रेस मौन क्यों

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में हुई हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे वीडियो दिल दहलाने वाले हैं। फर्जी किसानों ने बर्बरता दिलल दहलाने वाली है। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने बेकसूर लोगों पर लाठियों से हमला किया। पीट-पीट पर उन्हें लहूलुहान कर दिया गया। सिर खून बहा, लोगों के कपड़े खून से सन गए। देश को लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कांग्रेस नेताओं की जुबान खूनखराबा करने वालों की निंदा के लिए क्यों नहीं खुल रही।

लखीमपुर में हिंसा की आड़ में सियासी फायदे की तलाश

कांग्रेस ने हिंसा की आड़ में राजनीतिक हित साधने की पूरी प्लानिंग कर ली थी। हर हाल में राजनीति चमकाने के मौके की तलाश में जुटे कांग्रेस के नेता टेलीविजन के कैमरों के सामने बयानबाजी करते नजर आ रहे थे। बीजेपी को घेरने के लिए उल जलूल सवालों की बौछार हो रही थी। एसपी , बीएसपी, AAPऔर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए लखीमपुर के मुद्दे को संजीवनी समझ रहे थे। राजनीतिक हित साधने का जोश इतना ज्यादा है कि देश का अन्नदाता पीछे छूट चुका है। वोट बैंक साधने के लिए लाशों पर राजनीति करने में कांग्रेस सबसे आगे नजर आने लगी। कांग्रेस मुद्दे को हाईजैक कर राजनीति चमकाने में जुट गई।

यूपी चुनाव से पहले मौका देख महासचिव प्रियंका गांधी ने सुबह का इंतजार किए बगैर रात में ही लखीमपुर जाने का प्लान बना लिया। 

14 दिसंबर 2019 दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की रैली के बाद हिंसा

कांग्रेस पार्टी ने हमेशा देशहित से ऊपर गांधी परिवार के हित को रखा। अपना जनाधार बढ़ाने के लिए समाज को बांटने की कोशिश की। देश के नक्शे से खत्म हो रही कांग्रेस पार्टी हर वो हथकंडा अपना रही है जिससे उसे राजनीतिक लाभ हो ।

देश में हिसा भड़का कर राजनीति करने के का कांग्रेस का पुराना इतिहास रहा है । साल 2019 में दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की रैली हुई थी। इस रैली में मोदी सरकार के खिलाफ जम कर जहर उगला गया। इसी उकसावे की वजह से दिल्ली के जामिया नगर इलाके में हिंसा भड़की, गाड़ियों में आग लगा दी गई और पुलिसवालों पर पथराव हुआ।

जामिया हिंसा में भी छात्रों से नहीं की शांति की अपील

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ 15 दिसंबर को जामिया मिलिया इस्लामिया के पास हिंसा के मामले में लोगों को उकसाने के लिए कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। दिल्ली के जामिया इलाके में आगजनी और हिंसा की वारदातों के बाद एक बार भी कांग्रेस की तरफ से शांति की अपील नहीं की गई। इसके बाद जब आटीओ पर प्रदर्शन हुआ तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद रात को ही हंगामा कर रहे छात्रों से मिलने पहुंच गए। कांग्रेस को कतई इसकी चिंता नहीं थी हंगामा कर रहे छात्रों को शांत किया जाए, बल्कि वो उन्हें भड़काने में लगी रही। 

पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस ने आग लगाई !

कांग्रेस पार्टी ने नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी की आड़ में पूर्वोत्तर के राज्यों में भी अपने मंसूबों को फैलाने का काम किया है। इससे यहां के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।

हिंसा और खौफ का खेल: कांग्रेस ने कराया देश का बड़ा नुकसान !

वर्ष 2018 के सितंबर महीने में भी कांग्रेस ने विरोधी दलों के साथ मिल कर भारत बंद बुलाया था। भारत बंद के दौरान हिंसा और लूट का खेल खेला था। इस दौरान जहानाबाद में एक बच्ची की जान चली गई तो कई जगहों पर ट्रेनों पर पथराव किए गए। लोगों की गाड़ियां तोड़ी गईं, किसानों को मारा गया और स्कूल बसों पर हमला किया गया। सरकारी संपत्ति के साथ निजी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया।

हिंसा और बवाल करने वालों को कांग्रेस का समर्थन !

गुजरात के निर्दलीय विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं । वो हाल ही में कांग्रेस के मंच पर भी नजर आए थे। ये वही जिग्नेश मेवाणी हैं जिन्होंने कर्नाटक में होने वाली प्रधानमंत्री मोदी की रैली में लोगों को कुर्सी फेंकने के लिए उकसाया था। जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात में भी कई बार हिंसा फैलाने की कोशिश की है और महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में भी उन्होंने ही दलित और मराठा के बीच संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार की थी।

गुजरात में पटेल आरक्षण को लेकर जिस तरह से आंदोलन किया गया था वह किसी राजनीतिक दल के समर्थन के बगैर नहीं हो सकता था। बाद में हार्दिक पटेल और कांग्रेस के संबंधों और सौदेबाजी का खुलासा भी हुआ था।

मंदसौर में किसानों को भड़काने में कांग्रेस का हाथ !

मध्य प्रदेश के मंदसौर में जून, 2017 को जब मंदसौर में किसानों का आंदोलन चल रहा था। इसकी आगुआई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद कर रहे थे। कांग्रेस विधायकों और कार्यकर्ताओं ने किसानों को इतना भड़काया कि छह लोगों की जान चली गई। एक सच्चाई ये है कि राहुल गांधी आंदोलन को बीच में ही छोड़कर विदेश भाग गए।

सहारनपुर में जातीय तनाव में भी कांग्रेस पर उठे सवाल

अप्रैल 2017 में आग लगाने की कोशिश की गई। सहारनपुर में दलितों और ठाकुरों को आमने-सामने लाने की कोशिश की गई। मामले की जांच हुई तो हिंसा फैलाने में कांग्रेस के नेताओं के सहयोग से खड़ा हुए संगठन भीम आर्मी का नाम सामने आया। साफ है कि मोदी राज में दंगा रहित देश कांग्रेस और विरोधी दलों को रास नहीं आ रहा। यही वजह है की किसी ने किसी बहाने हिंसा को समर्थन और हिंसा फैलाने वालों का सहयोग कर सरकार की बदनाम करने की साजिश की जा रही है।

 

 

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