Home विपक्ष विशेष न्यायपालिका को लेकर बेवजह बवाल मचाने वाली कांग्रेस अपने गिरेबां में क्यों...

न्यायपालिका को लेकर बेवजह बवाल मचाने वाली कांग्रेस अपने गिरेबां में क्यों नहीं झांकती?

SHARE

पिछले कुछ दिनों से लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने न्यायपालिका को बदनाम करने की ठान ली है। कांग्रेस पार्टी के नेता न्यायपालिका को लेकर रोजाना कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर देते हैं। पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मन मुताबिक फैसला नहीं आने पर कांग्रेस पार्टी ने देश के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दे दिया था। अब उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट का जस्टिट बनाने को लेकर कांग्रेस पार्टी ने मुहिम छेड़ दी है। केंद्र सरकार ने इससे संबंधित शीर्ष अदालत की कोलेजियम की सिफारिश को पुनर्विचार के लिए वापस लौटा दिया है। केंद्र सरकार को यह फैसला लेने का हक है, लेकिन मोदी सरकार के इस फैसले से कांग्रेस पार्टी बौखला गई है। कांग्रेस के नेताओं ने इसे मुद्दा बनाते हुए सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाना शुरू कर दिया है। इस तरह के आरोप लगाने वाली कांग्रेस पार्टी को अपने कुकर्म याद नहीं रहते हैं, हम आपको बताते हैं न्यायपालिका की स्वतंत्रता को किस तरह कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की पूर्व सरकार ने तार-तार किया है।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कुचलने में अपनी शान समझती है कांग्रेस
देश पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का डीएनए ही ऐसा है कि वह हमेशा खुद को सर्वोपरि समझती है। कांग्रेस पार्टी जब सत्ता में रहती है, तब तो मनमानी करती ही है, विपक्ष में रहने पर भी साम, दाम, दंडभेद के जरिए सत्ता हासिल करने की जुगत में लगी रहती है। कांग्रेस अपने फायदे के लिए संवैधानिक संस्थाओं को नीचा दिखाने से भी नहीं चूकती है। इन दिनों कांग्रेस पार्टी देश के सवा सौ करोड़ नागरिकों के सबसे बड़े न्याय के मंदिर सुप्रीम कोर्ट को नीचा दिखाने में लगी है। 

पक्ष में फैसला नहीं आने से बौखलाए राहुल गांधी!
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा पर पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। दरअसल जस्टिस दीपक मिश्रा ने जज लोया हत्या मामले में कांग्रेस समर्थित जनहित याचिकाओं को खारिज करते हुए एसआईटी जांच की मांग को ठुकरा दिया। इस फैसले के बाद राहुल गांधी बौखला गए हैं और उन्होंने सीजेआई के खिलाफ आनन-फानन में महाभियोग लाने का फैसला कर लिया। हालांकि महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा के चेयरमैन खारिज कर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी महाभियोग का भय दिखाकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को डराने का कुचक्र रच रही है। कांग्रेस का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ जज ने सीजेआई पर न्यायपालिका की स्वायत्तता और स्वतंत्रता से खिलावाड़ करने का आरोप लगाया था।

कांग्रेस ने हमेशा सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाई
सच्चाई यह है कि कांग्रेस पार्टी ने ही हमेशा सुप्रीम कोर्ट की स्वायत्तता और स्वतंत्रता से खिलवाड़ किया है। देश के संविधान को सर्वशक्तिमान बनाए रखने का उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय पर है, लेकिन कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकारों ने हर मौके पर सर्वोच्च न्यायालय के इस अधिकार को कमजोर करने का प्रयास किया। नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक सभी ने जब मौका मिला सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल के पहले और आपातकाल के दौरान जिस तरह से सर्वोच्च न्यायलय पर अंकुश रखा गया, वो देश के इतिहास का काला अध्याय है।

आइए कांग्रेस पार्टी और उसकी सरकारों के काले इतिहास पर एक नजर डालते हैं और जानते हैं कि किस तरह कांग्रेस ने इस देश की न्यायपालिका की शक्तियों को कम करने का प्रयास किया-

जवाहर लाल नेहरू का प्रयास- देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पसंद से सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायधीशों को नियुक्ति का प्रयास किया था।

• पहली बार प्रयास उस समय किया जब सर्वोच्च न्यायलय के प्रमुख न्यायधीश हरीलाल कानिया की मृत्यु 6 नवंबर 1951 को पद पर रहते ही हो गई, और उस समय सर्वोच्च न्यायलय के सबसे वरिष्ठ न्यायधीश पंतजलि शास्त्री को प्रधानमंत्री नेहरू मुख्य न्यायधीश नहीं बनाना चहते थे। इस बात का पता चलते ही, सर्वोच्च न्यायलय के सभी वरिष्ठ न्यायधीशों ने ऐसा किए जाने पर प्रधानमंत्री नेहरू को इस्तीफा देने की धमकी दी तब पंतजलि शास्त्री को मुख्य न्यायधीश बनाया गया।

• दूसरी बार प्रयास नेहरू ने उस समय किया जब मुख्य न्यायाधीश पंतजलि शास्त्री 3 जनवरी 1954 को रिटायर होने वाले थे । न्यायाधीश शास्त्री के बाद न्यायाधीश मेहर चंद महाजन सर्वोच्च न्यायलय में वरिष्ठ न्यायाधीश थे, लेकिन प्रधामंत्री नेहरू चाहते थे कि महाजन के बाद के वरिष्ठ न्यायाधीश बिजन कुमार मुखर्जी मुख्य न्यायाधीश बनें। प्रधानमंत्री नेहरु ने मुखर्जी से मुख्य न्यायाधीश बनने का कई बार आग्रह किया लेकिन आखिर में न्यायाधीश मुखर्जी को प्रधानमंत्री नेहरू को जवाब देना पड़ा कि अगर वह अधिक दबाब डालेंगे तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा। आखिर में मेहर चंद महाजन को मुख्य न्यायाधीश बनाना पड़ा।

• 10 सितंबर 1949 को संविधान सभा में न्यायपालिका पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नेहरू ने न्यापालिका के बारे में अपनी सोच को बताते हुए कहा था कि देश की संसद को ही सारे कानून बनाने के अधिकार है और सर्वोच्च न्यायलय को संसद के मत के अनुसार चलना होगा। उन्होंने कहा कि “Within limits no judge and no Supreme Court can make itself a third chamber. No Supreme Court and no judiciary can stand in judgment over the sovereign will of Parliament. If we go wrong here and there, it can point it out, but in the ultimate analysis where, the future of the community is concerned, no judiciary can come in the way. And if it comes in the way, ultimately, the whole Constitution is a creature of Parliament.”इंदिरा गांधी का प्रयास– प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, कई बार अपने मनमाफिक सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश की नियुक्ति करने में असमर्थ रहे थे, लेकिन उनकी बेटी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ऐसा करने में सफल रहीं। उन्होंने अपने मनमाफिक सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीशों और मुख्य  न्यायाधीशों की नियुक्तियां कीं। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कई बार सर्वोच्च न्यायलय की स्वतंत्रता का हनन किया-

• पहली बार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी मनपसंद के न्यायाधीश ए एन रे को सर्वोच्च न्यायलय का मुख्य न्यायाधीश बनाया। ए एन रे उन 13 न्यायाधीशों की संविधानपीठ के सदस्य थे, जिसने केशवानंद भारती मामले में 24 अप्रैल 1973 को संसद को संविधान संशोधन करने की शक्ति वापस की थी। इस मामले में निर्णय आने के ठीक एक दिन बाद ए एन रे को तीन वरिष्ठ न्यायधीशों को नजरदांज करते हुए मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया।

• दूसरी बार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान 29 जनवरी 1977 को न्यायाधीश एम.एच.बेग को वरिष्ठ न्यायाधीश एच आर खन्ना को नजरदांज करके मुख्य न्यायाधीश बनाया। प्रधामंत्री इंदिरा गांधी के इस कदम के बाद न्यायाधीश खन्ना ने इस्तीफा दे दिया।

• इंदिरा गांधी ने न्यायाधीश एच आर खन्ना को इसलिए यह सजा दी कि उन्होंने जबलपुर एडीएम के मामले में 28 अप्रैल 1976 को यह फैसला दिया था कि आपातकाल के दौरान भी नागरिकों के मौलिक अधिकार खत्म नहीं किए जा सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश ए एन रे, एम एच बेग, वाई वी चंद्रचूड़ और पी एन भगवती ने कहा कि आपातकाल के दौरान नागरिकों के अधिकार भी समाप्त हो जाते हैं। सर्वोच्च न्यायलय के इस निर्णय के बल पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान जबरदस्त मनमानी की ।राजीव गांधी का प्रयास– प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने ने भी अपने प्रचंड बहुमत का उपयोग करते हुए, सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय को पलट दिया।

• अप्रैल 1985 में सर्वोच्च न्यायलय ने शाहबानो मामले में निर्णय दिया कि तलाक के बाद मुस्लिम महिला को अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता मिलना, महिला का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को मुस्लिम वोट बैंक के दबाब में आकर 1986 में कानून बनाकर पलट दिया गया।

• राजीव गांधी की सरकार के दौरान एडीएम जबलपुर मामले में इंदिरा गांधी सरकार के हक में फैसला देने वाले तीनों न्यायाधीश एम एच बेग, वाई वी चंद्रचूड और पी एन भगवती ही मुख्य न्यायाधीश बने।

6 अक्टूबर 1993 में Second Judges मामले में आए फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों के नियुक्ति और स्थानांतरण की सभी शक्तियां एक कॉलेजियम के हाथों में दे दी।इस देश में, सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों के साथ खिलवाड़ करने का काम सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की सरकारों ने किया है, जिसका बुरा प्रभाव आज तक देश भुगत रहा है।

Leave a Reply