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मोदी सरकार को बदनाम करने की साजिश, मीडिया के एक धड़े ने हिंदी की अनिवार्यता को लेकर फैलाया झूठ

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई में केंद्र सरकार देश में हर वर्ग, हर समुदाय की उन्नति के लिए कार्य कर रही है। मोदी सरकार की नीतियों की वजह से हर सेक्टर में बेहतरी दिखाई दे रही है। बीते साढ़े चार वर्षों में मोदी सरकार की सफलता ने विपक्षियों और एडेंजा पत्रकारों की नींद उड़ा दी है। यही वजह है कि विपक्षियों द्वारा लगातार मोदी सरकार के बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। ताजा मामला मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को लेकर है।

मीडिया के एक सेक्शन ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को लेकर झूठ फैला जा रहा है। कई हिंदी-अंग्रेजी न्यूज चैनलों और अखबारों में खबरें प्रकाशित की गई हैं कि मोदी सरकार के कक्षा आठ तक हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य कर दिया है। अंग्रेजी न्यूज चैनल सीएनएन न्यूज-18 से लेकर इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स नाउ सभी ने झूठी खबरें प्रकाशित की हैं कि मोदी सरकार ने देशभर में कक्षा आठ तक हिंदी को अनिवार्य कर दिया है।

जबकि सच्चाई यह नहीं है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट कर स्पष्ट किया है कि नई शिक्षा नीति में ऐसा कोई फैसला नहीं किया गया है। उन्होंने कहा है कि मीडिया के एक सेक्शन जानबूझ कर झूठी खबरें फैला रहा है।

यह कोई पहली बार नहीं है इससे पहले भी मीडिया में मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए झूठी खबरें चलाई जाती रही हैं। आइए, आपको पिछले चार सालों में एजेंडा मीडिया के दुष्प्रचार के कुचक्र का लेखा-जोखा बताते हैं-

सितबंर 2015-  अखलाक की मौत को असहिष्णुता का मुद्दा बनाया- उत्तर प्रदेश के दादरी के बिसहड़ा गांव मे अखलाक को गौमांस रखने और खाने पर पीट-पीट कर मार डालने की निंदनीय घटना को कर्नाटक में कलबुर्गी, पंससरे आदि की हत्याओं से जोड़कर देश में बढती असहिष्णुता को मुद्दा बना दिया। इस मुद्दे नयनतारा सहगल से लेकर आमिर खान आदि लेखकों और फिल्कारों ने अपने अवार्ड वापस कर दिए। लेकिन असहिष्णुता का मुद्दा झूठा साबित हुआ, देश प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सबके साथ सबका विकास कर रहा है।

जनवरी 2016- वेमुल्ला की आत्महत्या और जेएनयू में देश विरोधी नारेबाजी पर पुलिस कार्यवाई को, अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे का मुद्दा बनाया- हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित शोध छात्र रोहित वेमुल्ला ने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली, जिसे दलित प्रताड़ना का रंग दे दिया गया। कुछ दिनों के बाद फरवरी माह में दिल्ली में जेएनयू छात्रों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की आड़ में कश्मीर की आजादी पर नारेबाजी की तो दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की। रोहित वेमुल्ला की मौत और जेएनयू छात्रों पर पुलिस कार्रवाई को जोड़कर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा बना दिया गया। देश में कई दिनों तक इस झूठे मुद्दे पर हंगामा किया गया। आज यह बात साफ हो गई है कि रोहित ने आत्महत्या व्यक्तिगत कारणों से की थी और जेएनयू में छात्रों ने देश के खिलाफ नारेबाजी की थी। देश में सभी की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति सुरक्षित है।

मई -जून 2017- पशु बाजारों के नियमों को मांस खाने पर पाबंदी का मुद्दा बनाया –देश के पशु बाजारों में जानवरों को कसाई घरों को बेचे जाने पर पाबंदी लगाने के सरकार के ताजा नियमों को यह झूठ कहकर दुष्प्रचारित किया गया कि सरकार लोगों के खान-पान पर पाबंदी लगा रही है और मांस खाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस मुद्दे पर पूरे देश में विरोध किया गया, जबकि यह खबर सरासर झूठी थी। आज, यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार ने किसी प्रकार के खान पान पर प्रतिबंध नहीं लगाया है।

जून-जुलाई 2017- ट्रेन में सीट के झगड़े को गौमांस रखने  का मुद्दा बना दिया-  22 जून को दिल्ली से मथुरा जा रही ट्रेन में हरियाणा में 15 साल के युवक की ट्रेन में सीट को लेकर कुछ लोगों से हाथापाई हो गई, इस मारपीट में युवक जूनैद की मौत हो गई। इस मौत पर दुष्प्रचार किया गया कि जूनैद की हत्या मांस ले जाने के कारण हुई। इस मुद्दे को पूरे देश में बढ़ते असहिष्णुता का रंग देकर पेश किया गया।

सितंबर-अक्टूबर 2017- बुलेट ट्रेन को गरीब विरोधी योजना वाला मुद्दा बना दिया- अहमदाबाद-मुबंई बुलेट ट्रेन परियोजना की शुरुआत होने पर एजेंडा मीडिया ने जमकर विरोध किया। इसके विरोध का आधार वे तथ्य थे जो पूरी तरह से झूठ और कुतर्क पर गढ़े गये। परियोजना की लागत और देश में ऐसी ट्रेन की जरूरत को लेकर तमाम सवाल उठाये गये, लेकिन परियोजना शुरू हुई और प्रधानमंत्री मोदी ने इस परियोजना को 2022 तक पूरा करने का संकल्प किया है।

सिंतबर-अक्टूबर 2017 बीएचयू की घटना को महिलाओं पर हो रहे जुर्म का मुद्दा बना दिया– वाराणसी में बीएचयू की छात्राओं ने विश्वविद्यालय परिसर में घटी घटना का विरोध वाइस चांसलर के कार्यलय के सामने किया। इस विरोध में जानबूझकर किसी संदिग्ध व्यक्ति ने आगजनी कर दी, जिस पर पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। बल प्रयोग होते ही एजेंडा मीडिया ने झूठी तस्वीरों और बयानों के जरिए छात्राओं पर पुलिसिया जुर्म का आरोप लागाकर प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने लगा। आज,इस घटना के बारे में स्पष्ट हो गया है कि एक मामूली घटना को झूठे तथ्यों के सहारे बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया था।

जनवरी 2018- भीमा गोरेगांव को मराठा दलित के संघर्ष का मुद्दा बना दिया- 01 जनवरी 2018 को पुणे के भीमा गोरेगांव में भीमा गोरेगांव युद्ध के 200 वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान हिंसा को भड़क उठी, जिसे मराठा और दलितों के संघर्ष का रंग देने का दुष्चक्र रचा गया। आयोजन के दौरान जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद, राधिका वेमुल्ला आदि जैसे लोगों ने भाषण दिया और भीड़ में से ही कुछ लोगों ने स्मारक के साथ छेड़-छाड़ कर दी, जिससे हिंसा अधिक भड़क उठी। अब, यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि इस घटना को भड़काने में भी मीडिया ने झूठ का दुष्चक्र रचा।

फरवरी -मार्च 2018- चावल के पानी वाले गुब्बारों को Semen से भरे गुब्बारे कह कर, महिलाओं की असुरक्षा का मुद्दा बना दिया- दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज की छात्राओं पर होली के दौरान गुब्बारे फेंकने की घटना को झूठ के सहारे तूल देने का दुष्चक्र रचा गया। झूठ फैलाया गया कि गुब्बारे में Semen को भरकर फेंका जा रहा है। इसे प्रधानमंत्री मोदी के विरोध का मुद्दा बना दिया गया। कुछ दिन पहले आयी फोरेंसिंग रिपोर्ट बताती है कि इसमें Semen नही बल्कि चावल का पानी था। मीडिया ने एक बार फिर झूठ को दुष्प्रचार का आधार बना लिया।

मार्च-अप्रैल 2018 सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सरकार का फैसला बनाकर, आरक्षण रद्द करने का मुद्दा बना दिया-सर्वोच्च न्यायालय ने 24 मार्च को अनुसूचित जाति और जनजाति कानून की समीक्षा करते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को बिना सबूत के इस कानून के तहत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले पर यह झूठ फैलाया गया कि सरकार ने कानून ही खत्म कर दिया है और आरक्षण भी खत्म करने वाली है। इस झूठ को ही मुद्दा बनाकर 2 अप्रैल को भारत बंद कर दिया गया, जिसके दौरान हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुई जिनमें लोगों की मौतें भी हुई।

अप्रैल 2018 बच्ची की हत्या को हिन्दू -मुस्लिम का रंग दे दिया- 14 जनवरी को जम्मू के कठुआ में 7 साल की बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म की घृणित घटना पर 08 अप्रैल को दुष्प्रचार फैलाने का काम किया गया। इस दुष्प्रचार में बच्ची की तस्वीर को हर चैनल और वेबसाइट ने प्रकाशित किया और झूठ फैलाया कि बच्ची के साथ दुष्कर्म एक देवस्थान में हुआ है। कोर्ट ने सभी मीडिया संस्थानों को तस्वीर प्रकाशित करने के लिए नोटिस देते हुए 10 लाख जुर्माना देने का दंड दिया और देव स्थान पर दुष्कर्म होने की बात भी झूठी साबित हुई।

अप्रैल 2018 मालेगांव धमाकों को भगवा आतंकवाद का मुद्दा बना दिया- 2006 में हुए मालेगांव बम धमाके में असीमानंद और अन्य को NIA की अदालत ने बरी कर दिया। अदालत के फैसले ने यह साबित कर दिया कि एजेंडा मीडिया जो कई वर्षों से भगवा आतंकवाद का दुष्प्रचार कर रहा था, वही पूरी तरह से झूठा साबित हुआ है और आज कांग्रेस को अपना झूठ छिपाने के लिए कोई तर्क नहीं मिल रहा कि उसने भगवा आतंकवाद का आरोप हिन्दूओं पर क्यों मढ़ा था।

अप्रैल 2018- एजेंडा मीडिया ने झूठे तथ्यों के सहारे बनाया मोदी सरकार के विरोध का मुद्दा
पिछले वर्ष 19 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने जस्टिस लोया की मौत पर मीडिया द्वारा प्रचारित की जा रही खबरों को साजिश बताया और सीबीआई जांच की मांग को खारिज कर दिया। जस्टिस बृजमोहन लोया की मौत नागपुर में 1 दिसंबर 2014 को हार्ट अटैक से हुई थी, लेकिन तीन साल के बाद गुजरात चुनावों के दौरान नंवबर 2017 में अंग्रेजी पत्रिका The Caravan ने जस्टिस लोया की प्राकृतिक मौत को हत्या साबित करने वाली कई रिपोर्टस को प्रकाशित किया। The Caravan की इन रिपोर्टस को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने के लिए इस्तेमाल किया तो प्रशांत भूषण ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका के जरिए सीबीआई से जांच कराने की मांग की। अन्ततः सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना पड़ा कि मीडिया साजिश के तहत जस्टिस लोया की मौत पर दुष्प्रचार कर रहा है और प्राकृतिक मौत को हत्या बनाने पर तुला हुआ है।

इन घटनाओं से यह साफ होता जा रहा है कि देश का विपक्ष और एजेंडा मीडिया तथ्यों पर झूठ का आवरण चढ़ाकर, देश में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विरोध का माहौल तैयार करता है।

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