Home विपक्ष विशेष एक और भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार कर रही कांग्रेस!

एक और भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार कर रही कांग्रेस!

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सालों साल तक सत्ता पर काबिज रहने की कवायद में वंशवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद की आग में देश को जलाने का काम कांग्रेस पार्टी करती रही है। समाज में विभाजन और बंटवारे की राजनीति के आसरे कांग्रेस तो बढ़ती रही, लेकिन देशहित को बहुत नुकसान पहुंचा है। बीते 70 सालों में जिस तरह से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की गई है उससे अब देश के एक और विभाजन की तस्वीर दिखने लगी है। हाल में कुछ ऐसे वाकये सामने आए हैं जिसमें मुसलमान समुदाय देशहित का विरोध करने से भी गुरेज नहीं कर रहा है। हैरत की बात यह है कि कांग्रेस पार्टी नाजायज मांगों पर भी अपना समर्थन देती जा रही है। आइये एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही वाकयों पर-

जिन्ना का महिमामंडन कर रही कांग्रेस
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर पर विवाद हो रहा है, लेकिन कांग्रेस चुप है। दरअसल देश के बंटवारे का गुनहगार जिन्ना की तस्वीर लगाए जाने को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उचित ठहरा रहा है। ऐसे में कांग्रेस की चुप्पी का सबब सहज ही समझा जा सकता है। लेकिन कांग्रेस की ये चुप्पी उस कुत्सित सोच को समर्थन है जो देश के दुश्मन का महिमामंडन करने की सिर्फ इसलिए इजाजत देता है, क्योंकि वह एक मुस्लिम है। जाहिर है यह सोच देश की एकता-अखंडता के लिए बेहद खतरनाक साबित होने वाली है।

खुले में नमाज पर कांग्रेस की सियासत
देश के अधिकतर इलाकों में खुले में नमाज पढ़ने के मामलों के कारण अक्सर तनाव की स्थिति पैदा होती रही है। यह ऐसी समस्या है जो विकराल रूप धारण करती जा रही है। कई बार तो सड़कों पर आवागमन पूरी तरह बाधित हो जाता है और आम लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है। हाल में जब हरियाणा में इसको लेकर विरोध किया गया तो कांग्रेस ने इसपर सियासत शुरू कर दी। कांग्रेस नेता प्रदीप जेलदार ने कुछ पत्रकारों के साथ मिलकर इसे मुद्दा बना दिया। जबकि यह मुद्दा बांग्लादेशी घुसपैठियों से भी जुड़ता है, लेकिन कांग्रेस ने वोट बैंक की खातिर देशहित को भी दरकिनार कर दिया।

मुसलमानों को एक होने का कांग्रेसी मंत्र
”मुस्लिम समाज कांग्रेस को वोट दे और अगर वे उसे वोट देंगे तो इस्लाम उन पर प्रसन्न होगा।” वरिष्ठ कांग्रेसी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने यही बात कहते हुए मुसलमानों से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देने की अपील की। उन्होंने कहा, “भाजपा को किसी भी हाल में कर्नाटक की सत्ता में नहीं आने देना चाहिए। मुसलमानों को बड़ी तादाद में एकजुट होकर कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करना चाहिए।” जाहिर है आजाद का यह बयान सीधे तौर पर मुस्लिम मतदाताओं की गोलबंदी का प्रयास भर ही नहीं, बल्कि विभाजन की राजनीति का बीज है।

असम में अवैध घुसपैठियों पर राजनीति
1972 में कांग्रेस सरकार को असम से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड को अलग करना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस की सत्तापरस्ती के कारण असम और त्रिपुरा में बंगाली शरणार्थियों की संख्या तेजी से बढ़ी। 1961 में ही यह संख्या छह लाख के ऊपर थी, आज यह बढ़कर ढाई करोड़ हो गई है। उस दौर में नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस की केंद्र सरकार ने जबरन बंगाली शरणार्थियों को समाहित करने का दबाव डाला तो तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलई ने इसका विरोध किया, लेकिन जवाहर लाल हरू ने विकास मद के दिये जाने वाले केंद्रीय अनुदान में भारी कटौती की धमकी दी। परिणास्वरूप राज्य सरकार को घुटने टेकने पड़े। आज यही आबादी अब देश से अलग होने की मांग कर रही है, लेकिन कांग्रेस अब भी बांग्लादेशी घुसपैठ को धर्म के आधार पर जोड़कर देखती है और अपनी राजनीति का आधार तैयार करती है।

‘आजादी गैंग’ को राहुल गांधी का समर्थन
जेएनयू में छात्रों के एक वर्ग ने 9 फरवरी, 2016 को देशविरोधी नारेबाजी की थी। जेएनयू छात्र संघ के नेताओं की मौजूदगी में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ और ‘कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा’ जैसी भड़काऊ नारेबाजी की थी। इन नारों को सुनने के बाद सारा देश स्तब्ध था, सरकार राष्ट्रद्रोहियों पर कार्रवाई में जुटी थी, लेकिन कांग्रेस भारत विरोधियों के समर्थन में कूद पड़ी थी। तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तब जेएनयू पहुंचकर कहा था- “केंद्र सरकार छात्रों की आवाज नहीं सुन रही है। जो लोग छात्रों की आवाज दबा रहे हैं, वह सबसे बड़े राष्ट्र विरोधी हैं। राहुल गांधी ने भले ही अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की, लेकिन इस दौरान वह देश में एक और विभाजन की लकीर जरूर खींच गए।

 

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