संसद को सौंपी गई जेपीसी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश में राष्ट्रीय महत्व के करीब 280 स्मारकों को वक्फ बोर्ड ने अपनी जायदाद घोषित किया हुआ था। इन स्मारकों में कई राजधानी दिल्ली में हैं। कुतुब मीनार, फिरोजशाह कोटला, पुराना किला, हुमांयूं का मकबरा, जहांआरा बेगम की कब्र और कुतुब मीनार क्षेत्र में स्थित आयरन पिलर, अल्तमश का मकबरा जैसे स्मारक भी वक्फ की संपत्ति हैं। समिति की सुनवाई के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इन स्मारकों की फेहरिस्त सौंपी थी। इसके अलावा, शहरी विकास मंत्रालय ने कमेटी को बताया कि भूमि एवं विकास विभाग की 108 और डीडीए की 130 संपत्तियां वक्फ के कब्जे में दी गईं। वक्फ ने बाद में इन स्मारकों पर अपना दावा बता दिया। बता दें कि एक समय देश में वक्फ बोर्ड की 52 हजार पंजीकृत संपत्तियां थीं। आज 9.4 लाख एकड़ जमीन पर 8.72 लाख अचल संपत्तियां हैं।
किलों का निर्माण हिंदू राजाओं ने कराया और वक्फ बोर्ड का कब्जा
वक्फ संशोधन बिल पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने गुरुवार को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में JPC ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के हवाले से बड़ा खुलासा किया है। इसमें कहा गया है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की कई संरक्षित स्मारकों पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर रखा है। जिसमें दिल्ली की अग्रसेन की बावड़ी से लेकर पुराना किला और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का लौह स्तंभ वक्फ संपत्ति घोषित है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में बताया गया कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन आने वाले 5 किलों को भी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर रखा है। इन 5 किलों में से 3 किलों का निर्माण हिंदू राजाओं ने करवाया था।
महाभारत कालीन प्राचीन बावड़ी को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया
जेपीसी की रिपोर्ट में सामने आया है कि दिल्ली में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित 74 स्मारक वक्फ संपत्ति घोषित हैं। जिसमें अग्रसेन की बावड़ी भी शामिल है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ ओम उपाध्याय के मुताबिक अग्रसेन की बावड़ी का निर्माण राजा अग्रसेन ने करवाया था और यह बावड़ी महाभारत कालीन है और इसका निर्माण 4 हजार वर्ष पहले हुआ था। ASI के मुताबिक 1 अगस्त 1913 को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने अग्रसेन की बावड़ी को संरक्षित स्मारक घोषित किया था और आजादी के बाद इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया था, लेकिन 16 अगस्त 1970 को दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इस महाभारत कालीन प्राचीन बावड़ी को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया। वक्फ बोर्ड के दस्तावेज खंगाले तो पाया कि बावड़ी के परिसर में एक मस्जिद मौजूद है, जहां आज ना कोई नमाज पढ़ने आता है, लेकिन साल 1970 में दिल्ली वक्फ बोर्ड ने मस्जिद हेली रोड नाम से वक्फ संपत्ति को नोटिफाई किया और इसमें मस्जिद के अलावा खाली पड़ी जमीन और महाभारत कालीन बावड़ी को भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।
पांडवों के प्राचीन किले और कुंती मंदिर पर भी किया अवैध कब्जा
राजधानी दिल्ली में UNESCO द्वारा घोषित 3 वैश्विक धरोहर हैं, जिसमें एक है कुतुब मीनार और इसका परिसर और इसी परिसर में स्थित है चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का लौह स्तंभ जिस पर भगवान विष्णु के बारे में ब्राह्मी लिपि में लिखा है। राजधानी दिल्ली में स्थित पुराने किले के पूरे परिसर को भी JPC की रिपोर्ट के मुताबिक वक्फ बोर्ड ने साल 1970 से अपनी संपत्ति घोषित कर रखा है। पुराने किले का पूरा परिसर साल 1913 से ASI के संरक्षण में है। साथ ही पुराने किले को प्राचीन इंद्रप्रस्थ माना जाता है और इतिहासकारों की मानें तो यहां पर पांडवों का किला था। पुराने किले के परिसर में साल 1880 से कुंती देवी मंदिर स्थित है। ऐसे में पूरा परिसर वक्फ संपत्ति घोषित होने की वजह से कुंती मंदिर भी वक्फ की जद में आया हुआ है। साथ ही इसी किले के भीतर कई सारी महाभारत पुरातत्व साइट भी हैं, जिसमें खुदाई में महाभारत काल के कई साक्ष्य मिल चुके हैं।
महाराष्ट्र में हिंदूओं और मराठा के किलों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति बनाया
JPC की रिपोर्ट में ASI द्वारा संरक्षित भारत के 5 प्राचीन किलों का भी नाम सामने आया है, जिन्हें वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर रखा है। इसमें ASI द्वारा साल 1904 से संरक्षित गोंदिया के प्रतापगढ़ किला है जिसका निर्माण हिंदू गोंड राजाओं ने करवाया था लेकिन महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड ने साल 2004 में अपनी संपत्ति के रूप में दर्ज कर दिया था। इसी तरह महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित पौनार किला जिसका निर्माण 5वीं शताब्दी में हिंदू राजा प्रवर सेना ने करवाया था और गोंडवाना सम्राज्य से लेकर छत्रपति शिवाजी और संभाजी के मराठा साम्राज्य में भी यहां पर मराठा भोंसले सेनापतियों ने राज किया था। इसे भी 2004 में वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया था। हिंदू राजाओं द्वारा निर्मित इन दोनों किलों के अलावा वक्फ ने मुगल कालीन अकोला के बालपुर किले को अभी अपनी संपत्ति घोषित कर रखा है।
कर्नाटक में किले 1951 में संरक्षित घोषित, 74 में वक्फ संपत्ति बने
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक JPC ने जो जानकारी मुहैया कराई है, उससे साफ है कि कर्नाटक के बिदार में स्थित बिदार के किले और कलबुर्गी स्थित गुलबर्ग किले को भी वक्फ ने अपनी जागीर यानि वक्फ संपत्ति घोषित कर रखा है, जबकि इन दोनों किलों को ASI ने साल 1951 में संरक्षित स्मारक घोषित किया था और वक्फ ने 1974 में इन्हें वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। पड़ताल में सामने आया कि वक्फ बोर्ड ने इन सभी स्मारकों को वक्फ संपत्ति इनके परिसर में बनी मस्जिदों के आधार पर किया था और मस्जिदों के साथ-साथ वक्फ बोर्ड ने पूरे परिसर को वक्फ संपति घोषित किया है।
त्रिपुरा में प्राचीन बौद्ध स्तूप को भी 2011 में वक्फ संपत्ति बना दिया
हिंदू स्मारकों के अलावा त्रिपुरा के बख्शनगर में स्थित 8 वीं सदी का प्राचीन बौद्ध स्तूप और अवशेष हैं, जिस पर बुद्ध का चित्र है और साल 1985 में इसी ASI ने संरक्षित स्मारक एवं स्थल घोषित किया था। लेकिन साल 2011 में इसी बौद्ध स्मारक के परिसर कुछ जमीन को त्रिपुरा वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति के रूप में दर्ज करके ईदगाह घोषित कर दिया है। एएसआई के आइजॉल सर्किल से मिली जानकारी के मुताबिक स्मारक के जिस हिस्से को त्रिपुरा वक्फ बोर्ड ने 2011 में अपनी संपति घोषित किया था, वो अभिलेखों में वर्षों से त्रिपुरा सरकार की जमीन के रूप में दर्ज है।
बीजापुर किले में रखी तोपों तक को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति बनाया
बावड़ी और किले के अलावा JPC की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कर्नाटक के धारवाड़ सर्किल में स्थित बीजापुर किले में रखी आदिलशाही की तोपों तक को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर रखा है। वक्फ संशोधन बिल पर बनी JPC की रिपोर्ट के मुताबिक, JPC को ASI ने बताया था कि उसके स्मारकों को वक्फ संपत्ति घोषित करने के बाद कई जगह वक्फ बोर्ड ना सिर्फ मनमाने ढंग से बिना ASI की अनुमति के जोड़ तोड़ करके इमारत की प्राचीनता को खराब करते हैं, बल्कि AMASR एक्ट का उल्लंघन करके स्मारक के भीतर ही दुकानें बनाकर उसे किराए पर दे देते हैं। जैसा कि ASI के आरोप के मुताबिक वक्फ बोर्ड जौनपुर स्थित विवादित अटाला मस्जिद में कर रहा है जो कि ना सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि इमारत के लिए नुकसानदेह है।
ताजमहल को रौजा ताजमहल नाम से यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति माना
वैसे जहां एएसआई ने JPC के सामने देश भर में उसके 280 स्मारकों पर वक्फ के दावे की बात बताई है तो UPA सरकार में तत्कालीन संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने जानकारी दी थी कि अकेले दिल्ली और गुजरात में ही ASI के 261 संरक्षित स्मारकों पर वक्फ का दावा है। इतना ही नहीं जहां JPC को दी गई सूची में ASI ने एक ओर UNESCO द्वारा घोषित वैश्विक धरोहर ताज महल को वक्फ संपत्ति या फिर वक्फ के दावे में नहीं रखा है तो पड़ताल में ही भारत सरकार के WAQF ASSETS MANAGEMENT SYSTEM OF INDIA (WAMSI) पर ताजमहल को रौजा ताज महल नाम से यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति के रूप में साल 2004 से दर्ज कर रखा है और ASI और वक्फ बोर्ड इस मामले पर इलाहाबाद हाईकार्ट में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
AMASR एक्ट का उल्लंघन, वक्फ बोर्ड स्मारकों में दुकानें से किराया कमाया
एएसआई ने जेपीसी को ये भी बताया कि वक्फ बोर्ड ने हमें स्मारकों का संरक्षण नहीं करने दिया। वहां मनमर्जी बदलाव किए। पुरातत्व कानून तोड़ा। निजता के नाम पर स्मारकों में हमारी एंट्री बंद की। वहां फोटोग्राफी, गाइड, स्मृति चिह्न बेचने की छूट दी। मूल ढांचे बदलकर निर्माण कराए। दुकानें बनाई और किराए पर दे दीं। यह AMASR एक्ट का पूरी तरह से उल्लंघन है।
ऐसे समझेंः नए वक्फ कानून से क्या बदलेगा…
वक्फ संपत्ति उसे कहते हैं, जिसे मुस्लिमों ने धार्मिक या धर्मार्थ के लिए दान दी हो। इसमें पंजीकृत संपत्ति को न बेच सकते हैं न ही उनका स्वामित्व बदल सकते हैं। लेकिन, नए कानून से कई चीजें बदलेंगी,
1. पहले वक्फ अधिनियम, 1995 कहते थे। आगे यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एंपावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट कहेंगे।
2. पहले वक्फ की जमीन पर दावा करने वाला वक्फ ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता था, लेकिन अब वो कोर्ट में भी कर सकेगा।
3. पहले ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती नहीं दे सकते थे, लेकिन अब हाई कोर्ट में चुनौती दे सकेंगे।
4. पहले जिस जमीन पर मस्जिद या इस्लामिक उद्देश्यों के लिए उपयोग होता हो, वो वक्फ की होती थी। अब दान की ही जमीन वक्फ की होगी, भले ही उस पर मस्जिद हो। .
5. पहले वक्फ बोर्ड में महिला और गैर धर्म के लोग सदस्य नहीं हो सकते थे। अब दो महिलाओं और 2 गैर मुस्लिम सदस्य रखने होंगे।
6. कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, इसका फैसला राज्य सरकार की ओर नामित अधिकारी करेगा।
7. जो संपत्तियां वक्फ कानून के तहत पहले से रजिस्टर हैं, उन पर असर नहीं। जो रजिस्टर नहीं, उन्हें नए मानकों के अनुरूप रहेंगी।
8. जो बोर्ड को जमीन दान करना चाहते हैं, उन्हें बताना होगा कि वह 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं।