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पीएम मोदी की कूटनीति का असर, कश्मीर मुद्दे पर ब्रिटेन की लेबर पार्टी को देना पड़ा स्पष्टीकरण

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश का दुनिया में जो स्थान बना है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। उनकी अगुवाई में भारत आज एक ग्लोबल पावर बनकर उभरा है। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को दुनिया भर में अलग-थलग करने की पीएम मोदी की कूटनीति अब पूरी तरह सफल साबित हो रही है। इसका पता ब्रिटेन की लेबर पार्टी के रूख में आए बदलाव से भी चलता है। कश्मीर मुद्दे पर ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने यू-टर्न लेते हुए अब स्पष्टीकरण जारी किया है। लेबर पार्टी के चीफ ईयान लवेरी ने पार्टी की तरफ से एक पत्र जारी करते हुए कहा है कि लेबर पार्टी कश्मीर मुद्दे को भारत और पाकिस्तान का आपसी मामला मानता है और अपने पुराने स्टैंड पर कायम है।

कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा

लेबर पार्टी की नेशनल पार्टी फोरम ने अपनी राष्ट्रीय रिपोर्ट-2019 में इस बात का उल्लेख किया है कि कश्मीर मसला भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है। भारत और पाकिस्तान को शांतिपूर्ण तरीके से आपसी सहमति बनाते हुए कश्मीर के लोगों की भलाई के लिए काम करना होगा। दोनों देशों को कश्मीरी लोगों के अधिकारों और सम्मान के लिए मिलकर काम करना चाहिए।

किसी भी अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं

पत्र में आगे लिखा है कि कश्मीर मुद्दे को लेकर लेबर पार्टी का मानना है कि इस मामले में किसी भी अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं हैं। लेबर पार्टी इस मामले में किसी भी तरह के अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का विरोध करती है। जबकि, 25 सितंबर 2019 को लेबर पार्टी ने पार्टी कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और संयुक्त राष्ट्र के रेफरेंडम की मांग की थी। इसके बाद 26 सितंबर को भारत के विदेश मंत्रालय ने लेबर पार्टी के इस मांग का कड़ा विरोध किया था।

पीएम मोदी और भारतीयों के दबाव ने दिखाया रंग

लेबर पार्टी के चीफ ईयान लवेरी ने कहा कि आपातकालीन प्रस्ताव में उपयोग की गई भाषा से भारत के कुछ लोगों और भारतीयों को बुरा लगा था। लेकिन हम बताना चाहते हैं कि हम कश्मीर मसले पर भारत या पाकिस्तान विरोधी नहीं हैं। हम इस मुद्दे का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं।

भारतीयों ने लेबर पार्टी के स्पष्टीकरण का किया स्वागत

इस पत्र के बारे में ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी के अध्यक्ष कुलदीप शेखावत ने कहा कि हम लेबर पार्टी के इस पत्र का स्वागत करते हैं। लेकिन हम नहीं चाहते कि भारत के अंदरूनी मामले में किसी भी तरह का विदेशी हस्तक्षेप हो। भारत दुनिया की बड़ा लोकतांत्रिक देश है। वह अपने नागरिकों के हितों और मानवाधिकारों की रक्षा करता है।

आइए एक नजर डालते हैं पाकिस्तान को अलग-थलग करने की राजनीति में मोदी सरकार को मिली कूटनीतिक कामयाबी पर-

पीएम मोदी की चिंता पर बोरिस जॉनसन ने जताया खेद 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ बातचीत में 15 अगस्त को लंदन स्थित भारतीय दूतावास के बाहर कश्‍मीर के नाम पर पाकिस्तान समर्थकों के हिंसक प्रदर्शन का मुद्दा उठाया। पीएम मोदी की इस चिंता पर बोरिस जॉनसन ने खेद जताया। उन्‍होंने कहा कि वह भारतीय दूतावास की सुरक्षा को और पुख्‍ता किया जाएगा। उन्‍होंने पूरी सुरक्षा का भरोसा दिया। भारत के सख्त रूख को देखते हुए भारत में ब्रिटेन के राजदूत डोमिनिक आस्क्विथ ने लंदन में भारतीय दूतावास पर हमले के लिए माफी मांगी। एक चैनल के कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि ब्रिटेन हमेशा से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीयकरण के खिलाफ रहा है।

अमेरिका ने भी नहीं सुनी बात
आर्टिकल 370 खत्म करने के बाद अमेरिका ने साफतौर पर दखल देने से इनकार कर दिया और कहा कि यह दोनों देशों के बीच का आपसी मामला है। पाकिस्तान उम्मीद लगाए बैठा था कि राष्ट्रपति ट्रंप मध्यस्थता की बात को आगे बढ़ाएंगे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक के बाद उन्होंने भी साफ इनकार कर दिया।

दुनिया मानने लगी आतंकवादी देश है पाकिस्तान
प्रधानमंत्री मोदी ने जब से देश की कमान संभाली है आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक अभियान चला रखा है। पीएम मोदी के प्रयास से ही पश्चिमी दुनिया अच्छे और बुरे आतंकवाद में फर्क करना भूल गई है। वर्तमान दौर में दुनिया में सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद है। भारत आतंकवाद से सबसे अधिक त्रस्त है जिसकी एक मात्र वजह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद है। दुनिया के अधिकतर देश भी यह मानने लगे हैं कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और इसपर लगाम कसना आवश्यक है।

चीन को आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होने के लिए मजबूर किया
पाकिस्तान को All Weather Friend कहने वाला चीन आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान के साथ खुलकर, भारत के खिलाफ खड़े होने का हिम्मत नहीं रखता है। चीन को आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने मजबूर कर दिया। हाल के दिनों में चीन के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत का परिणाम यह हुआ कि चीन के साथ आर्थिक, समाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में रिश्ते गहरे हो रहे हैं, जो अमेरिका से आर्थिक युद्ध झेल रहे चीन के स्थायित्व के लिए बहुत जरूरी हैं। चीन के साथ बढ़ती घनिष्ठता, पाकिस्तान की आतंकवादी नीति की काट के लिए सबसे कारगर उपाय साबित हो रही है। अब चीन, भारत की पाकिस्तान के आतंकवादियों के खिलाफ की जा रही सैनिक कार्रवाइयों पर उसका साथ नहीं देता है और न ही विश्व मंच पर पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाता है। इससे पाकिस्तान और भी अकेला पड़ता जा रहा है।

कश्मीर पर खाड़ी देशों ने किया भारत का समर्थन

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ पाकिस्तान के दुष्प्रचार के वाबजूद खाड़ी देशों ने भारत का समर्थन किया और इसे भारत का अंदरूनी मामाला बताया। आज भारत के सऊदी अरब, ईरान, क़तर, बहरीन और UAE समेत सभी देशों से राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं। यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है कि खाड़ी के किसी देश का पाकिस्तान को समर्थन नहीं मिला। 

ईरान, अफगानिस्तान, यूएई और सऊदी अरब से करीबी रिश्ते बनाकर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया
पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्रों से अपने सबंधों के बल पर भारत को आंख दिखाता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान, यूएई और सऊदी अरब के साथ भारत के सामरिक रिश्तों को मजबूत किया। इन देशों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के रिश्तों को एक नया आयाम दिया। हाल ही में यूएई ने भारत के अपराधियों को प्रत्यर्पण करने में पूरी मुस्तैदी दिखाई। आज कोई भी इस्लामिक राष्ट्र, जम्मू कश्मीर में मारे जा रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों को लेकर भारत का विरोध नहीं करता और न ही पाकिस्तान का साथ देता है। इस तरह भारत ने इस समूह में पाकिस्तान को अलग कर दिया है। अफगानिस्तान के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष रिश्ते बनाए हैं और अफगानिस्तान को सामानों की आपूर्ति करने के लिए ईरान से चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने का समझौता करके पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से तोड़ दिया है। पाकिस्तान के मित्र राष्ट्रों के साथ दोस्ती करके प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के नैतिक बल को ही खत्म कर दिया है।

आतंक को संरक्षण देने वाला देश घोषित हुआ पाकिस्तान
कभी अमेरिकी प्रशासन के लिए पसंदीदा रहे पाकिस्तान की हालत ऐसी हो चुकी है कि वह आतंकवादी देश घोषित होने के कगार पर पहुंच चुका है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति का परिणाम यह हुआ कि अमेरिका ने भारत के मोस्ट वाटेंड पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन और आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन पर प्रतिबंध लगा। 2018 में आई अमेरिकी रिपोर्ट में लिखा गया, ”ये आतंकवादी संगठन पाकिस्तान से चल रहे हैं। पाकिस्तान में इनको ट्रेनिंग मिल रही हैं और पाकिस्तान से ही इन आतंकवादी संगठनों की फंडिंग हो रही है।” रिपोर्ट में इस बात का साफ-साफ जिक्र था कि भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। इस तरह से पाकिस्तान को अमेरिका से दूर करके भारत ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के जहर को ही सोखने का उपाय खोज निकाला।

जी-20 में आतंकवाद पर पाकिस्तान के खिलाफ समर्थन प्राप्त किया
प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व के 20 सबसे बड़े देशों के समूह जी 20 के साथ आतंकवाद और पर्यावरण संतुलन को प्रमुख मुद्दा बनाया। आतंकवाद को गरीब के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा बताया और सभी राष्ट्रों को इसके खिलाफ एकजुट होकर जवाबी कार्रवाई करने के लिए कहा। सभी राष्ट्रों ने भारत का खुलकर समर्थन किया और गैरकानूनी ढंग से धन की आवाजाही को रोकने के लिए व्यवस्था स्थापित करने के लिए बाध्य किया। जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, स्विटजरलैंड, अमेरिका, रुस, चीन आदि जैसे देशों के साथ जी-20 में मिलकर भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के नाम पर अलग-थलग कर दिया।

सार्क समूह में पाकिस्तान को अकेला कर दिया
वर्ष 2016 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन में जब भारत ने शामिल नहीं होने की घोषणा की तो संगठन के अन्य कई देशों, जैसे – श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और अफगानिस्तान ने भी हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। हालांकि पाकिस्तान ने अन्य देशों को बुलाने की कोशिश की, लेकिन वो विफल रहा और अंत में सार्क सम्मेलन रद्द करने को मजबूर होना पड़ा। आज तक पाकिस्तान की लाख कोशिशों के बावजूद भी सार्क सम्मेलन नहीं हो सका है।

सार्क सैटेलाइट से पाक पर चोट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरुरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।

बिम्सटेक को भी पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ खड़ा किया
नेपाल में 30-31 अगस्त, 2018 को संपन्न हुए हुए बिम्सटेक के चौथे शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने काठमांडू घोषणा पत्र को स्वीकार किया। इसके मुताबिक बिम्सटेक को एक शांतिप्रिय, समृद्ध और सतत् विकास के स्वरूप वाले क्षेत्र में विकसित करने के लिए सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की। घोषणा पत्र में बिम्सटेक चार्टर को जल्द से जल्द बनाने और गरीबी उन्मूलन, ऊर्जा, कृषि सहित कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया गया। बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्‍यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड ने आतंकवाद को दरकिनार कर शांति के साथ प्रगति करने की अपनी मंशा जाहिर करते हुए पाकिस्तान की आतंकवादी नीति की जड़ें हिला कर रख दीं।

पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीएफ) की संदिग्धों की सूची यानि ग्रे लिस्ट में डलवाया
अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने टेरर फंडिंग पर रोक लगाने के लिए पाकिस्तान को फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में डाल दिया है। ग्रे लिस्ट का मतलब  है पाकिस्तान अब एक संदिग्ध देश है और उसके  क्रियाकलापों पर विश्व की एजेंसियों की नजर है। इस सूची में आने के बाद से पाकिस्तान को विश्व से मिलने वाली तमाम आर्थिक सहायता और ऋण पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए जायेगें, जिससे पाकिस्तान अपनी आतंकवादी नीति के चलते आर्थिक रुप से कमजोर होता जाएगा। उसे इस स्थिति से बचने के लिए हर हाल में अपनी आतंकवादी नीति छोड़नी ही पड़ेगी।

 

 

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