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परदेस में परचम: मोदी-राज में रुपये को कई देशों में मिली मान्यता, भारतीय करंसी में हो रहा व्यापार, अब भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में 40 अरब डॉलर का निवेश और 4.25 लाख नौकरियां देकर बजाया देश का डंका

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वैश्विक विजन के साथ देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने के इरादे के चलते जहां एक ओर भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के स्थान पर विश्व-व्यापार में अपनी ठसक बनाने के लिए तैयार हो रहा है। वहीं, दूसरी ओर भारतीय कंपनियां आर्थिक महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका में ही अपना परचम बुलंद कर रही हैं। भारतीय कंपनियों ने अमरीका में 40 अरब डॉलर तक का निवेश किया है। इसके अलावा इन कंपनियों ने वहां करीब 4.25 लाख लोगों को नौकरियां दी हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ‘इंडियन रूट्स, अमेरिकन सॉयल’ शीर्षक वाली सर्वे रिपोर्ट बताती है कि जिन 163 भारतीय कंपनियों ने अमरीका में निवेश किया है, उन्होंने सामाजिक दायित्व भी बखूबी निभाया और इस पर करीब 18.5 करोड़ डालर खर्च किए। अमरीका में शोध और विकास परियोजनाओं के लिए इन कंपनियों ने एक अरब डालर की फंडिंग की। उधर जाने-माने अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी के मुताबिक, भारतीय रुपया आने वाले समय में नया डॉलर हो सकता है। जिस तरह से भारतीय अर्थ व्यवस्था छलांगे मार रही है, उसमें रुपया ही डॉलर की जगह लेने की ताकत रखता है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है भारत को दुनिया का ताकतवर देश बनाने का विजन
एक कहावत की माने तो ‘सिक्का उसी का चलेगा, जो शक्तिशाली होगा।’ पूरे विश्व में कभी इस कहावत को अमेरिका ने चरितार्थ करके दिखाया था। ब्रेटन वुड्स प्रणाली का पतन अमेरिकी डॉलर की मजबूती का आधार बना और इसने अन्य विकसित बाजार मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर को ऊंचाई के साथ खड़ा कर दिया। यह भी सच है कि जो जितना ऊंचा उड़ता है उतना ही कभी नीचे भी आता है। अमेरिकी डॉलर की उड़ान के दिन भी अब कम होने लगे हैं। या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भारत को दुनिया का ताकतवर देश बनाने के विजन के चलते ही अब विदेशी अर्थशास्त्री भी भारतीय रुपये का लोहा मान रहे हैं। एक-दो नहीं कई देशों में अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष ही भारतीय करेंसी को भी व्यापार में मान्यता मिल रही है। यही वजह है कि अब भारतीय करंसी की तरह कई भारतीय कंपनियां भी सुदूर अमेरिका में अपना डंका बजा रही हैं।अमेरिका में 163 भारतीय कंपनियों ने निवेश कर सामाजिक दायित्व भी निभाया
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ‘इंडियन रूट्स, अमेरिकन सॉयल’ शीर्षक वाली सर्वे रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई कि कैसे भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में कमाल कर दिखाया है। अमरीका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने वाशिंगटन में आयोजित एक सम्मेलन में यह रिपोर्ट जारी की। इस मौके पर भारत में अमरीका के राजदूत ऐरिक गार्सेटी भी मौजूद थे। भारतीय कंपनियों के प्रतिनिधि भी इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जिन 163 भारतीय कंपनियों ने अमरीका में निवेश किया है, उन्होंने सामाजिक दायित्व भी बखूबी निभाया। और इस पर करीब 18.5 करोड़ डालर खर्च किए। अमरीका में शोध और विकास परियोजनाओं के लिए इन कंपनियों ने एक अरब डालर की फंडिंग की।भारतीय कंपनियों ने अमरीका में 4.25 लाख लोगों को दी नौकरियां
अमरीका में भारतीय राजदूत संधू ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय कंपनियों ने अमरीका में 4.25 लाख लोगों को नौकरियां दी। अमेरिका में भारतीय कंपनियां मजबूती, जुझारूपन और प्रतिस्पर्धा ला रही हैं। ये रोजगार पैदा कर रही हैं और स्थानीय समुदायों को समर्थन भी दे रही हैं। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि भारतीय कंपनियों ने अमरीकी बाजार में अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया। इन क्षेत्रों में सक्रिय भारतीय कंपनियां अमरीका के सभी पचास राज्यों के अलावा वाशिंगटन डीसी और प्यूर्टो रीको में कार्यरत हैं। इनकी सक्रियता फार्मास्युटिकल्स और जीव विज्ञान, दूरसंचार, वैमानिकी और रक्षा, वित्तीय सेवा, विनिर्माण, पर्यटन और होटल, डिजाइन और इंजीनियरिंग, वाहन, खाद्य एवं कृषि ऊर्जा, खनन क्षेत्रों में है।अमेरिका के टेक्सास राज्य में सबसे ज्यादा 9.8 अरब डालर का निवेश
भारतीय कंपनियों ने सबसे ज्यादा 9.8 अरब डालर का निवेश अमरीकी राज्य टेक्सास में किया। इसके बाद जॉर्जिया, न्यूजर्सी, न्यूयार्क, मेसाचुसेट्स, केटकी, कैलिफार्निया, मैरीलैंड, फ्लोरिडा और इंडियाना में किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक 85 प्रतिशत कंपनियां अगले कुछ साल में अमरीका में और निवेश करने की योजना बना रही हैं। इसके अलावा 83 प्रतिशत कंपनियों की अगले पांच साल में अमरीका में और कर्मचारियों को नियुक्त करने की योजना है। यदि यह बात करें कि किस राज्य में कितनी नौकरियां मिली हैं तो रिपोर्ट के मुताबिक टेक्सास में 20906, न्यूयार्क में 19162, न्यूजर्सी में 17713, वाशिंगटन में 14525, फ्लोरिडा में 14418, कैलिफोर्निया में 14334, जार्जिया में 13945, ओहियो में 12188, मोंटाना में 9603 और इलिनॉयस में 8454 लोगों समेत लाखों को भारतीय कंपनियों ने नौकरियां दी हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घट रही है विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की संपत्ति
एक दिलचस्प तथ्य है कि एक ओर जहां भारतीय रुपया दूरदर्शी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विश्वपटल पर मजबूती दिखाने को तत्पर है, वहीं दूसरी ओर आईएमएफ के आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़ो के अनुसार विभिन्न देश अपने आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर मूल्य वर्ग की संपत्ति को कम कर रहे हैं। इसका समग्र परिणाम यह हुआ है कि वैश्विक आवंटित विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा पिछले साल घटकर 58.8 प्रतिशत ही रह गया है, जो 1995 के बाद सबसे कम है। भारतीय रुपए का बढ़ता हुआ वर्चस्व इसका सूचक है। मूलतः रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने की शुरुआत वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से हुई। मोदी सरकार का शुरुआत से यह लक्ष्य रहा है कि भारत का आर्थिक गौरव भी विश्वपटल पर और बढ़े। अब ऐसे में भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण जिस स्तर पर हो रहा है तो वह दिन दूर नहीं जब अमेरिकी डॉलर रसातल में पहुंच जाएगा और सम्पूर्ण विश्व डॉलर के बजाए भारतीय मुद्रा रुपये को वरीयता देगा।आठ देशों में 49 वोस्ट्रो खाते खोलकर रुपये में व्यापार का करार
भारतीय मुद्रा यानी रुपये में विदेश व्यापार को बढ़ावा देने की मोदी सरकार की नीति रफ्तार पकड़ने लगी है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों को देखते हुए भारत रुपये में विदेशी लेनदेन को बढ़ाने के निरंतर प्रयास कर रहा है। रुपये में कारोबार को लेकर श्रीलंका से बातचीत जारी है। कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग ने इस पर चर्चा आयोजित की थी। बैंक ऑफ सीलोन, एसबीआई, इंडियन बैंक के प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझा किए। मोदी सरकार के प्रयासों का ही सुफल है कि अब तक आठ देशों के लिए 49 विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते (एसआरवीए) खोले जा चुके हैं। इन खातों के जरिये आठ देशों रूस, मॉरीशस, श्रीलंका, मलयेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, इस्राइल और जर्मनी के साथ रुपये में व्यापार हो सकेगा। भारत ने 8 देशों के साथ रुपये में व्यापार करने का करार कर लिया है।

 

वोस्ट्रो खाता यानि देशों के बीच करेंसी एक्सचेंज और व्यापार की सुगमता
इसी प्रयास में सबसे पहले रूस के दो सबसे बड़े बैंक स्बेरबैंक (Sberbank) और वीटीबी बैंक (VTB Bank) ने रुपये में ट्रेंड करने के लिए वोस्ट्रो अकाउंट खोला था। 6 महीने में ही इसकी संख्या 50 को छूने वाली है। आपको बता दें कि वोस्ट्रो खाता बैंक द्वारा नियोजित खाता है, जो ग्राहकों को दूसरे बैंक की ओर से पैसा जमा करने की सुविधा प्रदान करता है। विदेश का कोई बैंक वोस्ट्रो खाता खोलने के लिए भारत में बैंक से संपर्क कर सकता है। लेकिन इसके लिए बैंक को RBI से मंजूरी लेनी होती है। इसके बाद दोनों ही पक्ष करेंसी का एक्सचेंज रेट, मार्केट रेट आदि जरूरी चीजें तय कर लेते हैं और व्यापार शुरू कर सकते हैं। वोस्ट्रो एकाउंट खुलवाने की जरूरत तब पड़ती है जब किसी बैंक की विदेश में कोई शाखा नहीं होती है। वोस्ट्रो से ग्राहकों को किसी दूसरे बैंक के खाते में पैसा जमा करने की सुविधा मिलती है। अब जैसे किसी भारतीय आयातक को इजरायल में कारोबार करना है तो पहले उसे डॉलर में ही भुगतान करना होता था। लेकिन अब वह उसे रुपये में भी भुगतान कर सकता है। उसकी भुगतान राशि इस वोस्ट्रो खाते में जमा हो जाती है। इसी तरह, जब किसी भारतीय निर्यातक को माल और सेवाओं के लिए रुपये में भुगतान करना होता है, तो इस वोस्ट्रो खाते से राशि काट ली जाएगी और उसे निर्यातक के नियमित खाते में जमा कर दिया जाएगा।अमृतकाल में ग्लोबल करेंसी बनने की राह पर रुपया, 30 देश जल्द साथ आएंगे
कोरोना काल में डॉलर के मजबूत होने से दुनिया भर के कई देशों के लिए आयात महंगा हो रहा है। रुपये में कारोबार शुरु करने के पीछे उद्देश्य यही है कि इससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होगी। रुपये में व्यापार बढ़ने के साथ ही भारत को भारतीय मुद्रा के लिए खरीदार तलाशने की जरूरत नहीं होगी। इतना ही नहीं इंटरनेशनल बैंकों को कंवर्जन फीस नहीं देना होगा। इससे भारतीय रुपये की डिमांड में भी इजाफा होगा। गौरतलब है कि चीनी मुद्रा RMB दुनिया में अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन और ब्रिटिश पाउंड के बाद पांचवी सबसे बड़ी मुद्रा है। पहली बार यूरोपीय यूनियन में शामिल देश जर्मनी एशिया की किसी मुद्रा यानी भारतीय मुद्रा रुपये के साथ व्यापार करने के लिए आगे आया है। अगर 30 देशों के साथ भारत का रुपए में कारोबार शुरु हो गया तो फिर रुपया अंतरराष्ट्रीय करेंसी बन जाएगा। भारत सरकार की मंशा साल आजादी के 100 साल होने पर 2047 तक इंडियन करेंसी को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के तौर पर स्थापित करने की है। आठ दशकों से अमेरिकी डॉलर का दबदबा, खत्म होगी बादशाहत
अमेरिकी डॉलर दुनिया में हर जगह मान्यता प्राप्त मुद्रा है, इसलिए ज्यादातर लेन-देन डॉलर में ही किए जाते हैं। पूरी वित्तीय दुनिया में 8 दशकों से इसका दबदबा है। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद दुनिया पस्त हो गई थी। तब 1944 में 44 देशों के प्रतिनिधि युद्ध के बाद विश्व अर्थव्यवस्था की मरम्मत के लिए ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर में मिले। तब इस बात पर सहमति बनी कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका, डॉलर के मूल्य को सोने के मुकाबले तय करेगा और अन्य देश बदले में अपनी मुद्राओं को डॉलर के मुकाबले तय करेंगे। देशों को अब अपनी विनिमय दर को बनाए रखने के लिए रिजर्व में डॉलर रखना पड़ा, जिससे यह प्रमुख वैश्विक मुद्रा बन गई।‘डॉक्टर डूम’ का आंकलन, रुपया बनेगा दुनिया की ग्लोबल रिजर्व करेंसी
पीएम मोदी की विजनरी और राष्ट्र प्रथम की सोच के चलते आप इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि आने वाले समय में रुपये की तूती बोलेगी और भारतीय करेंसी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पर आ जाएगी। मशहूर अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी का ऐसा मानना है कि भारतीय रुपया भविष्य में अंतरराष्ट्रीय करेंसी बनेगा। एक बिजनेस एंड इकोनॉमी न्यूजपेपर को दिए इंटरव्यू में रूबिनी ने कहा है कि भारतीय रुपया डॉलर की जगह लेने की ताकत रखता है। नूरील रूबिनी (Nouriel Roubini) वही अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने 2008 में आई वैश्विकी मंदी की सटीक भविष्यवाणी की थी और इस कारण अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने उन्हें ‘डॉक्टर डूम’ की उपाधि दी थी। इस प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने अंग्रेजी बिजनेस अखबार ईटी नाउ को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘कोई भी यह देख सकता है कि भारतीय अपनी जिस मुद्रा रुपये के जरिए दुनिया के साथ होने वाले कारोबार को करता है वो रुपया भारत के लिए व्हिकल करेंसी बन सकता है। यह (भारतीय रुपया) पेमेंट का साधन हो सकता है। यह स्टोर ऑफ वैल्यू भी बन सकता है। निश्चित रूप से, समय के साथ रुपया दुनिया में ग्लोबल रिजर्व करेंसी की डायवर्सिटी में से एक बन सकता है।रुपये के सामने कांपेगा डॉलर, पूरी दुनिया में दिखेगी इसकी ताकत- अर्थशास्त्री
पीएम मोदी के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। इसी के साथ भारतीय रुपये की ताकत भी बढ़ रही है। इसका लोहा अब विदेशी अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं। अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी के मुताबिक, भारतीय रुपया आने वाले समय में नया डॉलर हो सकता है। एक इंटरव्यू में नूरील रूबिनी ने कहा कि आने वाले समय में जल्द ही डी-डॉलरीकरण यानी डॉलराइजेशन की प्रक्रिया होगी। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका की ग्लोबल इकोनॉमी का हिस्सा 40 से 20 फीसदी तक गिर रहा है। ऐसे में अमेरिकी डॉलर के लिए सभी अंतराष्ट्रीय वित्तीय और व्यापार लेनदेन के दो तिहाई होने का कोई मतलब नहीं है। इसका एक हिस्सा जियोपोलिटिक्स है। अर्थशास्त्री ने दावा किया कि अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के उद्देश्यों के लिए डॉलर को हथियार बना रहा है। अब दुनिया की मुख्य मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की स्थिति खतरे में है।

 

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