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कोरोना काल में सोना से कुंदन बना पीएम मोदी का नेतृत्व

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कहा जाता है कि असली सोने की पहचान आग से होकर निकलने पर और कुशल नेतृत्व की पहचान संकट से निकालने पर ही होती है। अगर इस कसौटी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता को कसा जाए तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोरोना जैसे संकट के काल में उनका नेतृत्व सोना से कुंदन बन कर निकला है। दुनिया के सौ साल के इतिहास में वैश्विक महामारी कोरोना सबसे बड़ी आपदा बनकर सामने आई। लेकिन  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सकारात्मक दृष्टिकोण, संकल्प, प्रतिबद्धता और सक्षम कार्यशैली से न केवल देश के हालातों को संभाला बल्कि आगे की राह दिखाते हुए निराश हो रही जनता में आशा का संचार कर दिखाया। अगर संपूर्णता में कहा जाए तो कोरोना संकट काल में पीएम मोदी की नेतृत्व क्षमता सोना ने कुंदन बन कर देश के सामने आया है।

उपलब्धियों से शुरू हुआ दूसरा कार्यकाल

पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल के दो साल में करीब डेढ़ साल कोरोना महामारी से जूझते हुए बीता है। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रकार देश और जनता की सेवा की है वह उनकी नेतृत्व क्षमता की पराकाष्ठा को ही दर्शाता है। मई, 2019 में सत्ता में पुनः वापसी के बाद शुरू के सात-आठ महीने काफी अनुकूल और उपलब्धियों भरे रहे। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटा दिया गया, तीन तलाक के विरुद्ध कानून पारित हो गया, राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ और नागरिकता संशोधन कानून को पारित कराने में भी सरकार सफल रही। इन उपलब्धियों के बीच शायद किसी को भी अंदाजा भी नहीं था कि 2020 का साल भारत की सबसे बड़ी चुनौती लेकर आ रहा है। एक ऐसी चुनौती जिससे लड़ाई न केवल मुश्किल बल्कि लंबी भी होने वाली है।

अंजान शत्रु कोरोना से लड़ाई

जनवरी, 2020 के आखिर केरल में चीन से उपजे कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया। इसके बाद धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्सों में भी मामले सामने आने लगे। मार्च का दूसरा सप्ताह आते-आते यह बात स्पष्ट होने लगी कि भारत भी कोरोना की चपेट में आ चुका है। प्रतिदिन संक्रमितों की संख्या में वृद्धि होने लगी। देश में आजादी के बाद पहली बार इस तरह का कोई संकट आया था। अतः इससे लड़ने के लिए न तो कोई तैयारी थी और न ही रणनीति का ही कुछ पता था। यह लड़ाई एक ऐसे शत्रु के विरुद्ध थी, जिसके स्वरूप, व्यवहार व शक्ति के बारे में भी पूरी तरह से किसीको कुछ मालूम नहीं था। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को जनता कर्फ्यू के माध्यम से देश के मनोबल को जाँचा और फिर इसके अगले ही दिन साहसिक निर्णय लेते हुए 21 दिन के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी। इस लॉकडाउन का उद्देश्य संक्रमण की गति को कम रखना था, ताकि चिकत्सा व्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव न बने और सरकार को जरूरी तैयारियों के लिए वक्त मिल सके। लॉकडाउन में दैनिक मामले घटे तो नहीं, पर उनके बढ़ने की रफ़्तार कम करने में मदद मिली। इस बीच सरकार द्वारा पीपीई किट, एन-95 मास्क, वेंटीलेटर आदि का प्रबंध किया जाने लगा।

आपदा के बीच फूंका आत्मनिर्भरता का बिगुल

इस आपदा से निपटने के क्रम में जिस प्रकार देश को तमाम उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर होना पड़ा उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह बात भलीभांति समझ गए कि आत्मनिर्भर हुए बिना देश इस तरह की आपदाओं से अधिक समय तक नहीं लड़ सकता है। अतः 12 मई, 2020 को उन्होंने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा करते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की। इस अभियान का पूरा लाभ तो दूर भविष्य में सामने आएगा, लेकिन तात्कालिक रूप से इसका यह लाभ अवश्य हुआ कि लॉकडाउन के कारण हतोत्साहित आर्थिक गतिविधियों में एक नयी प्राणशक्ति संचरित हो गई। जिस आपदा ने भारत से बेहद कम जनसंख्या वाले और अधिक साधन संपन्न देशों को भी घुटने पर ला दिया था, उस आपदा से भारत न केवल मजबूती से लड़ रहा था अपितु उसे आत्मनिर्भर बनने का अवसर बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ा रहा था। आत्मनिर्भर भारत के लिए सरकार के प्रयासों का कुछ तात्कालिक असर भी दिखा। जनवरी, 2020 तक देश में आयातित 275000 पीपीई किट ही थे, लेकिन मार्च में कोरोना का कहर शुरू होने के लगभग दो महीने के अंदर ही भारत ने चामत्कारिक ढंग से पीपीई किट के मामले में खुद को आत्मनिर्भर कर लिया और प्रतिदिन दो लाख किट का उत्पादन करने लगा। जुलाई तक तो भारत दूसरे देशों को भी पीपीई किट का निर्यात करने की स्थिति में आ गया था। नए साल की शुरुआत में ही देश में टीकाकरण अभियान भी शुरू हो गया।

कोरोना की दोनों लहरों पर पाया काबू

सितम्बर में चरम पर पहुँचने के बाद कोरोना के आंकड़े कम होने शुरू हुए जो इस साल फरवरी तक कम होकर दस हजार के नीचे पहुँच गए थे। लगने लगा था कि जल्द-ही स्थिति सामान्य हो जाएगी। लेकिन तभी मार्च से महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों से शुरू हुई कोरोना की दूसरी लहर ने अप्रैल आते-आते देश में त्राहिमाम मचा दिया। यह लहर पिछले बार से कहीं अधिक घातक सिद्ध हुई। एक दिन में चार लाख से अधिक मामले में दर्ज किए गए। वायरस ने अबकी लोगों की साँसों पर हमला किया। अस्पतालों में बिस्तर और ऑक्सीजन के लिए मारामारी मच गई। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था बेबस नजर आने लगी। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में यह स्थिति बहुत आश्चर्यजनक नहीं कही जा सकती। परन्तु, अब धीरे-धीरे हालात सुधरने की ओर बढ़ रहे हैं। ऑक्सीजन की व्यवस्था भी अब सुधरने लगी है। उम्मीद है कि जल्द-ही देश दूसरी लहर से पार पा लेगा। टीकाकरण की रफ़्तार बढ़ाने के लिए भी सरकार ने जोर लगा दिया है और जुलाई से प्रतिदिन एक करोड़ टीके लगाने की बात कही जा रही है। दिसंबर तक पूरे देश का टीकाकरण पूरा करने की योजना स्वास्थ्य मंत्रालय ने बना ली है। कोरोना महामारी से लड़ाई में टीका ही सबसे कारगर हथियार है। जितनी अधिक मात्रा में लोगों का टीकाकरण हो जाएगा, इस महामारी की संभावित तीसरी लहर का प्रभाव उतना ही कम रहेगा। अतः टीकाकरण को लेकर सरकार के प्रयासों को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि जल्दी-ही देश टीके की सुरक्षा प्राप्त कर इस महामारी को हराने में कामयाब हो जाएगा।

 

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