Home नरेंद्र मोदी विशेष मोदी होने का मतलब क्या है?

मोदी होने का मतलब क्या है?

4698
SHARE

”लगन के साथ अथक परिश्रम करने वाले, दृढ़ इच्छाशक्ति और स्पष्ट दृष्टिकोण के स्वामी हैं प्रधानमंत्री मोदी।” 17 अक्टूबर को पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी ने एक निजी टेलिविजन चैनल के साथ इंटरव्यू में ये बातें कही। दरअसल प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व ही ऐसा है कि उनके विरोधी भी उनके कायल हैं। देश के प्रति समर्पण, दूरदर्शी नीति, उनकी लगन और ऊर्जा से आज देश चहुंमुखी विकास की ओर अग्रसर है।

20 जून, 2017 को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और अब के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने MODI का मतलब बताते हुए कहा था Making of devloped Inda… यानी विकसित भारत के निर्माणकर्ता के तौर पर उनकी पहचान बनी है। उन्होंने दशकों से चली आ रही लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में लिप्त कार्य संस्कृति को बदलने का काम किया है और चुस्त-दुरूस्त, पारदर्शी, जवाबदेह और भ्रष्टाचार मुक्त कार्यसंस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। सर्वसमावेशी विकास के लक्ष्य के साथ सुशासन का संयोजन प्रधानमंत्री की मूल अवधारणा है। 

संघर्ष से शीर्ष तक की सोच
प्रधानमंत्री मोदी मिशन मोड में अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति भी भरपूर है वे जानते हैं कि उन्हें क्या हासिल करना है, और वह उसे पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। साल 1950 में वडनगर गुजरात में बेहद साधारण परिवार में जन्‍मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जीवन संघर्ष से शीर्ष तक पहुंचने की सोच की परिणति है। चाय बेचते हुए बालपन बीता तो 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए। इससे पहले आरएसएस के प्रचारक रहे। 1980 के दशक में गुजरा की भाजपा ईकाई में शामिल हुए और 1988-89 में गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए। 1995 में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बने, 1998 में महासचिव(संगठन) बनाया गया। 2001 में गुजरात के सीएम बने और 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने। दरअसल पीएम मोदी का कभी न थकने, कभी न रुकने वाला जज्बा ही है जो उन्हें संघर्ष के बल पर शीर्ष तक पहुंचने की शक्ति देता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

निराशा में आशा का संचार
आशा जहां जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है वहीं निराशा मनुष्य को पतन की तरफ ले जाती है। इसलिए प्रधानमंत्री का मानना है कि सामाजिक-राजनीतिक जीवन में बुराई को देखते हुये, बुराई के बीच रहते हुये भी हमें निराशावादी नहीं होना चाहिए या बुराई में लिप्‍त नहीं होना चाहिए । 2014 में जब उन्होंने देश की बागडोर संभाली थी तो देश में भ्रष्टाचार चरम पर था और चारो ओर घोर निराशा का वातावरण था। लेकिन बीते तीन वर्षों के उनके नेतृत्व में देश ने निर्णायक, ईमानदार, सजग, सतर्क, विचारशील, प्रगतिशील,उत्तरदायी और सशक्त सुशासन देखा है। आज वे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं से भरे नये भारत की बुनियाद रख रहे हैं।

परिश्रम की पराकाष्ठा
16 मार्च, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा संसदीय दल की बैठक कहा न तो मैं चैन से बैठूंगा और न किसी को चैन से बैठने दूंगा। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि जनहित के काम और सुशासन के लिए जनप्रतिनिधियों को हर समय तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने मई 2014 में सरकार बनने से पहले ही देश के लोगों को वचन दिया था कि मैं परिश्रम की पराकाष्ठा कर दूंगा। आज तीन साल बाद उन्होंने यह करके दिखाया भी है। वे ऐसे प्रधानसेवक हैं जिन्होंने आज तक आराम नहीं किया है। तीन साल के कार्यकाल में पीएम मोदी ने एक भी दिन छुट्टी नहीं ली है। इतना ही नहीं वे रोज सोलह से अट्ठारह घंटे तक काम करते हैं। पीएम अपने दौरों के वक्त को कम करने के लिए होटलों में नहीं रूकते हैं। उड़ान के दौरान एयर इंडिया-वन प्लेन में ही अपनी नींद पूरी करते हैं। फ्लाइट में भी पूरे वक्त वे मीटिंग में व्यस्त रहते हैं।

Image result for मोदी परिश्रम

नैतिक व्यवहार और सच्चाई
प्रधानमंत्री मोदी मंत्रिमंडल के बीते 19 अप्रैल को सेंट्रल व्हीकल एक्ट में बदलाव की मंजूरी के साथ ही देश में लालबत्ती कल्चर खत्म हो गया। फैसला एक मई से लागू भी हो गया है और अब केंद्र या राज्य कहीं भी लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं हो रहा। प्रधानमंत्री ने यहीं कहा कि इस देश में अब कोई VIP नहीं सब EPI (Every person is important) होगा। जाहिर है पीएम मोदी का यह निर्णय हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है और लोकतांत्रिक प्रणाली की सार्थकता को बहाल करता है। इसी के साथ प्रधानमंत्री ने काम काज में पारदर्शिता का वादा किया था। भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा किया था। उन्होंने मूल मंत्र दिया था- न खाऊंगा , न खाने दूंगा। सरकार के तीन साल हो गए हैं। पीएम मोदी अपने वादे पर खरे उतरे हैं। केंद्र सरकार पर अब तक भ्रष्टाचार का एक भी दाग नहीं लगा है।

उत्सुकता और उत्साह
प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, सपना और परंपरा के टकराव से संघर्ष पैदा होता है। हमारे काम, हमारी सोच पर आधारित होना चाहिए। हमें अपने काम को उत्साह, प्रेरणा और ईमानदारी से करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री का मानना है कि निराशा तो एक ऐसी व्यथा है जो स्वयं को तो परेशान रखती है साथ दूसरों का भी कल्याण नहीं कर पाती। जहां आशा है उत्साह है वहीं सफलता है। देश में चलाया जा रहा स्वच्छ भारत अभियान हो या फिर भारत के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने वाली योग क्रियाएं हों… प्रधानमंत्री हर स्तर पर उत्साह और उत्सुकता से परिपूर्ण नजर आते हैं। अपनी उम्र के 67 वर्ष होने के बावजूद नरेन्द्र मोदी अपने जीवन को प्रतिदिन उत्साह से जीते हैं। कुछ समय पहले ही उन्होंने अपनी जापान यात्रा के दौरान ड्रम बजाया था और शिक्षक दिवस पर बच्चों के सवालों का जवाब दिया था। उनके व्यक्तित्व में उत्साह की कमी कभी नजर नहीं आती है।

सकारात्मकता का संचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोगों में सकारात्मकता का संचार किया है। पीएम मोदी ने कई ऐसे आह्वान किए हैं जो लोगों की सोच को सकारात्मक बनाने में योगदान दे रहे हैं। दरअसल ये सोच बदलाव के अभियान में शामिल होने का है। यह बदलाव सिर्फ लोगों में ही नहीं बल्कि हमारे देश के शासन तंत्र और सिस्टम में भी आ रहे हैं। अपने किसी अंग से लाचार व्यक्ति को विकलांग कहने की आदत को दिव्यांग कहने में बदलना हो या फिर अपने सैनिकों के प्रति सम्मान का प्रदर्शन करने की उनके द्वारा किया गया आह्वान हो, लोगों को जॉब क्रियेटर बनने की अपील हो, सेल्फ अटेस्टेड के लिए सिस्टम में बदलाव लाना हो या फिर स्वच्छाग्रह शब्द को जनमानस तक पहुंचाने की बात हो… सब के सब सकारात्मक दृष्टिकोण को बताते हैं।

सामाजिक संतुलन पर बल
यह एक बड़ा सत्य है कि जो लोग जीवन में परमार्थ सेवा एवं जनकल्याण का कार्य करते हैं उनमें आशा उत्साह होता है, जिसके आधार पर वह कठिन से कठिन कार्यो में सफलता प्राप्त करता है। बीते तीन वर्षों के शासनकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने इसी मूल मंत्र को अपनाते हुए गांव, गरीब, किसान, युवा, मजदूर, महिला, अनुसूचित जाति और जनजाति और महिलाओं को सशक्त करने की ओर कई कदम उठाए हैं। उनके इन कदमों के कारण देश और देशवासियों के सामर्थ्य की शुरुआत हुई है। मोदी सरकार के तीन वर्ष के कार्यकाल ने हर नागरिक को भारतवासी होने पर गर्व का अनुभव हुआ है। स्वयं और नेतृत्व पर विश्वास पुन: स्थापित होने से देश विकास की नई ऊंचाईयों को प्राप्त करेगा। समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को सशक्त कर देशवासियों की आशाओं और उम्मीदों के नए देश की मजबूत बुनियाद रखी गई है।

Image result for मोदी सामाजिक संतुलन

ईमानदारी को प्रोत्साहन
देश में दशकों से चली आ रही लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में लिप्त कार्य संस्कृति को बदलने का काम मोदी सरकार ने किया है। सरकारी योजनाओं में दूर​दर्शिता और समयबद्धता के साथ पारदर्शिता भी स्पष्ट दिखने लगी है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े और कड़े निर्णय के द्वारा प्रधानमंत्री ने साफ संदेश दिया है कि देश में ईमानदारी का बोलबाला रहेगा और भ्रष्टाचारियों का मुंह काला होगा। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और तमाम लेनदेन की प्रक्रियाओं को आधार के माध्यम से जोड़ने की पहल ईमानदारी को प्रोत्साहन के लिए है। अमीर-गरीब, शहर-गांव के बीच सुविधाओं के अंतर को पाटने के लिए पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार तमाम योजनाएं लेकर आई है और उसमें पारदर्शिता और ईमानदारी को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

 

सुशासन का संयोजन
प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि प्रशासनिक सक्रियता, राजनैतिक गतिशीलता के साथ नागरिकों के कल्‍याण एवं संतुष्टि के लिए विकास एवं सुशासन का संयोजन आवश्‍यक है। पीएम मोदी ने अपने शासन काल में सुशासन को प्राथमिकता दी है। उन्‍होंने सरकार के सभी अंगों को समरसता एवं तालमेल के साथ काम करने पर जोर दिया ताकि हरसंभव बेहतरीन परिणाम प्राप्त किया जा सके। उनका मानना है कि सुशासन की निशानी शासन में दिखनी चाहिए… जहां ईमानदारी हो, पारदर्शिता हो, सच्चााई तो हो ही, साथ ही उत्सुकता भी हो और आशाएं भी हों, सुशासन का संयोजन भी हो और ईमानदारी को प्रोत्साहन हो।

 

Leave a Reply