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अहसानफरामोश बांग्लादेश हिंदुओं के ही खिलाफ: जिस भारत ने आजाद कराया, उसी के विरोध में नारे, वॉर मेमोरियल का काम भी रोका

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भारत विरोध का जुनून बांग्लादेश में इस कदर छाया हुआ है कि कार्यवाहक सरकार के समर्थक हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं। वहां हिंदुओं के उपासना स्थलों के साथ तोड़फोड़ के वीडियो वायरल हो रहे हैं। विश्वपटल पर बांग्लादेश के उदय के उपलक्ष में 16 दिसंबर को मनाए जाने वाले विजय दिवस पर इस बार भारत विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं। जिस बांग्लादेश के लिए हमारे सैकड़ों सैनिकों की कुर्बानी दी। उसी बांग्लादेश ने भारतीय सैनिकों की याद में सात साल से बनाए जा रहे वॉर मेमोरियल का काम रोक दिया है। हालात यह हैं कि राजनयिक मिशनों को निशाना बनाया जा रहा है, राजनयिकों को तलब किया जा रहा है, राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया जा रहा है, हिंदू उपासकों पर कार्रवाई की जा रही है और भारत से व्यापार में रोकटोक या उसके बहिष्कार की बात की रही है।आशुगंज में वॉर मेमोरियल सूना, ढाका में भारत विरोध के नारे
बांग्लादेश में जब 53वां विजय दिवस मना, तब भारतीय सैनिकों की याद में बन रहा आशुगंज का वॉर मेमोरियल सूना पड़ा रहा। आशुगंज में जितना सन्नाटा था, उतना ही शोर ढाका की सड़कों पर सुनाई दिया। यहां भारत और पीएम मोदी के खिलाफ नारे लगाए गए। बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना के खिलाफ आपत्तिजनक नारे भी लगे। एक नारा जो सबसे ज्यादा सुनाई दिया-‘दिल्ली नी ढाका’ ‘ढाका, ढाका।’ यानी ‘बांग्लादेश पर अब दिल्ली नहीं, ढाका का राज चलेगा। बांग्लादेश की सरकार फैसले लेगी और भारत की दखलंदाजी सहन नहीं की जाएगी।’

वॉर मेमोरियल का काम कार्यवाहक सरकार ने बंद कराया
बांग्लादेश की राजधानी ढाका से करीब 80 किमी दूर आशुगंज में 7 साल से एक वॉर मेमोरियल बन रहा है। ये मेमोरियल 1971 की जंग में शहीद 1600 भारतीय सैनिकों की याद में बनना है। इसे दिसंबर 2023 तक तैयार हो जाना था, लेकिन पहले फंड की कमी से अवरोध आया और अब मोहम्मद यूनुस की कार्यवाहक सरकार ने काम ही बंद करा दिया है। शेख हसीना सरकार गिरने के बाद पहला विजय दिवस है। अब यहां अंतरिम सरकार है, इसलिए इस बार सेलिब्रेशन थोड़ा अलग है। 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश में 9 महीने चला लिबरेशन वॉर खत्म हुआ था। भारत के साथ 13 दिन चली जंग में पाकिस्तान हार गया और पूर्वी पाकिस्तान की जगह बांग्लादेश बना। इसी की याद में बांग्लादेश और भारत विजय दिवस मनाते हैं।

पांच दशक बाद इस बार विजय दिवस बिल्कुल अलग रहा 
1. विजय दिवस पर बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान का कहीं जिक्र नहीं है, न भाषणों में, न पोस्टर में।
2. विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सबसे ज्यादा एक्टिव रही। हर जगह पार्टी के संस्थापक लेफ्टिनेंट जनरल जियाउर रहमान के पोस्टर लगे दिखे।
3. ढाका के सुहरावर्दी पार्क में होने वाली सेना की परेड नहीं हुई, 1971 में पाकिस्तानी सेना ने इसी मैदान में सरेंडर किया था।
4. पाकिस्तान का सपोर्ट करने वाले संगठन जमात-ए-इस्लामी ने पहली बार विजय दिवस सेलिब्रेट किया।

विजय दिवस जश्न नहीं, भारत विरोध का मौका बना
इस साल विजय दिवस पर ढाका की सड़कों पर जश्न से ज्यादा भारत का विरोध दिखा। बांग्लादेश में 5 अगस्त को तख्तापलट के बाद से शेख हसीना भारत में हैं। इसी का गुस्सा विजय दिवस पर सामने आया। इसके अलावा लोगों में इस्कॉन और भारतीय मीडिया को लेकर भी अनावश्यक गुस्सा है। क्योंकि इस्कॉन पूरी तरह से अहिंसक, गैर-राजनीतिक, गैर-पक्षपाती और गैर-सांप्रदायिक आध्यात्मिक संगठन है, जिसकी 50 से अधिक वर्षों की बेदाग विरासत है। बांग्लादेश तो क्या, दुनिया में कहीं भी, किसी भी तरह की चरमपंथी गतिविधियों में इस्कॉन की संलिप्तता का एक भी उदाहरण नहीं है। इसीलिए बांग्लादेश में हिंदुओं के बीच इस्कॉन के चिन्मय कृष्ण दास हिंदू-उत्पीड़न के प्रतिरोध का एक प्रतीक बन गए हैं। चिन्मय कृष्ण दास का कोई नायक या शहीद बनने का इरादा नहीं है। लेकिन अपने साथियों की हत्या और हिंदू मंदिरों को जलाने के बाद, वे बांग्लादेश में हिंदू प्रतिरोध का चेहरा और बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के प्रवक्ता बने।बांग्लादेश में जमात का इतिहास दागदार, चीन कर रहा है मदद
इस बीच, सड़कों पर इस्लामिक कट्टरपंथियों का बोलबाला है। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग तस्वीर से बाहर है। दो अन्य पार्टियां ढाका की सत्ता पर नजर गड़ाए हैं- खालिदा जिया की बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी। कभी वे सहयोगी हुआ करते थे, लेकिन अब सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। चीन जमातियों और बीएनपी की मेजबानी कर रहा है। जमात का इतिहास दागदार है। यह एक कट्टरपंथी और भारत विरोधी संगठन है। और उसकी राजनीति चरमपंथी है, लेकिन चीन को परवाह नहीं। बीएनपी चीन की पुरानी दोस्त है। जब बीएनपी ने बांग्लादेश पर शासन किया, चीन को फायदा हुआ। उन्हें सैन्य सौदे और निवेश के अवसर मिले, और ढाका ने भारत को दूर रखा। दूसरी तरफ, यूनुस का रवैया स्थिति को बद से बदतर कर रहा है। समस्या को स्वीकार करने के बजाय वे भारतीय मीडिया को दोषी ठहरा रहे हैं। बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में भारतीय समाचार चैनलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है और कहा गया है कि उनका कवरेज भड़काऊ है।

बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार ने परस्पर सम्मान का रुख नहीं दिखाया
भारत ने अंतरिम सरकार के गठन की कभी आलोचना नहीं की, भले ही वह असंवैधानिक था। न ही भारत ने शेख हसीना और उनके सहयोगियों पर कानूनी हमलों पर सवाल उठाया। भारत ने केवल तभी टिप्पणी की, जब हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला हुआ। समस्या यह है कि अंतरिम सरकार अपनी स्थिति को लेकर असुरक्षित है। इसलिए उसे भारतीय हस्तक्षेप का डर सता रहा है। यूनुस के मंत्रियों का कहना है कि भारत को अगस्त में हुए बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। यह अजीब है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूप से यूनुस को बधाई दी थी। भारत बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति का सम्मान करता रहा है। लेकिन बांग्लादेश की तरफ से ऐसा सम्मान हमारे लिए नहीं दिखा,इसलिए भारतीय जनमत बदल गया। जब हिंदुओं पर भीड़ द्वारा हमला किया गया, मंदिरों में तोड़फोड़ की गई और भारतीय ध्वज का अपमान किया गया, तभी भारत मुखर हुआ। भारत परस्पर रिश्तों को बचाने के लिए एक और प्रयास कर रहा है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ढाका जा आए हैं।

हिंदुओं पर हिंसा पर चुप्पी साध जाते हैं लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवी
बांग्लादेश आज जैसी राजनीतिक अराजकता और धार्मिक हिंसा में फंसता जा रहा है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है? मौजूदा कार्यवाहक सरकार, जिसका नेतृत्व मोहम्मद यूनुस कर रहे हैं? अमेरिका- जिसके बारे में कई लोगों का दावा है कि तख्तापलट के पीछे उसका हाथ था? लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवियों की भूमिका भी इसमें उल्लेखनीय रूप से निंदित रही है। वे ब्लैक लाइव्स मैटर या फिलिस्तीनियों के लिए तो लामबंद हो सकते हैं, लेकिन जब पड़ोसी बांग्लादेश में हिंदुओं की बात आती है, तो चुप्पी साध जाते हैं? बांग्लादेश में हो रही घटनाओं ने धार्मिक स्वतंत्रता, पहचान, उसकी अभिव्यक्ति और हिंदुओं के भविष्य के बारे में गम्भीर सवाल खड़े हो गए हैं। ऐसी स्थिति में न्याय, निष्पक्षता और मानवाधिकार के क्या मायने रह जाएंगे? यह भी लाख टके का सवाल है।

बांग्लादेश में हसीना के तख्तापलट के बाद बढ़े हिंदुओं पर अत्याचार

दरअसल, बांग्लादेश में चार माह पहले 5 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग की सरकार गिरने और मुहम्मद यूनुस की केयरटेकर सरकार आने के बाद से हिंदुओं पर हमले, अत्याचार, महिलाओं के शोषण की घटनाएं बढ़ गई हैं। इस्कॉन से जुड़े धर्मगुरु चिन्मय प्रभु को पिछले माह गिरफ्तार कर लिया गया। बांग्लादेश के ब्राह्मणबारिया जिले में 30 नवंबर को त्रिपुरा से ढाका होते हुए कोलकाता जा रही एक बस पर हमला हुआ। बांग्लादेश की सरकार भारत के चिर-विरोधी पाकिस्तान के साथ रिश्ते बनाने में लगी है। ऐसे में बांग्लादेश से लेकर भारत तक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के लिए बांग्लादेश की सरकार की घोर भर्त्सना हो रही है। भारत भी बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर चिंता जता चुका है। अब बांग्लादेश में बिगड़े हालात और बदले राजनैतिक घटनाक्रम के बीच भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी सोमवार को राजधानी ढाका पहुंचे हैं। मुहम्मद यूनुस के देश का अंतरिम लीडर बनने के बाद हालात और बिगड़ गए हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए ढाका में विक्रम ने अपने समकक्ष मोहम्मद जशीमुद्दीन को दो टूक लहजे में कह दिया कि सबसे पहले बांग्लदेश में हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों की रक्षा और मंदिरों और दूसरे धार्मिक स्थलों की सुरक्षा तय करना सुनिश्चित करें।

केयरटेकर सरकार ने पाकिस्तान को गोला-बारूद का ऑर्डर दिया
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शेख हसीना के इस्तीफे के 3 हफ्ते बाद ही केयरटेकर सरकार ने पाकिस्तान को गोला-बारूद का ऑर्डर किया। इस ऑर्डर में 40 हजार से ज्यादा राउंड गोला-बारूद, 40 टन के 2,900 आरडीएक्स शामिल हैं। यह ऑर्डर 3 किश्तों में सितंबर से शुरू हुआ था और दिसंबर में पूरा हो जाएगा। इस गोला-बारूद का इस्तेमाल आर्टिलरी गन में किया जाना है, जो 30 से 35 किलोमीटर की रेंज तक हमला कर सकती है। बांग्लादेश तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है और चौथी तरफ बंगाल की खाड़ी है। यानी अगर इसके इस्तेमाल की नौबत आती है, तो भारत के खिलाफ हो सकता है।

प्रतीकात्म तस्वीर

भारत की सीमा सुरक्षा बल ने भी अपनी निगरानी बढ़ाई
ऐसे में भारत की सीमा सुरक्षा बल ने भी अपनी निगरानी बढ़ा दी है। भारत अपनी सबसे लंबी सीमा (4,097 किलोमीटर) बांग्लादेश के साथ साझा करता है। यह सीमा पहाड़ों, उफनती नदियों और घने जंगलों से होकर गुजरती है। इस वजह से भारतीय सेना को किसी ड्रोन को ट्रैक करने में कुछ मुश्किल आती हैं। भारत ने अपनी ड्रोन क्षमता को बढ़ाने के लिए अक्टूबर 2024 में अमेरिका के साथ 31 प्रिडेटर ड्रोन समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह सौदा 32 हजार करोड़ रुपए में तय हुआ। इनमें से 15 प्रिडेटर ड्रोन्स भारतीय नौसेना को मिलेंगे। 8 ड्रोन वायुसेना और 8 ड्रोन इंडियन आर्मी को दिए जाएंगे।

बांग्लादेश के संस्थापक और राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान का अपमान
बांग्लादेश की केयरटेकर सरकार के तो यह हाल हैं कि वो बांग्लादेश के संस्थापक और राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान का सम्मान तो छोड़िए, उल्टा जानबूझकर अपमान कर रही है। उनकी मूर्तियां तोड़ी जा ही हैं। मुहम्मद यूनुस की सरकार ने राष्ट्रपति भवन से मुजीबुर्रहमान की तस्वीरें भी हटा दी हैं। उनके नाम से जुड़ी छुट्टियां भी रद्द कर दी गईं हैं। यहां तक कि मुहम्मद यूनुस सरकार ने मुजीबुर्रहमान की फोटो हटाने के लिए 20, 50, 100, 500 और 1,000 टका (बांग्लादेशी करेंसी) के नोट बदलने के आदेश दिए हैं। अगले 6 महीनों में नए नोट मार्केट में आ जाएंगे। इन नोटों पर धार्मिक स्थल और बंगाली परम्परा के चिन्ह बने होंगे। काबिलेगौर है कि शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के संस्थापक होने के साथ ही शेख हसीना के पिता भी हैं। वे 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाई थी।

अब जिन्ना को बांग्लादेश का ‘राष्ट्रपिता’ घोषित तक करने की मांग उठी
बांग्लादेश की केयरटेकर सरकार ने भारत के चिर-विरोधी पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने शुरू कर दिए हैं। इसके लिए वीजा सिक्योरिटी क्लियरेंस को खत्म कर दिया है। 2019 में शेख हसीना की सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए नॉन ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य किया था। इस सर्टिफिकेट के बिना वीजा नहीं मिल सकता था। लेकिन अब यह प्रोसेस खत्म कर दिया गया है। यहां तक कि बांग्लादेश में 50 सालों में पहली बार ढाका के नेशनल क्लब ने जिन्ना की 76वीं सालगिरह भी मनाई थी। इस जश्न में पाकिस्तान के डिप्टी हाई कमिश्नर कामरान धंगल और यूनुस सरकार के कई लोग भी शामिल हुए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें जिन्ना को बांग्लादेश का ‘राष्ट्रपिता’ घोषित तक करने की मांग की गई। इससे पहले नवंबर 2024 में पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सीधे समुद्री संपर्क की शुरुआत हुई थी। पाकिस्तान के कराची से एक कार्गो शिप बंगाल की खाड़ी होते हुए बांग्लादेश के चटगांव पोर्ट पर पहुंचा था। तब ढाका में मौजूद पाकिस्तान के राजदूत सैयद अहमद मारूफ ने कहा था कि यह शुरुआत पूरे बांग्लादेश में व्यापार को बढ़ावा देने में एक बड़ा कदम है।

हिंदुओं की रक्षा और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित हो- भारत
भारत का विदेश मंत्रालय बांग्लादेश के हथियार खरीद, पाकिस्तान से दोस्ती और हिंदुओं पर अत्याचार आदि पर नजरें बनाए हुए है। इसीलिए ढाका पहुंचे विदेश सचिव विक्रम ने अपने समकक्षी मोहम्मद जशीमुद्दीन को स्पष्ट और सख्त शब्दों में बोल दिया कि सबसे पहले बांग्लादेश में हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों की रक्षा और मंदिरों और दूसरे धार्मिक स्थलों की सुरक्षा तय करना सुनिश्चित होनी चाहिए। विदेश सचिव विक्रम ने बांग्लादेश के विदेश सलाहकार से कहा कि भारत सकारात्मक, रचनात्मक और साझा हित चाहता है, इसलिए बांग्लादेश को भी उसी तरह का व्यवहार करना चाहिए। उच्चस्तरीय बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में विक्रम ने कहा कि उन्होंने बांग्लादेश अंतरिम सरकार के साथ मिलकर काम करने की भारत की इच्छा जाहिर की। अपने दो दिन के दौरे के दौरान विक्रम बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश मंत्री मोहम्मद तौहीद हुसैन से मुलाकात के साथ ही अंतरिम सरकार के लीडर यूनुस से भी मुलाकात करेंगे। विक्रम बांग्लादेशी अंतरिम लीडर के समक्ष भी हिंदुओं और उनके धार्मिक स्थलों पर हमले का मामला उठाएंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर देंगे।

भारत में जेलों में रह लेंगे, लेकिन वापस बांग्लादेश नहीं जाएंगे
दूसरी ओर हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध में बांग्लादेश से लेकर भारत तक युनूस सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। त्रिपुरा तीन तरफ से बांग्लादेश से घिरा हुआ है। त्रिपुरा में भी बांग्लादेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ। अगरतला में बांग्लादेशी हाई कमीशन में तोड़-फोड़ की गई। त्रिपुरा के होटल एसोसिएशन और एक हॉस्पिटल ने बांग्लादेशी नागरिकों के लिए अपनी सेवाएं बंद कर दीं। बांग्लादेश ने भी अगरतला में अपनी वीजा सेवाएं रोक दीं और त्रिपुरा से अपने डिप्लोमैट्स वापस बुला लिए। त्रिपुरा का पड़ोसी देश से सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध रहा है। बांग्लादेश में खतरे के चलते हिंदू आबादी बड़ी तादाद में देश छोड़कर त्रिपुरा के जरिए भारत में अवैध तरीके से घुस रही है। उनका कहना है कि वे भारत की जेल में रह लेंगे, लेकिन वापस बांग्लादेश नहीं जाएंगे। बांग्लादेश में भारत के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया जा रहा है। होटल एसोसिएशन के मुताबिक उन्हें नुकसान मंजूर है, लेकिन देश का अपमान नहीं सहेंगे। त्रिपुरा के सभी होटलों ने बांग्लादेशी नागरिकों के लिए सेवाएं बैन कर दी हैं। अशांति से पहले हर महीने करीब 2-3 सौ बांग्लादेशी अगरतला के अस्पतालों में इलाज के लिए आते थे। बांग्लादेश में भारतीय बस यात्रियों को परेशान किए जाने और हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार के कारण एसोसिएशन ने यह फैसला लिया है।

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