Home विचार कांग्रेस की ‘मौकापरस्त’ राजनीति को आंखें दिखा रहे छोटे दल

कांग्रेस की ‘मौकापरस्त’ राजनीति को आंखें दिखा रहे छोटे दल

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कांग्रेस पार्टी का गठन हुए 133 साल हो गए हैं। देश के 100 प्रतिशत भू-भाग पर राज करने का सौभाग्य भी कांग्रेस को मिला है। हालांकि बीते चार सालों के रिकॉर्ड को देखें तो पार्टी ने लगातार अपना जनाधार खोया है और देश का महज 7 प्रतिशत क्षेत्रफल ही कांग्रेस के शासन के अधीन है। कांग्रेस का शासन अब कर्नाटक, पंजाब और मिजोरम के साथ केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में ही बचा है। जाहिर है पार्टी दिनों-दिन कमजोर होती चली जा रही है।  

दरअसल बदलते दौर, बदलती राजनीति और बदलते नेतृत्व के साथ कांग्रेस पार्टी अस्तित्वहीन नजर आने लगी है। विशेष बात यह है कि पार्टी अपने रिवाइवल के लिए खास उत्सुक भी नजर नहीं आ रही है। सत्ता प्राप्ति की होड़ में वह कई राज्यों में छोटे दलों के आगे लगातार नतमस्तक होती जा रही है। यही कारण है कि बदले परिदृश्य में कांग्रेस पार्टी को जहां आम जनता गंभीरता से नहीं ले रही है, वहीं क्षेत्रीय पार्टियों ने भी कांग्रेस को लगभग खत्म मान लिया है।

ममता बनर्जी ने कहा कांग्रेस का नेतृत्व मंजूर नहीं
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि वह राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं। 25 अप्रैल को ममता बनर्जी ने कहा कि वे राहुल गांधी को नेता तब मानेंगी, जब जनता उनको नेता मानेगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके संघीय मोर्चे में कांग्रेस का स्वागत है, लेकिन यह तभी होगा जब कांग्रेस संघीय मोर्चे की ओर हर से हर सीट पर एक उम्मीदवार देने के नियम को स्वीकार करेगी।

जाहिर है ममता ने यह कहकर साफ कर दिया है कि कांग्रेस का थोपा हुआ नेतृत्व उन्हें मंजूर नहीं है। दूसरा यह कि संघीय मोर्चे में वे कांग्रेस का स्वागत करेंगी, यानि खुद कांग्रेस के मोर्चे में जाने की बजाय कांग्रेस को अपने मोर्चे में बुला रही हैं।

मुलायम सिंह ने कहा कांग्रेस की हैसियत दो सीटों की
2019 के लोकसभा चुनावों में यूपी में महागठबंधन को लेकर मुलायम सिंह यादव ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर नहीं देखते हैं। उनके मुताबिक कांग्रेस की हैसियत सिर्फ दो सीटों की है।

मुलायम सिंह यादव ने दो टूक शब्दों में कहा है कि सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को नहीं शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस की हैसियत सिर्फ दो सीटों की है।

मुलायम सिंह के कथन में एक हद तक सच्चाई भी है, क्योंकि बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब था और उसका दो ही उम्मीदवार (राहुल-सोनिया) चुनाव जीत सका था। वहीं समाजवादी पार्टी ने लोकसभा की पांच सीटें जीती थीं।

टीआरएस के केसीआर ने कहा कांग्रेस का साथ पसंद नहीं
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव ने भी कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे की नींव रखने की शुरुआत की है। असदुद्दीन ओवैसी और ममता बनर्जी के साथ उन्होंने साझा फेडरल फ्रंट बनाने का एलान किया। उन्होंने अपने बयान में साफ संकेत दिया कि वह कांग्रेस को अपने फ्रंट का हिस्सा नहीं बनाना चाहते हैं। जाहिर है कांग्रेस के लिए यह सेटबैक जैसा है, क्योंकि अब यह जाहिर हो चुका है कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में राज्यों के की बड़े दल एक साथ नहीं आ रहे है।

छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी ने कांग्रेस को दिखाया आईना
जून, 2016 में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस छोड़ अपनी नई पार्टी के गठन का एलान कर दिया। उन्होंने पार्टी नेतृत्व से आजिज आकर कहा कि अब भैंस के आगे बीन बजाने का कोई फायदा नहीं है, और न ही दिल्ली जाने की जरूरत है।

दरअसल अजीत जोगी ने कांग्रेस आलाकमान के तानाशाही रुख पर नाराजगी जताते हुए कहा, अब नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया वाली पार्टी नहीं है। यानि उनका साफ इशारा राहुल गांधी के अक्षम नेतृत्व की ओर था।

गौरतलब है कि अजीत जोगी कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में रहे हैं और वे एक प्रशासनिक अधिकारी भी थे। जोगी राजीव गांधी के करीबी होने के साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। दो बार राज्यसभा और दो बार लोकसभा के लिए भी चुने गए थे। ऐसे में उनके नाराज होने का कारण अगर कांग्रेस पार्टी ने समझने की कोशिश नहीं की तो इस कांग्रेस को भला डूबने से कौन बचा सकता है?

करुणानिधि ने कहा कांग्रेस ‘धोखेबाज’, साथ नहीं जाएंगे
लोकसभा चुनाव, 2019 के लिए डीएमके से तालमेल की उम्मीद लगाए बैठी काग्रेस को करुणानिधि ने झटका किया है। डीएमके ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया है। पार्टी ने साफ कहा है कि कांग्रेस पार्टी एक ‘धोखेबाज’ पार्टी है और वह उसके साथ कतई नहीं जाएगी।

करुणानिधि ने कहा, ”कांग्रेस ने हमें धोखा दिया और हमारी पार्टी को बदनाम किया। ऐसी पार्टी के साथ जुडऩे का सवाल ही नहीं उठता।”

उन्होंने कांग्रेस पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए कहा, ”हम अकेले चुनाव लड़ सकते हैं पर ‘धोखेबाज’ कांग्रेस के साथ जाने का सवाल ही नहीं। वह पार्टी, जिसने अपने मंत्री ए राजा को अकेला छोड़ दिया और फिर उसे जेल भिजवाया। मेरी बेटी को जेल में प्रताडि़त होने के लिए छोड़ दिया।”

कांग्रेस की ‘दगाबाजी’ से आहत नीतीश ने छोड़ा साथ
जून, 2017 में जनता दल यूनाइटेड की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने महागठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस के बारे में साफ शब्दों में कहा कि वे ना तो कांग्रेस पार्टी की तरह अपने सिद्धांतों को तिलाजंलि देते रहे हैं और ना ही वे किसी के पिछलग्गू हैं। जाहिर है नीतीश कुमार कांग्रेस की मौका परस्ती से आहत थे। आजिज आकर उन्होंने जुलाई,2017 में महागठबंधन से अलग होने का निर्णय कर लिया।

कांग्रेस पार्टी नीतीश कुमार जैसा कद्दावर नेता को भी अपना पिछलग्गू देखना चाहती थी, लेकिन नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया कि वे सम्मान के साथ ही किसी गठबंधन का हिस्सा रहेंगे। दूसरी और आरजेडी ने भी कांग्रेस को हमेशा उसकी हैसियत बताने का काम किया है। सीटों के बंटवारे से लेकर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर भी कमोबेश आरजेडी की ही चलता है।

दरअसल कांग्रेस विरोध के नाम पर पैदा हुए क्षेत्रीय दलों ने एक-एक कर कांग्रेस की जड़ों को कमजोर करने का काम किया है। कांग्रेस की वर्तमान स्थिति का कारण भी यही क्षेत्रीय दल हैं। अब पार्टी का नामो निशान पूरे देश से साफ होने के कगार पर है। यह समझना आवश्यक है कि भाजपा विरोध के नाम पर छोटे दलों को वह एक करने का जो प्रयास कांग्रेस पार्टी कर रही है, वह उसकी साख को और गिराने का काम कर रहा है।

छोटे-छोटे दल कांग्रेस पार्टी को आंखें दिखा कर अपनी शर्तों पर झुकने को मजबूर कर रहे हैं।  बिलकुल साफ नजर आ रहा है कि भाजपा को हटाने के उद्देश्य के चलते वह अपना भविष्य गड्ढे में डालने का काम कर रही है।

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