Home विचार अमेठी में क्यों दरक रही ‘युवराज’ की राजनीतिक जमीन?

अमेठी में क्यों दरक रही ‘युवराज’ की राजनीतिक जमीन?

SHARE

पिछले दिनों अमेठी में कांग्रेस के ‘युवराज’ राहुल गांधी के लापता होने पोस्टर लगे उनको ढ़ूंढकर लाने वाले को तोहफा देने की बात कही गई। राहुल गांधी के लेकर लगाए गए इस पोस्टर के नीचे साफ शब्दोंं में यह लिखा गया था कि ये अमेठी की जनता की ओर से जारी किया गया है।

जाहिर है तीन पीढ़ियों से अमेठी का प्रतिनिधित्व कर रहे गांधी परिवार के लिए ऐसा पोस्टर एक बड़ा झटका है। क्योंकि जिस अमेठी में गांधी परिवार की तूती बोलती रही है वहां इस तरह के पोस्टर लगने का अर्थ तो यही दिख रहा है कि अमेठी में गांधी परिवार का राजनीतिक आधार खिसक चुका है।

टूरिस्ट के तौर पर अमेठी आते हैं राहुल
अक्टूबर के पहले हफ्ते में जब राहुल गांधी अमेठी पहुंचे तो वहां की जनता की जुबान पर बस एक ही बात थी कि राहुल का यह दौरा उनकी राजनीतिक जमीन बचाने की कवायद है। लेकिन इस दौरान हास्यास्पद यह रहा कि वे अमेठी में अपने द्वारा किए गए विकास कार्यों को गिनाने मे लग गए। दरअसल किसी भी क्षेत्र की विकास गाथा गिनाने बताने की आवश्यकता नहीं होती। विकास तो अपनी कहानी स्वयं कहता है। दरअसल राजनीतिक-सामाजिक हलकों में यह बात आम हो गई है कांग्रेस के युवराज केवल ‘राजनीतिक पर्यटक’ के तौर पर ही उत्तर प्रदेश आते हैं।

जनता से नहीं वोट से राहुल को है प्यार
1980 में पहली बार अमेठी संसदीय सीट से संजय गांधी ने जीत हासिल की थी, बाद में राजीव गांधी ने भी इसे अपना गढ़ बनाया था। लेकिन गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी का नेतृत्व करने वाले राहुल गांधी जब अमेठी आते हैं तो लोगों से मिलना पसंद नहीं करते। राहुल गांधी अपने कुछ लोगों को छोड़ कर स्थानीय कार्यकर्ताओं का नाम तक नहीं जानते हैं। हालांकि चुनाव के समय वे घर-घर जरूर जाने की कोशिश करते हैं। लेकिन आम दिनों में वे मुंशीगंज गेस्ट हाउस से बाहर नहीं निकलते हैं।

विकास के हर मानक पर पिछड़ा अमेठी
राहुल गांधी के समय ही अमेठी के जगदीशपुर को इंडस्ट्रियल हब के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव पास हुआ था। लेकिन कुछ लोगों ने वहां जमीनों के नाम पर सरकार से सब्सिडी ली और फरार हो गए। अब खाली जमीने पड़ी हैं। अमेठी शहर के बाहर और भीतरी इलाकों में सड़कों की हालत खराब है। सांसद निधि के अलावा अन्य स्रोतों के जरिये भी अमेठी में काम कराना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। अमेठी प्रशासन का काम भी जिले में नहीं दिखता है, जबकि इसके उलट इटावा भी वीआईपी सीट है, जहां विकास आसानी से देखा जा सकता है।

गांधी परिवार ने अमेठी को ‘अछूत’ बना दिया
लोकतंत्र में नेताओं की लोकप्रियता का असली पैमाना तो चुनाव ही होता है। अमेठी में पार्टी के पुराने कामों की पड़ताल जब आज की युवा पीढ़ी कर रही है तो वे अचंभित हो जाते हैं। दरअसल गांधी परिवार से संबद्ध होने के कारण देश-प्रदेश की सरकारें यह मानकर चलती हैं कि यहां तो विकास हो ही रहा होगा, हुआ ही होगा। लेकिन अमेठी के गांवों में आते ही ये विकास होने या हो रहे होने की सारी हवाबाजी काफूर हो जाती है। कच्ची सड़कें, बिलबिलाती कीचड़ के बीच फंसती गाड़ियां, इंदिरा आवास योजना होने के बावजूद कच्चे मिट्टी के घर ये साबित करने को काफी हैं कि गांधी परिवार ने किस तरह अमेठी को विकास के मामले में ‘अछूत’ बना दिया है।

अमेठी की जनता को पीएम मोदी पर यकीन
अमेठी में गांधी परिवार की दरकती जमीन की शुरुआत तो 2012 के विधान सभा चुनावों से ही हो चुकी थी जब तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस पार्टी केवल दो विधानसभा सीटें जीत सकी थी सपा ने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाया था। इसके बाद कांग्रेस के पुराने सदस्य तिलोई विधानसभा से विधायक डॉ मुस्लिम ने कांग्रेस छोड़ कर बसपा ज्वाइन कर लिया था। दूसरी ओर 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 4 में से 3 सीटें जीती, जबकि कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। इतना ही नहीं अमेठी में कांग्रेस के ऐसे कई नेता और परिवार हैं जो पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा में शामिल हो गए या उसके समर्थक हो गए।

अमेठी को अपनी जागीर समझते हैं राहुल गांधी
दरअसल यह सब इसलिए है कि गांधी परिवार ने अमेठी को एक संसदीय क्षेत्र के तौर पर नहीं बल्कि अपनी जागीर माना है। कोई आपदा या मृत्यु में भी वह चार-छह महीने के बाद पहुंचते हैं। यही नहीं बल्कि वे अमेठी दौरे पर हमेशा ही चुनिंदा जगह ही पहुंचते हैं। वह भी उनके कुछ खास लोग तय करते हैं कि उन्हें कहां जाना है या कहां जाना चाहिए। राहुल गांव-गांव अमेठी में दौरा तो करते हैं, लेकिन कोई उनसे सुरक्षा व्यवस्था के चलते अलग से नहीं मिल सकता है। अमेठी राहुल का संसदीय क्षेत्र है, लेकिन कभी चार महीने पर, कभी छह महीने पर ही वह अमेठी में नजर आते हैं।

अमेठी में भाजपा का बढ़ रहा जनाधार
2014 लोकसभा चुनावों में पहली बार राहुल गांधी को टक्कर देने के लिए बीजेपी ने स्मृति ईरानी को उतारा था। स्मृति ईरानी 90 हजार वोटों से हार कर दूसरे नंबर पर रहीं थीं। तभी लग गया था कि अमेठी की जनता में तीन पीढ़ियों की गुलामी से बाहर निकलने की छटपटाहट है। महज 90 हजार वोटों से पीछे रहने वाली भाजपा ने बीते विधानसभा में कांग्रेस का किला ध्वस्त कर दिया और चार में से तीन सीटें जीत लीं। दरअसल कांग्रेस की नजर में अमेठी की जनता सिर्फ वोट देने के लिए एक साधन के तौर पर रही है और ऐसे में वहां की जनता स्वयं को सिर्फ साधन मानने नहीं देना चाहती बल्कि वह विकास की मुख्यधारा से जुड़ना चाहती है। 

अमेठी की जनता की चहेती हैं स्मृति ईरानी
केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का विकास को लेकर स्पष्ट नजरिया और उनका आक्रामक अंदाज राहुल गांधी पर भारी पड़ रहा है। स्मृति ईरानी का अमेठी में सतत सम्पर्क, संवाद और विकास ने राहुल गांधी की राजनीतिक जमीन हिला दी है। उन्होंने अपनी पहचान पार्टी कार्यकर्ता से ऊपर उठकर ‘अमेठी की दीदी’ के तौर पर बना ली है। हालांकि राहुल स्मृति की देखादेखी दौरे पर पहुुंच जाते हैं पर राहुल का अमेठी जाना पुश्तैनी साख बचाने की विवशता बन गयी है।

Leave a Reply