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MODI@72 : पीएम मोदी द्वारा देशहित में लिए गए ऐतिहासिक फैसले, जिनसे बदली देश की दशा और दिशा

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मोदी सरकार ने अपने आठ साल के सफर में कई ऐतिहासिक फैसले लिए हैं, जिसने अंतरराष्ट्रीय फलक पर देश की तस्वीर को उज्जवल बनाने का काम किया है। पीएम मोदी ने अपने पहले पांच साल के कर्यकाल में नोटबंदी, जीएसटी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अहम निर्णय लिए, जिन्होंने पूरे देश को प्रभावित किया। वहीं जब पीएम मोदी दोबारा सत्ता में आये तो फिर मील के पत्थर साबित होने वाले कई फैसले लिए। दोबारा सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया। मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक कानून बनाया वहीं नागरिकता संसोधन कानून व सर्जिकल स्ट्राइक जैसे सख्त फैसले लिए। इसके अलावा पीएम मोदी कूटनीति से वैश्विक मंच पर भारत का झंड बुलंद किया। वैश्विक मंच पर भारत की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि जब रूस-यूक्रेन के बीच संघर्ष हुआ तो एक तरफ पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति से वहीं दूसरी तरफ यूक्रेन के प्रधानमंत्री से बात कर शांति की अपील की। दुनिया के देश जब दो गुटों में बंटे हुए थे तब भारत ही था जो दोनों देशों के साथ बातचीत कर रहा था और इसे देखते हुए भारत वैश्विक कूटनीति का केंद्र बन गया। यही कारण है उस दौरान रूस-यूक्रेन संघर्ष को रोकने के लिए तमाम देशों के विदेश मंत्री एवं राजनयिक नई दिल्ली पहुंचने लगे थे। 17 सितंबर पीएम मोदी का जन्मदिवस है, इस अवसर पर आइए उनके द्वारा लिए गए ऐतिहासिक फैसलों के बारे में जानते हैं।

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म किया, घाटी में खुशियां लौटी, पर्यटन बढ़ा

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद से घाटी में खुशियां लौट आई हैं। घाटी समेत पूरे राज्य में आतंकी घटनाओं में कमी आई है। साथ ही पहले से हत्याएं भी कम हुई हैं। अब पहले से ज्यादा सैलानी पहुंच रहे हैं। अप्रैल से लेकर जुलाई तक घाटी के सभी होटल, शिकारे और सराय फुल रहे। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 3 अगस्त को संसद में बताया कि इस साल तीन जुलाई तक 1.06 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर पहुंचे। कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के लिए रास्ता खुला। जम्मू-कश्मीर में काफी वक्त से उद्योगों पर लगी बंदिशों के हटने के रास्ते खुले हैं और निवेश की राह आसान हो रही है। बताया जा रहा है कि अब तक प्रदेश में 38 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के प्रस्ताव आ चुके हैं।

अब एक देश में दो निशान नहींः केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को कानून लाकर जम्मू-कश्मीर को खास दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया था। उसके बाद यहां सारे बदलाव हुए, केंद्र के कानून और कई सारी योजनाओं को लागू किया गया है। अनुच्छेद 370 को हटाया नहीं गया है, बल्कि उसके अंतर्गत जो प्रतिबंध थे, उन्हें हटाया गया है। मतलब इसके तहत कश्मीर को जो स्वायत्तता मिलती थी, वे सब हट गए हैं। अब एक देश में दो निशान, दो विधान, दो प्रधान नहीं होगा। अनुच्छेद 370 का खंड एक लागू रहेगा जो कहता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। अब तक केवल ‘स्थायी नागरिक’ का दर्जा प्राप्त कश्मीरी ही राज्य में जमीन खरीद सकते थे। लेकिन 370 हटने के बाद ऐसा नहीं होगा। उसके बाद वहां उन लोगों के जमीन खरीदने का रास्ता भी खुल जाएगा जिनके पास ‘स्थायी नागरिक’ का दर्जा नहीं है। राज्य में केवल ‘स्थायी नागरिकों’ को ही सरकारी नौकरियां मिलती थीं लेकिन अब यह सबके लिए खुल गया है।

संसद में बने हर कानून लागू होंगेः संसद की ओर से बनाए गए हर कानून अब प्रदेश की विधानसभा की मंजूरी के बिना लागू होंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले लागू होंगे। प्रदेश के अलग झंडे की अहमियत नहीं रहेगी। इसका भविष्य संसद या केंद्र सरकार तय करेगी। जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह से घटकर पांच साल का हो जाएगा। संसद के कई संवैधानिक फैसले जो पहले कश्मीर पर लागू नहीं हो पाते थे, अब वे पूरे देश के अन्य राज्यों की तरह यहां भी लागू होंगे। सरकार के वित्तीय फैसले जो अब तक लागू नहीं होते थे, वे भी अब लागू होंगे। जम्मू-कश्मीर में जो संविधान सभा थी, उसका नाम विधानसभा कर दिया है। पहले उसका नाम संविधान सभा इसलिए था, क्योंकि भारत की संसद की तरह ही वह कई संवैधानिक निर्णय करती थी।

जीएसटी- एक देश एक टैक्स, GST से खत्म हो गए ये 17 तरह के टैक्स

देश के सभी हिस्से में एक समान टैक्स लागू करने के लिए मोदी सरकार ने 1 जुलाई 2017 से जीएसटी बिल (GST Bill) लागू किया। मोदी सरकार ने तमाम विरोध और आलोचना के बाद इनडायरेक्ट टैक्स की दिशा में इस बड़े सुधार को लागू कर न सिर्फ अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से रूबरू कराया बल्कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारतीय रैकिंग में सुधार कर देश की तस्वीर बदल दी है। आज भारत विदेशी निवेशकों के बीच पसंदीदा स्थान बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव जीएसटी लेकर आया है। इनडायरेक्ट टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ने से निवेशकों का विश्वास बढ़ा है। वह अब भारत में निवेश करने से नहीं हिचक रहे हैं। इसलिए भारत में एफडीआई के जरिये निवेशक कई गुना बढ़ गया है।

राज्यों के बीच टैक्स में कोई समानता नहीं थीः हमारे देश का संविधान केंद्र सरकार को यह शक्ति देता है कि वह सप्लाई सर्विस पर एक्साइज ड्यूटी लगा सके। इसके साथ ही संविधान राज्य सरकारों को यह शक्ति देता है कि वे सामानों की बिक्री पर सेल्स टैक्स और वैल्यू एडेड टैक्स लगा सकें। टैक्स के डिवीजन की इन्हीं शक्तियों के कारण देश में कई इनडायरेक्ट टैक्स लगाए जाने लगे। इसके साथ ही सेंट्रल सेल्स टैक्स (CST) गुड्स के इंटर-स्टेट सेल के लिए लगाया जाता था जिसे अंत में एक्सपोर्ट स्टेट द्वारा कलेक्ट किया जाता था। इसके बाद कई राज्य गुड्स पर एंट्री टैक्स भी लगाते थे। स्टेट एंड सेंट्रल लेवल पर इतने टैक्स होने के कारण इनडायरेक्ट टैक्स की एक कॉम्पलेक्स स्थिति बन गई थी। राज्यों के बीच टैक्स में कोई समानता नहीं थी। इससे 17 तरह के टैक्स खत्म हो गए।

भ्रष्टाचार और काला धन खत्म करने के लिए नोटबंदी

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर देने का फैसला किया था। नोटबंदी होने के बाद सभी लोगों ने अपने 500 और 1000 रुपये के नोटों की जगह नए नोट लिए। अब 500 और 1000 की जगह नए तरह का 500 और 2000 का नोट चलन में है। नोटबंदी के दौरान आरबीआई ने लोगों से 15.28 लाख करोड़ रुपये के 500 और 1000 के पुराने नोट जमा किए थे और उसके बदले नए नोट जारी किए थे। उसके बाद से नए नोट प्रचलन में हैं। 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों आर्मी चीफ्स और प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संदेश दिया, “‘भाइयो-बहनो! देश को भ्रष्टाचार और कालेधन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त कदम उठाना जरूरी हो गया है। आज मध्यरात्रि यानी 8 नवंबर 2016 की रात्रि को 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपए 1000 रुपए के करंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। ये मुद्राएं कानूनन अमान्य होंगी।” नोटबंदी के एलान के वक्त देश में 17 लाख करोड़ रुपये की करंसी चलन में थी। 86% यानी 15.4 लाख करोड़ रुपये की करंसी 500 और 1000 के नोटों की शक्ल में थी। इसे बंद करने का फैसला लिया गया था।

सर्जिकल स्ट्राइकः PoK में भारत का सीक्रेट आपरेशन, उड़ी आतंकी हमले का ऐसे लिया था बदला

साल 2016 में भारतीय जवानों को निशाना बनाते हुए उड़ी में हुए आतंकी हमले का दुख शब्दों में बयां नहीं हो सकता। हालांकि, इसके बाद भारत की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक को भी कोई नहीं भूल सकता। खासकर पाकिस्तान, जिसके अंदर घुसकर भारत ने कहर मचा दिया था और उरी हमले का बदला लिया था। 29 सितंबर 2016 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी शिविरों के खिलाफ सबसे बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक की थी और नियंत्रण रेखा के साथ बने आतंकी लान्चपैड को नष्ट कर दिया था। तब से सरकार 29 सितंबर को ‘सर्जिकल स्ट्राइक डे’ के रूप में मना रही है। यह हमला 18 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में भारतीय सेना के अड्डे पर पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद द्वारा किए गए हमले के मद्देनजर किया गया था, जिसमें 19 सैनिक शहीद हुए थे। प्रधानमंत्री ने कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई गई थी क्योंकि उड़ी में आतंकी हमले में सैनिकों के शहीद होने के बाद गुस्सा बढ़ रहा था। सर्जिकल स्ट्राइक का देश के लोगों के साथ-साथ सशस्त्र बलों ने भी स्वागत किया था। इस कार्रवाई में भारत के किसी भी कमांडो को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा और वो सफलतापूर्वक ऑपरेशन को अंजाम देकर भारत लौट आए।

CAA-NRC नागरिकता (संशोधन) कानून

CAA (नागरिकता संशोधन कानून, 2019) को भारतीय संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया, जिसमें 125 मत पक्ष में थे और 105 मत विरुद्ध। इस विधेयक को 12 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिल गई। CAA नागरिकता संशोधन कानून , 2019, अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खोलता है, जो भारत के तीन पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) से उत्पीड़न या किसी और कारण से अपना देश छोड़कर भारत में आना चाहते हैं। इसका किसी भी भारतीय नागरिको से कोई लेना-देना नहीं है, चाहे वे किसी भी धर्म से आते हों। CAA में छह गैर-मुस्लिम समुदायों – हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी से संबंधित अल्पसंख्यक शामिल हैं। इन्हें भारतीय नागरिकता तब मिलेगी जब वे 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में शरण ले लिए हों। इस संशोधन बिल के आने से पहले तक, भारतीय नागरिकता के पात्र होने के लिए भारत में 11 साल तक रहना अनिवार्य था। नए बिल में इस सीमा को घटाकर छह साल कर दिया गया है।

नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टरः NRC नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर है, जो भारत से अवैध घुसपैठियों को निकालने के उद्देश्य से एक प्रक्रिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनआरसी प्रक्रिया हाल ही में असम में पूरी हुई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में घोषणा की थी कि NRC पूरे भारत में लागू किया जाएगा। NRC के तहत, एक शरणार्थी भारत का नागरिक होने के योग्य है, यदि वे साबित करते हैं कि या तो वे या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 को या उससे पहले भारत में थे। असम में NRC प्रक्रिया को अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को बाहर करने के लिए शुरू किया गया था, जो भारत आए थे। 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।

मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात

1 अगस्त 2019 को मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक (Triple Talaq) रूपी कुप्रथा से आजादी मिली। 1400 साल पुरानी तीन तलाक की जिस कुप्रथा से करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति मिली है, उसकी शुरुआत मोदी सरकार ने 2014 के बाद ही कर दी थी। तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को न तो संवैधानिक दर्जा प्राप्त था और न इस्लाम की शिक्षाओं के अनुरूप यह जायज था। इसके बावजूद देश भर में मुस्लिम महिलाओं का उत्पीड़न करने वाली यह कुप्रथा वोट बैंक के फेर में फलती-फूलती रही, लेकिन मोदी सरकार ने इसे समाप्त कर मुस्लिम महिलाओं को इससे आजादी दिलाई। मोदी सरकार के दौर में सामने आई शायरा बानो, जिन्होंने अपनी रिट याचिका में सुप्रीम कोर्ट से तीन प्रथाओं… तलाक-ए-बिद्दत, बहुविवाह, निकाह-हलाला को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की। इस कड़ी में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 के उल्लंघन का हवाला देकर मामले दर्ज किए जा रहे थे। सुप्रीम कोर्ट में तमाम बहस हुई, लेकिन अंततः 18 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया। इसके बाद मोदी सरकार ने एक अगस्त 2019 को संसद में कांग्रेस, वाम दलों, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के विरोध को दरकिनार कर तीन तलाक कुप्रथा को खत्म करने वाले विधेयक को कानूनी रूप दे दिया। इसी के साथ 1 अगस्त देश की मुस्लिम महिलाओं के लिए संवैधानिक, मौलिक, लोकतांत्रिक एवं समानता के अधिकारों का दिन बन गया।

कई इस्लामी देशों ने पहले ही तीन तलाक को खत्म कियाः भारत में तीन तलाक रूपी कुप्रथा को खत्म करने में 70 साल से अधिक का समय लग गया। यह तब है जब दुनिया के कई प्रमुख इस्लामी देशों ने बहुत पहले ही तीन तलाक को गैर-कानूनी और गैर-इस्लामी घोषित कर खत्म कर दिया था। मिस्र दुनिया का पहला इस्लामी देश है, जिसने 1929 में ही तीन तलाक को खत्म किया और इसे गैर कानूनी एवं दंडनीय अपराध बनाया। 1929 में सूडान ने भी तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया। 1956 में पाकिस्तान, 1972 में बांग्लादेश, 1959 में इराक, 1953 में सीरिया, 1969 में मलेशिया ने इस पर रोक लगाई। इसके अलावा साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्रूनेई, मोरक्को, कतर, यूएई जैसे इस्लामी देशों ने भी तीन तलाक को खत्म किया और इसके खिलाफ कानूनी प्रावधान बनाए।

मोदी नीति से यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच वैश्विक कूटनीति का केंद्र बना भारत

रूस और यूक्रेन के बीच जब संघर्ष शुरू हुआ था उस समय भारत विश्वस्तरीय कूटनीति का केंद्र बन गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति प्रयासों के तहत यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर लंबी बातचीत की थी और शांति की अपील थी। हालांकि, भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) में रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर वोटिंग से अपने को दूर ही रखा था। इस कारण दुनिया की निगाहें भारत पर जम गई थी। उस दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी, अमेरिका की राजनीतिक मामलों की उप-विदेश मंत्री विक्टोरिया नुलैंड जबकि ऑस्ट्रिया एवं यूनान के विदेश मंत्रियों सहित कई उच्च स्तरीय हस्तियों ने भारत की यात्रा की। इसके साथ ही ब्रिटेन और रूस के विदेश मंत्री भी भारत पहुंचे। दो प्रमुख विश्व शक्तियों के बीच संघर्ष के दौरान भारत ने एक स्वतंत्र रुख और कूटनीतिक तटस्थता अपनाई। इससे भारत को खुद को मुखर रूप से पेश करने का मौका मिला। इस साल जून में ग्लोबसेक 2022 ब्रातिस्लावा फोरम में विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने पश्चिमी पाखंड को उजागर किया और रूसी तेल खरीदने के मामले में भारत की आलोचना करने पर यूरोप को आईना दिखाया और यूरोप को याद दिलाया कि वह भी रूसी तेल खरीद रहा है। इस रुख से पता चलता है कि भारत यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक मसलों पर पश्चिमी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। बढ़ते आर्थिक दबदबे ने भारत को अपनी कूटनीतिक ताकत बढ़ाने का मौका दिया है। इसका उदाहरण पेश करते हुए, जयशंकर ने इस फोरम में ईरान और वेनेजुएला ऑयल को वैश्विक बाजार में आने से रोकने के लिए पश्चिम देशों की आलोचना की।

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