Home नरेंद्र मोदी विशेष ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा के अग्रदूत हैं प्रधानमंत्री मोदी

‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा के अग्रदूत हैं प्रधानमंत्री मोदी

SHARE

‘सबका साथ सबका विकास’ यह वह नारा है, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालते ही अपनी विदेश नीति का भी मूल-मंत्र माना था। उनके अब तक के कार्यकाल में हुए निरंतर प्रयासों से अनेक बार यह बात सिद्ध भी हो चुकी है, जिसमें उन्होंने अपने देश के हित के साथ, अपने पड़ोसी देशों के हितों को भी संवेदनशील दृष्टि से देखा। यह उन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि आज संपूर्ण विश्व प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और नीतियों के चलते भारत को सर्वाधिक विश्वस्त, संवेदनशील और सशक्त मित्र देश के रूप में पाता है। इसी दिशा में किये जा रहे प्रयासों में एक ताजा पहल है, 10 साल बाद भारत-नेपाल के इकलौते रेल मार्ग का खुलना।

नेपाल के लिए खोले दिल के मार्ग

बिहार के सीमावर्ती शहर जयनगर से नेपाल के बर्दीबास के लिए, 70 किलोमीटर तक चलने वाली इस रेल का परिचालन अक्टूबर, 2018 से पुन: आरंभ किया जा रहा है।  800 करोड़ की लागत से करीब 69 किलोमीटर पटरी बिछाई जा रही है। इसमें 3 किलोमीटर रेलवे लाइन बिहार और 66 किलोमीटर नेपाल में होगी। इस रूट पर ट्रेन चलने से बिहार और नेपाल के लोगों को आने-जाने के लिए बेहतर सुविधा मिलने के साथ दोनों देशों के बीच व्यापार भी बढ़ेगा। इसके अतिरिक्त पर्यटकों को काफी सुविधा होगी। 

वैसे इन दोनों देशों के दिलों पर जमी बर्फ पिघलाने का काम तो प्रधानमंत्री मोदी ने तभी शुरू कर दिया था, जब सत्ता की बागडोर संभालने के कुछ ही समय बाद उन्होंने नेपाल की यात्रा की थी। इस यात्रा की विशेष बात यह थी कि ऐसा करने वाले नरेन्द्र मोदी 17 सालों में पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे। उन्होंने अपने शपथ-ग्रहण समारोह में सार्क देशों के नेताओं की उपस्थिति द्वारा आरंभ से ही यह संकेत दे दिया था कि वे भारतीय संस्कृति के ‘वसुधैवकुटुंबकम्’ की अवधारणा को ही गंभीरतापूर्ण प्रयासों द्वारा आगे बढ़ाएंगे। विशेष रूप से दक्षिण एशिया से सामरिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करना उनकी सरकार की प्राथमिकता में सर्वोपरि होगा। ये तथ्य याद रखने योग्य हैं कि भारत नेपाल के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस समय भारत में 60 लाख से भी अधिक नेपाली कार्यरत हैं। नेपाल जाने वाले 40 प्रतिशत पर्यटक भारत होते हुए वहां जाते हैं। इसके अलावा नेपाल-पर्यटन में 20 प्रतिशत पर्यटक भारतीय ही होते हैं। नेपाल के विदेश व्यापार का दो तिहाई व्यापार अकेले भारत के साथ ही होता है, जो कि द्विपक्षीय व्यापार में 4.7 बिलियन डॉलर के लगभग है। ये बिंदू इस बात की प्रामाणिकता हैं कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों का कितना अधिक महत्त्व है।

भूटान के संग लिखा नया अध्याय

प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने अपनी विदेश यात्रा का आरंभ भूटान से किया था। भूटान-नरेश जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक और भूटानी प्रधानमंत्री त्शेरिंग तोबगे के आमंत्रण पर हुई यह यात्रा भारतीय विदेश नीति के उन पहलुओं को और प्रगाढ़ता प्रदान करने वाली सिद्ध हुई थी, जिसमें ये दोनों देश बंधे हुए हैं। हमेशा से भूगोल, इतिहास और सांस्कृतिक संबंध भारत-भूटान संबंधों के बीच का ठोस आधार रहे हैं। आलोचकों के निशाने पर रहने वाली प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं हमेशा विरोधियों के अनुमानों को धता बताती रही हैं। अधिकांश पड़ोसी देशों के साथ मधुर संबंधों से भारत की छवि न केवल सार्क देशों के बीच निखरी है, बल्कि संपूर्ण विश्व-मंच पर सशक्त हुई है। प्रधानमंत्री मोदी के रूप में भारत को एक ऐसा नेतृत्व मिला है, जिसके दिए नारे, ‘सबका साथ सबका विश्वास’ पर आज पूरा विश्व विश्वास करता है। वह मानता है कि मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों में निसंदेह सभी का हित छिपा है, कुछ का प्रत्यक्ष, कुछ का अप्रत्यक्ष।

श्रीलंका से जोड़ा मैत्री-सेतु को

भारत और श्रीलंका के बीच के सांस्कृतिक संबंध पुरातन हैं, परंतु ऐसा नहीं है कि पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में भी यह स्थिति हमेशा सौहार्दपूर्ण रूप से ऐसी ही बनी रही हो। भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य एक विभाजनकारी आभासी रेखा के रूप में मान्य रही है और यह दोनों ही देशों के हितों को प्रभावित करती है। श्रीलंका के साथ भारत के सौहार्दपूर्ण संबंध इनके सामरिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों के विकास में अत्यंत अहम भूमिका निभाते हैं। इस भुलाए जा रहे महत्त्व को नए प्राण मिले प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद। यदि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य के रूप में देखा जाए तो यह बहुत आवश्यक है कि भारत के समस्त पड़ोसी देशों का सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास बिना किसी गतिरोध के होता रहे। सत्ता परिवर्तन के बाद जब से प्रधानमंत्री मोदी की सरकार अस्तित्व में आई है, तब से श्रीलंका के साथ भारतीय संबंधों को एक नया आयाम मिला है। मोदी सरकार के प्रयासों से इस दिशा में किए गए कार्यों का काफी सकारात्मक परिणाम रहा, जिनके चलते पूर्ववर्ती सरकारों के कारण उत्पन्न हुए संदेहों पर आघात हुआ, जिसका लाभ निरंतर चीन को मिल रहा था। सत्तासीन होने के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति सिरीसेना मैत्रिपाला ने अपनी पहली विदेश यात्रा के तौर पर भारत आगमन को चुना। हम्बनटोटा बंदरगाह के विकास द्वारा चीन श्रीलंका के माध्यम से हिन्द महासागर में अपनी उपस्थिति सशक्त करने के प्रयासों में जुटा हुआ था, जो कि सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए एक बड़ी चिन्ता का विषय था। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से इस स्थिति में संतोषजनक बदलाव आया। इसके अतिरिक्त उनके प्रयास से श्रीलंका में एक आपातकालीन एंबुलैंस सेवा भी भारत की ओर से आरंभ की गई, जो वहां वर्तमान में अत्यंत सक्रिय रूप से जारी है।

दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले

ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने केवल उन्हीं देशों के साथ ही अपने संबंध सौहार्दपूर्ण बनाने की दिशा में प्रयास किए, जहां के पूर्व अनुभव भारत के साथ उतने कटु नहीं थे, जितना कुछ देशों का पूरा का पूरा इतिहास ही रहा है। जब भी मौका मिला, इन ‘पड़ोसियों’ ने भारत के हितों को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ये भारत की सीमाओं पर भी एक बड़ा खतरा बनकर मंडराते रहे और देश की सीमाओं के भीतर भी। इस मोर्चे पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने कुशल कूटनीति का परिचय देते हुए न तो मैत्रीपूर्ण संबंधों को बनाने की दिशा में पहल करने में कसर छोड़ी, न ही कड़े फैसलों द्वारा अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन करने में। प्रधानमंत्री मोदी की आकस्मिक रूप से की गई पाकिस्तान यात्रा एक अत्यंत साहसपूर्ण प्रयास था। यह और बात है कि पाकिस्तान फिर भी तरह-तरह से अपनी ‘नापाक’ हरकतों का इतिहास दोहराने में ही लगा रहा है। जहां एक ओर यह भारत के द्वारा दोस्ती का हाथ बढ़ाने की ईमानदार कोशिश थी, वहीं सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयां और विश्व-मंच से इस विषय पर अपनी सामर्थ्य प्रकट करना मोदी सरकार की सिंह-गर्जना रही। इसके बावजूद भी प्रधानमंत्री मोदी इस बात पर बल देते हैं कि पाकिस्तान के साथ राजनीतिक संबंध बने रहने चाहिए।

भय बिनु होत न प्रीति

चीन के साथ भी भारत की यादें बहुत सुखद नहीं हैं, परंतु इस दिशा में भी मोदी सरकार के प्रयासों ने विश्व को चौंकाया है। डोकलाम विवाद द्वारा चीन ने प्रयास तो उस क्षेत्र में अपनी मजबूती का किया, परंतु जापान तक द्वारा भारत के समर्थन से जहां एक ओर विश्व में चीन का पक्ष हल्का पड़ा, वहीं भारत ने बढ़त हासिल की। जापान के इस कदम से भारत को वैश्विक परिदृश्य पर नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ। इस विषय पर कूटनीतिक विजय हासिल करने के बावजूद भारत ने चीन के साथ संवाद के द्वार कभी बंद नहीं किए। प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है। इस यात्रा द्वारा उन्होंने विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच मैत्री संबंध विकसित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था। साथ ही यह बात भी स्पष्ट कर दी कि भारत अपने हितोंं के साथ कोई समझौता नहीं करेगा।

यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अब तक के व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन किया जाए तो उसमें विनम्रता तो मिलेगी, परंतु यह विनम्रता वह है, जो साहस से आती है, सामर्थ्य से आती है। यही वे गुण हैं, जिनके चलते आज पूरा विश्व उन्हें एक आदर्श नेता मानता है।  

 

Leave a Reply