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बैंक फ्रॉड पर मोदी सरकार की बड़ी कार्रवाई, 10 हजार बैंक कर्मियों पर एक्शन के साथ बंद किए 3.38 लाख खाते

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पीएम मोदी और उनके नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा ही अपना रवैया सख्त रखा है, उन्होंने देश की बागडोर संभालते ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। पीएम मोदी ने साफ कहा था कि ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा। मोदी सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति शुरू से रही है।

10 हजार बैंक कर्मचारियों पर हुई कार्रवाई

मोदी सरकार ने जनता की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर लगाम लगाना शुरू कर दिया है। वहीं सरकार ने बैंको में एक लाख से ज्यादा लोन देने में भ्रष्टाचार की शिकायत पर सख्त एक्शन लिया है। साल 2015 से लेकर 2017 तक लगभग 10 हजार बैंक कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई, जिसमें नोटबंदी का समय भी शामिल है।


सांसद अन्नपूर्णा देवी और रमा देवी के सवाल पर वित्त मंत्री ने लोकसभा में जबाव देते हुए ये भी बताया कि बैंकों में हो रहे फ्रॉड पर रोक लगाने के लिए सरकार ने दो साल में कुल 3.38 लाख बैंक खातों को भी बंद किया है।

छह महीने में 95,760 करोड़ रुपये का बैंक फ्रॉड आया सामने

सवालों का जवाब देते हुए वित्त मंत्र निर्मला सीतारमण ने ये जानकारी दी कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में 4641, साल 2016 में 3232 और साल 2017 में 2107 बैंक कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई है जो 1 लाख या उससे ज्यादा की राशि की धोखाधड़ी में शामिल रहे।


इसके साथ ही उन्होंने बताया कि मौजूदा वित्त वर्ष के पहले छह महीने में करीब 95,760 करोड़ रुपये के बैंक फ्रॉड के मामले सामने आए, वहीं अप्रैल-सितंबर में कुल 5743 फ्रॉड के मामले दर्ज हुए।

एक नजर डालते हैं प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने देश में कालाधन, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं। 

भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मोदी सरकार ने छेड़ी नई मुहिम

केंद्र की मोदी सरकार ने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ नई मुहिम छेड़ दी है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने केंद्र सरकार के सभी विभागों से खर्चीले और भ्रष्ट अधिकारियों की सूची मांगी है, जिसका मकसद व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाना है।


मोदी सरकार ने हाल के दिनों में इनकम टैक्स से लेकर कई दूसरे विभागों से भ्रष्ट अधिकारियों को जबरन रिटायर किया है। इसके बावजूद सरकार ने पाया कि सख्त कार्रवाई के बावजूद भ्रष्टाचार को लेकर शिकायतें बढ़ी हैं।

जांच के लिए अपनाए जा रहे हैं कई तरीके

सरकार 1007 अधिकारियों की जांच कर रही है, इसके लिए कई तरीके अपनाए जा रहे हैं। इन अधिकारियों की संपत्तियों में अचानक बेतहाशा बढ़ोत्तरी और बड़े-बडे़ खर्चो की जांच पड़ताल की जा रही है। रेल मंत्रालय, कोयला मंत्रालय, उड्डयन मंत्रालय और जहाजरानी मंत्रालय के कई अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के एफआर 56 (जे) नियम के तहत बाहर का रास्ता दिखाने के लिए जांच चल रही है। इस नियम के मुताबिक सरकार को 30 की नौकरी या 50 साल की आयु पूरी करने के वाले भ्रष्ट अधिकारियों को जबरन रिटायर करने का अधिकार है।

हाल में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआइसी) की जांच समिति ने 37 भ्रष्ट अधिकारियों को हटाने की सिफारिश की थी. अब ये समिति इसी तरह के अधिकारियों के नाम तय करने के लिए बैठक करने वाली है। साथ ही 600 से ज्यादा (सेंट्रल ऑटोनोमस बॉडीज) यानी केंद्रीय स्वायत्त निकायों को भी इस तरह की समीक्षा करने के सख्त निर्देश जारी किए गए हैं।

3 साल से मलाईदार पद पर बैठे अफसरों पर नजर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार के खात्मे का संकल्प लिया है। सत्ता में आने के बाद से ही पीएम मोदी की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति रही है। मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कई कदम उठाए हैं। सरकार के कड़े रुख ने करप्शन में डूबे अधिकारियों की रातों की नींद उड़ा दी है। भ्रष्ट अफसरों को पासपोर्ट जारी करने पर रोक, अधिकारियों की अवैध कमाई को ‘आधार’ के माध्यम से पता लगाने जैसे कदमों के बाद अब मोदी सरकार ने सभी मंत्रालयों को मलाईदार पदों पर वर्षों से विराजमान अधिकारियों की सूची तैयार करने को कहा है। केंद्र सरकार ने तीन वर्षों से अधिक समय से अहम पदों पर बैठे अफसरों के ट्रांसफर की रणनीति बनाई है।

भ्रष्टाचार के खात्मे की नीति की तहत मोदी सरकार ने सभी मंत्रालयों को निर्देश दिए हैं कि वो अपने-अपने केंद्रीय विभागों में संवेदनशील पदों की पहचान करें। सरकार इन संवेदनशील पदों की एक बार फिर से समीक्षा करना चाहती है। सरकारी संस्थाओं में संवेदनशील उन पदों को जहां भ्रष्टाचार की संभावना सबसे अधिक होती है। सरकार ने ऐसे पदों पर 3 वर्षों से जमे अधिकारियों को हटाने की रणनीति बनाई है। इतना ही नहीं भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा कसने के लिए सभी विभागों के सतर्कता विंग से तत्काल कार्रवाई करने को भी कहा गया है।

3 वर्षों में 39 हजार से अधिक मामलों की जांच
मोदी सरकार की सख्ती का ही नतीजा है कि सभी केंद्रीय मंत्रालयों में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ जांच और कार्रवाई में तेजी आई है। केंद्रीय मंत्रालयों की तरफ से केंद्रीय सतर्कता आयोग को दी गई रिपोर्ट में कहा गहा है कि पिछले तीन साल में सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ 39 हजार से ज्यादा मामलों में विभागीय जांच शुरू हुई है। इनमें से कई मामले वित्तीय अनियमितताओं से भी जुड़े हुए हैं। सीबीआई ने भी 2014-17 के दौरान 139 आईएएस, आईपीएस, आईआरएस और आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं।

‘आधार’ से पता लगाई जाएगी अफसरों की अवैध कमाई
केंद्रीय सतर्कता आयोग का कहना है कि विभिन्न प्रकार के वित्तीय लेनदेन और संपत्ति सौदों के लिए आधार अनिवार्य है, ऐसे में इसका इस्तेमाल भ्रष्ट अधिकारियों की अवैध कमाई का पता लगाने के लिए करने पर विचार किया जा रहा है। आधार नंबर के माध्यम से यह जानने में मदद मिल सकती है कि कार्डधारक द्वारा किया गया वित्तीय सौदा उसकी आमदनी के दायरे में है या नहीं। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के वी चौधरी के मुताबिक आयोग ने एक कॉन्सेप्ट पेपर तैयार किया है। इसके पीछे विचार, परिचालन प्रक्रिया बनाने या संभव हो सके तो सॉफ्टवेयर तैयार करने का है। इससे यदि किसी भी अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच का फैसला किया जाता है तो अन्य विभागों के साथ बिना किसी अड़चन के संपर्क किया जा सकेगा और ‘आधार’ का इस्तेमाल कर आवश्यक जानकारी जुटाई जा सकेगी। जाहिर है कि शेयरों की खरीद-फरोख्त, बड़े वित्तीय लेन देन, अचल संपतियों की खरीद में आधार को अनिवार्य करने तथा बैंक एकाउंट से आधार के लिंक करने, पैन कार्ड को आधार से जोड़ने से किसी भी व्यक्ति के बारे में जानकारी जुटाना आसान हो गया है। सीवीसी के मुताबिक आधार के इस्तेमाल से अफसरों की आय से अधिक संपत्ति का पता लगाया जा सकता है। यानी अब ऐसे भ्रष्ट अफसरों की खैर नहीं जो अपनी काली कमाई को संपत्ति खरीदने और शेयर खरीदने में खपाते थे।

भ्रष्ट अफसरों को नहीं मिलेगा पासपोर्ट
मोदी सरकार ने हाल ही में एक और बड़ी कार्रवाई करते हुए भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों में संलिप्त सरकारी अधिकारियों के पासपोर्ट जारी करने पर रोक लगा दी है। कार्मिक मंत्रालय के मुताबिक भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे अफसरों को पासपोर्ट के लिए सतर्कता विभाग से मंजूरी नहीं दी जाएगी। इस फैसले के तहत अगर किसी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों और जांच लंबित हो, प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी हो, सरकारी निकाय द्वारा मामला दर्ज हो या वह सस्पेंड हो तो पासपोर्ट सतर्कता मंजूरी को रोका जा सकता है। अगर किसी आपराधिक मामले में जांच एजेंसी द्वारा कोर्ट में आरोप पत्र दायर किया जा चुका हो और केस पेंडिंग हो, भ्रष्टाचार निरोधक कानून या किसी अन्य आपराधिक मामले में सक्षम प्राधिकरण द्वारा जांच की मंजूरी दी जा चुकी हो और अनुशासनात्मक कार्रवाई में अधिकारी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया हो और कार्यवाही पेंडिंग हो तो ऐसी स्थिति में भी सतर्कता विभाग से पासपोर्ट के लिए मंजूरी नहीं मिलेगी। भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ इस कार्रवाई को मोदी सरकार का बड़ा कदम बताया जा रहा है। मोदी सरकार के इस फैसले से भ्रष्टाचार करने के बाद विदेश भागने वाले नौकरशाहों पर लगाम लगेगी।

बेनामी संपत्ति पर सख्त मोदी सरकार, 3900 करोड़ की संपत्ति जब्त
बेनामी संपत्ति और कालाधन रखने वालों पर भी मोदी सरकार का चाबुक जोरों से चल रहा है। आयकर विभाग ने फरवरी 2018 तक 1600 से अधिक लेनदेन का पता लगाने के साथ 3,900 करोड़ की बेनामी संपत्तियां जब्त की है। बेनामी संपत्तियों की कुर्की के लिए 1500 से अधिक मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए और 1200 से अधिक मामलों में कुर्की भी की जा चुकी है। कुर्की की जाने वाली संपत्तियों का मूल्य 3900 करोड़ रुपये से अधिक है। आयकर विभाग ने ऑपरेशन क्लीन मनी के तीन चरणों में 22.69 लाख ऐसे व्यक्तियों की पहचान की है जिनका कर प्रोफाइल उनके द्वारा नोटबंदी के दौरान जमा की गई धन राशि से मेल नहीं खाता है। नोटबंदी की अवधि के दौरान इन 22.69 लाख करदाताओं के मामले में बैंक खातों में कुल 5.27 करोड़ की धनराशि जमा पाई गई है। आयकर विभाग के मुताबिक बेनामी संपात्ति लेन-देन रोकथाम कानून के तहत कार्रवाई तेज कर दी गई है। मोदी सरकार ने 1 नवंबर, 2016 को इस कानून को लागू किया था। इस कानून के तहत, चल-अचल किसी किस्म की बेनामी संपत्तियों को फौरी तौर पर कुर्क करने और फिर उनको पक्के तौर पर जब्त करने की कार्रवाई का प्रावधान शामिल है।

भगोड़ा आर्थिक अपराध विधेयक मंजूर
आर्थिक फ्रॉड करने वाले बड़े अपराधियों पर नकेल कसने के लिए भगोड़ा आर्थिक अपराध बिल को मंज़ूरी दी गई है। इस बिल में भारत में इकोनॉमिक फ्रॉड कर विदेश भागने वाले अपराधियों की संपत्ति को जब्त करने समेत कई सख्त प्रावधान शामिल किए गए हैं। इस विधेयक में भारतीय न्‍यायालयों के कार्यक्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानूनी प्रक्रिया से बचने वाले आर्थिक अपराधियों की प्रवृत्‍ति को रोकने के लिए कड़े उपाय करने में मदद मिलेगी।

विधेयक के मुख्य प्रावधान

  • यह प्रावधान 100 करोड़ रुपये से अधिक की बकाया राशि अथवा बैंक कर्ज की वापसी नहीं करने वालों, जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले कर्जदारों और जिनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है उन पर लागू होगा।
  • विधेयक में यह भी प्रावधान है कि ऐसे भगोड़े आर्थिक अपराधी की संपत्ति को उसके दोषी ठहराये जाने से पहले ही जब्त किया जा सकेगा और उसे बेचकर कर्ज देने वाले बैंक का कर्ज चुकाया जाएगा।
  • इस विधेयक के माध्यम से विदेशों में मौजूद संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान किया गया है हालांकि इसके लिए संबंधित देश के सहयोग की भी जरूरत होगी।

राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण को मंजूरी
इसके साथ ही नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी  यानि NFRA के गठन को भी मंजूरी दे दी गई। NFRA इंडिपेंडेंट रेग्युलेटर के रूप में काम करेगा। चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम के सेक्शन 132 के तहत चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और उनके फर्म की जांच को लेकर NFRA का कार्यक्षेत्र सूचीबद्ध और बड़ी गैर-सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू होगा।  यानि एनएफआरए के तहत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और उनकी फर्मों की सेक्शन 132 के तहत जांच होगी। एनएफआरए स्वायत्त नियामक सस्था के तौर पर काम करेगा।

संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा (Asset Quality Review)
मोदी सरकार ने कर्ज नहीं चुकाने वाले बड़े बकायेदारों की जिम्मेदारी तय की है और विभिन्न उपायों के जरिए बैंकों को मजबूत किया जा रहा है। नियमित रूप से कर्ज की वापसी नहीं करने के बावजूद 2008- 2014 के बीच बड़े कर्जदारों को बैंकों से कर्ज देने के लिये दबाव डाला जाता रहा। वास्तव में जो कर्ज NPA श्रेणी में जा चुके थे उन्हें नियमित कर्ज बनाये रखने के लिए कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन के तहत उनका पुनर्गठन किया गया। 2015 की शुरुआत में, वर्तमान सरकार ने एसेट क्वालिटी रिव्यू (एक्यूआर) के बाद एनपीए की समस्या को मानते हुए वर्गीकृत किया।

इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड
इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड 2016 (आईबीसी) के कानून बन जाने से दिवालिया कंपनियों के प्रोमोटर्स की मुश्किलें बढ़ गई हैं और वे दोबारा कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं खरीद पा रहे हैं। बैंकरप्सी कानून में होने वाले बदलाव से सरकारी बैंकों को बड़ा फायदा हो रहा है। मोदी सरकार ने 2016 में बैंकरप्सी को बैंकरप्सी कोड के तहत लाया है। सरकार ने कोड 1 अक्टूबर, 2017 को नियामक के रूप में भारतीय दिवालियापन और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) की स्थापना की थी।

जीएसटी से भ्रष्टाचार पर वार
देशभर में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) एक जुलाई से लागू हो चुका है। कर प्रणाली में बदलाव होने से एक तरफ मल्टीपल टैक्स के जंजाल से देशवासी मुक्त हुए। कर की गणना आसान हुआ। कर प्रणाली को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जा रहा है। जीएसटी के लागू होने से कच्चे बिल से खरीदारी करने में काफी कमी आई है। आने वाले दिनों में यह इतिहास हो जाएगा क्योंकि जीएसटी के लागू होने से उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक सामान पहुंचने में जितने मिडलमैन हैं। सबको जीएसटीएन में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य हो गया है। ऐसे में हर स्तर से पक्का बिल बनता है। पक्के बिल से खरीद-बिक्री होने से असली एकाउंट्स में ट्रांजेक्शन दिखता है। व्यापारी के एक्चुअल आमदनी और ग्राहकों द्वारा भुगतान किया हुआ टैक्स सब सरकार की जानकारी में रहता है। लेन-देन में हेरा-फेरी संभावना खत्म हुई।

दो लाख से अधिक फर्जी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द
नोटबंदी के बाद सरकार ने काला धन जमा करने के लिए बनाई गई तीन लाख से भी अधिक फर्जी कंपनियों का पता लगाया। इनमें से ज्यादातर कंपनियां, नेताओं और व्यापारियों के कालेधन को सफेद करने का काम करने में लगी थीं। सरकार की कार्रवाई में ऐसी दो लाख से ज्यादा कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा चुका है। नोटबंदी के दौरान इन फर्जी कंपनियों में जमा 65 अरब रुपये की पड़ताल की जा रही है। कार्रवाई के दौरान ऐसी कंपनियों का भी पता लगा, जहां एक एड्रेस पर ही 400 फर्जी कंपनियां चलाई जा रहीं थी।

डिजिटलीकरण और पारदर्शिता को बढ़ावा
सरकार ने देश में डिजिटलीकरण और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया है। सरकार ने डिजिटल क्रांति और डिजिटल भुगतान के लिए स्वाइप मशीन, पीओसी मशीन, पेटीएम और भीम ऐप जैसे सरल उपायों को अपनाया है। जनता भी सहजता के साथ इसे अपना रही है। इससे देश में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन बढ़ा है। डिजिटल लेनदेन में वृद्धि के फलस्वरूप इससे शासन-प्रशासन, नौकरशाही में पारदर्शिता आई है और नागरिकों में भी जागरुकता बढ़ी है। 

पीएमजीकेवाई के अंतर्गत कालेधन की घोषणा
नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काले धन रखने वालों को एक आखिरी मौका देते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) दिसंबर 2016 में लॉन्च की गई थी। इसमें कालाधन रखने वालों को टैक्स और 50 प्रतिशत जुर्माना देकर पाक-साफ होने का मौका दिया गया। साथ ही कुल अघोषित आय का 25 प्रतिशत ऐसे खाते में चार साल तक रखना होता है, जिसमें कोई ब्याज नहीं मिलता। नोटबंदी के बाद अघोषित आय के खुलासे में तेजी आई है। अभी तक 21,000 लोगों ने 4,900 करोड़ रुपये के कालेधन की घोषणा की है।

नोटबंदी से पहले आईडीएस स्कीम  
कालेधन पर नियंत्रण करने के लिए मोदी सरकार ने नोटबंदी से पहले ही सभी कारोबारियों और उद्योगपतियों को अपना काला धन घोषित करने का ऑफर आईडीएस स्कीम के तहत दिया था। इस योजना के तहत लोग अपना सारा काला धन सार्वजनिक करके 25 प्रतिशत टैक्स और जुर्माने का भुगतान करके कार्रवाई से बच सकते थे। इसके तहत 65,000 करोड़ रुपये का कालाधन उजागर हुआ था।

केंद्र सरकार की ओर से भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए एक के बाद एक कई निर्णय लिए गये हैं। 

जन धन योजना- इसके तहत गरीबों के लिए अब तक लगभग 31 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं। सरकारी योजनाओं में सब्सिडी बिचौलियों के हाथों से दिये जाने के बजाय सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंचने लगी है।

कर बचाने में मददगार देशों के साथ कर संधियों में संशोधन मॉरीशस, स्विटजरलैंड, सऊदी अरब, कुवैत आदि देशों के साथ कर संबंधी समझौता करके सूचनाओं को प्राप्त करने का रास्ता सुगम कर लिया गया है।

नोटबंदी- कालेधन पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के बाद सबसे बड़ा कदम 08 नवंबर 2016 को उठाया। नोटबंदी के जरिए कालेधन के स्रोतों का पता लगा। लगभग तीन लाख ऐसी शेल कंपनियों का पता चला जो कालेधन में कारोबार करती थी। इनमें से लगभग दो लाख कंपनियों और उनके 1 लाख से अधिक निदेशकों की पहचान करके कार्रवाई की जा रही है।

• फर्जी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई- सीबीआई ने छद्म कंपनियों के माध्यम से कालेधन को सफेद करने वाले कई गिरोहों का भंडाफोड़ किया है। देश में करीब तीन लाख ऐसी कंपनियां हैं, जिन्होंने अपनी आय-व्यय का कोई ब्योरा नहीं दिया है। इनमें से ज्यादातर कंपनियां नेताओं और व्यापारियों के कालेधन को सफेद करने का काम करती हैं।

• रियल एस्टेट कारोबार में 20,000 रुपये से अधिक कैश में लेनदेन पर जुर्माना- रियल एस्टेट में कालेधन का निवेश सबसे अधिक होता था। पहले की सरकारें इसके बारे में जानती थीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं करती थीं। इस कानून के लागू होते ही में रियल एस्टेट में लगने वाले कालेधन पर रोक लग गई।

• राजनीतिक चंदा- राजनीतिक दलों को 2,000 रुपये से ज्यादा कैश में चंदा देने पर पाबंदी। इसके लिए इलेक्टोरल बॉन्ड लाने का ऐलान किया गया।

• स्रोत पर कर संग्रह- 2 लाख रुपये से अधिक के कैश लेनदेन पर रोक लगा दी गई है। इससे ऊपर के लेनदेन चेक, ड्रॉफ्ट या ऑनलाइन ही हो सकते हैं।

• ‘आधार’ को पैन से जोड़ा- कालेधन पर लगाम लगाने के लिए ये एक बहुत ही अचूक कदम है। ये निर्णय छोटे स्तर के भ्रष्टाचारों पर भी नकेल कसने में काफी कारगर साबित हो रहा है।

• सब्सिडी में भ्रष्टाचार पर नकेल- गैस सब्सिडी को सीधे बैंक खाते में देकर, मोदी सरकार ने हजारों करोड़ों रुपये के घोटाले को खत्म कर दिया। इसी तरह राशन कार्ड पर मिलने वाली खाद्य सब्सिडी को भी 30 जून 2017 के बाद से सीधे खाते में देकर हर साल 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत की जा रही है। इससे निचले स्तर पर चल रहे भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म करने में कामयाबी मिली है।

• ऑनलाइन सरकारी खरीद- मोदी सरकार ने सरकारी विभागों में सामानों की खरीद के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया लागू कर दी गई है। इसकी वजह से पारर्दशिता बढ़ी है और खरीद में होने वाले घोटालों में रोक लगी है।

• प्राकृतिक संसाधानों की ऑनलाइन नीलामी- मोदी सरकार ने सभी प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसकी वजह से पारदर्शिता बढ़ी है और घोटाले रुके हैं। यूपीए सरकार के दौरान हुए कोयला, स्पेक्ट्रम नीलामी जैसे घोटालों में देश का इतना खजाना लूट लिया गया था कि देश के सात आठ शहरों के लिए बुलेट ट्रेन चलवायी जा सकती थी।

• आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की जियोटैगिंग- सड़कों, शौचालयों, भवनों, या ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले सभी निर्माण की जियोटैगिंग कर दी गई है। इसकी वजह से धन के खर्च पर पूरी निगरानी रखी जा रही है। 

इन कदमों के साथ ही सरकार ने दशकों से चली आ रही लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में लिप्त कार्यसंस्कृति को बदलने का काम किया। सरकारी योजनाओं में दूरदर्शिता और समयबद्धता के साथ पारदर्शिता भी स्पष्ट दिखने लगी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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