Home समाचार NDTV छापा : ‘बेईमानों’ पर कार्रवाई मीडिया पर हमला कैसे?

NDTV छापा : ‘बेईमानों’ पर कार्रवाई मीडिया पर हमला कैसे?

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भारत में हर दिन पुलिस, सीबीआई, ईडी, आईटी जैसी संस्थाएं कहीं न कहीं छापा मारती हैं। कहीं क्राइम तो कहीं वित्तीय अनियमितता या फिर कहीं राष्ट्रद्रोह का मामला होता है। लेकिन बीते पांच जून को एनडीटीवी के एक प्रमोटर के ठिकानों पर छापे ने अचानक राजनीतिक हलचल बढ़ा दी। छापा एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और राधिका रॉय की अथाह संपत्ति की जांच के लिए पड़ा। इसे कुछ चुनिंदा राजनीतिक दलों ने आपातकाल और लोकतंत्र पर हमला बताते हुए विरोध की आवाज दबाने की कोशिश करार दिया। वहीं पत्रकारों का एक खास वर्ग भी इस कार्रवाई के विरोध में झंडा बुलंद खड़ा करने में लग गया। जाहिर है मीडिया हाउस के मालिक के घर पर छापा पड़ा तो सवाल उठाए जा सकते हैं। लेकिन इन सवालों की आड़ में क्या कोई गुनाह छिप सकता है क्या?

सवाल ये उठ रहे हैं कि अगर कोई कानून तोड़ेगा तो क्या उस पर कार्रवाई नहीं होगी ? प्रणय रॉय के घर पर छापेमारी को NDTV पर छापेमारी क्यों बताया जा रहा है ? इसे मीडिया पर हमला क्यों कहा जा रहा है ? क्या मीडिया की आड़ में चल रहे खेल का पर्दाफाश नहीं होना चाहिए? भ्रष्टाचार करने वालों पर अगर कार्रवाई होती है तो चीख-पुकार क्यों ?

मीडिया का ‘दम्भ’ लोकतंत्र के लिए खतरा !
एनडीटीवी और कुछ तथाकथित पत्रकारों ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया, लेकिन क्यों? सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि अगर एनडीटीवी के मालिक ने कुछ वित्तीय गड़बड़ी की है तो उन्हें कानून की शरण में जाना चाहिए। क्या कोर्ट पर भी उन्हें यकीन नहीं? सवाल उठाने वाले ये क्यों नहीं भूल जाते हैं कि इसे क्यों न भारत में 15 लाख से अधिक कॉरपोरेट रजिस्टर्ड कम्पनियों में से एक माना जाए? ये क्यों नहीं मानते कि यह उसके घर पर छापा है जो ‘समाचार का व्यापार’ करता है? तो क्या तथाकथित पत्रकारों द्वारा इस छापे पर सवाल उठाना मीडिया की हेकड़ी नहीं बताता है? क्या ऐसे पत्रकार कानूनी सिस्टम को चुनौती देकर लोकतंत्र के लिए खतरे पैदा नहीं कर रहे हैं?

लालू प्रसाद जैसे नेताओं पर कार्रवाई क्यों?
कुछ पत्रकारों ने प्रणय रॉय और राधिका रॉय के ठिकानों पर छापेमारी को गलत कहा, इसे लोकतंत्र पर आघात बताया। लेकिन क्या उनकी इन दलीलों को लालू यादव जैसे नेताओं का हक नहीं बनता है कि वे भी अपने ऊपर पड़े छापों के लिए लोकतंत्र का आघात बताएं। क्योंकि वे भी तो विपक्ष में हैं… सरकार का विरोध करते हैं? क्या उन्हें भी राजदीप और तवलीन जैसे पत्रकार क्लीन चिट देंगे? जाहिर है हमारा सवाल यही है कि अगर आपने मीडिया हाउस व्यवसाय के लिए खोला है तो आपको कानून के सिस्टम के तहत ही रहना होगा… अगर नहीं मानते तो लालू यादव के घर पर सीबाआई का छापा भी गलत है?

किसने क्या कहा और क्यों कहा?
एनडीटीवी के मालिक के आवास पर छापा क्या पड़ा कोहराम मच गया। बड़े से बड़े पत्रकारों-नेताओं ने बिना तह में जाए ही प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दीं। हम आपको बताते हैं कि किन राजनेताओं ने क्या कहा-

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, ”यह छापेमारी सरकार की बेशर्मी दिखाती है। कल हम बेशर्मी देख रहे थे। लोग हजारों करोड़ रुपये लेकर भाग गए हैं, ऐसे में सरकार 50 करोड़ रुपये के मामले से इतना क्यों परेशान है?”

अब गुलाम नबी आजाद साहब को भला कौन समझा सकता है कि एनडीटीवी के मालिक और उसके प्रमोटरों से कांग्रेस का क्या रिश्ता है। हर एक घटना पर कांग्रेस का बचाव करना कांग्रेस की रणनीति रही है। आपको तब यकीन जरूर हो जाएगा जब आप रविशंकर प्रसाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस का ये वीडियो देखेंगे… इसमें एनडीटीवी के एंकर कह रहे हैं कि इस मामले में कांग्रेस को डिफेंड करना है। जाहिर है उस कांग्रेस को भला दर्द क्यों नहीं होगा।

केजरीवाल ने कहा- ”ये स्वतंत्र और सत्ता विरोधी आवाजों को बंद कर देने की कोशिश है।”

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर उन्हीं के सहयोगियों और एक मंत्री ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। रिश्वतखोरी और भाई-भतीजावाद के आरोपों से जूझ रहे केजरीवाल के बचाव में एनडीटीवी काम करती रही है। ऐसे में केजरीवाल का उनको समर्थन करना समझा जा सकता है।

लालू प्रसाद ने कहा- ”जो नेता, पत्रकार और मीडिया घराना उनके नाम का बाजा नहीं बजाएगा। सरकारी भोंपू नहीं बनेगा उसपर ये केस, मुकदमे और छापे डलवाएंगे। यही आपातकाल है।”

900 करोड़ रुपये की ‘चारा चोरी’ चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता सीबाआई की ऐसी कार्रवाई का विरोध करेंगे तो जाहिर है कि प्रणय रॉय और लालू प्रसाद में कोई अंतर भी रह जाएगा। मगर एनडीटीवी के पैरोकार लालू प्रसाद का समर्थन पाकर प्रसन्न हैं।

ममता बनर्जी ने लिखा- ”ये परेशान करने वाला ट्रेंड है।”

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का एनडीटीवी प्रेम क्यों न जाहिर हो भला! दरअसल ममता बनर्जी स्वयं शारदा-नारदा घोटाले में फंसी हुई हैं। उनके सहयोगियों से सीबीआई पूछताछ कर रही है। ममता बनर्जी के भी इस जांच की जद में आने की संभावना है सो वो पहले से सीबीआई कार्रवाई को परेशान करने वाला कह रही हैं।

इसे अभिव्यक्ति की आजादी का मामला मानते हुए कई मीडिया संगठनों ने भी आपत्ति जताई और मीडिया हाउस पर छापे को गलत करार दे दिया। लेकिन निंदा करने में वे मामले की बारीकियों में फर्क नहीं कर पाए। दरअसल ये छापा एनडीटीवी के प्रमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के ठिकानों पर पड़ा न कि किसी मीडिया हाउस पर।

ये है मामला
दरअसल इस मामले की जड़ में वो लोन हैं जो प्रणय रॉय ने वर्ष 2008 में लिए थे। उन्होंने एक नई कंपनी-आरआरपीआर होल्डिंग्ज प्राइवेट लिमिटेड बनाई और ‘इंडियाबुल्स’ नाम की कंपनी से 501 करोड़ रुपए का कर्ज लिया। आरोप हैं कि फिर इसी कंपनी के जरिये उन्होंने एनडीटीवी के बहुत सारे शेयरों को खरीदा। शिकायतकर्ता के आरोपों के अनुसार ‘इंडियाबुल्स’ के कर्ज को चुकाने के लिए ‘आरआरपीआर होल्डिंग्ज प्राइवेट लिमिटेड’ ने आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रुपए का ऋण लिया जिसकी ब्याज दर 19 प्रतिशत तय की गई। यह बात अक्टूबर 2008 की है।
इसके बाद अगस्त 2009 में ‘आरआरपीआर होल्डिंग्ज प्राइवेट लिमिटेड’ को एक और कंपनी – विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड – मिल गई जिसने आईसीआईसीआई का लोन चुकाने के लिए सहमति भर ली।
सीबीआई की प्राथमिकी का आधार वो शिकायत है जो प्रणय रॉय के सहयोगी रहे संजय दत्त ने की है। इसमें कहा गया है कि ‘आरआरपीआर होल्डिंग्ज प्राइवेट लिमिटेड’ की ‘बैलेंसशीट’ के अनुसार उसे आईसीआईसीआई बैंक को 396,42,58,871 रुपए चुकाने थे। लेकिन उसे 350 करोड़ रुपए ही चुकाए गए।

बैंक को 48 करोड़ के नुकसान पहुंचाने का आरोप
आरोप है कि आईसीआईसी बैंक का लोन भी प्रणय रॉय और उनकी कंपनी नहीं चुका रहे थे, जिसके बाद बैंक ने उनसे एकमुश्त लोन चुकाने का फैसला किया और बैंक ने अपनी ब्याज दर 19 प्रतिशत से घटा कर 9 प्रतिशत कर दी, जिससे बैंक को 48 करोड़ का नुकसान हुआ। इस मामले में बैंक के भी कुछ अधिकारियों की प्रणय रॉय को फायदा पहुंचाने के आरोप की भी जांच की जा रही है।

बहरहाल एनडीटीवी के प्रमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के ठिकानों पर सीबीआई के छापे के बाद मीडिया का एक वर्ग मोदी सरकार पर हमलावर है, लेकिन सच्चाई ये है कि एनडीटीवी के खिलाफ जांच तो यूपीए सरकार में शुरू हो गई थी। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के कार्यकाल में आयकर विभाग ने 21 फरवरी 2014 को पहला आदेश भी जारी कर दिया था। रिपोर्ट तो ये भी है कि प्रणय रॉय, राधिका रॉय की मालिकाना वाली कंपनी के खिलाफ आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने 2011-12 में ही जांच शुरू कर दी थी। इनपर विदेशी मुद्रा नियमों के उल्लंघन और कर चोरी का आरोप था।

कालाधन को सफेद करने का आरोप
आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के अनुसार एनडीटीवी ने ब्रिटेन, मॉरीशस, नीदरलैंड, स्वीडन और संयुक्त अरब अमीरात में शैल (मुखौटा) कंपनियां बनाकर 1,100 करोड़ रुपये की मनी लांड्रिंग की। इसके साथ ही एनडीटीवी समूह की नीदरलैंड स्थित शेल कंपनियों में 642 करोड़ रुपये आए और इस पर टैक्स नहीं दिया गया। एनडीटीवी इस मामले को लेकर विवाद समाधान पैनल (डीआरपी) में गया, लेकिन वहां एनडीटीवी की अपील खारिज हो गई। इसके बाद आयकर विभाग ने 21 फरवरी, 2014 को एनडीटीवी को टैक्स जमा करने का आदेश दिया।

शेयर खरीद में भी किया फर्जीवाड़ा
एनडीटीवी के शेयर की कीमत 140 रुपये थी जबकि उसके प्रमोटरों यानी राधिका रॉय, प्रणय रॉय और उनकी कंपनी ने यह शेयर मात्र 4 रुपये की दर से खरीदा।

ऋण राशि में से 91 करोड़ रुपये डाइवर्ट करने आरोप

आरोप है कि आरआरपीआर (राधिका रॉय और प्रणय रॉय की कंपनी) ने आईसीआईसीआई बैंक से जो लोन लिया था, उसमें से 91 करोड़ रुपये डॉ. प्रणय रॉय और राधिका रॉय को डाइवर्ट किए गए जो लोन एग्रीमेंट के प्रावधानों के विरुद्ध थे। दरअसल आईसीआईसीआई बैंक ने आरआरपीआर को यह लोन कॉरपोरेट खर्च के लिए दिया था।

वित्तीय गड़बड़ी, फर्जीवाड़ा, हवाला, इनकम टैक्स चोरी जैसै मामलों में फंसे एनडीटीवी चैनल का दावा है कि उसने हमेशा निष्पक्ष पत्रकारिता की है। लेकिन आपको ये जानकर हैरत जरूर होगी कि शुचिता का दंभ भरने वाला ये मीडिया हाउस किस तरह सत्ता (यूपीए) के इशारे पर काम करता रहा है।

संजय बारू की इस किताब ने एनडीटीवी के उस असली चेहरे की एक झलक दी है, जिसके बावजूद ये चैनल और उसकी तनख्वाह पर पल रहे कुछ कथित पत्रकार दावा कर रहे हैं कि वो सबसे निष्पक्ष और सरकारों से टकराव लेने वाले और जनता की आवाज उठाने वाले चैनल हैं।

संजय बारू ने किया खुलासा
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब ‘दी एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में बताया है कि 2005 में एनडीटीवी पर खबर चली कि मनमोहन सिंह अपनी पहली सरकार के पहले साल पर मंत्रियों के कामकाज का मूल्यांकन कर रहे हैं। इस खबर के मुताबिक विदेश मंत्री नटवर सिंह सबसे फिसड्डी मंत्री रहे हैं। संजय बारू ने इस खबर के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी दी, तो वो बुरी तरह भड़क गए। मनमोहन सिंह के कहने पर संजय बारू ने प्रणय रॉय को फोन किया और इससे पहले कि वो बात शुरू करते मनमोहन सिंह ने फोन अपने हाथ में ले लिया और तेज आवाज में डांटना शुरू कर दिया। संजय बारू ने लिखा है कि ऐसा लग रहा था कि कोई स्कूल टीचर स्टूडेंट को डांट रहा है। फटकार का असर ये हुआ कि एनडीटीवी ने वो खबर चैनल से पूरी तरह हटा ली। (किताब का वो हिस्सा तस्वीर में)

सत्ता के ठेंगे पर पत्रकारिता
संजय बारू के अनुसार एनडीटीवी की एडिटोरियल टीम के एक सदस्य ने बताया कि ”सब कुछ कर्फ्यू की तरह हुआ। हम लोग कार्यक्रम की आखिरी तैयारियों में जुटे थे, लेकिन बिना कोई वजह बताए काम रुकवा दिया गया।” बहरहाल एक सच तो ये भी है कि अच्छे और बुरे मंत्रियों की ये लिस्ट सरकार को समर्थन दे रही सीपीएम की तरफ से तैयार की गई थी।

संजय बारू ने इसी किताब में खुलासा किया है कि चूंकि एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और राधिका रॉय के सीपीएम नेता वृंदा करात और प्रकाश करात से पारिवारिक रिश्ते थे इसलिए पार्टी से जुड़ी सारी खबरें एनडीटीवी पर आया करती थीं और सरकार इन पर भरोसा भी किया करती थी।

जाहिर है संजय बारू की इस किताब ने एनडीटीवी के उस असली चेहरे की एक झलक दी है, जिसके बावजूद ये चैनल और उसकी तनख्वाह पर पल रहे कुछ कथित पत्रकार दावा कर रहे हैं कि वो सबसे निष्पक्ष और सरकारों से टकराव लेने वाले और जनता की आवाज उठाने वाले चैनल हैं।

बहरहाल सच दिखाते हैं हम का दावा करने वाले पत्रकारिता का एक ही उसूल होना चाहिए। न वे सत्ता के पक्ष में खड़े दिखे, न सत्ता से अकारण द्वेष में दिखे। उसे सिर्फ और सिर्फ जनता के साथ खड़े दिखना चाहिए। अधिकारियों और नेताओं के ऊपर पड़े छापों को जोर शोर से छापने और दिखाने वाले और इन खबरों को खुश होकर पढ़ते देखने वालों को आज मीडिया हाउस में छापामारी क्यों आश्चर्यचकित कर रही है।
जांच एजेंसियां अधिकारियों और नेताओं के यहां छापा मारे, तो सब ठीक, लेकिन, एनडीटीवी के यहां छापा आजादी पर खतरा कैसे? चोरी पकड़ ली जाए यह दमनात्मक कार्रवाई कैसे? इसमें कैसी सहानुभूति, और क्यों? बेईमानी तो बेईमानी ही है!

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