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बैकफुट पर चन्नी सरकार : 36 हजार कर्मचारियों को रेगुलर करने के मुद्दे पर गवर्नर ने खोली चन्नी के झूठ की पोल, मंत्रियों के साथ गवर्नर हाउस पर धरने से पीछे हटे CM Channi

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बाद अब पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और गवर्नर बीएल पुरोहित आमने-सामने आ गए हैं। गलती तो खुद सीएम चन्नी की थी और वह राज्यपाल पर अनर्गल आरोप लगा रहे थे। राज्यपाल बीएल पुरोहित के द्वारा पोल खोलने के बाद  चरणजीत चन्नी सरकार बैकफुट पर आ गई है। पंजाब में 36 हजार कर्मचारियों को पक्का करने के मुद्दे पर राज्य की चन्नी सरकार ने अफसरों और मंत्रियों को साथ लेकर गवर्नर के पास जाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन अब ‘आईना’ देख लेने के बाद सरकार ने अपने पांव वापस खींच लिए हैं। भाजपा के दवाब वाली मुख्यमंत्री चन्नी की चाल फ्लॉप हो गई है।

सीएम चन्नी का आरोप- राजनीतिक दबाव में राज्यपाल ने रोकी फाइल
पंजाब में 36 हजार कर्मचारियों को पक्का करने के मुद्दे पर राज्य की चन्नी सरकार बैकफुट पर आ गई है। बता दें कि सीएम चन्नी ने गवर्नर बीएल पुरोहित पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने भाजपा के दबाव में कर्मचारियों को पक्का करने की फाइल रोकी है। पंजाब में जल्द चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में CM चन्नी इस फैसले को लागू करवाकर चुनावी लाभ लेना चाहते हैं। इसी वजह से 3 दिन पहले सीएम चन्नी ने चेतावनी तक दे दी थी कि अगर गवर्नर ने फाइल क्लियर नहीं की तो वह मंत्रियों समेत राजभवन के बाहर धरने पर बैठ जाएंगे।

पंजाब के 36 हजार कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का प्रस्ताव
मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी ने कहा था कि उनकी सरकार ने 36 हजार कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का कानून पास किया। यह फाइल गवर्नर ने रोक ली। वह खुद भी मंत्रियों समेत मिलकर आए। 2 बार उनके चीफ सेक्रेटरी जा आए, लेकिन गवर्नर ने फाइल पास नहीं की। सीएम ने कहा कि पहले उन्हें लगता था कि गवर्नर व्यस्त हैं, लेकिन अब स्पष्ट है कि राजनीतिक कारणों से फाइल रोकी गई। गवर्नर पर भाजपा का दबाव है।राज्यपाल पुरोहित ने सीएम चन्नी के झूठ की खोली पोल
राज्य की चन्नी सरकार ने अफसरों और मंत्रियों को साथ लेकर गवर्नर के पास जाने की तैयारी कर ली थी। लेकिन राज्यपाल बीएल पुरोहित ने सीएम चन्नी के झूठ की पोल खोल दी। पोल खुलने के बाद CM चरणजीत चन्नी मंत्रियों समेत राज्यपाल से मिलने नहीं गए। जबकि पहले सरकार ने अफसरों और मंत्रियों को साथ लेकर जाने की तैयारी कर ली थी। दरअसल, गवर्नर ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने फाइल रोकी नहीं है, बल्कि उसमें कई खामियां हैं। इन खामियों के बारे में जानकारी के लिए फाइल सीएम को लौटा दी थी।

गवर्नर ने 31 दिसंबर को ही वापस कर दी थी फाइल
इसके बाद गवर्नर बीएल पुरोहित ने कहा कि CM चरणजीत चन्नी की बातें तथ्यात्मक तौर पर गलत हैं। कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने की फाइल 6 सवालों के साथ सीएम को लौटा दी गई थी, जिसे 31 दिसंबर को सीएम ऑफिस ने रिसीव भी किया। जिसका उत्तर सरकार ने अभी तक नहीं दिया। उन्होंने सलाह दी कि सीएम पहले सवालों के जवाब दें, उसके बाद राज्यपाल सचिवालय में फिर इनकी जांच की जाएगी।

पहले पूछे गए छह सवालों का जवाब दे राज्य सरकार
गवर्नर बीएल पुरोहित ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने 11 नवंबर को विधानसभा में यह बिल पास किया। जिसकी फाइल 20 दिन बाद 1 दिसंबर को गवर्नर को भेजी गई। दिसंबर में राज्यपाल दूसरे प्रदेशों के दौरे पर थे। 21 दिसंबर को वह वापस लौटे और 23 दिसंबर को सीएम चन्नी ने उनसे मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने फाइल तलब की तो इसमें कई खामियां नजर आईं। इन छह खामियों के बारे में जानकारी के लिए फाइल सीएम कार्यालत को 31 दिसंबर को ही लौटा दी थी। सीएम चन्नी इनका जवाब देने के बजाए सियासत कर रहे हैं।

इससे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी आमने-सामने आ गए थे। सीएम ने राज्यपाल तो धमकी भरी चिट्ठी भेजी, जबकि कोश्यारी संवैधानिक पद पर हैं। राज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री के पत्र की भाषा को देखकर उन्हें दुख हुआ है। सीएम उद्धव ठाकरे के इस रवैये को देखते हुए माना जा रहा है कि सरकार बनाम राज्यपाल की यह लड़ाई और बढ़ सकती है। महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और सीएम उद्धव ठाकरे के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है।

सरकार की अनुमति पर गवर्नर ने कहा, कानूनी सलाह लेकर उत्तर देंगे
नाना पटोले द्वारा इस्तीफा देने के बाद विधानसभा अध्यक्ष का पद इस साल फरवरी से ही खाली है। महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव करवाने की मांग को लेकर एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की थी। प्रतिनिधिमंडल ने इस दौरान उन्हें सीएम उद्धव ठाकरे का एक पत्र सौंपा था। इसमें सत्र के आखिरी दो दिनों में अध्यक्ष पद का चुनाव कराने की स्वीकृति मांगी गई थी। जिस पर राज्यपाल कोश्यारी ने कानूनी सलाह लेकर उत्तर देने की बात कही। 

मुख्यमंत्री उद्धव के दूसरे पत्र की भाषा धमकी भरी, इससे दुख पहुंचा
बताते हैं कि राज्यपाल का कोई जवाब आने से पहले ही सीएम ने एक और पत्र राज्यपाल को भेजा। इसी पत्र की भाषा पर अब राज्यपाल की ओर से आपत्ति जताई गई है। उन्होंने पत्र की भाषा को धमकी भरा होने की बात कही है। राज्यपाल ने यह भी कहा कि पत्र की भाषा देख उन्हें दुख पहुंचा है। राज्यपाल के ताजा रुख के बाद माना जा रहा है कि सरकार बनाम राज्यपाल की यह लड़ाई और बढ़ सकती है।

राज्यपाल कोश्यारी ने बंद लिफाफे में भेजा अपना जवाब
इस बीच राज्यपाल कोश्यारी ने मुख्यमंत्री को एक बंद लिफाफे में अपना जवाब भेजा। इसी में राज्यपाल ने नाराजगी जताई है। राज्यपाल की नाराजगी के बाद गतिविधियां तेजी से बदलीं। सत्ताधारी नेताओं ने इस पर मुख्यमंत्री से संपर्क कर चर्चा की। इसके बाद अजित पवार राज्यपाल के मत के विरोध में जाकर चुनाव करवाने को तैयार नहीं हो रहे थे। उनकी राय थी कि इससे संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। राज्यपाल की ओर से तीव्र प्रतिक्रियाएं सामने आएंगी। यह राज्य सरकार द्वारा अनावश्यक रूप से एक नए संकट को निमंत्रण देने जैसा होगा।

संवैधानिक संकट और राष्ट्रपति शासन का पैदा हो गया था डर
महाविकास अघाड़ी के कुछ नेताओं को इस बात का डर पैदा हो गया कि राज्यपाल की सहमति के बिना अगर विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव करवाया जाता है, तो राज्यपाल निश्चय ही कोई बड़ा कदम उठाएंगे। ऐसे में राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा सकता है। इसलिए संवैधानिक संकट का सवाल और राष्ट्रपति शासन का डर देखते हुए महाविकास आघाडी सरकार ने दो कदम पीछे खींच लेने में ही भलाई समझी।

शरद पवार की सलाह के बाद चुनाव न कराने का फैसला
इसके बाद एनसीपी चीफ शरद पवार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फोन किया। उन्होंने बताया कि वे इस बारे में कानूनी विमर्श कर चुके हैं और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि चुनाव नहीं करवाया जाए। पवार की इस सलाह के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव ना करवाने का फैसला ले लिया।

उद्धवकाल में  किसानों की बदहाली, खुदकुशी करने वाले किसान देश में सबसे ज्यादा

महाराष्ट्र में उद्धव सरकार के कार्यकाल में किसानों की आत्महत्या करने का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा। शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी सरकार के दो साल के कार्यकाल मे ही छह हजार से ज्यादा किसानों और कृषि मजदूरों को सरकार की उपेक्षा के चलते मौत का गले लगाना पड़ा। भारत में आत्महत्या पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी बताते हैं कि महाराष्ट्र में खुदकुशी करने वाले किसानों की संख्या देशभर में सबसे ज्यादा है। इसके बावजूद उद्धव सरकार कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही है।

पिछली बीजेपी सरकार ने किया था किसानों का 18 हजार करोड़ कर्ज माफ
जानकारों का कहना है कि प्राकृतिक आपदा से फसल की बर्बादी और उपज की उचित कीमत नहीं मिलने के किसान परेशान हैं। खेती में नुकसान के बाद उन्हें समय पर सरकारी मदद या फसल बीमा सुरक्षा की राशि नहीं मिलती है। इसके चलते अन्नदाता खुदकुशी के लिए मजबूर हैं। 2017 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 हजार करोड़ रुपए का कृषि कर्ज माफ किया था।

 

 

 

 

 

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