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गुजरात में आजादी के बाद पहली बार ऐसी शर्मनाक स्थिति में कांग्रेस, राज्य में कांग्रेस का ऐसा सूपड़ासाफ कि नेता विपक्ष पद मिलना मुश्किल, लोकसभा जैसी दयनीय स्थिति बनी

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की यात्रा के बीच गुजरात में कांग्रेस की दिल्ली जैसी ही शर्मनाक स्थिति बन गई है। जब से गुजरात राज्य बना है, तब से लेकर अब तक कांग्रेस की ऐसी दयनीय स्थिति कभी नहीं बनी। गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की एतिहासिक जीत ने प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का ऐसा बुरा हाल कर दिया है, जैसा पहले कभी देखने में नहीं आया। ढाई दशक से ज्यादा समय से राज्य की सत्ता से बेदखल कांग्रेस के लिए इस बार तो नेता विपक्ष का पद मिलना तक संभव नहीं रह गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी इस बार 17 सीटों तक सिमट गई है। इसके चलते 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा में नियमानुसार नेता विपक्ष का पद खाली ही रह जाएगा। पिछले विधानसभा चुनाव में उसने 77 सीटें जीतीं थीं। गुजरात में विपक्ष में रहते हुए इतनी सीटें गंवाने वाली भी कांग्रेस पहली पार्टी बन गई है।

गुजरात में नेता विपक्ष के पद के लिए कम से कम 19 सीटें जरूरी
नियमों की बात करें तो संसद या विधानसभा में नेता विपक्ष का पद उसी दल के लीडर को मिल सकता है, जिसके सदस्यों की संख्या उस सदन की कुल संख्या के कम से कम 10 फीसदी के बराबर हो। गुजरात विधानसभा में कुल 182 विधायक हैं। इस हिसाब से नेता विपक्ष का पद हासिल करने के लिए उस पार्टी के कम से कम 19 विधायक होने चाहिए। लेकिन सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के बावजूद कांग्रेस के पास सिर्फ 17 सीटें हैं, जो नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए काफी नहीं हैं। सदन में नेता विपक्ष को कैबिनेट मंत्री के बराबर का दर्जा और सुविधाएं दी जाती हैं। साथ ही, विधानसभा में बैठने के लिए विपक्ष की कतार में सबसे आगे की सीट भी अलॉट की जाती है।

पीएम मोदी की लहर के बीच 2014 और 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस का यही हाल 
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की ऐसी हालत पहली बार हो रही है। कांग्रेस ऐसी स्थिति का सामना पहले भी कर चुकी है। गुजरात में तो नहीं, लेकिन देश की संसद में कांग्रेस को पिछले दो चुनावों से ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुनामी लहर के बीच पहले 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के इतने सांसद भी चुनकर नहीं आ सके कि नेता विपक्ष का पद उसे दिया जा सके। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिर्फ 44 सांसद चुनकर आए, जबकि लोकसभा में कुल 543 सदस्य होते हैं। यानी नेता विपक्ष का पद हासिल करने के लिए 55 सांसद होने चाहिए थे, जो कांग्रेस जीत ही नहीं पाई।

मोदी सरकार ने पैनल में विशेष आमंत्रित के तौर पर बुलाया, खड़गे ने नहीं निभाई जवाबदेही
तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने नियमों के तहत सदन में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता विपक्ष का पद के योग्य नहीं पाया। संसद में नेता विपक्ष का न होना सिर्फ कांग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विपक्ष के लिए शर्मनाक है। इससे यह भी पता चलता है कि भारत की जनता उन्हें कितना नापसंद करती है। बेहद कम सीटें लाने के कारण कांग्रेस के हाथ से नेता विपक्ष बनने का मौका निकल गया। दरअसल, नेता विपक्ष को कई संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के बनाए जाने वाले पैनल में शामिल होकर अहम भूमिका निभानी होती है। कांग्रेस के 55 सीटें न जीत पाने बावजूद मोदी सरकार ने संवैधानिक नियुक्तियों के लिए बनाए जाने वाले पैनल में खड़गे को विशेष आमंत्रित के तौर पर बुलाया। जनात के प्रति जवाबदेही की भूमिका का निर्वाह न करते हुए खड़गे बैठकों में नहीं गए।

कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के लिए राहुल भी जिम्मेदार, वो भारत देखो में रहे मगन
अब उन्हीं मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए गुजरात में पार्टी को नेता विपक्ष का पद नहीं मिल रहा है। गुजरात में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के लिए हाईकमान के साथ-साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। दलअसल, गुजरात में चुनाव के समय राहुल गांधी अपनी भारत देखो यात्रा में मगन रहे है। गुजरात की राजनीतिक बिसात पर शॉट जमाने के बजाए वे सड़कों पर बच्चों के साथ बेडमिंटन, क्रिकेट और फुटबाल खेलने, नौकायन और मनोरंजन करने में मस्त रहे। इसके चलते गुजरात में राजनीति के खेल में वे और उनकी पार्टी कांग्रेस बुरी तरह पिछड़कर ऐतिहासिक हार को झेल रही है। उधर भूपेंद्र पटेल ने दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ सोमवार को ली है।

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