मार्च में शुरू हुए कोरोना संकट के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो सुस्ती के बादल मंडरा रहे थे वो अब तेजी से छंटने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में तमाम सेक्टर में तेज गति हो रहे सुधार के कारण अब भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर पुराना मुकाम हासिल करने की तरफ बढ़ रही है। बताया जा रहा है कि अनलॉक में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बाजार की मांग बढ़ रही है। और पांच प्रमुख सेक्टरों एफएमसीजी, कृषि, फार्मा, आईटी और ऑटो सेक्टर में तेजी दिखाई दे रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लॉकडाउन के कारण रोजमर्रा के उपभोक्ता उत्पादों (एफएमसीजी) का उपभोग पिछले दो साल के उच्च स्तर पर रहा। अप्रैल-जून तिमाही में एफएमसीजी उद्योग ने मूल्य के आधार पर 8.5 प्रतिशत, जबकि परिमाण के आधार 4.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। आने वाले त्योहारी सीजन में रोजमर्रा के सामानों में और तेजी आने की उम्मीद है। इसी तरह कृषि क्षेत्र ने कोरोना संकट के बीच देशभर में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता से भारतीय जीडीपी को बड़ा सहारा दिया है। अब तक बेहतर मानसून से सभी खरीफ फसलों का रकबा 104 फीसदी बढ़ा है। इससे फसलों की रिकॉर्ड पैदावार होने की उम्मीद है। ऐसा होने से किसानों आय में बढ़ोतरी और बाजार में मांग बढ़ाने का काम करेगा। कोरोना संकट ने कई सेक्टर को संकट में डाला है तो फॉर्मा सेक्टर (दवा उद्योग) और सूचान प्रौद्योगिकी (आईटी) को बढ़ावा देने का काम किया है। कोरोना संकट के बीच दवाओं पर खर्च में बढ़ोतरी और सोशल डिस्टेंसिंग के चलते डिजिटल अर्थव्यवस्था ने आईटी कंपनियों को बड़ी कमाई का मौका दिया है।
इसके अलावा भी तमाम ऐसे संकेत और पैरामीटर हैं, जो बता रहे हैं कि मोदी सरकार के प्रयासों से भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर बुलंदियों की तरफ बढ़ रही है।
कोरोना काल में भी अर्थव्यवस्था मजबूत, दुनिया में सबसे तेज रहेगी भारत की जीडीपी
कोरोना काल में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार कोरोना संकट काल में भारत में जीडीपी की रफ्तार तेज बनी रहेगी। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने जो दमदार कदम उठाए हैं, दूरगामी फैसले लिए हैं, उसने देश की अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक दी है। वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने कहा है कि देश के लिए यह क्षण हो-हल्ला करने का नहीं, बल्कि वुहान वायरस से रिकवरी में अपना योगदान देने का है। भारत की जीडीपी अभी भी चीन से ज्यादा है और हम सब मिलकर इसे और आगे ले जा सकते हैं।
Not the moment to whine and groan but to contribute our mite to post-#WuhanVirus pandemic recovery. We, the people, have a role too. #India GDP still ahead of #China , together we can take it higher. https://t.co/WP5aKXCLGp
— Kanchan Gupta (@KanchanGupta) August 22, 2020
ईपीएफओ में योगदान देने वाली कंपनियां बढ़ीं
ईपीएफओ में योगदान बढ़ने का मतलब होता है कि कंपनियां नए लोगों को नौकरी पर रख रही हैं, यानि कंपनियां वृद्धि करती है, तभी लोगों को रोजगार देती है। आंकड़ों के मुताबिक जुलाई के महीने में ईपीएफओ में योगदान देने वाली कंपनियों की संख्या में इजाफा हुआ है, जो इस बात का संकेत है कि कंपनयों की स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है। नियमों के मुताबिक 20 से अधिक कर्मचारी वाली कंपनियों को मूल वेतन का 12 फीसदी योगदान कर्मचारी के ईपीएफओ खाते में आशंदान के तौर पर करना पड़ता है। ईपीएफओ के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में व्यक्तिगत अंशधारकों की संख्या 3.8 करोड़ रह गई थी, जो अब अगस्त में बढ़कर 4.6 करोड़ पर पहुंच गई है।
मोबाइल कंपनियों ने निवेश और रोजगार के अवसर बढ़े
कोरोना काल में मोदी सरकार की पॉलिसी ने मोबाइल कंपनियों के लिए भारत में अवसरों के दरवाजे खोल दिए हैं। यही वजह है कि मेक इन इंडिया अभियान में शामिल होने के लिए नामी मोबाइल कंपनियों में निवेश करने और रोजगार देने की होड़ लग गई है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक दूरसंचार मंत्रालय को 22 मोबाइल कंपनियों ने आवेदन दिया है। इसके तहत तीन लाख प्रत्यक्ष और नौ लाख अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेंगे। सूत्रों के मुताबिक एप्पल के लिए फोन बनाने वाली ताइवान की व्रिस्टॉन ने बेंगलुरु स्थित कंपनी के नारासापुरा प्लांट में नए आईफोन का उत्पादन शुरू कर दिया है। इस प्लांट में कंपनी ने करीब 2,900 करोड़ रुपये का निवेश किया है। उसकी इस नए प्लांट में करीब 10 हजार कर्मचारियों को रखने की योजना है। इसी तरह अन्य कंपनयों ने भी नौकरियां देने की योजना बनाई है जिसके तहत साल के अंत तक कम से कम 50 हजार लोगों को नौकरियां मिलेंगी।
आईटी, दवा और सीमेंट कंपनियों में भी बढ़ोतरी दर्ज
इतना ही नहीं आईटी, दवा और सीमेंट सहित कुछ अन्य क्षेत्रों की कंपनियों के नतीजे अर्थव्यवस्था में रिकवरी का संकेत दिखा रहे हैं। बताया जा रहा है कि दवा और सीमेंट कंपनियों का मुनाफा 50 फीसदी तक बढ़ा है। आईटी, दवा और रियल एस्टेट में नौकरियों की मांग तेजी से बढ़ी है। विशेषज्ञों का कहना है कि रोजगार भी आर्थिक तेजी का संकेत देते हैं। पहली तिमाही में केमिकल कंपनियों का लाभ 60 फीसदी बढ़ा है, वहीं पहली तिमाही में सीमेंट कंपनियों का मुनाफा भी 50.4 फीसदी बढ़ा है। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना काल में सीमेंट क्षेत्र की वृद्धि चौंकाने वाली है और यह अर्थव्यवस्था में रिकवरी का मजबूत संकेत है।
निर्माण, कपड़ा, ई-कॉमर्स में तेज रिकवरी के संकेत
इसके साथ ही निर्माण, कपड़ा और ई-कॉमर्स सेक्टर की कंपनियों में भी तेज रिकवरी के संकेत मिले हैं। अर्थशात्रियों के मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुधार एक धीमी प्रक्रिया होती है और कंपनियों को कारोबार पटरी पर लाने में वक्त लगता है। हालांकि, इसके बाजवदू निर्माण, कपड़ा और ई-कॉमर्स में तेज रिकरवी एक अच्छा संकेत है। रियल एस्टेट और कपड़ा क्षेत्र में रिकवरी साफ दिख रही क्योंकि प्रवासी वापस शहर आने लगे हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार 517 अरब डॉलर के उच्चस्तर पर
मोदी सरकार की नीतियों के कारण भारत का विदेशी का मुद्रा भंडार 17 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान 1.27 अरब डॉलर बढ़कर 517.63 अरब डॉलर के अब तक के सबसे ऊपरी स्तर पर पहुंच गया। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार इस दौरान विदेशी मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण हिस्सा यानी विदेशी मुद्रा एसेट्स 1.24 अरब डॉलर बढ़कर 476.88 अरब डॉलर पर पहुंच गया। विदेशी मुद्रा भंडार ने 5 जून, 2020 को खत्म हुए हफ्ते में पहली बार पांच खरब डॉलर के स्तर को पार किया था। इसके पहले यह आठ सितंबर 2017 को पहली बार 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया था। जबकि यूपीए शासन काल के दौरान 2014 में विदेशी मुद्रा भंडार 311 अरब डॉलर के करीब था।
2021-22 में 9.5 प्रतिशत रह सकती है विकास दर-फिच
रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर 9.5 प्रतिशत रह सकती है। फिच रेटिंग्स ने हालांकि कोरोना संकट के कारण चालू वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था के पांच प्रतिशत सिकुड़ने का अनुमान जताया है। लेकिन फिच ने कहा कि कोरोना संकट के बाद देश की जीडीपी वृद्धि दर के वापस पटरी पर लौटने की उम्मीद है। इसके अगले साल 9.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की उम्मीद है।
स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स ने जताया भारत पर भरोसा
रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स ने (S&P) ने भारत की सॉवरिन रेटिंग को BBB माइनस पर बरकरार रखा है। S&P ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास जताते हुए आउटलुक को स्थिर रखा है। स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फिलहाल ग्रोथ रेट पर दबाव है, लेकिन अगले साल 2021 से इसमें सुधार दिखने को मिलेगा। फिच ने कहा है कि वित्त वर्ष 2021-22 के लिए विकास दर का 8.5 प्रतिशत रह सकती है।
सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा भारत- आईएमएफ
दुनिया भर में कोरोना संकट के बीच भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर बड़ी बात कही है। आईएमएफ ने कहा है कि भारत में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सबसे तेज रहेगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना महामारी के चलते 2020 का साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए काफी खराब रहने वाला है, लेकिन इसके बाद भी भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। आइएमएफ के मुताबिक, इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 1930 के महामंदी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी। आईएमएफ के अनुसार सिर्फ भारत 1.9 प्रतिशत और चीन 1.2 प्रतिशत की दर के साथ पॉजिटिव ग्रोथ हासिल करेंगे। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ के अनुसार 2021 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसमें भारत की ग्रोथ रेट 7.4 प्रतिशत और चीन की 9.2 प्रतिशत रह सकता है।
आईएमएफ को भरोसा, वैश्विक अर्थव्यवस्था की अगुवाई करेगा भारत
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने कहा है कि भारत की अगुवाई में दक्षिण एशिया वैश्विक वृद्धि का केंद्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है और 2040 तक वृद्धि में इसका अकेले एक-तिहाई योगदान हो सकता है। आईएमएफ के हालिया शोध दस्तावेज में कहा गया कि बुनियादी ढांचे में सुधार और युवा कार्यबल का सफलतापूर्वक लाभ उठाकर यह 2040 तक वैश्विक वृद्धि में एक तिहाई योगदान दे सकता है। आईएमएफ की एशिया एवं प्रशांत विभाग की उप निदेशक एनी मेरी गुलडे वोल्फ ने कहा कि हम दक्षिण एशिया को वैश्विक वृद्धि केंद्र के रूप में आगे बढ़ता हुए देख रहे हैं।
फरवरी में औद्योगिक उत्पादन 7 महीनों के उच्च स्तर पर
फरवरी, 2020 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 133.3 अंक रहा जो फरवरी, 2019 के मुकाबले 4.5 प्रतिशत अधिक है। यह सात महीने में सबसे ज्यादा है। गुरुवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इसकी मुख्य वजह खनन, मैन्युफैक्चरिंग के साथ बिजली उत्पादन में बढ़ोतरी है। इस साल फरवरी में खनन, मैन्युफैक्चरिंग और बिजली क्षेत्रों की उत्पादन वृद्धि दर फरवरी, 2019 के मुकाबले क्रमश: 10.0 प्रतिशत, 3.2 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत रही। उद्योगों की दृष्टि से मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के 13 समूहों ने फरवरी, 2019 की तुलना में फरवरी, 2020 के दौरान वृद्धि दर दर्ज की है। इस दौरान ‘बुनियादी धातुओं के मैन्युफैक्चरिंग’ ने 18.2 प्रतिशत की सर्वाधिक वृद्धि दर दर्ज की है। इसके बाद ‘रसायनों एवं रासायनिक उत्पादों के विनिर्माण’ का नम्बर आता है जिसने 8.0 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की है।
फरवरी में कोर सेक्टर की ग्रोथ रेट 5.5 प्रतिशत रही
आठ बुनियादी उद्योगों यानी कोर सेक्टर की वृद्धि फरवरी में बढ़कर 5.5 प्रतिशत रही है। यह पिछले 11 महीनों में सबसे ज्यादा है। आठ कोर उद्योगों का संयुक्त सूचकांक फरवरी, 2020 में 132.9 अंक रहा, जो फरवरी 2019 में दर्ज किए गए सूचकांक के मुकाबले 5.5 प्रतिशत अधिक है। दूसरे शब्दों में, फरवरी में आठ कोर उद्योगों- कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और बिजली की वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत आंकी गई है। पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पादों का उत्पादन फरवरी में 7.4 प्रतिशत, उर्वरक उत्पादन 2.9 प्रतिशत, सीमेंट उत्पादन, 8.6 प्रतिशत और बिजली उत्पादन 11 प्रतिशत बढ़ गया।
सात साल के उच्च स्तर पर पहुंचा सर्विसेज पीएमआई
जनवरी 2020 में देश के सेवा उद्योग की गतिविधि में जबरदस्त तेजी दर्ज की गई और यह सात साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। घरेलू मांग के मजबूत होने से जनवरी 2020 में सर्विस पीएमआई में तेजी आने से आईएचएस मार्कट इंडिया सर्विसेज बिजनेस एक्टिविटी इंडेक्स में जनवरी 2020 में बढ़ोत्तरी हुई है। यह जनवरी में 55.5 हो गई है, जो कि पिछले साल दिसंबर में 53.3 थी। जनवरी 2020 में दर्ज की गई सर्विस पीएमआई जनवरी 2013 के बाद की सबसे अधिक सर्विस पीएमआई है। सेवा क्षेत्र की एक्टिविटी में वृद्धि होना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत हैं।
मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई 8 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंचा
देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गतिविधियों में काफी तेजी आयी है। नए ऑर्डर मिलने से उत्पादन में आए उछाल के चलते जनवरी 2020 में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 8 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। एक निजी सर्वे में सामने आया है कि मांग में आई उछाल से कारखानों में मजदूरों की मांग बढ़ गई है। जिस रफ्तार से कारखानों में नए मजदूरों की भर्ती की गई, वह पिछले आठ सालों में सबसे अधिक है। आईएचएस मार्किट का निक्केई मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स (PMI) जनवरी 2020 में बढ़कर 55.3 पर पहुंच गया है। एक महीना पहले दिसंबर 2019 में यह 52.7 था। फरवरी 2012 के बाद PMI की यह सबसे मजबूत ग्रोथ है। सूचकांक का 50 से ऊपर होना उत्पादन में विस्तार का सूचक है। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का पीएमआई लगातार 30वें महीने 50 अंक से ऊपर रहा। डिमांड ट्रैक करने वाले एक सब-इंडेक्स की ग्रोथ दिसंबर 2014 के बाद सबसे ज्यादा रही। वहीं आउटपुट की ग्रोथ पिछले साढ़े सात साल में सबसे ज्यादा रही। इसकी वजह से मैन्युफैक्चर कंपनियों को अगस्त 2012 के बाद सबसे ज्यादा हायरिंग करनी पड़ी।
एफपीआई ने 2019 में किए 1.3 लाख करोड़ रुपए निवेश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में कारोबारी माहौल भी बेहतर हुआ है। यही वजह है कि देश में रिकॉर्डतोड़ विदेशी निवेश हो रहा है। मोदी सरकार की नीतियों की वजह से प्रभावित होकर अनुकूल आर्थिक परिस्थितियों और पर्याप्त तरलता के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने 2019 में भारतीय पूंजी बाजार में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 2019 में भारतीय पूंजी बाजार में 1.3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया। नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरीज लिमिटेड के आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने 2019 में घरेलू पूंजी बाजार में अब तक 1,33,074 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया है। एफपीआई ने इक्विटी में 2019 में 97,251 करोड़ रुपए का निवेश किया, जबकि 26,828 करोड़ रुपए के ऋणपत्रों की शुद्ध खरीदारी की। एफपीआई ने हाइब्रिड प्रतिभूतियों में 999 करोड़ रुपए की शुद्ध खरीदारी की।
नवंबर में हुआ 22,872 करोड़ का एफपीआई निवेश
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने नवंबर महीने में घरेलू पूंजी बाजार में 22,872 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया। यह लगातार तीसरा महीना है जब एफपीआई शुद्ध लिवाल रहे हैं। डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने एक नवंबर से 29 नवंबर के दौरान ऋणपत्रों से 2,358.2 करोड़ रुपये निकाले, जबकि इक्विटी में उन्होंने 25,230 करोड़ रुपये का निवेश किया। इस तरह वे 22,871.8 करोड़ रुपये के शुद्ध खरीदार रहे। इससे पहले एफपीआई ने घरेलू पूंजी बाजार में अक्टूबर में 16,037.6 करोड़ रुपये और सितंबर में 6,557.8 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था।
अक्टूबर, 2019 में 3.31 अरब डॉलर रहा पीई-वीसी निवेश
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से देश का कारोबारी माहौल लगातार मजबूत होता जा रहा है। यही वजह है कि पीई-वीसी निवेश यानी प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल निवेश में स्थिरता बनी हुई है। मूल्य और मात्रा के हिसाब से अक्टूबर में उद्यम-पूंजी निवेश 91 सौदों में 3.31 अरब डॉलर रहा है। सौदों पर परामर्श देने वाली कंपनी ईवाई के अनुसार सितंबर में 98 सौदों में निजी इक्विटी और उद्यम पूंजी कोषों का निवेश 3.74 अरब डॉलर रहा था। अक्टूबर, 2018 में यह आंकड़ा 64 सौदों में 3.33 अरब डॉलर का रहा था। ईवाई के मुताबिक मोदी सरकार की नीतियों की वजह से ही पीई-वीसी गतिविधियों ने लगातार तीन अरब डॉलर के मासिक ‘रन रेट’ को कायम रखा है। यह चालू चाल के पहले दस महीनो में 16.5 अरब डॉलर बढ़कर 43.7 अरब डॉलर पर पहुंच गई हैं।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक वेतन वृद्धि भारत में होगी
प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीतियों से देश की इकोनॉमी और कारोबारी माहौल लगातार बेहतर हो रहा है। यही वजह है कि जहां कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं, वहीं कर्मचारियों की सैलरी भी निरंतर बढ़ रही है। प्रमुख वैश्विक एडवाइजरी, ब्रोकिंग और सोल्यूशंस कंपनी विलिस टॉवर्स वॉटसन की ताजा तिमाही रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2020 में कर्मचारियों के वेतन में रिकॉर्ड 10 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी होगी। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि ये वेतन वृद्धि पूरे एशिया-पैसिफिक में सबसे अधिक होगी। विलिस टॉवर्स वॉटसन ने अपनी यह रिपोर्ट विभन्न औद्योगिक क्षेत्रों और कंपनियों की प्रगति का अध्ययन और सर्वे करने के बाद तैयार की है। रिपोर्ट के मुताबिक इंडोनेशिया में वेतन वृद्धि 8 प्रतिशत, चीन में 6.5 प्रतिशत, फिलीपींस में 6 प्रतिशत और हांगकांग व सिंगापुर में 4 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। जाहिर है कि मोदी सरकार की सफल आर्थिक नीतियों की वजह से ही इस वर्ष भारत में औसत वेतन वृद्धि 9 प्रतिशत से अधिक रही।
5 साल में भारत में 5 अरब डॉलर का निवेश करेगी फेयरफैक्स
प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का ही असर है कि आज भारत में विदेशी कंपनियां खूब निवेश कर रही हैं। कनाडा की कंपनी फेयरफैक्स अगले पांच साल में भारत में 5 अरब डॉलर का निवेश करने जा रही है। कंपनी पिछले पांच साल में भारत में 5 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी है और इतनी ही रकम वह अगले पांच साल में लगाने जा रही है। कंपनी के प्रमुख और अरबपति निवेशक प्रेम वत्स ने इकनॉमिक टाइम्स के साथ इंटरव्यू में भारत में आर्थिक सुस्ती की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि यहां ‘शानदार मौके’ हैं। उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से भारत दुनिया का नंबर वन देश है। प्रेम वत्स ने कहा, ‘दुनिया की जीडीपी में भारत का योगदान 3 प्रतिशत है, लेकिन कुल वैश्विक निवेश में इसकी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत ही है। अगर इसे बढ़ाकर 2 प्रतिशत भी कर दिया जाए तो भारत में 3 लाख करोड़ डॉलर का निवेश बढ़ेगा।’ उन्होंने कहा कि आज चीन और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर कुछ मतभेद चल रहे हैं। ऐसे में लोग भारत में पैसा नहीं लगाएंगे तो कहां लगाएंगे? वे किसी बड़े बाजार में निवेश करना चाहते हैं, जहां लोकतंत्र हो। जहां कानून का राज हो। प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि भारत खुशकिस्मत है कि उसे मोदीजी जैसे बिजनस-फ्रेंडली नेता मिला है। उनका पूरा ध्यान देश के लिए अच्छा करने पर है। वत्स ने कहा कि इस तरह का तजुर्बा ग्लोबल लीडर में कम ही होता है।
FDI के मोर्चे पर 20 वर्ष में पहली बार भारत ने चीन को पछाड़ा
भारत 20 साल में पहली बार एफडीआई हासिल करने के मामले में चीन से आगे निकल गया। वर्ष 2018 में वालमार्ट, Schneider Electric और यूनीलीवर जैसी कंपनियों से भारत में आए निवेश के चलते ये संभव हो सका। इस दौरान भारत में 38 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ, जबकि चीन सिर्फ 32 अरब डॉलर ही जुटा सका। पीएम मोदी के नेतृत्व में मजबूत सरकार और नए क्षेत्रों में भारी अवसरों के कारण भारत विदेशी निवेशकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पिछले साल भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के 235 सौदे हुए। पिछले 20 वर्षों से चीन विदेशी निवेशकों की पसंदीदा जगह बना हुआ था। पिछले साल चीन के बाजारों में आंशिक मंदी और अमेरिका के साथ ट्रेड वार के चलते विदेशी निवेशकों का रुख भारत की ओर बढ़ा है।
NPA के मामलों में सरकार को मिली बड़ी कामयाबी
रिजर्व बैंक आफ इंडिया की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों का ग्रॉस एनपीए घटकर 9.1 फीसदी पर आ गया है। यह एक साल पहले 11.2 फीसदी पर था। रिपोर्ट के अनुसार बैंकों के फंसे कर्ज के बारे में जल्द पता चलने और उसका जल्द समाधान होने से एनपीए को नियंत्रित करने में मदद मिली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरूआती कठिनाइयों के बाद इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) बैंकिंग सिस्टम का पूरा माहौल बदलने वाला कदम साबित हो रहा है। पुराने फंसे कर्ज की रिकवरी में सुधार आ रहा है और इसके परिणामस्वरूप, संभावित निवेश चक्र में जो स्थिरता बनी हुई थी, उसमें सुगमता आने लगी है।
बेहतर हुआ कारोबारी माहौल
पीएम मोदी ने सत्ता संभालते ही विभिन्न क्षेत्रों में विकास की गति तेज की और देश में बेहतर कारोबारी माहौल बनाने की दिशा में भी काम करना शुरू किया। इसी प्रयास के अंतर्गत ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति देश में कारोबार को गति देने के लिए एक बड़ी पहल है। इसके तहत बड़े, छोटे, मझोले और सूक्ष्म सुधारों सहित कुल 7,000 उपाय (सुधार) किए गए हैं। सबसे खास यह है कि केंद्र और राज्य सहकारी संघवाद की संकल्पना को साकार रूप दिया गया है।
पारदर्शी नीतियां, परिवर्तनकारी परिणाम
कोयला ब्लॉक और दूरसंचार स्पेक्ट्रम की सफल नीलामी प्रक्रिया अपनाई गई। इस प्रक्रिया से कोयला खदानों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 के तहत 82 कोयला ब्लॉकों के पारदर्शी आवंटन के तहत 3.94 लाख करोड़ रुपये से अधिक की आय हुई।
जीएसटी ने बदली दुनिया की सोच
जीएसटी, बैंक्रप्सी कोड, ऑनलाइन ईएसआइसी और ईपीएफओ पंजीकरण जैसे कदमों कारोबारी माहौल को और भी बेहतर किया है। खास तौर पर ‘वन नेशन, वन टैक्स’ यानि GST ने सभी आशंकाओं को खारिज कर दिया है। व्यापारियों और उपभोक्ताओं को दर्जनों करों के मकड़जाल से मुक्त कर एक कर के दायरे में लाया गया।