Home समाचार भाजपा के खिलाफ टूलकिट है पहलवानों का प्रदर्शन, राजस्थान-हरियाणा चुनाव के मद्देनजर...

भाजपा के खिलाफ टूलकिट है पहलवानों का प्रदर्शन, राजस्थान-हरियाणा चुनाव के मद्देनजर जाट-राजपूत में दरार पैदा करने की साजिश

SHARE

दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहलवानों का प्रदर्शन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ एक टूलकिट है। जिससे देश में अस्थिरता पैदा की जा सके और मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके। इस प्रदर्शन की साजिश हालिया कर्नाटक चुनाव और इसी साल होने वाले राजस्थान और मध्यप्रदेश चुनाव को ध्यान में रखकर रची गई और इसे हवा दी जा रही है। इसके साथ ही अगले साल लोकसभा चुनाव और हरियाणा विधानसभा चुनाव है इसीलिए जाट और राजपूतों में विवाद पैदा करने के लिए यह षडयंत्र किया गया। इस प्रदर्शन का मकसद हिंदुओं का वोट बांटना है और जाट-राजपूत में दरार पैदा करने की एक साजिश है जिससे कांग्रेस को राजस्थान हरियाणा चुनाव में फायदा मिल सके। कांग्रेस ने पीएम मोदी को बदनाम करने के लिए बीबीसी डॉक्यूमेंट्री से लेकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट जैसे टूलकिट भी लेकर आए लेकिन पीएम मोदी को दिल में बसा चुके भारतीय जनता पर इसका कोई असर नहीं हुआ, कोई देशव्यापी आंदोलन नहीं हुआ और उनका टूलकिट फेल हो गया। पीएम मोदी के खिलाफ माहौल बनाने के लिए नित नए टूलकिट तलाश रहे कांग्रेस ने अब इसके लिए पहलवानों को चुना है।

कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव बनाने के लिए इस मुद्दे को हवा दी

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने जब आलाकमान से इस मुद्दे पर बात की तो उनकी बांछें खिल गई। मुंह मांगी मुराद मिल गई। कर्नाटक में चुनाव है। इसी साल राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव होना है। अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ ही हरियाणा चुनाव भी होना है। इसीलिए उन्होंने इस मौके का इस्तेमाल बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव बनाने के लिए किया। सरकार द्वारा कमेटी बना दिए जाने के बाद जब पहलवानों ने धरना बंद कर दिया था तब अप्रैल 2023 में इसे फिर से शुरू करना बताता है इसके पीछे कोई मंसूबा है। अब कांग्रेस समर्थक जाट और राजपूत समूह ने अचानक मोदी सरकार को गाली देना और धमकी देना शुरू कर दिया। इससे साफ होता है कि जाट और राजपूत के बीच जातिगत विभाजन पैदा करने के लिए इस मुद्दे को उछाला गया। इसीलिए प्रियंका गांधी वाड्रा भी धरनास्थल पर पहुंच गई। राजस्थान और हरियाणा में बीजेपी ने 2014, 2019 में सफलतापूर्वक सभी हिंदुओं को एकजुट किया था। योजना हिंदुओं को विभाजित करने की है। आखिर वे 7 महिलाएं कौन हैं, जिन्हें प्रताड़ित किया गया, वह कभी सामने नहीं आईं, उन्हें कोई नहीं जानता।

इस केस का उपयोग करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर एक टूलकिट तैयार किया गया

1. भाजपा को महिला विरोधी घोषित करना
2. भाजपा को जाट विरोधी के रूप में चित्रित करना
3. जाट और राजपूत के बीच दरार पैदा करना
4. हिंदुओं को बांटो

टूलकिट के प्रमुख किरदार बजरंग पुनिया और दीपेंद्र हुड्डा

इस टूलकिट के प्रमुख किरदार हैं पहलवान बजरंग पुनिया, विनेश फोगट और साक्षी मलिक, कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा और विपक्षी दल एवं लेफ्ट लिबरल गैंग। इस टूलकिट के जरिए भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह (बीबीएस सिंह) को निशाना बनाया गया है।

बृजभूषण शरण सिंह 2012 में WFI के अध्यक्ष बने

पहलवानों के ताजा विवाद के बाद इस कहानी को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। ट्विटर यूजर STAR Boy ने इस मुद्दे पर ट्वीट की श्रृंखला जारी की है। वर्ष 2011 में, रेसलिंग फेड ऑफ इंडिया (WFI) के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए। जम्मू-कश्मीर के पहलवान दुष्यंत शर्मा जीते और अध्यक्ष बने। हरियाणा कुश्ती संघ ने इस चुनाव को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी और वे केस जीत गए। कोर्ट ने दोबारा चुनाव कराने को कहा। कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा डब्ल्यूएफआई का अध्यक्ष बनना चाहते थे। बीबीएस सिंह ने भी चुनाव लड़ने का फैसला किया, उस वक्त वे समाजवादी पार्टी में थे। उन्होंने मुलायम सिंह से मदद मांगी, मुलायम ने अहमद पटेल से बात की। उस समय कांग्रेस सपा के समर्थन से सत्ता में थी। अहमद पटेल ने दीपेंद्र हुड्डा को अपना नामांकन वापस लेने के लिए कहा। भारी मन से उन्होंने नामांकन वापस ले लिया। बीबीएस सिंह 2012 में WFI के अध्यक्ष बने।

बृजभूषण शरण सिंह 2015 और 2019 में चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने

अध्यक्ष पद 4 साल के लिए होता है। बीबीएस सिंह 2015 और 2019 में भी जीतकर अध्यक्ष बने रहे। 2014 में, वह फिर से बीजेपी में शामिल हो गए और बीजेपी भी केंद्र में जीती, इसलिए उन्हें बीजेपी से समर्थन मिला।

राम मंदिर आंदोलन में गिरफ्तार हुए थे बृजभूषण शरण सिंह

बीबीएस सिंह बीजेपी के पुराने सदस्य हैं, वे राम मंदिर आंदोलन में भी शामिल थे और बाबरी विध्वंस मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए पहले व्यक्ति थे। 2008-14 के दौरान वे सपा में थे।

दीपेंद्र हुड्डा 2011, 2015 और 2019 में हरियाणा कुश्ती संघ के अध्यक्ष बने

दीपेंद्र हुड्डा 2011, 2015 और 2019 में हरियाणा कुश्ती संघ के अध्यक्ष बने। कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा 2012 से डब्ल्यूएफआई का अध्यक्ष बनना चाहते थे। लेकिन अहमद पटेल की दखलंदाजी की वजह से उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया।

टूलकिट की तलाश में कांग्रेस को मिली संजीवनी

अब जब कांग्रेस बीजेपी सरकार के खिलाफ कोई टूलकिट की तलाश में थी तो उन्हें दीपेंद्र हुड्डा का मुद्दा माकूल लगा। उन्हें लगा कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर किसी को शक भी नहीं होगा क्योंकि यह खेल के मैदान से था। और इस तरह एक आंदोलन खड़ा किया जा सकेगा और मोदी सरकार को महिलाओं के मुद्दे, खिलाड़ियों के मुद्दे पर घेरा जा सकेगा।

बृजभूषण शरण सिंह WFI के सबसे सफल अध्यक्ष

बृजभूषण शरण सिंह भारतीय इतिहास में WFI के सबसे सफल अध्यक्ष बने। भारतीयों ने उनके कार्यकाल में कई पदक जीते, इससे डब्ल्यूएफआई में उनकी स्थिति और मजबूत हुई लेकिन सबसे ज्यादा पदक हरियाणा के पहलवानों ने जीते।

भारतीय कुश्ती में चयन को लेकर पहलवानों के बीच खींचतान

भारतीय कुश्ती में चयन को लेकर पहलवानों के बीच खींचतान कोई नई बात नहीं है। सबसे चर्चित केस में से एक 2016 में सुशील कुमार और नरसिंह यादव के बीच हुआ था। सुशील ओलंपिक पदक विजेता थे और वह रियो ओलंपिक में खेलना चाहते हैं लेकिन डब्ल्यूएफआई नरसिंह को भेजना चाहता था। सुशील हरियाणा के थे और नरसिंह यूपी के। मामला हाईकोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने नरसिंह के पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन जाने से पहले ही वह डोप टेस्ट में फेल हो गए। उन्होंने सुशील कुमार को दोषी ठहराया और हरियाणा के खिलाडिय़ों ने उनके खाने में मिलावट की।

2020 में विनेश फोगट निलंबित करने से भी उठा विवाद

2020 में, एक और विवाद तब हुआ जब विनेश फोगट को निलंबित कर दिया गया जब उन्होंने भारतीय लोगो के स्थान पर अपनी ड्रेस पर प्रायोजक लोगो प्रदर्शित किया। टोक्यो ओलंपिक में उसने अन्य पहलवानों के साथ रहने से भी इनकार कर दिया था। वह कोई पदक नहीं जीत सकी।

WFI ने 2021 में पहलवानों के चयन के लिए नए नियम बनाए

WFI और हरियाणा के पहलवानों के बीच विवाद तब बढ़ा जब WFI ने नवंबर 2021 में नए चयन नियम लाए। नए नियमों के अनुसार प्रत्येक पहलवान चाहे पदक धारक हो या नहीं उन्हें नेशनल खेलना है और ट्रायल से गुजरना है। WFI ने हर राज्य का कोटा भी तय किया। हरियाणा महासंघ ने इसका भारी विरोध किया लेकिन डब्ल्यूएफआई पीछे नहीं हटा।

2022 में हरियाणा फेडरेशन भंग, दीपेंद्र हुड्डा को हटाकर रोहतास अध्यक्ष बने

बृजभूषण शरण सिंह और हरियाणा फेडरेशन के बीच जून 2022 में खुली लड़ाई हुई एवं डब्ल्यूएफआई ने हरियाणा फेडरेशन को किया भंग कर दिया। हरियाणा फेडरेशन के अध्यक्ष पद से दीपेंद्र हुड्डा को हटाकर रोहतास को नया अध्यक्ष नियुक्त किया।

बजरंग, विनेश और साक्षी ने नए चयन नियमों का किया विरोध

दूसरी तरफ बजरंग, विनेश और साक्षी नए चयन नियमों का विरोध कर रहे थे और उन्होंने गुजरात में राष्ट्रीय खेलों और दिसंबर में नई दिल्ली में चयन ट्रायल में भाग नहीं लिया।

बजरंग, विनेश और साक्षी ने ट्रायल में भाग नहीं लिया, एशियाई खेलों में खेलने का रास्ता बंद

दिसंबर 2022, डब्ल्यूएफआई ने साफ किया कि चयन ट्रायल में भाग लेने वालों पर केवल एशियाई खेलों के लिए विचार किया जाएगा, यानी बजरंग, विनेश और साक्षी के लिए खेल खत्म।

शुरू में प्रदर्शन कार्यशैली को लेकर था, बाद में यौन उत्पीड़न लाया गया

उसके बाद जनवरी 2023 में उन्होंने जंतर मंतर पर बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध शुरू किया। उनके शुरुआती आरोप कार्यशैली के थे। यौन उत्पीड़न का एंगल बाद में लाया गया। इसके बाद सरकार द्वारा कमेटी नियुक्त की गई और उन्होंने अपना धरना बंद कर दिया।

डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष का अगला चुनाव मई 2023 में

डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष का अगला चुनाव मई 2023 को होना था। कोई भी तीन बार से ज्यादा अध्यक्ष नहीं बन सकता इसलिए हुड्डा को यकीन था कि वह बनेंगे। लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि बृजभूषण शरण सिंह अपने बेटे को अध्यक्ष पद के लिए प्रमोट करने की योजना बना रहे हैं।

बजरंग और दीपेंद्र हुड्डा ने इसलिए मिलाया हाथ

बजरंग, विनेश और साक्षी बिना सेलेक्शन ट्रायल के एशियन गेम्स खेलना चाहते थे, हुड्डा प्रेसिडेंट बनना चाहते थे और कॉमन दुश्मन थे बृजभूषण शरण सिंह। इसलिए दोनों ने हाथ मिला लिया। यानी इसमें सियासी तड़का भी लग गया।

अप्रैल 2023 में धरना फिर शुरू, अब यौन उत्पीड़न का नया एंगल

अप्रैल 2023 से उन्होंने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ फिर से धरना शुरू कर दिया। अपने पिछले विरोध में उनके मुख्य आरोप असभ्य व्यवहार और बीबी सिंह के दुराचार थे, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी योजना पूरी तरह से बदल दी और केवल यौन उत्पीड़न के बारे में बोलना शुरू कर दिया। हुड्डा की योजना इस मामले का उपयोग करने और WFI के अगले अध्यक्ष बनने की है जो कि वह 2012 में नहीं बन सके थे। सरकार ने मई 2023 के चुनाव रद्द किए और एड हॉक कमेटी बनाई।

पहलवानों का धरना राजनीति से प्रेरितः बृजभूषण शरण सिंह

भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने उनके खिलाफ नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर शीर्ष पहलवानों के धरने को राजनीति से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि धरना दे रहे पहलवान कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के खिलौने बन गए हैं। उनका मकसद मेरा इस्तीफा नहीं है, बल्कि यह केवल राजनीतिक है। बृजभूषण ने कहा कि प्रदर्शन करना उनका अधिकार है लेकिन क्या रेलवे से जुड़ा कोई खिलाड़ी इस तरह धरने पर बैठ सकता है? जहां प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाए जा रहे हैं।

समाजवादी पार्टी ने धरने से किया किनारा, समर्थन नहीं दिया

बृजभूषण ने सपा के प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के रुख की सराहना करते हुए कहा कि सपा धरने से नहीं जुड़कर सच्चाई के साथ खड़ी है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित अन्‍य विपक्षी दलों ने पहलवानों को समर्थन दिया है और इन पार्टी के नेताओं ने प्रदर्शन स्‍थल पर पहलवानों से मुलाकात की। हालांकि समाजवादी पार्टी ने धरने से किनारा कर लिया है। कैसरगंज से सांसद बृजभूषण ने ‘कहा कि मैं समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। मैं उन्हें बचपन से जानता हूं। मैं उनसे बड़ा हूं, हमारे बीच राजनीतिक मतभेद हैं लेकिन अखिलेश सच्चाई जानते हैं और अगर उत्तर प्रदेश में 10,000 पहलवान हैं तो इनमें से आठ हजार यादव समुदाय से हैं और समाजवादी परिवार से हैं और इसलिए वे सच्चाई जानते हैं।

23 अप्रैल से दोबारा शुरू किया गया धरना

देश के शीर्ष पहलवानों ने डब्ल्यूएफाई प्रमुख बृजभूषण की गिरफ्तारी की मांग करते हुए 23 अप्रैल से एक बार फिर जंतर मंतर पर धरना शुरू किया। बृजभूषण पर उन्होंने महिला पहलवानों को धमकाने और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये हैं। इससे पहले उन्होंने जनवरी में धरना दिया था।

पहलवानों के प्रदर्शन में ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ नारे का क्या मतलब

जिस तरह से जंतर मंतर पर इन पहलवानों ने अपने धरने में ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ के नारे लगवाया उससे ये साफ हो गया कि इसके पीछे कौन लोग हैं और निशाने पर केवल पीएम मोदी हैं। इन लोगों को शर्म आनी चाहिए कि जिस मोदी ने भारत में खिलाड़ियों को इतना प्रोत्साहन दिया, ये उसकी कब्र खोदना चाहते हैं।

बृजभूषण सिंह टीम के साथ ही नहीं थे तो यौन उत्पीड़न कैसे

पहले विनेश फोगट और साक्षी मलिक ने कमेटी के सामने दावा किया कि एक महिला फिजियो को परेशान किया गया, फिजियो ने परेशान होने से इनकार किया। तब विनेश फोगट ने आरोप लगाया कि 2015 में तुर्की यात्रा के दौरान उन्हें और साक्षी मलिक को परेशान किया गया था, लेकिन बृजभूषण सिंह टीम के साथ तुर्की नहीं गए। तब विनेश फोगट ने दावा किया कि वह सटीक तारीख भूल गई, यह वास्तव में 2016 में मंगोलिया दौरे के दौरान था, फिर से समिति ने जांच की और पाया कि बृजभूषण सिंह मंगोलिया दौरे के दौरान भी टीम के साथ नहीं थे।

यौन उत्पीड़न की शिकार एक भी महिला खिलाड़ी सामने नहीं आई

विनेश फोगट और साक्षी मलिक ने दावा किया कि नाबालिगों सहित हजारों लड़कियों को परेशान किया गया। समिति ने उनसे कुछ नाम बताने को कहा। हम उनके नाम नहीं जानते, लेकिन ऐसा हुआ, प्रदर्शनकारी पहलवानों ने कहा। और फिर वे यह दावा करते हुए सड़क पर आ गए कि सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है क्योंकि आरोपी भाजपा सांसद है। दिलचस्प बात यह है कि उनमें से किसी ने भी बृजभूषण सिंह के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की और उन 1000 पीड़ितों में से कोई भी अपने दावों को साबित करने के लिए सामने नहीं आया।

इस मामले की सीबीआई से जांच होनी चाहिएः दीपेंद्र हुड्डा

जिस तत्परता के साथ सांसद दीपेंद्र हुड्डा दिल्ली के जंतर मंतर स्थित धरनास्थल पर खिलाड़ियों के समर्थन में पहुंचे, उससे साफ होता है कि राजनीतिक लाभ के लिए इस मुद्दे को उछाला जा रहा है। उन्होंने खिलाड़ियों की मांगों और धरने का पूर्ण समर्थन करते हुए कहा कि जब तक बेटियों को न्याय नहीं मिलेगा न तो हम चैन से सोएंगे न ही इस सरकार को चैन से सोने देंगे। बेटियों को न्याय दिलाने के लिये कोई भी कुर्बानी देनी पड़ेगी तो हम पीछे नहीं हटेंगे। दीपेन्द्र हुड्डा ने मांग की इस मामले की सीबीआई से जांच होनी चाहिए।

केजरीवाल पहलवानों को समर्थन देने पहुंचे

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कथित यौन उत्पीड़न को लेकर खेल महासंघ के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों से मुलाकात की। अपने बंगले पर किए गए खर्च को लेकर घिरे केजरीवाल ने लोगों से बृजभूषण शरण सिंह के विरोध में देश के शीर्ष एथलीटों का समर्थन करने की अह्वान किया। केजरीवाल ने कहा कि, “इस देश से प्यार करने वाला हर नागरिक पहलवानों के साथ खड़ा है।” उन्होंने कहा कि, बीजेपी सांसद के खिलाफ लड़ाई में केंद्र सरकार को पहलवानों की मदद करनी चाहिए।

प्रियंका गांधी का जंतर-मंतर जाना उल्टे गले पड़ गया

प्रियंका गांधी जंतर मंतर पर पहलवानों से मिलने और समर्थन देने पहुंची थी लेकिन वहां जाना उनके गले पड़ गया। इस दौरान प्रियंका के साथ उनके निजी सचिव संदीप सिंह भी थे। इस पर बबिता फोगाट ने प्रियंका गांधी को आड़े हाथ लिया। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, ‘प्रियंका वाड्रा अपने निजी सचिव संदीप सिंह को लेकर जंतर मंतर महिला पहलवानों को न्याय दिलाने पहुंची हैं लेकिन इस व्यक्ति पर खुद महिलाओं से छेड़छाड़ और एक दलित महिला को दो कौड़ी की औरत कहने जैसे तमाम आरोप लगे हैं।’

केजरीवाल से लेकर सत्य पाल मलिक तक धरना स्थल पहुंचे

अरविंद केजरीवाल के अलावा कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा, किसान नेता राकेश टिकैत, जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्य पाल मलिक, खाप पंचायत नेता, CPI(M) नेता बृंदा करात और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी पहलवानों से मिले।

कुश्ती के पीछे की असली कुश्ती!

भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर कुछ पहलवानों ने यौन-शोषण के आरोप लगाये थे जिसके बाद खेलजगत में भूचाल-सा आ गया। ध्यान रहे कि बृजभूषण शरण सिंह ने विगत वर्षों में कई ऐसे निर्णय लिये थे जिनमें सारे भारत भर के उदीयमान पहलवानों का लाभ था, न कि सिर्फ हरियाणा के पहलवानों और हरियाणा की लॉबी का! हरियाणा की लॉबी को इसस झटका लगा और इसे सियासी रूप दे दिया गया।

जांच समिति ने जांच में लगे आरोपों को निराधार पाया

सरकार ने मेरी कॉम, योगेश्वर दत्त और पी.टी. उषा जैसे नामी एवं भारत के लिए ओलंपिक में पदक विजेता खिलाड़ियों की एक जांच समिति बना दी जिसने अपनी जांच में लगे आरोपों को पूरी तरह निराधार पाया।

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद धरना का क्या औचित्य

कमेटी की रिपोर्ट के बाद भी पहलवान अपने धरना, प्रदर्शन और बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग पर अड़े रहे। अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिये गये संज्ञान और निर्देश के आधार पर जब अभियुक्त के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हो गई है तब भी पहलवानों के इस झुंड का, जिसमें हरियाणा के ही पहलवान सम्मिलित हैं, जंतर-मंतर पर धरना देने का भला क्या औचित्य है?

सुनियोजित है पहलवानों का धरना कार्यक्रम

आरोप लगाने वाली पहलवानों के परस्पर विरोधी वक्तव्यों एवं तथ्यों से भरे आरोपों तथा इसमें केजरीवाल, प्रियंका, हुड्डा आदि के कूद जाने से और हरियाणा को छोड़कर भारत के किसी भी अन्य प्रदेश की महिला पहलवान या पहलवान द्वारा ऐसे किसी भी आरोप की बात नहीं कहने से ही सारा परिदृश्य एक सुनियोजित- प्रायोजित कार्यक्रम सा दिखने लग जाता है।

पहलवानों के पर्दे के पीछे कोई और पहलवानी कर रहा

स्पष्ट है कि यह किसानों की आड़ में किसान आंदोलन करने वाले उसी टूलकिट या उसी की तर्ज का आंदोलन है। इन पहलवानों के पर्दे के पीछे कोई और पहलवानी कर रहा है जबकि कुछ भोले-भाले पहलवान इस कुचक्र में उलझकर बेकार ही मुफ्त में दंड पेल रहे हैं! इसके साथ ही प्रशिक्षण शिविरों से लेकर घरेलू प्रतियोगिताओं में भाग लेने की अनिवार्यता और प्रदर्शन तथा ड्रग्स के प्रति बृजभूषण शरण सिंह का कठोर रवैया आदि के कारण भी आंदोलनजीवी बनने की राह पर चल रहे इन पहलवानों को वस्तुत: आपत्ति रही है।

Leave a Reply