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उद्धव सरकार की मनमानी से नाराज डीजीपी सुबोध जायसवाल ने महाराष्ट्र छोड़ने का किया फैसला

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महाराष्ट्र में पूरी तरह अराजकता का आलम है। नियम और कानून की खुलेआम धज्यियां उड़ायी जा रही हैं। अर्नब गोस्वामी के साथ जो कुछ हुआ, उसे पूरे देश ने देखा। अब उद्धव सरकार की मनमानी और राजनैतिक हस्तक्षेप से राज्य के पुलिस प्रमुख भी नाराज है। जब उद्धव सरकार द्वारा राज्य के डीजीपी को दरकिनार कर मनमानी की जा रही है, तो इससे राज्य के हालात के बारे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

दरअसल, सितंबर महीने में ही करीब 50 सीनियर पुलिस अफसरों के तबादले किए गए। उसके बाद निचले स्तर के अफसरों के तबादले हुए। सूत्रों के मुताबिक, इन तबादलों के लिए डीजीपी सुबोध जायसवाल की राय नहीं ली गई थी। कई सीनियर अफसरों के मनमाने तरीके से तबादले किए गए। इससे नाराज डीजीपी सुबोध जायसवाल ने महाराष्ट्र छोड़ने का फैसला किया है और उन्हें राज्य सरकार की तरफ से हरी झंडी भी मिल गई है।

डीजीपी सुबोध जायसवाल अब केंद्र सरकार की सेवा में जाएंगे। RAW में कई वर्षों तक काम कर चुके सुबोध जायसवाल को नेशनल सिक्योरिटी गार्ड यानि एनएसजी के डीजी की पोस्टिंग मिल सकती है। 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी जायसवाल फरवरी 2019 में महाराष्ट्र के डीजीपी का पदभार ग्रहण किया था। 

गौरतलब है कि अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी पूरी तरह पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप और मनमानी का एक प्रमुख उदाहरण है। रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को दो साल पुराने आत्महत्या के मामले में गिरफ्तार करने से पहले ‘ऑपरेशन अर्नब’ के तहत गुप्त व्यूह रचना की गई थी। इसकी कमान राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने अपने हाथ में रखी थी। उन्होंने शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की साझा सरकार की रणनीति के अनुसार अर्नब गोस्वामी को घेरा। 

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अर्नब गोस्वामी द्वारा कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी पर लगातार अपने न्यूज चैनल के जरिए प्रहार का हिसाब चुकता करने के लिए महाराष्ट्र की इस महाविकास आघाड़ी की सरकार ने पहले यह मामला खंगाला। इसके बाद रायगढ़ पुलिस ने सुसाइड केस रिओपन करने की परमिशन ली।

सुसाइड केस रिओपन करने की अनुमति मिलने के बाद गृह मंत्री देशमुख ने कोंकण रेंज के आईजी संजय मोहित के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय टीम बनाई। इसमें मुंबई और रायगढ़ पुलिस के 40 अफसरों व जवानों को शामिल किया। सूत्रों ने आशंका जतायी है कि ‘ऑपरेशन अर्नब’ को अंजाम देने और गोपनीयता बनाये रखने के लिए गृहमंत्री ने जानबूझकर डीडीपी की अनदेखी की और अपने चहेते पुलिस अधिकारियों का तबदाल कर इस ऑपरेशन में शामिल किया।

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