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राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन, सोरोस और जाकिर नाइक की संस्था क्यों करती थी फंडिंग, भूमिका संदिग्ध होने पर रद्द किया गया FCRA लाइसेंस

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केंद्र सरकार ने गांधी परिवार से जुड़े गैर सरकारी संगठन राजीव गांधी फाउंडेशन का विदेशी योगदान नियमन अधिनियम (FCRA) का लाइसेंस रद्द कर दिया है। यह कार्रवाई 2020 में गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा की गई जांच के बाद हुई है। अब राजीव गांधी फाउंडेशन को विदेश से किसी तरह की फंडिंग नहीं हो पाएगी। कानून के उल्‍लंघन पर गृह मंत्रालय ने यह कार्रवाई की है। पूर्व कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी फाउंडेशन की चेयरपर्सन हैं। राजीव गांधी फाउंडेशन के ट्रस्‍टीज में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और पूर्व वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम शामिल हैं। राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए 1991 में की गई थी। अगस्‍त 2020 में राजीव गांधी फाउंडेशन की फंडिंग को लेकर सनसनीखेज दावे किए गए थे। आरोप था कि राजीव गांधी फाउंडेशन को PNB घोटाले के आरोपी मेहुल चोकसी की कंपनियों से डोनेशन मिलता रहा। फाउंडेशन को जाकिर नाईक, यस बैंक के राणा कपूर और जिग्‍नेश शाह से भी डोनेशन मिला। उसी के बाद गृह मंत्रालय ने जांच शुरू की। पीएमएलए (प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट) की जांच चल ही रही थी। पहले भी राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी सरकार से मदद मिलने पर विवाद हो चुका है। फाउंडेशन की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2005-06 में राजीव गांधी फाउंडेशन को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार और चीनी दूतावास से दो अलग-अलग दानकतार्ओं से दान मिला। चीनी दूतावास को सामान्य दाताओं की सूची में रखा गया है।

इस मुद्दे पर टि्वटर यूजर Agenda Buster ने एक ट्वीट की एक श्रृंखला प्रकाशित की है। उन्होंने लिखा है कि आज कई एनजीओ दुनिया भर में जमीनी स्तर पर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं इसलिए लोग उनका सम्मान भी करते हैं लेकिन कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि उनका भी दुरुपयोग हुआ है। आधुनिक समय के लोकतांत्रिक युद्ध टैंकों, लड़ाकू विमानों और गोलियों से नहीं लड़े जाते हैं। वे एनजीओ, कार्यकर्ताओं और विदेशी फंडों द्वारा लड़े जाते हैं। मान लीजिए कि अमेरिका भारतीय सरकार पर दबाव बनाना चाहता है कि वह किसी मुद्दे पर उसका समर्थन करे या वे भारत में कुछ बुनियादी, क्षमता निर्माण या अंतरिक्ष कार्यक्रम को रोकना चाहते हैं तो उन्हें अपने जेट भारत भेजने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें बस भारत में काम करने वाले अपने एनजीओ को पैसा ट्रांसफर करने की जरूरत है और बाकी काम ये एनजीओ उनके कार्यकर्ता, वकील और मीडियाकर्मी करेंगे। इसलिए एनजीओ की फंडिंग के बारे में जानना बहुत जरूरी है।

राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए 1991 में की गई थी। सोनिया गांधी के नेतृत्व में जुलाई 1991 में बैठक हुई और फाउंडेशन के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था। राजीव गांधी फाउंडेशन का कहना है कि संगठन ने शिक्षा के साथही स्वास्थ्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, महिलाओं और बच्चों, विकलांगता सहायता आदि सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया है।

भ्रष्ट कॉरपोरेट्स से फंडिंग

फाउंडेशन ने चेक नंबर 676400 के माध्यम से 29-8-2014 को नवराज एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड से 10 लाख रुपये प्राप्त किए। नवराज एस्टेट गीतांजल इंडस्ट्रीज़ की सिस्टर फर्म है, जो भगोड़े मेहुल चौकसी के स्वामित्व में है, जिस पर मनी लॉन्ड्रिंग और पीएनबी धोखाधड़ी का आरोप है। उन्हें यस बैंक धोखाधड़ी के आरोपी राणा कपूर से 9.45 लाख रुपये मिले। वही राणा कपूर 2 करोड़ रुपये में प्रियंका वाड्रा से पेंटिंग लेकर आए थे जिसका भुगतान यस बैंक ने किया था। 27-10-2011 को जिग्नेश शाह से 50 लाख रुपये प्राप्त किए। वह नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड घोटाले में आरोपी है।

फाउंडेशन को 8-7-2011 को Izl@mic Research Foundation से 50 लाख रुपये की फंडिंग मिली। इस संस्था का मालिक जाकिर नाइक है। वही जाकिर नाइक जो भगोड़ा है और कट्टरपंथ और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोपी है। इस बात का खुलासा होने के बाद फाउंडेशन ने वह पैसा 12-7-2016 को लौटा दिया।

सत्ता का दुरुपयोग

गांधी परिवार की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने नियमों में बदलाव किया और गांधी परिवार की कांग्रेस पार्टी को लुटियंस दिल्ली में 2 एकड़ महंगी जमीन दी। कांग्रेस पार्टी ने 1995 में वह जमीन गांधी परिवार के राजीव गांधी फाउंडेशन को मुफ्त में किराए पर दी थी।

2014 में उन्होंने फिर से नियम बदल दिए और राजीव गांधी फाउंडेशन ने उस जमीन को 4 अन्य संगठनों को किराए पर दे दिया। उन्होंने उमर खालिद और सिमी कार्यकर्ताओं को अपनी जमीन का इस्तेमाल करने दिया। मनमोहन सिंह सरकार ने पीएम राष्ट्रीय राहत कोष से फाउंडेशन को फंड दिया।

फाउंडेशन को चीनी दूतावास से मिला फंड

फाउंडेशन को 2006-09 के दौरान दो बार चीनी सरकार से फंड भी मिला, यही वह समय था जब कांग्रेस सरकार ने चीन के साथ गुप्त सौदा किया था।

अमेरिकी अरबपति सोरोस से फंडिंग

2020 में, अमेरिकी अरबपति n वामपंथी सोरोस ने कहा कि वह मोदी को हटा देंगे और अपने पिछले सूत्र में मैंने उनके n C1A के लिंक के बारे में भी बताया और कैसे C1A ने अमेरिकी आदेशों का पालन नहीं करने वाली सरकारों को हटाने के लिए विपक्षी दलों को फंड दिया। फाउंडेशन ने जर्मन एनजीओ फ्रेडरिक नौमन फाउंडेशन (Friedrich Nauman Foundation) से धन प्राप्त किया जो कि सोरोस (S0r0s) द्वारा वित्त पोषित किया गया। क्लिंटन फाउंडेशन ने भी राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को समर्थन दिया था और क्लिंटन फाउंडेशन को सोरोस (S0r0s) फंड करता है। राजीव गांधी फाउंडेशन 2007-08 में ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़ा था। सोरोस पर आरोप है कि वह कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन, शहरी नक्सलियों को समर्थन, रोहिंग्याओं को समर्थन, देशद्रोह विरोधी कानून का समर्थन करने के लिए फंडिंग करता है।

राजीव गांधी फाउंडेशन ने अमन बिरादरी ट्रस्ट के साथ भागीदारी की, जिसके प्रमुख हर्ष मंदर हैं जो सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के सलाहकार बोर्ड में थे। हर्ष मंदर ने 2010 में सांप्रदायिक हिंसा बिल बनाया था और सीएए के विरोध में शामिल था।

FCRA क्‍या है? विदेशी चंदा पाने के नियम क्‍या हैं?

FCRA यानी विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम। इस कानून के जरिए विदेशी चंदे का रेगुलेशन होता है। FCRA पहली बार 1976 में अस्तित्‍व में आया। 2010 में नियम बदले गए। भारत में मौजूद वे सारे एसोसिएशन, समूह और गैर-सरकारी संगठन (NGOs) जिन्‍हें विदेश से चंदा चाहिए, उन्‍हें FCRA की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। ऐसे सभी NGOs के लिए FCRA रजिस्‍ट्रेशन अनिवार्य है। रजिस्‍ट्रेशन पांच सांल के लिए वैध होता है, उसके बाद इसे रिन्‍यू कराया जा सकता है। रजिस्‍टर्ड संस्‍थाओं को सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों के लिए विदेशी चंदा लेने की अनुमति है। सभी को सालाना रिटर्न फाइल करने होते हैं।

गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस

2015 में MHA ने नई गाइडलाइंस जारी कीं। सभी NGOs के लिए या तो सरकारी या प्राइवेट बैंक में खाते होना अनिवार्य है ताकि सुरक्षा एजेंसियों को रियल टाइम एक्‍सेस मिल सके। अब सारे NGOs को यह प्रमाण देना पड़ता है कि विदेशी फंडिंग से भारत की संप्रभुता और अखंडता खतरे में नहीं पड़ेगी। मित्र देशों संग रिश्‍तों पर नकरात्‍मक असर नहीं पड़ेगा। सांप्रदायिक सद्भाव को कमजोर नहीं करेगी।

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