Home विचार मूर्ति तोड़ो अभियान से ‘हिंदू एकता’ को ध्वस्त करने साजिश !

मूर्ति तोड़ो अभियान से ‘हिंदू एकता’ को ध्वस्त करने साजिश !

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त्रिपुरा में लेनिन के बाद तमिलनाडु में पेरियार की प्रतिमा तोड़ी गई, फिर कोलकाता में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति तोड़ी गई इसके बाद यूपी में डॉ. भीम राव अम्बेडर की प्रतिमा विखंडित कर दी गई। दरअसल इस ‘मूर्ति संग्राम’ के पीछे सिर्फ और सिर्फ सियासत है। जाति आधारित राजनीति को हवा देने की पुरजोर कोशिश हो रही है। 1990 के दशक का वही दृश्य दोहराने की कोशिश हो रही है जिसने हिंदू समाज में दरार पैदा कर दिया था और उसे टुकड़ों में बांट दिया था। ढाई दशक बाद जनवरी और दिसंबर, 2017 में हुए यूपी और गुजरात चुनावों में वही दृश्य देखने को मिला था। पटेल, ठाकोर, दलित और सवर्णों में बांटकर राजनीति की गई, हालांकि उत्तर प्रदेश और गुजरात की जनता ने इस राजनीति को ठुकरा दिया था।

दरअसल देश में कुछ राजनीतिक जमात ऐसी है जो हिंदू समाज को एक जत्थे के तौर पर एकजुट नहीं देखना चाहती है। जाति और विभेद की राजनीति कर लोगों को बांटना और सत्ता पर काबिज होना ही इनका उद्देश्य है। स्पष्ट है कि ये ‘मूर्ति संग्राम’ इसी मकसद से की जा रही है। 

‘मूर्ति संग्राम’ कहीं तथाकथित सेकुलरों की रणनीति तो नहीं !
पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी की जीत और वामपंथ का दुर्ग और कांग्रेस का किला ढहने के बाद से ही मूर्तियां ढाहने का सिलसिला शुरू हो गया। ये ठीक वैसा ही हो रहा है जब दादरी में गोभक्षण करने वाले अखलाक के मारे जाने के बाद सेकुलर जमात ने किया था। मोदी सरकार पर असहिष्णुता के आरोप लगाकर देश की छवि खराब की गई। अवार्ड वापसी कैंपेन चलाकर भारत को कमजोर करने की कोशिश की गई, लेकिन लोगों ने इन शक्तियों को चुनाव दर चुनाव करारा जवाब दिया है।

कभी सांप्रदायिक आधार पर तो कभी जाति के आधार पर देश के टुकड़े करने की चाहत रखने वाली जमात एक बार फिर सक्रिय है और हर राज्य में माहौल खराब करने की कोशिश में लग गई है। इनका मकसद है कि वर्गभेद मिटा कर एक हो रहे हिंदुओं में एक बार फिर दरार पैदा की जाए और उनकी राजनीति सरपट चलती रहे।

आइये कुछ उदाहरणों के जरिये जानते हैं कि ये कैसी राजनीति है-
त्रिपुरा में वामपंथियों ने तोड़ी लेनिन की मूर्ति !
त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति ढाहने के पीछे जो तथ्य निकलकर आ रहे हैं वो काफी चौंकाने वाले हैं। कहा जा रहा है कि यहां वामपंथी कार्यकर्ताओं ने लोगों के साथ मिलकर ही इस लाल आतंक के निशान को खत्म करने का काम किया, लेकिन आरोप भाजपा के कार्यकर्ताओं पर लगाया गया। गौर करने वाली बात है कि अभी तक त्रिपुरा में भाजपा सरकार ने शपथ भी नहीं ली है। दरअसल देश के नक्शे से मिट रहा वामपंथ अपना अस्तित्व बचाने को एक फिर हिंसा का सहारा ले रही है। ये हिंसा त्रिपुरा की हार तो दर्शाती ही है, केरल में अपना अस्तित्व बचाए रखने की एक जद्दोजहद भी मानी जा रही है। 

पेरियार पर हिंदुओं के ‘टुकड़े-टुकड़े’ करने का प्रयास
तमिलनाडु में पेरियार एक समाज सुधारक के साथ द्रविड़ आंदोलन के समर्थक माने जाते रहे हैं। हालांकि उनकी कई बातें हिंदू समुदाय को आहत करती रही है। विशेषकर भगवान राम और सीता पर उनकी टिप्पणी तो बेहद ही खेदजनक है। हालांकि तथ्य यह भी है कि भाजपा ने उनकी मूर्ति तोड़ने का विरोध किया है। जाहिर है ये किस राजनीति के तहत की जा रही है समझा जा सकता है। ईसाई मिशनरियों द्वारा हिंदुओं का धर्म परिवर्तन की खबरें आम होने के बीच तमिलनाडु में हिंदू समाज जाति-भेद भुलाकर एक हो रहा है। इससे समाज के टुकड़े करने वाले लोगों की दाल नहीं गल रही है। ऐसे में पेरियार के नाम पर एक बार फिर हिंदुओं में सवर्ण बनाम दलित की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। पेरियार की मूर्ति तोड़ने के पीछे एक मात्र उद्देश्य हिंदू समाज को ही विभाजित करने की साजिश है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। 

श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर टीएमसी की विभाजनकारी राजनीति
पश्चिम बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया। कोलकाता के केओराटोला कब्रिस्तान के पास वाममोर्चा के एक छात्र संगठन के सदस्यों ने इस कृत्य को अंजाम दिया। प्रतिमा के चेहरे पर कालिख पोत दी और इसे सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की गई। समझा जा सकता है कि इस राजनीति से किस पॉलिटिकल पार्टी को फायदा पहुंचने वाला है। दरअसल तृणमूल कांग्रेस तेजी से अपना जनाधार खोती जा रही है और भाजपा वहां वामपंथियों को पछाड़कर दूसरे नंबर की पार्टी बन गई है। ऐसे में वामपंथियों की खीझ समझी जा सकती है। 

यूपी में तोड़ी गई डॉ. भीम राव अम्बेडकर की मूर्ति
उत्तर प्रदेश के मेरठ में शरारती तत्वों ने डॉ.भीमराव अंबेडकर की मूर्ति तोड़ दी। मवाना इलाके में हुई इस घटना से मर्माहत लोगों ने मूर्ति बदलने की मांग की जिसे प्रशासन ने मान लिया। घटना की निंदा उपराष्ट्रपति ने भी की और कहा कि ऐसे लोग पागल और बेशर्म हैं। परन्तु इस वाकये के पीछे की राजनीति समझने की कोशिश कीजिए। डॉ. अम्बेडकर को कुछ राजनीतिक दलों ने दलितों का प्रतीक बना दिया है जबकि उनका कद इससे बहुत ऊपर है। वे राष्ट्रनायक हैं। परन्तु जातिवादी नायकों और नायिकाओं ने उन्हें भी सीमित करके आंका है। उनके नाम पर राजनीति की है और हिंदुओं को बांटने के लिए डॉ अम्बेडकर के नाम का इस्तेमाल किया है। 

मूर्ति पर संग्राम की साजिश इसलिए रची जा रही है एक बार फिर लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं। विभाजनकारी ताकतों की लगातार हार से ये बार-बार साबित हो रहा है कि हिंदू समुदाय अब इनके झांसे में नहीं आने वाला। बस यही टीस इन तत्वों को पीड़ा पहुंचा रहा है और उस पीड़ा को दूर करने के लिए ही मूर्ति पर संग्राम की साजिश रची गई है। हालाांकि यह भी सत्य है कि देश की जनता अब समझदार हो गई है और जातिवादी ताकतों की साजिशों को भी भलि-भांति समझती है। 

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