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देखिए ममता बनर्जी की टीएमसी का दोगलापन, संसद सत्र में प्रश्नकाल की मांग, बंगाल विधानसभा के मानसून सत्र में नहीं होगा प्रश्नकाल

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कोरोना संकट की वजह से संसद का मॉनसून सत्र इस बार देर से शुरू हो रहा है। इस कारण इस बार संसद सत्र को लेकर कई तरह के बदलाव भी किए गए हैं। 14 सितंबर से शुरू हो रहे इस सत्र में लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही और सांसदों के बैठने की जगह में भी बदलाव किए गए हैं, ताकि कोरोना के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा सके। जब केंद्र सरकार ने सांसदों को प्रश्नकाल के दौरान प्रश्न पूछने की इजाज़त नहीं देने का फैसला किया, तो इसका विपक्ष के सांसद खासकर ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के सांसदों ने मुखर विरोध किया। हालांकि इस मामले में टीएमसी का दोगलापन खुलकर सामने आ चुका है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा के आगामी दो-दिवसीय मानसून सत्र में समय की कमी और कोरोना की स्थिति की वजह से कोई प्रश्नकाल नहीं होगा। पश्चिम बंगाल विधान सभा के अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने इस बात की जानकारी दी। अध्यक्ष ने कहा कि नौ सितंबर से शुरू होने वाले दो दिवसीय मानसून सत्र के दौरान प्रश्नकाल का मतलब होगा सत्र को लंबा खींचना और उसके लिए विधायकों को लंबी अवधि तक ठहरना होगा। 

भाजपा विधायक दल के नेता मनोज तिग्गा ने कहा कि यह निर्णय तृणमूल के दोहरे मानदंड को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस संसद के आगामी सत्र के दौरान प्रश्नकाल की मांग कर रही है लेकिन उसने पश्चिम बंगाल विधानसभा की कार्यवाही में प्रश्नकाल को शामिल नहीं करने का फैसला किया है। तृणमूल ने संसद के आगामी सत्र के दौरान प्रश्नकाल नहीं रखने के फैसले को ‘लोकतंत्र की हत्या’ कहा था।

संसद के मानसून सत्र में प्रश्नकाल की मांग को लेकर टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने ट्वीट किया, “सांसदों को संसद सत्र में सवाल पूछने के लिए 15 दिन पहले ही सवाल भेजना पड़ता था। सत्र 14 सितंबर से शुरू हो रहा है। प्रश्न काल कैंसल कर दिया गया है? विपक्ष अब सरकार से सवाल भी नहीं पूछ सकता। 1950 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है? वैसे तो संसद का सत्र जितने घंटे चलना चाहिए उतने ही घंटे चल रहा है, तो फिर प्रश्न काल क्यों कैंसल किया गया। कोरोना का हवाला दे कर लोकतंत्र की हत्या की जा रही है।”

बता दें कि प्रश्नकाल शब्द राजनीतिक गलियारे में सुर्खियों में रहा। 14 सितंबर से शुरू हो रहे मानसून सत्र के दौरान प्रश्नकाल को स्थगित करने का फैसला लिया गया था। लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के बाद इसमें बदलाव किया गया। संसद के दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा में लिखित सवाल पूछने की इजाजत दे दी गई।

 

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