रूस में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में 13 देशों को पार्टनर देश का दर्जा मिला है। इनमें पाकिस्तान का नाम न होने से उसे तगड़ा झटका लगा है। दरअसल, रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्सई ओवरचुक ने पिछले महीने पाकिस्तान को इसके लिए आश्वस्त कर दिया था। अब अपने नाम के बगैर सूची जारी होने के बाद पाकिस्तान में सियासत गरमा गई है कि ऐनवक्त पर उसकी बाजी कैसे पलट गई?दरअसल, ऐसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शानदार कूटनीतिक कदम के चलते हुआ है। पीएम मोदी ने ब्रिक्स के अपने संबोधन में इस सिलसिले में बगैर पाकिस्तान का नाम लिए दो विशेष बिंदु उठाए। उन्होंने कहा कि भारत नए सदस्यों का स्वागत करता है, लेकिन इससे जुड़े फैसले सर्वसम्मति से होने चाहिए। दूसरा उन्होंने कहा, “जोहानिसबर्ग में हमने जिस प्रक्रिया और सिद्धांत को स्वीकार किया था, उसका पालन होना चाहिए।” इन दोनों बातों का मतलब यह है कि भारत ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है और उसकी सहमति के बिना ऐसे फैसले नहीं हो सकते। जाहिर है, पीएम मोदी की रणनीति के चलते रूस और चीन का पाकिस्तान को खुला समर्थन भी धरा का धरा रह गया। दरअसल, रूस-चीन के बूते तो पाकिस्तान कूद रहा था और उसने आवेदन किया था, लेकिन वह ब्रिक्स का पार्टनर देश नहीं बन पाया। और तो और, जो 13 देश ब्रिक्स के पार्टनर कंट्री बने हैं, उनमें 7 मुस्लिम बहुल हैं, फिर भी पाकिस्तान का आवेदन रिजेक्ट होना उसकी बड़ी हार के रूप में देखा जा रहा है।
मोदी की मुलाकात के साथ ही पाकिस्तान की सदस्यता उम्मीदें धराशायी
ब्रिक्स में शामिल होने की उम्मीद लगाए पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है। पाकिस्तान ने पिछले साल ब्रिक्स की सदस्यता के लिए औपचारिक तौर पर आवेदन किया था। यह माना जा रहा है कि चीन ने इस्लामाबाद को भरोसा दिया था। लेकिन बुधवार को चीनी राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात के साथ ही पाकिस्तान की सदस्यता उम्मीदें धराशायी हो गईं। ब्रिक्स ने नए पार्टनर देशों को शामिल किया गया है, लेकिन इसमें पाकिस्तान का नाम नहीं है। वहीं, तुर्की को पार्टनर देशों में शामिल किया है। जिनपिंग की मोदी से मुलाकात को पाकिस्तानी अपने लिए धोखे की तरह देख रहे हैं।
भारत के समर्थन के बिना पाकिस्तान की ब्रिक्स में एंट्री संभव नहीं
प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ब्रिक्स में अधिक ‘भागीदार देशों’ का स्वागत करने के लिए तैयार है, लेकिन इस संबंध में फैसले सर्वसम्मति से लिए जाएं। 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बंद सत्र में मोदी ने 9 सदस्यीय समूह में पाकिस्तान के प्रवेश के लिए रूस और चीन के मौन समर्थन का परोक्ष उल्लेख किया और कहा कि ब्रिक्स के संस्थापक सदस्यों के विचारों का सम्मान किया जाना चाहिए। इससे यह साफ हो गया है कि भारत के बिना पाकिस्तान की ब्रिक्स में एंट्री संभव नहीं है। रूस और चीन के अलावा ब्रिक्स के दो अन्य संस्थापक देश भारत और ब्राजील हैं। ब्राजील, रूस, भारत और चीन द्वारा स्थापित समूह ने साल 2011 में दक्षिण अफ्रीका का स्वागत किया था। अब चार नए सदस्यों के जुड़ने के साथ इसका और विस्तार हो गया है। इस संगठन में शामिल होने के लिए 30 से अधिक देशों ने इच्छा जताई है, जिनमें श्रीलंका, पाकिस्तान, तुर्की और कोलंबिया शामिल हैं। रूस और चीन पाकिस्तान के लिए समर्थन कर रहे थे।
आतंकवाद के मुद्दे पर ‘दोहरे’ मानकों के लिए कोई जगह नहीं
अब यह साफ हो गया है कि ब्रिक्स में पाकिस्तान की एंट्री भारत के समर्थन के बिना संभव नहीं है। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के बीच वर्तमान में उच्चायुक्त स्तर पर कोई राजनयिक प्रतिनिधित्व नहीं है। भारत ने पाकिस्तान से साफ कर दिया है कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकते। पीएम मोदी ने ब्रिक्स की बैठक में भी इसी रुख को दोहराया और सदस्य देशों से कहा कि आतंकवाद के मुद्दे पर ‘दोहरे मानकों के लिए कोई जगह नहीं है।’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमें अपने देशों में युवाओं के कट्टरपंथीकरण को रोकने के लिए सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है।’ यहां ध्यान देने की जरूरत है कि चीन ने पिछले साल पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी साजिद मीर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित करने के संयुक्त राष्ट्र के प्रयास को रोक दिया था। मीर 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों में वांछित था।
चीन के समर्थन में ना आने को पाकिस्तान ने अपने लिए माना धोखा
पाकिस्तान को उम्मीद थी कि भारत के विरोध के बावजूद रूस और चीन का समर्थन उसके लिए राह आसान करेगा। कुछ लेफ्ट लिबरल मीडिया रिपोर्ट में यह अफवाह फैलाई गई थी कि भारत ने पाकिस्तान की ब्रिक्स सदस्यता पर समर्थन का मन बनाया है, लेकिन बुधवार को जब पीएम मोदी और जिनपिंग आपस में जमी बर्फ पिघलाने के लिए साथ बैठे तो पाकिस्तान की उम्मीदें भी धूमिल हो गईं। पाकिस्तानी पत्रकार बाकिर सज्जाद ने एक्स पर लिखा, ‘झूठे वादे और क्षणिक आशावाद ने पाकिस्तान को खाली हाथ छोड़ दिया।’ उन्होंने इसे भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का गंभीर सबक बताया। अब पाक के बगैर सूची जारी होने के बाद पाकिस्तान में सियासत गरमा गई है कि ऐनवक्त पर उसकी बाजी कैसे पलट गई? इसे पाकिस्तान की करारी हार के रूप में देखा जा रहा है।
ब्रिक्स में पार्टनर कंट्री बने 13 में से 7 मुस्लिम बहुल देश, पर पाक खाली हाथ
ब्रिक्स ने नए शामिल देशों की सूची जारी की है। ये हैं अफ्रीका से अल्जीरिया, नाइजीरिया और युगांडा। यूरोप से बेरारूस। लैटिन अमेरिका से बोलीविया, क्यूबा एशिया से तुर्की दक्षिण पूर्व एशिया से इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम। मध्य एशिया से उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान को ब्रिक्स के पार्टनर देश घोषित किए गए हैं। बता दें, इस बार 30 से ज्यादा देशों ने ब्रिक्स की मेंबरशिप के लिए आवेदन किया था, इनमें पाकिस्तान भी शामिल था। लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी। हालांकि पिछले महीने रूस ने पाकिस्तान को आश्वस्त किया था। तब रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्सई ओवरचुक ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार के साथ जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “हमें खुशी है कि पाकिस्तान ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया है। ब्रिक्स और शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन मैत्रीपूर्ण संगठन हैं। हम पाकिस्तान की सदस्यता का समर्थन करेंगे।”
ब्रिक्स में हार के बाद पाकिस्तान फिर कश्मीर मुद्दा छेड़ने को आतुर
ब्रिक्स में शामिल होने का सपना देख रहे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है। ब्रिक्स की सदस्यता तो दूर पाकिस्तान को पार्टनर का भी दर्जा नहीं मिल पाया। पीएम मोदी ने साफ कहा कि किसी भी नए देश को शामिल करते समय संस्थापक सदस्यों की राय का सम्मान किया जाना चाहिए। इससे पहले रूस और चीन दोनों ने ही पाकिस्तान को समर्थन देने का ऐलान किया था। इस शर्मिंदगी के बाद अब पाकिस्तान एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाने जा रहा है। वह भी तब जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच दोस्ती की सुगबुगाहट तेज हो गई थी। जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन की राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए इस्लामाबाद गए थे। यह किसी भारतीय विदेश मंत्री की करीब 10 साल में पहली पाकिस्तान यात्रा थी। इस बैठक के दौरान जयशंकर की पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार से खाने की मेज पर अनौपचारिक बातचीत हुई थी।इसलिए पाकिस्तान 27 अक्टूबर को मनाता है काला दिवस
पाकिस्तान 27 अक्टूबर को काला दिवस के रूप में मनाता है और विदेशी राजनयिकों से कश्मीर को लेकर बातचीत भी इन कार्यक्रमों की कड़ी का एक हिस्सा है। महाराजा हरि सिंह के जम्मू कश्मीर का भारत संग विलय करने के बाद 27 अक्टूबर, 1947 को भारतीय सैनिक श्रीनगर पहुंचे थे। पाकिस्तान ने इसका विरोध किया था और कबायली लोगों के वेश में अपनी सेना को भेज दिया था। इससे कश्मीर समस्या का जन्म हुआ और यह आज भी जारी है। पाकिस्तान यह बैठक तब आयोजित कर रहा है जब पिछले सप्ताह ही नवाज शरीफ ने शांति और बातचीत की अपील की है। पाकिस्तान एक तरफ जहां विदेशी राजनयिकों के सामने कश्मीर का मुद्दा उठाने जा रहा है, वहीं कश्मीर में हालात खराब हो रहे हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी पिछले कुछ दिनों में कई जानलेवा हमले कर चुके हैं। इससे तनाव बढ़ा हुआ है।