कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले भारत में फिलहाल काफ़ी कम हैं। जिस वक़्त दुनिया के ज़्यादातर विकसित देश बुरी तरह कोरोना की चपेट में है, वहीं उनकी तुलना में भारत में इसके मामले कम क्यों सामने आए हैं ? तो इसका जवाब है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कोरोना से लड़ने में सजगता, तत्परता और तैयारी दिखाई है। इसकी सुप्रीम कोर्ट से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने सराहना की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी निदेशक माइकल जे. रेयान ने तारीफ करते कहा कि भारत में कोरोना वायरस की महामारी से निपटने की जबरदस्त क्षमता है। वहीं कुछ लोग ऐसे हैं, जो अपने अफवाह फैलाने के एजेंडे को जारी रखे हुए हैं। वे कोरोना से लड़ने में देश की क्षमता को कमतर आंकने और मोदी सरकार को बदनाम करने में अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत जैसे देश दुनिया को रास्ता दिखाते हैं, जैसा उन्होंने पहले किया है। दुनियाभर में कोरोना से संक्रमति लोगों की संख्या 3,30,000 को पार कर गई है, जबकि मौतों की संख्या 14000 से अधिक हो गई है। भारत में कोरोना वायरस के अभी तक 500 मामले सामने आए हैं और 10 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने कोरोना वायरस के चलते अपने-अपने यहां लॉकडाउन के आदेश दिए हैं और 6 अन्य राज्यों ने भी अपने क्षेत्रों में इसी तरह के प्रतिबंधों की घोषणा की है। पंजाब और महाराष्ट्र ने अपने यहां कर्फ्यू लगाने की घोषणा की है।
देश में पूर्व नौकरशाहों का एक गैंग है, जो समय-समय पर प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखता रहता है। यह गैंग देश में अफवाह फैलाने का कोई मौका नहीं चूकता है। यह गैंग एक एजेंडे के तहत मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए बेबुनियाद आरोपों और आंकड़ों के जादुगरी के साथ सामने आते रहता है। इसी गैंग के एक प्रमुख सदस्य है प्रसार भारती के पूर्व सीईओ और पूर्व आईएएस अधिकारी जवाहर सिरकर। सिरकर सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय है और मोदी सरकार के खिलाफ लगातार पोस्ट करते रहते हैं। उन्होंने फिर ट्विटर पर एक पोस्ट किया है, जिसमें कोरोना वायरस से लड़ने में देश की क्षमता और स्वास्थ्य सुविधाओं से संबंधित आंकड़े पेश किए गए हैं।
INDIA HAS
?1 Hospital Bed for 1,826 ppl
?1 Doctor for 11,600 ppl
?1 Isolation Bed for 84,000 ppl
INDIA SPENT
?₹6000 cr on Ads
?₹9130 cr on Statues
?₹2021 cr on Foreign Trips
INDIA COULD HAVE BUILT
?17 AIIMS
?35 Govt Medical Colleges
?50 Govt Hospitals
PRIORITIES?— Jawhar Sircar (@jawharsircar) March 22, 2020
इससे पहले जवाहर सिरकर ने 21 मार्च को एक ट्वीट किया, जिसमें पीएम मोदी की जनता कर्फ्यू की अपील का मजाक उड़ाया गया था। सिरकर ने सवाल उठाया कि क्या जनता कर्फ्यू एक जानलेवा बीमारी का ‘ त्योहार ‘ नहीं बना रही है ? क्या भाषणों से अधिक महत्वपूर्ण कोरोना की जांच के लिए अधिक केंद्र और आइसोलेशन वार्ड जरूरी नहीं है?
“Janata curfew, avoid panic buying, stay at home: PM Modi’s 9 key messages”. Isn’t Janata Curfew making a ‘festival’ of a killer disease? Its more important than speeches to set up more Testing Centres & Isolation Wards before our health system COLLAPSES? https://t.co/kZwK4ff7hd
— Jawhar Sircar (@jawharsircar) March 19, 2020
सिरकर ने इन आंकड़ों के साथ मोदी सरकार द्वारा कोरोना से लड़ने और पिछले करीब 6 सालों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कार्यों का उल्लेख नहीं किया है। सिरकर ने जिस सरकार के तहत अधिक समय तक अपनी सेवाएं दी हैं, अगर उस सरकार और मोदी सरकार के स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए कार्यों की तुलना की जाए तो जो तस्वीर उभरकर सामने आती है, उससे पता चलता है कि सिरकर किस तरह पूर्वाग्रह से पीड़ित है।
कोरोना वायरस कोविड-19 आर्थिक रेस्पास टॉस्क फोर्स
इस महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए, प्रधानमंत्री मोदी ने वित्त मंत्री की निगरानी में ‘कोविड-19 आर्थिक रेस्पास टॉस्क फोर्स’ बनाने की घोषणा की। रेस्पास टॉस्क फोर्स विभिन्न संगठनो और संस्थाओं से सलाह-मशविरा करेगा, उनसे जानकारी लेगा, जिसके आधार पर चुनौतियों का सामना करने के लिए निर्णय लिए जाएंगे। कार्य बल इन चुनौतियों से निपटने के लिए गए निर्णयों का कार्यान्वयन भी सुनिश्चित करेगा।
फार्मा सेक्टर के साथ बैठक
दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की नियमित आपूर्ति बनाए रखने के प्रयास में, प्रधानमंत्री ने 21 मार्च 2020 को फार्मा सेक्टर के प्रतिनिधियों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस भी की। अपनी बातचीत में प्रधानमंत्री ने फार्मा उद्योग को कोविड-19 के लिए आरएनए परीक्षण किट तैयार करने के लिए पर काम करने करने को कहा। उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार देश में एपीआई की आपूर्ति बनाए रखने और इन्हें तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है।
राज्यों के साथ मिलकर काम करना
प्रधानमंत्री मोदी ने 20 मार्च को एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से देश के सभी मुख्यमंत्रियों से बात की, जिसमें उन्होंने साथ मिलकर इस चुनौती से निपटने का आह्वान किया था। प्रधानमंत्री ने इस वायरस के प्रसार को लेकर निरंतर सतर्कता और निगरानी बनाए रखने का आह्वान किया और कहा कि इस महामारी से निपटने के लिए केंद्र और राज्यों को साथ मिलकर काम करना होगा।
सार्क देश हुए एकजुट
प्रधानमंत्री मोदी पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने क्षेत्रीय परामर्श और चर्चा के लिए सुझाव दिया, जब उन्होंने दक्षेस राष्ट्रों के नेताओं के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस की। दुनिया की एक बड़ी आबादी का हिस्सा सार्क देशों में बसता है। भारत के नेतृत्व में सार्क देशों के नेताओं की एक बैठक 15 मार्च को आयोजित की गई थी।
दूसरे देशों में फंसे हुए नागरिकों की मदद
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने कारेाना वायरस से प्रभावित चीन, इटली, ईरान और दुनिया के अन्य हिस्सों से अपने दो हजार नागरिकों को स्वेदश लाने का काम किया।
कोरोना वायरस से संबंधित रोजाना 10,000 जांच करने की क्षमता
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने रविवार को दावा किया कि भारत में कोरोना वायरस से संबंधित रोजाना 10,000 जांच करने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि आवश्यकता हुई तो इसमें इजाफा किया जा सकता है। भार्गव ने कहा कि पिछले एक सप्ताह में हमने 5,000 मामलों की जांच की है। और अब तक करीब-करीब 17,000 जांच हम कर चुके है। विदेश से लौटने वालों की पूरी जांच की जा रही है। कोरोना का संक्रमण पाये जाने पर उन्हें आइसोलेशन वार्ड में रखा जा रहा है। संक्रमित लोगों की उचित चिकित्सा सुविधा देने के साथ ही उनकी पूरी निगरानी की जा रही है। देश में कई जगहों पर आइसोलेशन सेंटर्स बनाए गए है, वहीं देशभर में 57 जगहों पर कोरोना की जांच के लिए सैंपल दिए जा सकते हैं।
हेल्थकेयर के क्षेत्र में 2.3 लाख करोड़ रुपये खर्च
मोदी सरकार में 2014 से 2019 के दौरान हेल्थकेयर के क्षेत्र में 2.3 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो यूपीए-2 के शासन (2009-14) के दौरान किए गए खर्च से दोगुना है। इसके अलावा मोदी सरकार में आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीबों के 5 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज पर 12 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए। एक अनुमान के मुताबिक देश के 50 करोड़ लोगों को अब पांच लाख रुपये तक का इलाज कराने पर अस्पताल को एक भी पैसा नहीं देना पड़ेगा।
2014 तक देश में यूजी मेडिकल सिटों की कुल संख्या 52 हजार थी, जो मोदी सरकार में बढ़कर 88,250 हो गई है। वहीं 2014 में पीजी मेडिकल सिटों की कुल संख्या 30 हजार थी, जो मोदी सरकार में बढ़कर 46 हजार तक पहुंच चुकी है।
मेडिकल कॉलेजों की संख्या में बढ़ोतरी
2014 में देश में एम्स अस्पतालों की कुल संख्या 7 थी, जो मोदी सरकार में बढ़कर 22 तक पहुंच गई है। 2014 में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 176 थी, जो मोदी सरकार में बढ़कर 276 हो गई है। इसी तरह 2014 में निजी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 209 थी, जो मोदी सरकार में बढ़कर 260 हो गई है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब मोदी सरकार की वजह से सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या निजी मेडिकल कॉलेजों से अधिक हो गई है।
75 नए मेडिकल कॉलेज खुलेंगे
देश में अगले तीन साल के दौरान 75 नए मेडिकल कॉलेज खुलेंगे। इससे एमबीबीएस की 15,700 सीटें भी बढ़ेंगी। 28 अगस्त,2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की मत्रिमंडल समिति की बैठक में इस फैसले को मंजूरी दी गई। इसके तहत 75 जिला अस्पतालों को 2021-22 तक मेडिकल कॉलेज में बदला जाएगा। इसके लिए 24,375 करोड़ रुपए का बजट मंजूर किया गया है। 75 नए मेडिकल कॉलेज बनने के बाद देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 600 से अधिक हो जाएगी।
हर तीन लोकसभा क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज की योजना
देश में मेडिकल कॉलेजों की बेहद कमी है और दूरदराज के लोगों को इलाज के लिए शहरों में आना पड़ता है। इस समस्या को दूर करने के लिए मोदी सरकार ने इस बार के बजट में देश में हर तीन लोकसभा क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि इन मेडिकल कॉलेजों में जहां स्थानीय बच्चों को पढ़ने का अवसर मिलेगा, वहीं लोगों को भी उन्हीं के क्षेत्र में इलाज की सुविधा मिलेगी।
डेढ़ लाख गांवों में वेलनेस सेंटर
केंद्र सरकार डेढ़ लाख गांवों में वेलनेस सेंटर खोल रही है, जहां लोगों को स्वास्थ्य जांच और दवाएं सबकुछ मिलेंगी। सभी वेलनेस सेंटर खुल जाने से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार होगा। इससे सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जा रही स्वास्थ्य योजनाओं तक ग्रामीणों की आसान पहुंच सुनिश्चित होगी।
मरीजों का सस्ते में सर्जरी का मास्टरप्लान
स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने का फैसला लिया है। क्योंकि ये अस्पताल सर्जरी की कई वस्तुओं पर 1900 प्रतिशत तक का मुनाफा कमाते हैं। अब नये सरकारी नियम के अनुसार कैथेटर, डिस्पोजेबल सीरिंज, हार्ट वॉल्व, इम्प्लांट, प्रोस्थेटिक रिप्लेसमेंट में इस्तेमाल सामान, एचआईवी जांच मशीनें, कैनुला और परफ्यूजन सेट जैसे सामानों पर 10 गुना से अधिक लाभ नहीं कमाया जा सकेगा। नये नियम से ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाले सामानों की कीमतों पर नियंत्रण के बाद स्टेंट की तरह ही ये सामान आम मरीजों की पहुंच में होंगे।
प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों में सस्ती दवाएं
देशभर में गरीबों और बुजुर्गों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के अन्तर्गत देशभर में 6 हजार से अधिक जन औषधि केंद्र खोले गए हैं। इन केंद्रों पर 800 से अधिक दवाएं उपलब्ध हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ये दवाएं बाजार में मिलने वाली दवाओं की तुलना में 80 प्रतिशत तक सस्ती हैं।
जीडीपी का 2.5 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च का लक्ष्य
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए लगातार नीतियों में बदलाव कर रहे हैं। सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को 2025 आते-आते जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में दवा और निदान मुफ्त निर्बाध रूप में मिले, इसके लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन नि:शुल्क औषध एवं नि:शुल्क नैदानिक पहल का कार्यान्वयन कर रह रहा है।
जिला अस्पतालों में डायलिसिस मुफ्त
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम के तहत जिला अस्पतालों में गरीबों के लिए निशुल्क डायलिसिस सेवा देने की योजना पर सरकार काम कर रही है। सभी पीएचसी और उप स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं बढ़ाकर, उसे स्वास्थ्य एवं आरोग्य केन्द्रों में बदलने का काम हो रहा है। राज्य सरकारों के सहयोग से “जन औषधि स्कीम” के अंतर्गत सभी के लिए जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत परिवार फ्लोटर आधार पर स्मार्ट कार्ड आधारित नकद रहित स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जा रहा है।
पाठ्यक्रम के बाद ग्रामीण क्षेत्र में सेवा देना अनिवार्य
ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में अच्छे डॉक्टर उपलब्ध हों, इसके लिए केंद्र सरकार के अनुमोदन पर भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में कुछ सुधार किए। अब स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त करने वाले सभी चिकित्सकों को अनिवार्य रूप से दो साल दुर्गम क्षेत्रों में सेवा देनी होगी।
दुर्गम क्षेत्र में सेवा देने वाले चिकित्सकों को मिलेगी वरीयता
भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में बदलाव करके स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में 50 प्रतिशत सीटें सरकारी सेवारत ऐसे चिकित्सा अधिकारियों के लिए आरक्षित कर दी हैं, जिन्होंने कम से कम 3 वर्ष की सेवा दुर्गम क्षेत्रों में की हो। वहीं, स्नातकोत्तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में नामांकन कराने के लिए प्रवेश परीक्षा में दुर्गम क्षेत्रों में सेवा के लिए प्रति वर्ष के लिए 10 प्रतिशत अंक का वैटेज दिया जाएगा, जो कि प्रवेश परीक्षा में प्राप्त अंकों का अधिकतम 30 प्रतिशत प्रोत्साहन अंक दिया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त एनएचएम के तहत, ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने के लिए एमबीबीएस तथा स्नातकोत्तर डॉक्टरों को वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाता है।