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भारत में कोरोना आने से पहले सतर्क हो गए थे पीएम मोदी, वक्त रहते उठाने लगे सख्त एहतियाती कदम

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आज यानि 15 अप्रैल से लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू हो चुका है। इसी बीच कोरोना संक्रमण के मामले 11 हजार को पार कर चुके हैं। लेकिन अमेरिका, यूरोपीय देशों और चीन जैसे हालात फिलहाल नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वक्त रहते कड़े और एहतियाती कदम उठा लिए। अगर प्रधानमंत्री मोदी तत्परात नहीं दिखाते तो स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक कोरोना मरीजों की संख्या लोखों में होती। ऐसे में मोदी सरकार की कोरोना के खिलाफ जंग में अपनायी गई रणनीतियों को दो चरणों में बांट सकते हैं।

लॉकडाउन के दूसरे चरण में मोदी सरकार की पुख्ता तैयारी
लॉकडाउन के दूसरे चरण में सरकार पूरे देश में कोविड-19 मैनेजमेंट को भी पुख्ता कर रही है। देश के जिलों को 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाएगा – हॉट स्पॉट जिले, नॉन-हॉट स्पॉट जिले और ग्रीन जोन जिले। जिलों की श्रेणियों के आधार पर स्वास्थ्य सुविधाएं और सुरक्षा के तमाम उपाय किए जा रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक राज्यों के चीफ सेक्रटरी, डीजीपी, हेल्थ सेक्रटरी, डीएम, एसपी आदि के साथ कैबिनेट सेक्रटरी ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक की। इसमें हॉटस्पॉट पर चर्चा हुई और जमीनी स्तर पर कंटेनमेंट की रणनीति को लेकर बात हुई।

स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता लव अगरवाल ने बताया कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में राज्यों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से मीटिंग में कंटेनमेंट स्ट्रैटिजी फील्ड लेवल को मैनेज करने के बारे में बताया गया। कंटेनमेंट जोन में स्पेशल टीम के जरिए सैंपल टेस्टिंग की जाएगी। बफर जोन में सभी स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएंगी। जिलों के सभी स्टाफ को उचित प्रशिक्षण देने का निर्देश दिया गया है।

अब सरकार आगे की चुनौतियों को देखते हुए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ही जरूरत की अन्य चीजों पर भी ध्यान दे रही है। राज्यों के सहयोग और समन्वय से 1,06,719 आइसोलेशन बेड और 12,024 आईसीयू बेड के साथ 606 अस्पतालों को रिजर्व किया गया है। साथ ही इनकी संख्या में आवश्यकता के हिसाब से बढ़ोतरी की जा रही है। जिलों को स्पेशल कोविड सेंटर्स तैयार करने का निर्देश दिया गया है। लव अगरवाल ने कहा, ‘जो जिले अब तक वायरस से अछूते हैं, उन जिलों को संक्रमण से दूर रखने की कोशिश होती रहे। एक जिले की असफलता, पूरे देश की असफलता का कारण बन सकती है।’

उधर, गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि जो क्षेत्र वायरस के संक्रमण के हॉटस्पॉट नहीं होंगे, उनमें 20 अप्रैल से कुछ छूट दी जाएगी। उन्होंने कहा, ‘गृह मंत्रालय ने आज आदेश जारी कर कहा है कि जो भी लॉकडाउन के दिशा-निर्देशों का कड़ा अनुपालन करना होगा। जिन गतिविधियों में राहत दी जाएंगी, उनमें सोशल डिस्टैंसिंग के नजरिए से कुछ शुरुआती काम करना जरूरी है।’
गृह मंत्रालय ने कहा कि अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके तहत जो लोग मनरेगा में काम करना चाहते हैं, उन्हें रोजगार के अवसर दिए जाएंगे। हालांकि, मजदूरों को मास्क लगाने होंगे। मनरेगा के कामों में सिंचाई, जल संरक्षण के काम को प्राथमिकता दी जाएगी। किसानों को राहत देने के लिए उनकी उपज की खरीद और उन्हें बाजार मुहैया कराने पर जोर दिया जा रहा है। बागवानी, पशुपालन आदि के काम भी होंगे।

 

लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान तैयारियां 
जब हमारे देश में कोरोना का एक भी केस सामने नहीं आया था। तभी प्रधानमंत्री मोदी के आदेश पर एहतियाती कदम उठाने शुरु कर दिए गए थे। उससे पहले ही भारत ने कोरोना प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों की एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। कोरोना के मरीज़ 100 तक पहुंचे, उससे पहले ही भारत में विदेश से आए हर एक यात्री के लिए 14 दिन का आइसोलेशन अनिवार्य कर दिया।

लेकिन सबसे बड़े फैसले की चुनौती तो आगे आने वाली थी। भारत जैसे देश के लिए पूरी तरह लॉकडाउन का फैसला कतई आसान नहीं था। लेकिन देश में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले जब 600 से भी कम थे प्रधानमंत्री मोदी ने अर्थ-व्यवस्था के मुकाबले मानव जीवन को ज्यादा महत्व दिया और पूरे देश को 21 दिन तक लॉकडाउन करने का कड़ा फैसला ले लिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने समस्या बढ़ने का इंतज़ार नहीं किया। बल्कि जैसे ही समस्या दिखी।  उसे तेजी से फैसले लेकर उसी समय रोकने का भरसक प्रयास किया। जहां जनता कर्फ्यू के साथ ही कोरोना से लड़ने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और सुरक्षाकर्मियों का हौसला बढ़ने के लिए ताली और थाली बजाने के लिए देशवासियों से अपील की, वहीं देशवासियों में कोरोना वायरस के प्रति जागरूकता और सुरक्षा बढ़ाने के लिए 5 अप्रैल को रात 9 बजे, 9 मिनट तक दीप जलाने का भी आह्वान किया। इसका पूरे देश के लोगों ने समर्थन दिया। देशभर में सोशल डिस्टेंसिंग का अद्भुत नजारा देखने को मिला। लोगों ने अपने जज्बे से दिखाया की कोरोना के खिलाफ जंग में प्रधानमंत्री मोदी के साथ है और उनके हर फैसले का सम्मान करते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के इतने बड़े और ऐतिहासिक फैसले का असर भी साफ दिखा है। इस असर को अगर हम सतही तौर पर देखने या समझने की कोशिश करेंगे तो फर्क समझ में नहीं आएगा। लेकिन अगर हम दुनिया भर के आंकड़ों की समीक्षा करेंगे तो हमें समझ में आ जाएगा कि अगर सही वक्त पर प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन का फौलादी फैसला नहीं लिया होता तो भारत में हालात कितने भयावह हो जाते।

कोरोना वायरस ने चीन से निकलकर जब दुनिया के दूसरे देशों में पैर पसारना शुरू किया तो डब्ल्यूएचओ ने भारत को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी। क्योंकि भारत की 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी और आबादी का घनत्व कोरोना जैसे वायरस के लिए सबसे आसान जमीन मुहैया करा सकती थी। आईसीएमआर की एक आंतरिक स्टडी के आंकड़ों के मुताबिक अगर देशभर में लॉकडाउन और कंटेनमेंट प्लान नहीं बनता तो 15 अप्रैल तक पूरे देश में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या लाखों में पहुंच जाती। भारत का हाल इटली ईरान और अमेरिका जैसा हो जाता।

आईसीएमआर की एक स्टडी के मुताबिक एक संक्रमित व्यक्ति 400 से ज्यादा लोगों को 1 महीने में संक्रमित कर सकता है। इसी स्टडी के आधार पर एक प्रोजेक्शन तैयार किया गया था। इसके मुताबिक अगर देश में लॉकडाउन और कंटेनमेंट नहीं किया जाता तो 10 अप्रैल तक 2,08,544 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाते। वही 15 अप्रैल तक ये आंकड़ा 8 लाख 20 हजार को छू लेता। मीडिया खबर के अनुसार विदेश सचिव (पश्चिम) विकास स्वरूप ने कहा कि सोशल डिस्टैंसिंग के उपाय नहीं अपनाए जाने पर वायरस की प्रजनन दर 2.5 व्यक्ति प्रति दिन होती, लॉकडाउन की वजह से इसमें 75 प्रतिशत की कमी आई और यह दर घट कर 0.625 व्यक्ति प्रति दिन रह गई।

लेकिन अप्रैल का दूसरा हफ्ता बीत जाने के बाद भी भारत में संक्रमण के मामले अगर 11,000 के करीब सीमित हैं तो समझिए भारत में लॉकडाउन काफी हद तक सफल रहा है। अगर तबलीगी जमात के मामले सामने नहीं आए होते,तो ये आंकड़ा और भी कम होता। लेकिन तबलीगी जमातियों के दिल्ली से देश के दूसरे राज्यों में जाने से कोरोना वायरस के फैलाव में मदद मिली।

जब अमेरिका जैसे विकसित और मेडिकली सुपर एडवांस देश में संक्रमण के मामले 6 लाख की खतरनाक दहलीज पर पहुंच चुके हैं। शायद यही वजह है कि लॉकडाउन खत्म होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इसे काफी सोच-विचार करके और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्रणा कर 3 मई तक बढ़ाने का ऐलान कर दिया।

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