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कांग्रेस का सूरज पूरब में भी बुरी तरह डूबा, पीएम मोदी का Congress-Mukt BHARAT का विजन और रंग लाया, देश में कांग्रेस ने 331 एमएलए गंवाए तो बीजेपी 474 विधायक बढ़ाकर और मजबूत हुई

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पीएम नरेन्द्र मोदी का कांग्रेस-मुक्त भारत का विजन देश में हर ओर तेजी से साकार हो रहा है। एक ओर पीएम मोदी केंद्र की राजनीति के उदीयमान नक्षत्र बनते जा रहे हैं, दूसरी ओर कांग्रेस जनता के भरोसे और विश्वास के साथ-साथ जनाधार भी खो रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस का ग्राफ लगातार पतन की ओर है। पीएम मोदी ने बीजेपी को जीत का वो मंत्र दिया है, जिस पर सवार होकर पार्टी विजयी अभियान पर निकलती है और हर चुनाव में जनता सीटों से उसकी झोली भर देती है। पीएम मोदी ने सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास के इस मंत्र के साथ ही कल्याणकारी योजनाओं का सैचुरेशन यानी शत-प्रतिशत कवरेज लक्ष्य हासिल करने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए हैं। इससे कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति पूरी तरह भरभराकर बिखर गई। एक बार फिर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सूरज पूरब में भी उदयी नहीं हो पाया और होली से पहले ही नॉर्थ ईस्ट भगवा रंग में रंग गया। मेघालय में कांग्रेस 21 से 5 पर जा गिरी। नगालैंड में कांग्रेस जीरो के साथ विराजमान है। त्रिपुरा समेत तीनों राज्यों में बीजेपी और बीजेपी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है।पांच राज्यों में कांग्रेस के जीरो विधायक, 9 राज्यों में हैं 10 से कम एमएलए
पीएम मोदी के कुशल नेतृत्व और जन कल्याणकारी नीतियों के चलते लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों तक में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ रही है। जनमानस पीएम मोदी के कांग्रेस-मुक्त भारत के नारे का मुरीद है और बीजेपी की जीत के साथ कांग्रेस का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है। त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड से पहले बीजेपी की उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में शानदार वापसी हुई और कांग्रेक ने तो पंजाब में अपनी सरकार भी गंवा दी। बाकी चार राज्यों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत शर्मनाक स्थिति तक पहुंच गया। कांग्रेस को सदमे पर सदमों का दौर 2014 से चल रहा है। गिने-चुने राज्यों को छोड़ दें तो देश की सबसे पुरानी पार्टी कहे जाने वाली कांग्रेस तेजी से सिमट रही है। देश में कुल 4033 विधायक हैं, इनमें कांग्रेस के 658 बचे हैं। पिछले 9 सालों में कांग्रेस विधायकों की संख्या 24% से घटकर 16% ही रह गई है। पांच राज्यों में तो पार्टी का कोई विधायक ही नहीं बचा। वहीं 9 राज्यों में 10 से कम विधायक हैं। 1951 में तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस की अब सिर्फ तीन राज्यों में सरकार बचा है।2014 से पहले कांग्रेस की 11 राज्यों में सरकार, अब तीन राज्यों में ही बची
पीएम मोदी के केंद्र में आविर्भाव के बाद कांग्रेस की दयनीय दशा और दिशा को आंकड़ों में जानें तो हालात आसानी से समझ में आ जाएंगे। 2014 से पहले कांग्रेस सरकार 11 राज्य में थी। ये राज्य थे-हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, केरल-गठबंधन, महाराष्ट्र-गठबंधन, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, उत्तराखंड, अरुणाचल और असम। कांग्रेस के छह राज्यों में दस से कम विधायक थे। ये राज्य थे-पुडुचेरी, तमिलनाडु, गोवा, नगालैंड, बिहार और दिल्ली। इतना ही नहीं देश के 14 राज्यों में तब कांग्रेस मजबूत विपक्ष की भूमिका में हुआ करती थी। ये राज्य थे- बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश, नगालैंड, ओडिशा, पुडुचेटी, पंजाब, राजस्थान तमिलनाडु, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल। एकमात्र सिक्किम ही ऐसा राज्य था, जिसमें कांग्रेस का कोई विधायक नहीं था।पांच राज्यों में जीरो विधायक और नौ राज्यों में विधायक दो अंकों में भी नहीं
पीएम मोदी नौ साल में ही कांग्रेस-मुक्त भारत के नारे को चरितार्थ करके दिखा दिया है। आज की बात करें तो कांग्रेस देश के सिर्फ तीन राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में अपने बूते पर सरकार में है। तीन राज्यों- बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में गठबंधन सरकार में कांग्रेस बची है। सत्ता में ही नहीं विपक्ष में भी कांग्रेस की भूमिका सिमट रही है। जहां मोदी-इरा से पहले वह 16 राज्यों में मुख्य विपक्षी दल थी। अब सिर्फ नौ राज्यों में रह गई है। वे राज्य हैं- असम, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और पंजाब। कांग्रेस के हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नौ राज्यों में तो उसके 10 से कम विधायक रह गए हैं। ये राज्य हैं- अरुणाचल, गोवा, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, ओडिशा, तेलंगाना, यूपी, पुडुचेरी। इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति क्या होगी कि पांच राज्यों-आंध्र प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में कांग्रेस का पूरी तरह सूपड़ासाफ हो चुका है। इन राज्यों में उसके जीरो विधायक हैं।मोदी का जादू: कांग्रेस ने 331 विधायक गंवाए तो बीजेपी ने 474 बढ़ाए
2014 में नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से पहले देश की तीस विधानसभाएं में कुल 4120 विधायक थे। इनमें से कांग्रेस विधायक 989 थे। यानि पार्टी की 24% हिस्सेदारी थी। अब नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव के बाद देश में कुल 4033 विधायक हैं। बता दें कि जम्मू-कश्मीर को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से 2023 में विधायकों की संख्या घटी है। अब कुल विधायकों में से कांग्रेस के पास 658 विधायक हैं। यानि हिस्सेदारी घटकर 16% पर ही आ गई है। दूसरी ओर 2014 में नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से ठीक पहले बीजेपी के 947 विधायक थे। कुल विधायकों में पार्टी की हिस्सेदारी 23% थी। आज की बात करें तो नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव के बाद बीजेपी विधायकों की संख्या तेज गति से बढ़कर 1421 पर पहुंच गई है। कुल विधायकों में बीजेपी की हिस्सेदारी एक तिहाई से ज्यादा यानि 35% हो गई है।लोकसभा में हालत और पतली, कांग्रेस के 10 फीसदी भी सांसद नहीं बचे
विधानसभाओं में ही नहीं, पीएम मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद लोकसभा में भी कांग्रेस की हालत पतली होती जा रही है। कांग्रेस के न सिर्फ सांसद घटे हैं, बल्कि उसे पसंद करने वाले मतदाता भी तेजी से गिरे हैं। जहां 1952 में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 45 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं पिछले दो लोकसभा चुनावों में उसका मत प्रतिशत बुरी तरह से घटकर 19 फीसदी के करीब ही रह गया है। यानि पीएम मोदी का कांग्रेस-मुक्त भारत का विजन बहुत तेजी से काम कर रहा है। यही हालात रहे तो अगले साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सिमट जाएगी। आइये लोकसभा में शुरू से लेकर अब तक कांग्रेस के प्रदर्शन पर एक नजर डालते हैं…

वर्ष     कुल सीट कांग्रेस जीती वोट शेयर लाभ हानि
1952   401     364     45.0%      —
1957   403     371     47.8%    +2.8%
1962   494     361     44.7%    -3.1%
1967   520     283     40.8%    -3.9%
1971   518     362     43.7%    +2.9%
1977   543     154     34.5%    -9.2%
1980   543     353     42.7%    +8.2%
1984   543     415     48.1%    +5.9%
1989   543     197     39.5%     -8.6%
1991   543     244     36.4%     -3.1%
1996   543     140     28.80      -7.6%
1998   543     141     25.8%     -3%
1999   543     114     28.3%     +2.5%
2004   543     145     26.5%     -1.9%
2009   543     206     28.6%     +2.1%
2014   543       44     19.5%     -9.1%
2019   543       52     19.7%     +0.2%

कांग्रेस-मुक्ति की दोतरफा मार: डूबते जहाज को देख कई नेताओं ने दामन छोड़ा
कांग्रेस को दरअसल दो तरफा मार झेलनी पड़ रही है। पीएम मोदी के दूरदृष्टा विजन के चलते वह जनता के बीच अलोकप्रिय तो होती ही जा रही है। इसके साथ ही जैसे जहाज डूबने से पहले चूहे सबसे पहले भागते हैं, वैसे ही कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी का दयनीय भविष्य देखते हुए लगातार उसे छोड़ते जा रहे हैं। पार्टी में यूं तो असंतोष और बगावत का सिलसिला काफी पुराना है, लेकिन 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से कांग्रेस नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला बहुत तेज हुआ है। इसका कारण कांग्रेस पर गांधी परिवार की पकड़ का कमजोर होना, गांधी परिवार के समझ से परे फैसले और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी और अनादर करना है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद न सिर्फ बीजेपी का विस्तार हुआ है, बल्कि कांग्रेस के कई बड़े नेता हाथ का साथ छोड़कर भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं। हालात इतने बदतर हैं कि पिछले नौ साल में आठ पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कई बड़े नेता ही कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं।

दरअसल, कांग्रेस आलाकमान तिकड़ी की मनमानी के चलते पूर्व मुख्यमंत्री ही नहीं, कई और कद्दावर नेता भी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं और यह सिलसिला जारी है। पार्टी का जहाज सियासत के समंदर में हिचकोले खा रहा है। कांग्रेस का कुनबा लगातार बिखरता जा रहा है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कार्यशैली से नाराज होकर कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की लंबी कतार है। कांग्रेस से एक के बाद एक कई युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने या आलाकमान से नाराजगी से यह सवाल उठना जायज है कि क्या वाकई बिना जनाधार वाले नेता तानाशाही कर रहे हैं।आइए डालते हैं एक नजर…

राहुल गांधी बेहद अपरिपक्व नेता और बचकाना व्यवहार करने वाले व्यक्ति-आजाद
कैप्टन अमरिंदर के बाद में  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से किनारा कर अपनी नई पार्टी का गठन किया। आजाद कांग्रेस के उस ग्रुप-23 का हिस्सा रहे हैं, जो कांग्रेस आलाकमान पर सवाल उठाता रहा है। गुलाम नबी ने इस्तीफे के दौरान यह भी आरोप लगाया कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बेहद अपरिपक्व नेता हैं और बहुत ही बचकाने व्यवहार करते हैं। आजाद ने आरोप लगाया कि अब सोनिया गांधी नाममात्र की ही नेता रह गई हैं, क्योंकि पार्टी के सारे फैसले राहुल गांधी के ‘सिक्योरिटी गार्ड और निजी सहायक’ करते हैं। आजाद से पहले जी-23 के कुछ और वरिष्ठ नेता भी कांग्रेस को अलविदा कह गए थे।कर्नाटक के कृष्णा बोले-राहुल की पार्ट टाइम राजनीति से कांग्रेस की वापसी नहीं होगी
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा ने कांग्रेस के छोड़ने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर जमकर सियासी तीर दागे हैं। भाजपा में शामिल हुए कृष्णा ने कहा है कि राहुल की पार्ट टाइम राजनीति की राह से कांग्रेस की सियासी वापसी नहीं होगी। राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस को अपना राजनीतिक स्थान फिर से हासिल करना है तो फिर उसे गांधी परिवार के वंशवादी नेतृत्व का मोह छोड़ना होगा। कृष्णा ने राहुल गांधी के बीच-बीच में सरकार पर हमले की रणनीति की आलोचना करते हुए कहा कि हिट एंड रन की राजनीति से वे कांग्रेस का भला नहीं कर सकते।महाराष्ट्र में नारायण राणे से किया वादा सोनिया ने नहीं निभाया, हाथ का छोड़ा साथ 
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे 2017 में ही तमाम अटकलों को सही साबित करते हुए कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं। उन्होंने पार्टी छोड़ने के साथ विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा देते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस आलाकमान ने उनके किया वादा नहीं निभाया। कांग्रेस को अलविदा कहने का ऐलान करते हुए राणे ने कहा था, ‘मैंने 12 साल पहले जब शिव सेना छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था, तब सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने मुझे मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। मैडम (सोनिया गांधी) ने ते मुझसे दो बार कहा था कि मुझे सीएम बनाया जाएगा, लेकिन वे दोनों इससे मुकर गए।’ राणे ने कहा कि कांग्रेस के कर्ता-धर्ता पार्टी को आगे ले जाने के इच्छुक नहीं हैं। इससे पहले वे शिव सेना में थे और 1999 में छह महीने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे।

कांग्रेस अपने आदर्श और सिद्धांत के विपरीत कर रही काम-फ्लेरियो
गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को दिए अपने त्यागपत्र में लिखा कि “वर्तमान स्थिति को देखते हुए पार्टी का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है।” मैंने पार्टी को जोड़ने का पूरा प्रयास किया, लेकिन हाईकमान की नजरअंदाजी हर बार भारी पड़ी है। हालात यह हैं कि कांग्रेस अब अपने संस्थापकों के हर आदर्श और सिद्धांत के विपरीत काम कर रही है। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री रहे शंकर सिंह बाघेलाल 2017 में कांग्रेस का साथ छोड़कर बाहर निकल गए। इसके अलावा एक दिन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे जगदम्बिका पाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा भी कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं।

घुटन-उपेक्षा महसूस कर रहे कई नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी के अंदर युवा नेता घुटन और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि पार्टी उनकी योग्यता और क्षमता के मुताबिक भूमिका नहीं दे रही है। हाइकमान की हिटलरशाही और मनमर्जियों से पार्टी में सियासी घमासान मचा हुआ है। इसलिए नेता अब अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद कैप्टन अमरिंदर सिंह और आरपीएन सिंह ने पार्टी को अलविदा कह दिया। राहुल गांधी के बेहद करीबियों में शुमार किए जाने वाले पांच युवा नेताओं में से तीन अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। जब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तब पांच नेताओं का अक्सर जिक्र होता था। ये पांच नेता हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा। हालांकि भले ही सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा अभी कांग्रेस के साथ दिख रहे हैं, लेकिन कुछ चीजें बड़े घटनाक्रम की तरफ भी इशारा करती हैं। महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा बीते कुछ साल से लगातार कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठाते हुए चिंता जाहिर करते रहे हैं और कुछ मौकों पर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ भी कर चुके हैं।

आरपीएन सिंह
राहुल गांधी की कोर टीम में शामिल उत्तर प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता आरपीएन सिंह यानी रतनजीत प्रताप नारायण सिंह मंगलवार, 25 जनवरी को बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी में शामिल होने के बाद पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने कहा कि यह मेरे लिए एक नई शुरुआत है। इसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और मार्गदर्शन में राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान के लिए तत्पर हूं। कुशीनगर के सैंथवार के शाही परिवार से आने वाले आरपीएन सिंह पूर्वांचल में एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। आरपीएन सिंह कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद और अनुभवी नेताओं में से एक थे और उनके बीजेपी का दामन थाम लेने से राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है।ज्योतिरादित्य सिंधिया
मध्य प्रदेश में जनाधार वाले लोकप्रिय युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की अनदेखी के कारण हाल ही में बीजेपी में शामिल हो गए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ राज्य के कई अन्य विधायक और युवा नेता भी बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। इससे राज्य में कांग्रेस काफी कमजोर हो गई है।

जितिन प्रसाद
राहुल गांधी की कोर कमेटी में शामिल जितिन प्रसाद ने 9 जून, 2021 को कांग्रेस को जोरदार झटका दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। यूपी में बड़े ब्राह्मण चेहरों में शामिल जितिन प्रसाद को योगी आदित्यनाथ के कैबिनेट में प्राविधिक शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है।खुशबू सुंदर
अभिनेत्री से राजनेता बनीं खुशबू सुंदर ने हाल ही में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में खुशबू ने आरोप लगाया कि पार्टी में ऊपर बैठे जिन लोगों का जमीनी स्तर पर कोई जुड़ाव नहीं है और वे तानाशाही कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरी तरह जो लोग काम करना चाहते हैं उन्हें दबाया जा रहा है। अपने पत्र में खुशबू सुंदर ने लिखा कि कांग्रेस के 2014 लोकसभा चुनाव हार जाने के बावजूद उन्होंने पार्टी ज्वाइन की थी, लेकिन यहां काम करने वाले लोगों की अनदेखी की जाती है।

संजय झा
इसके पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय झा ने एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू और लेख के जरिए कांग्रेस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा किया था। पार्टी की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से कांग्रेस प्रवक्ता पद से हटा दिया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अपने लेख और द प्रिंट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा था कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है। संजय झा ने दावा किया कि पार्टी के पास एक आंतरिक मजबूत तंत्र नहीं है। उन्होंने लिखा है कि पार्टी के अंदर सदस्यों की बात नहीं सुनी जाती है। अपने लेख में झा ने यह भी कहा कि पार्टी सरकार के विफल होने पर लोगों को शासन का कोई वैकल्पिक विवरण प्रस्तुत नहीं कर सकती।

हेमंत बिस्वा शर्मा
असम के लोकप्रिय नेता हेमंत बिस्वा शर्मा को भी मजबूर होकर पार्टी से निकलना पड़ा। यहां के बुजुर्ग कांग्रेसी नेता तरुण गोगोई के साथ मतभेदों के कारण उन्हों हाशिए पर डाल दिया गया था। 2001 से 2015 तक कांग्रेस के विधायक हेमंत बिस्वा शर्मा 2016 में बीजेपी में आ गए। राज्य में कांग्रेस को हराने में इनका अहम योगदान रहा है। हेमंत बिस्वा शर्मा अभी असम सरकार में मंत्री हैं।प्रियंका चतुर्वेदी
कांग्रेस की एक तेजतर्रार युवा प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी को भी पार्टी नेतृत्व की अनदेखी के कारण बाहर होना पड़ा। उन्हें पार्टी में दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ा। आखिर में वे शिवसेना में शामिल हो गईं।वाईएस जगन मोहन रेड्डी
वाईएस जगन मोहन रेड्डी वर्तमान में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी दो बार राज्य के सीएम रह चुके हैं। 2009 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु के बाद लोगों ने जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की लेकिन पार्टी आलाकमान ने इसे ठुकरा दिया। आखिर में पार्टी से नाराज होकर इन्होंने 2010 में अलग पार्टी बना ली और आज राज्य में इनकी सरकार है।सुष्मिता देव
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष और सिलचर से पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने अगस्त, 2021 में पार्टी छोड़ दिया है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की करीबी सुष्मिता देव ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस्तीफा देकर ट्विटर पर कांग्रेस की ‘पूर्व सदस्य’ लिख दिया। कांग्रेसी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता असम चुनाव के समय से ही कांग्रेस नेतृत्व से नाराज चल रही थी।अशोक तंवर
हरियाणा में कांग्रेस के बड़े और युवा चेहरों में शुमार दिग्गज नेता अशोक तंवर भी 23 नवंबर, 2021 को पार्टी छोड़ टीएमसी में शामिल हो गए। राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले अशोक तंवर जाने से हरियाणा में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा।अदिति सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से विधायक अदिति सिंह ने पार्टी का हाथ छोड़ बड़ा झटका दिया। अदिति को राहुल-प्रियंका का करीब माना जाता था। लेकिन अदिति कांग्रेस के कार्यकलाप और पार्टी की नीतियों से नाराज चल रही थीं।मिलिंद देवड़ा
महाराष्ट्र के युवा नेता मिलिंद देवड़ा ने हाल में ही मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है, लेकिन पार्टी आलाकमान के रवैये से नाराज चल रहे हैं। कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह
नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस को अब एक और झटका लगा है। जम्मू कश्मीर के कद्दावर कांग्रेस नेता कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी है। मंगलवार को उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देने का ऐलान किया है। विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि, जम्मू-कश्मीर से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनके विचार पार्टी के साथ नहीं मिलते हैं। उन्होंने पार्टी पर जमीनी वास्तविकताओं से अनजान रहने का भी आरोप लगाया।

कश्मीर में बदलती जनभावनाओं और आकांक्षाओं के अनुकूल काम करने की जरूरत
विक्रमादित्य सिंह ने कहा-वर्ष 2018 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद मैंने कई मुद्दों और घटनाओं के समर्थन में खुलकर अपने विचार व्यक्त किए हैं, जो कांग्रेस पार्टी के रुख से मेल नहीं खाते हैं। इसमें पीओजेके में बालाकोट हवाई हमला, जम्मू कश्मीर में ग्राम रक्षा समितियों (वीडीसी) का पुन: सशक्तीकरण, अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करने, लद्दाख यूटी का गठन, गुपकार गठबंधन की निंदा, जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया आदि का समर्थन शामिल है। पूर्व एमएलसी ने कहा कि वह हमेशा जम्मू-कश्मीर के लोगों के हित में और विशेष रूप से राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए उनके साथ खड़े रहे हैं। भारत तेजी से विकसित होने वाला देश है।

 

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