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One Nation-One Election से देश का कीमती समय और करोड़ों रुपये बचेंगे, कोविंद कमेटी की सिफारिशें 2029 से लागू हुईं तो 10 राज्य सरकारों का कार्यकाल बढ़ेगा, 13 विधानसभाओं का घटेगा

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लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति की सिफारिश सामने आ गई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। एक देश-एक चुनाव… यानी देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की तैयारी है। इससे हर समय चुनावी मोड में रहने के झंझट से आजादी के अलावा देश का करोड़ों रुपया और समय भी बचेगा, जो विकसित भारत बनाने के काम आएगा। सिर्फ सात महीने के अल्पकाल में ही तैयाक इस रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने का रास्ता और उसके लिए संविधान संशोधन की विधायी जरूरतों का शानदार ब्लूप्रिंट दिया गया है। इसका असर यह होगा कि इन सिफारिशों को जिस साल से लागू किया जाएगा, राज्य सरकारों का बचा कार्यकाल भी उसी साल तक चलेगा। मान लीजिए, 2029 से सिफारिशें लागू होती हैं तो 2027 या 2023 में चुनी गई राज्य सरकारों का कार्यकाल 2029 तक घट-बढ़ जाएगा। ऐसे में 10 सरकारों का कार्यकाल बढ़ेगा और 13 का घट जाएगा। हालांकि, ये कब से लागू होगा, अभी तय नहीं है।बार-बार चुनाव अनिश्चितता पैदा करने के साथ सरकारी मशीनरी को धीमा करते हैं
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘देश में बार-बार अलग-अलग जगह पर चुनाव ना सिर्फ अनिश्चितता पैदा करते हैं, बल्कि आचार संहिता समेत अन्य कारकों के चलते सरकारी मशीनरी को धीमा कर देते हैं।’ इसमें कहा गया है, ‘जब बार-बार चुनाव होते हैं तो अक्सर पांच साल का आधा समय चुनाव प्रचार में बीत जाता है।’ समिति ने पहले चरण के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की, फिर 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18 हजार से ज्यादा पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा, लोकतांत्रिक परंपरा की नींव गहरी होगी और देश की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी। इसका सत्ता पक्ष ने स्वागत किया है।समिति ने गहन शोध के बाद 191 दिनों में 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति का कहना है कि सभी पक्षों, जानकारों और शोधकर्ताओं से बातचीत के बाद ये रिपोर्ट तैयार की गई है। 191 दिनों में तैयार इस 18,626 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे जिनमें से 32 राजनीतिक दल ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के पूर्णत: समर्थन में थे। इस समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ़ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर क़ानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डॉ. नितेन चंद्रा समिति में शामिल थे। जिन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है उनमें क्या होगा
यदि ये सिफारिशें 2029 से लागू होती हैं, तो जिन राज्य सरकारों का कार्यकाल 2028 तक है, उनका क्या होगा? इनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना और मिजोरम की विधानसभाओं का कार्यकाल एक जनवरी 2028 से 19 दिसंबर 2028 के बीच समाप्त होना है। इनके चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ 2029 में कराने के लिए टाले जा सकेंगे। यह संवैधानिक प्रावधान सिर्फ एक बार के लिए होगा और चुनाव साथ आने के बाद ये व्यवस्था खत्म हो जाएगी। इसके अलावा जिन दिल्ली, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल, पुदुचेरी, मणिपुर, गोवा, पंजाब, उत्तराखंड, यूपी और गुजरात की विधानसभाओं का कार्यकाल फरवरी 2025 से दिसंबर 2027 के बीच खत्म हो रहा है। निर्धारित समय पर विधानसभा चुनाव के बाद इन 13 राज्यों का कार्यकाल 2029 में ही खत्म कर दिया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा के चुनाव एकसाथ होंगे। दूसरे चरण में लोकसभा चुनाव होने के 100 दिन के भीतर पंचायत-निकाय चुनाव कराने की व्यवस्था की जाएगी।

आइए जानते हैं कि आखिर समिति ने रिपोर्ट में ‘एक देश, एक चुनाव’ की जरूरत को लेकर क्या दलीलें दी हैं और रिपोर्ट में समिति ने क्या प्रमुख सिफारिशें की है?

  • आजादी के बाद पहले दो दशकों तक साथ में चुनाव न कराने का नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर पड़ा। पहले हर दस साल में दो चुनाव होते थे, अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं। इसलिए सरकार को साथ-साथ चुनाव के चक्र को बहाल करने के लिए क़ानूनी रूप से तंत्र बनाना करना चाहिए।
  • चुनाव दो चरणों में कराए जाएं। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव कराए जाएं। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव हों। इन्हें पहले चरण के चुनावों के साथ इस तरह कोऑर्डिनेट किया जाए कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के सौ दिनों के भीतर इन्हें पूरा किया जाए।
  • इसके लिए एक मतदाता सूची और एक मतदाता फोटो पहचान पत्र की व्यवस्था की जाए। इसके लिए संविधान में ज़रूरी संशोधन किए जाएं। इसे निर्वाचन आयोग की सलाह से तैयार किया जाए।
  • समिति की सिफ़ारिश के अनुसार त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में नए सदन के गठन के लिए फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं। इस स्थिति में नए लोकसभा (या विधानसभा) का कार्यकाल, पहले की लोकसभा (या विधानसभा) की बाकी बची अवधि के लिए ही होगा। इसके बाद सदन को भंग माना जाएगा।
  • इन चुनावों को ‘मध्यावधि चुनाव’ कहा जाएगा, वहीं पांच साल के कार्यकाल के ख़त्म होने के बाद होने वाले चुनावों को ‘आम चुनाव’ कहा जाएगा।
  • आम चुनावों के बाद लोकसभा की पहली बैठक के दिन राष्ट्रपति एक अधिसूचना के ज़रिए इस अनुछेद के प्रावधान को लागू कर सकते हैं। इस दिन को “निर्धारित तिथि” कहा जाएगा।
  • इसके बाद लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के सभी एक साथ चुनाव कराए जा सकेंगे। एक समूह बनाया जाए जो समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन पर ध्यान दे।
  • लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए ज़रूरी लॉजिस्टिक्स, जैसे ईवीएम मशीनों और वीवीपीएटी खरीद, मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती और अन्य व्यवस्था करने के लिए निर्वाचन आयोग पहले से योजना और अनुमान तैयार करे। वहीं नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए ये काम राज्य निर्वाचन आयोग करे।
  • ‘एक देश, एक चुनाव’ का लागू किया जाना एक बड़ा काम होगा। एक साथ चुनावों में सबसे बड़ी चुनौतियां सैनिकों की तैनाती और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की खरीद को लेकर पैदा होंगी।
  • परामर्श के दौरान एक सुझाव यह था कि मांग को पूरा करने के लिए ईवीएम निर्माण को मजबूत करने तक ग्रामीण क्षेत्रों में पेपर बैलेट से मतदान हों।

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