प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब से केंद्र की सत्ता में आए हैं नामुमकिन को भी मुमकिन बनाने में लगे हैं। भारत के उत्तर-पूर्व में बीते 50 वर्षों से बोडो समस्या चली आ रही थी। इसकी वजह से लगभग चार हजार लोगों की जानें गईं। इसका समाधान असंभव लग रहा था, लेकिन पीएम मोदी ने ऐतिहासिक बोडो समझौता कर इसे संभव बना दिया। इस समझौते के उपलक्ष्य में 7 फरवरी, 2020 को असम के कोकराझार में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी भी हिस्सा लेंगे। कार्यक्रम में बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीएडी) जिलों के 4 लाख से अधिक लोगों के शामिल होने की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री मोदी समारोह में मौजूद लोगों को भी संबोधित करेंगे। इसके अलावा असम सरकार, राज्य की विभिन्नता पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करेगी। स्थानीय समुदाय इस कार्यक्रम में प्रस्तुतियां देंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने ऐतिहासिक बोडो समझौते की तारीफ करते हुए इसे असम की एकता और अखंडता को मजबूत करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि एक तरफ देश जहां बापू को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रहा है, उसी वक्त असम शांति और विकास के ऐतिहासिक अध्याय का गवाह बन रहा है।
पूज्य बापू की पुण्यतिथि पर आज असम में 5 दशकों से चली आ रही समस्या का समाधान हुआ है। बोडो संगठनों और सरकार के बीच हुए समझौते ने असम की एकता-अखंडता को और मजबूत किया है। हिंसा छोड़कर, लोकतंत्र और संविधान में आस्था जताने के लिए, मैं अपने बोडो साथियों के निर्णय का स्वागत करता हूं।
— Narendra Modi (@narendramodi) January 30, 2020
पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि इस समझौते से बोडो लोगों के जीवन में बदलाव आएगा और शांति, सद्भावना और मिलजुलकर रहने के एक नई सुबह की शुरूआत होगी। यह समझौता प्रधानमंत्री के सबका साथ, सबका विकास विजन और पूर्वोत्तर क्षेत्र के समग्र विकास के लिए प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
बोडो साथियों के साथ समझौता असम के अन्य समुदायों के हितों की रक्षा करते हुए किया गया है। इसमें सभी की जीत हुई है, मानवता की जीत हुई है। ये जीत और उसके लिए हुए प्रयास सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के मंत्र से प्रेरित हैं, एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना से प्रेरित हैं।
— Narendra Modi (@narendramodi) January 30, 2020
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट में कहा कि ‘बोडो समझौता कई कारणों से अलग है। जो लोग पहले हथियार के साथ प्रतिरोधी समूहों से जुड़े हुए थे वे अब मुख्य धारा में प्रवेश करेंगे और हमारे राष्ट्र की प्रगति में योगदान देंगे।
बोडो साथियों द्वारा शांति का मार्ग अपनाना, हर क्षेत्र के लिए संदेश है। हिंसा छोड़कर, लोकतंत्र एवं संविधान में आस्था से ही सारी समस्याओं का समाधान संभव है। मैं बोडो साथियों का विकास की मुख्यधारा में स्वागत करता हूं। सरकार बोडो क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध है।
— Narendra Modi (@narendramodi) January 30, 2020
27 जनवरी को हस्ताक्षरित समझौते के अनुसार, एनडीएफबी के विभिन्न गुटों के 1615 कैडरों ने आत्मसमर्पण किया और ये लोग समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिनों के अंदर मुख्यधारा में शामिल हो गए। केंद्र,असम सरकार और बोडो संगठनों के बीच हुए ऐतिहासिक समझौते के बाद एनडीएफबी के लड़ाकों के हथियार डालने का रास्ता साफ हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट में कहा कि बोडो समूहों के साथ समझौता बोडो लोगों की अनूठी संस्कृति को संरक्षित करेगा और लोकप्रिय बनाएगा। लोगों को विकास आधारित कार्यक्रमों तक पहुंच प्राप्त होगी। हम उन सभी चीजों को करने के लिए प्रतिबद्ध है जिससे बोडो लोगों को अपनी आकांक्षा पूरी करने में मदद मिलती हो। क्षेत्र के विकास के लिए 1500 करोड़ रूपये के विशेष पैकेज को अंतिम रूप दिया गया है।
बोडो संगठनों से ऐतिहासिक समझौते के बाद अब सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता बोडो क्षेत्रों का विकास है। इसके लिए 1500 करोड़ रुपये के पैकेज पर जल्द कार्य शुरू करवाया जाएगा। बोडो साथियों का जीवन आसान बने, उन्हें सरकार की योजनाओं का पूरा लाभ मिले, इस पर विशेष जोर दिया जाएगा।
— Narendra Modi (@narendramodi) January 30, 2020
हाल ही में भारत सरकार और मिजोरम एवं त्रिपुरा सरकारों के बीच ब्रू-रियांग समझौता हुआ था। इससे 35,000 ब्रू-रियांग शरणार्थियों को राहत मिली। त्रिपुरा में एनएलएफटी के 85 कैडरों ने आत्मसमर्पण किया। यह पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास और शांति के प्रति प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
गणतंत्र दिवस पर प्रसारित मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने हिंसा के मार्ग पर चलने वाले सभी लोगों को आत्मसमर्पण करने और मुख्यधारा में शामिल होने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर मैं देश के किसी भी हिस्से के उन लोगों से अपील करता हूं कि वे मुख्यधारा में वापस आ जाएं जो हिंसा और हथियारों के माध्यम से समस्या का समाधान चाहते हैं। उन्हें अपनी क्षमताओं के साथ-साथ देश की क्षमता पर भी भरोसा होना चाहिए कि शांतिपूर्ण माहौल में समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।