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दलाई लामा ने बताई सच्चाई- जवाहर लाल नेहरू की वजह से हुआ हिंदुस्तान का बंटवारा

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भारत को बड़े संघर्ष और आंदोलन के बाद ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली थी। हजारों वीर सपूतों ने अपनी शहादत देकर देश के करोड़ों लोगों को स्वतंत्रता दिलाई थी, लेकिन एक शख्स की वजह से यह देश दो टुकड़ों में बंट गया। जी हां, यही सच्चाई है और इस शख्स का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरू। अभी तक देश के लोगों को लगता होगा कि पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने भारत को आजादी दिलाई, लेकिन यह सच नहीं है। सच यह है कि इस शख्स ने अपने निजी लाभ और लालसा को पूरा करने के लिए देश के दो टुकड़े करवा दिए। यह दावा किसी और ने नहीं बल्कि पंडित नेहरू को बेहद करीब से जानने वाले तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने किया है।

गांधी जी चाहते थे जिन्ना को पीएम बनाना-दलाई लामा
गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने पंडित जवाहर लाल नेहरू की असलियत पूरी दुनिया के सामने ला दी। उन्होंने पंडित नेहरू को भारत के बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अगर वे जिन्ना को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाने की बात को स्वीकार कर लेते तो पाकिस्तान नहीं बनता। दलाई लामा ने कहा कि महात्मा गांधी चाहते थे कि मोहम्मद अली जिन्ना देश के शीर्ष पद पर बैठें, लेकिन पहला प्रधानमंत्री बनने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने ‘आत्म केंद्रित रवैया’ अपनाया।

दलाई लामा ने दावा किया कि यदि महात्मा गांधी की जिन्ना को पहला प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा को अमल में लाया गया होता तो भारत का बंटवारा नहीं होता। दलाई लामा ने सामंती व्यवस्था की जगह लोकतांत्रिक प्रणाली को अच्छा बताते हुए कहा कि सामंती व्यवस्था में कुछ ही लोगों के हाथ में निर्णय लेने की ताकत होती है, जो बेहद खतरनाक होता है। उन्होंने कहा कि भारत को आजादी मिलने के बाद कुछ ऐसा ही हुआ और एक व्यक्ति की हठधर्मिता की वजह से भारत दो टुकड़ों में बंट गया। 

आपको बता दें कि जवाहर लाल नेहरू ने खुद प्रधानमंत्री बनने के लिए सिर्फ देश का बंटवारा ही नहीं किया बल्कि प्रधानमंत्री बनकर भारत पर कब्जा ही कर लिया। नेहरू और उनके बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी ने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी को अपनी बपौती बनाया बल्कि देश पर भी कब्जा कर लिया। डालते हैं एक नजर-

देखिए नेहरू-गांधी खानदान ने भारत पर कितने साल राज किया 
आजादी के बाद से ही पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मन में देश पर कब्जा करने की जो इच्छा थी, उसे उन्होंने ही नहीं बल्कि उनके पूरे खानदान ने पूरा किया। आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ हो जाएगा कि आजादी के बाद के इन 70 सालों में करीब 53 साल कांग्रेस की ही सरकार रही है और इसमें से 38 साल तो गांधी परिवार के ही प्रधानमंत्री ने देश पर राज किया है। गैरकांग्रेसी सरकार ने देश पर सिर्फ 17 साल तक ही शासन किया है, वह भी अलग-अलग समय पर अलग पार्टी की सरकार रही है।

कार्यकाल  प्रधानमंत्री गैर कांग्रेसी सरकार
24 मार्च, 1977 से 28 जुलाई, 1979  मोरारजी देसाई
28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980  चौधरी चरण सिंह तीन साल जनता पार्टी 
2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर, 1990  वीपी सिंह
10 नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991   चंद्रशेखर दो साल से भी कम  जनता दल
16 मई, 1996 से 1 जून, 1996  अटल बिहारी वाजपेयी
1 जून, 1996 से 21 अप्रैल, 1997  एचडी देवगौड़ा
21 अप्रैल, 1997 से 19 मार्च, 1998  आईके गुजराल
19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004   अटल बिहारी वाजपेयी आठ साल जनता दल और बीजेपी
26 मई, 2014 से अभी तक नरेंद्र मोदी चार साल से बीजेपी

 

आजादी के 70 साल, 53 साल तक शीर्ष पद पर कब्जा कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के लिए नेहरू परिवार की समय सीमा निकालें तो आजादी के 70 साल में 53 साल तक इस परिवार का किसी न किसी या फिर दोनों पदों पर एक साथ कब्जा रहा है।

नेहरू- गांधी खानदान ने देश को जमकर लूटा 
नेहरू-गांधी खानदान के लोगों ने सिर्फ देश पर कब्जा नहीं किया बल्कि दोनों हाथों से देश को लूटा और अपनी तिजोरी भरी। देश में लूट का सिलसिला नेहरू के जमाने से ही शुरू हो गया था। अगर नेहरू-गांधी परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का विश्लेषण करते तो उन्हें पता चल जाता कि आखिर देश इतना पीछे क्यों रह गया। 

मूंदड़ा स्कैंडल
कलकत्ता के उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे घोटाले के तौर पर याद किया जाता है। इसके छींटें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर भी पड़े। दरअसल 1957 में मूंदड़ा ने एलआईसी के माध्यम से अपनी छह कंपनियों में 12 करोड़ 40 लाख रुपये का निवेश कराया था। यह निवेश सरकारी दबाव में एलआईसी की इंवेस्टमेंट कमेटी की अनदेखी करके किया गया। जब तक एलआईसी को पता चला, उसे कई करोड़ का नुकसान हो चुका था। इस केस को फिरोज गांधी ने उजागर किया, जिसे नेहरू ख़ामोशी से निपटाना चाहते थे। उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को बचाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें अंतत: पद छोड़ना पड़ा।

मारुति घोटाला
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी को यात्री कार बनाने का लाइसेंस मिला था। वर्ष 1973 में सोनिया गांधी को मारुति टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लि. का एमडी बनाया गया, हालांकि सोनिया के पास इसके लिए जरूरी तकनीकी योग्यता नहीं थी। बताया जा रहा है कि कंपनी को सरकार की ओर से टैक्स, फंड और कई छूटें मिलीं थी।

बोफोर्स घोटाला
बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपये के होवित्जर तोप का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत दी थी। आरोप है कि इसमें दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं को स्वीडन की तोप बनाने वाली कंपनी बोफ़ोर्स ने बतौर कमीशन 64 करोड़ रुपये दिये थे। इस सौदे में गांधी परिवार के करीबी और इतालवी कारोबारी ओतावियो क्वात्रोकी के अर्जेंटीना चले जाने पर सोनिया गांधी पर भी आरोप लगे।

नेशनल हेराल्ड मामले में करोड़ की हेराफेरी
गांधी परिवार पर अवैध रूप से नेशनल हेराल्ड की मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की संपत्ति हड़पने का आरोप है। वर्ष 1938 में कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई थी। यह कंपनी नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज नाम से तीन अखबार प्रकाशित करती थी। एक अप्रैल, 2008 को ये अखबार बंद हो गए। मार्च 2011 में सोनिया और राहुल गांधी ने ‘यंग इंडिया लिमिटेड’ नाम की कंपनी खोली और एजेएल को 90 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन दिया। एजेएल यंग इंडिया कंपनी को लोन नहीं चुका पाई। इस सौदे की वजह से सोनिया और राहुल गांधी की कंपनी यंग इंडिया को एजेएल की संपत्ति का मालिकाना हक मिल गया। इस कंपनी में मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के 12-12 प्रतिशत शेयर हैं, जबकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के 76 प्रतिशत शेयर हैं। गांधी परिवार पर अवैध रूप से इस संपत्ति का अधिग्रहण करने के लिए पार्टी फंड का इस्तेमाल करने का आरोप लगा। इस मामले में सोनिया और राहुल के विरुद्ध संपत्ति के बेजा इस्तेमाल का केस दर्ज कराया गया। अब इसी मामले में आयकर विभाग ने प्रियंका गांधी की संलिप्तता भी पाई है।

वाड्रा-डीएलएफ घोटाला
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ वर्ष 2012 में  डीएलएफ घोटाले का आरोप लगा, जो अब भी चल रहा है। उनपर शिकोहपुर गांव में कम दाम पर जमीन खरीदकर भारी मुनाफे में रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को बेचने का आरोप लगा। रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ से 65 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन लेने का आरोप लगा। बिना ब्याज पैसे की अदायगी के पीछे कंपनी को राजनीतिक लाभ पहुंचाना मूल उद्देश्य था। यह तथ्य भी सामने आया है कि केंद्र में कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा ने देश के कई और हिस्सों में भी बेहद कम कीमतों पर जमीनें खरीदीं।

बीकानेर में जमीन घोटाले का मामला
राजस्थान के बीकानेर में हुए जमीन घोटालों में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों के जमीन सौदे भी शामिल हैं। अंग्रेजी न्यूज पोर्टल इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार गलत जमीन सौदों के सिलसिले में 18 एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें से 4 वाड्रा की कंपनियों से जुड़े हैं। ये सारी एफआईआर 1400 बीघा जमीन जाली नामों से खरीदे जाने से जुड़ी हैं, जिनमें से 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनियों के लिए जाली नामों से खरीदे जाने के आरोप हैं।

प्रियंका वाड्रा पर भी उठे सवाल
हरियाणा में ढींगरा कमीशन की रिपोर्ट सामने आने पर भी कांग्रेस में खलबली मच चुकी है। भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े की फांस में तब वाड्रा की पत्नी प्रियंका वाड्रा का भी नाम सामने आया। हालांकि प्रियंका वाड्रा ने इस पर सफाई दी, लेकिन सच यह है कि ढींगरा कमीशन की रिपोर्ट में 20 से ज्यादा प्रॉपर्टीज की जानकारी दी गई, जो वाड्रा और उनकी कंपनियों ने खरीदी थीं। इनमें से एक भूखंड को स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से खरीदा था। आरोपों के अनुसार ओंकारेश्वर से खरीदी गई प्रॉपर्टी को फिर लैंड यूज में बदलाव के बाद कहीं ज्यादा कीमत पर डीएलएफ के हाथ बेच दिया गया था और इस तरह 50.50 करोड़ रुपये का प्रॉफिट हासिल किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक रॉबर्ट वाड्रा को डीएलएफ से जो पैसा मिला क्या उसके एक हिस्से का इस्तेमाल उनकी पत्नी ने हरियाणा के फरीदाबाद में संपत्ति खरीदने के लिए किया? कमीशन ने 20 से ज्यादा ऐसी प्रॉपर्टी की रिपोर्ट दी है।  

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला
वर्ष 2013 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर इटली की चॉपर कंपनी ‘अगस्ता वेस्टलैंड’ से कमीशन लेने के आरोप लगे। दरअसल अगस्ता वेस्टलैंड से भारत को 36 अरब रुपये के सौदे के तहत 12 हेलिकॉप्टर ख़रीदने थे, जिसमें 360 करोड़ रुपए की रिश्वतखोरी की बात सामने आई। इतालवी कोर्ट ने माना कि इस मामले में भारतीय अफसरों और राजनेताओं को 15 मिलियन डॉलर रिश्वत दी गई। इतालवी कोर्ट ने एक नोट में इशारा किया था कि सोनिया गांधी सौदे में पीछे से अहम भूमिका निभा रही थीं। कोर्ट ने 225 पेज के फैसले में चार बार सोनिया का जिक्र किया।

यह थी नेहरू-गांधी परिवार के भ्रष्टाचार के कारनामों की फेहरिस्त। गांधी परिवार के सदस्यों ने भ्रष्टाचार के जरिए अकूत दौलत और संपत्ति अर्जित की। आज इस परिवार के पास देश-विदेश में कई हजार करोड़ की संपत्ति बताई जाती है।

एक नजर कांग्रेस की सरकारों में हुए कुछ प्रमुख घोटालों पर-

कोयला घोटाला (2012)  1.86 लाख करोड़ रुपये
2जी घोटाला (2008)  1.76 लाख करोड़ रुपये
महाराष्ट्र सिंचाई घोटाला 70,000करोड़ रुपये
कामनवेल्थ घोटाला (2010) 35,000 करोड़ रुपये
स्कार्पियन पनडुब्बी घोटाला  1,100 करोड़ रुपये
अगस्ता वेस्ट लैंड घोटाला 3,600 करोड़ रुपये
टाट्रा ट्रक घोटाला (2012) 14 करोड़ रुपये

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