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चीन की चालाकी पर मोदी सरकार की पैनी नजर, ऑटोमैटिक रूट्स से FDI पर लगी रोक

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार एक तरफ कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रही है, वहीं आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार की पैनी नजर है। मौजूदा हालात का फायदा उठाकर कोई विदेशी कंपनी चोरी-छिपे हमारे देश की अर्थव्यवस्था में घुसपैठ नहीं कर सके इसके लिए सरकार ने चीन और पड़ोसी देशों से आने वाले विदेशी निवेश पर सख्त पहरा बैठा दिया है। मोदी सरकार ने आदेश जारी करते हुए कहा है कि जिन-जिन देशों से भारत की सीमा लगती है वहां से होने वाले फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट को पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी।

चीन के छद्म विदेशी निवेश पर रोक  
महामारी के दौरान दुनियाभर में कंपनियों की वैल्युएशन 50 से 60 प्रतिशत तक गिर गई है। भरतीय कंपनियों के शेयरों की कीमत में भी भारी गिरावट आई है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि चीन खुद या फिर दूसरे किसी पड़ोसी देश के जरिये भारत में अपना निवेश बढ़ा सकता है। साथ ही नई कंपनियां खरीद भारतीय अर्थव्यवस्था में सीधा दखल दे सकता है। इसके अलावा अवसरवादी खरीद-फरोख्त के जरिये मैनेजमेंट कंट्रोल हासिल करने के लिए इस मौके का इस्तेमाल कर सकता है। इसी को रोकने के लिए एफडीआई कानून में बदलाव की जरूरत पड़ी।

अफरा-तफरी के बीच चीन के विदेशी निवेश में बढ़ोतरी
मोदी सरकार ने यह निर्णय हाल ही में चाइना के सेंट्रल बैंक द्वारा भारतीय कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉपोर्रेशन (HDFC)में हिस्सेदारी बढ़ाकर 1 प्रतिशत से कुछ ज्यादा करने के बाद लिया है। गौरतलब है कि ऐसी खबरें आई हैं कि कोरोना से फैली अफरा-तफरी और कंपनियों के शेयरों के भाव में इस भारी गिरावट को चीन अपने लिए एक बढ़िया मौके के रुप में देख रहा है और तेजी से अपना निवेश बढ़ा रहा है।

चीनी निवेश की रफ्तार बाकी देशों के मुकाबले तेज
दरअसल, पिछले एक साल में चीन की तरफ से देश में करीब 15 हजार करोड़ रुपये का निवेश आया है। यही नहीं, चीन ने बड़े पैमाने पर स्टार्टअप में भी पैसा लगाया है। चीन के निवेश की रफ्तार बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा ही तेज रहती है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि कोरोना संकट के दौर में चीन और उसके जैसे तमाम देश, जिनके पास खरीदने की ताकत मौजूद है, अपने से कमजोर देशों में तेजी से अधिग्रहण करने में जुटे हैं। इससे निपटने के लिए जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन और इटली जैसे देशों ने भी इसी तरह के कदम उठाए हैं। आने वाले दिनों में तमाम और देश भी अपनी कंपनियों को बचाने के लिए ऐसे कदम उठाने को मजबूर होंगे। 

भारत में पड़ोसी देशों के निवेश पर सख्त पहरा
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने कहा कि भारत में होने वाले किसी निवेश के लाभार्थी भी यदि इन देशों से संबंधित होंगे, तो मंजूरी जरूरी होगी। वहीं, सरकार के इस निर्णय से चीन जैसे देशों पर प्रभाव पड़ सकता है। पाक के निवेशकों पर शर्त पहले से लागू है।

मोदी सरकार के फैसले की तारीफ
नांगिया एंडरसन एलएलपी के निदेशक संदीप झुनझुनवाला ने इस बारे में कहा कि भारत-चीन आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिषद के आकलन के अनुसार, चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप में करीब चार अरब डॉलर निवेश किए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘उनके निवेश की रफ्तार इतनी अधिक है कि भारत के 30 यूनिकॉर्न में से 18 को चीन से वित्तपोषण मिला हुआ है। चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियों के कारण उत्पन्न हो रही चुनौतियों को रोकने के लिये कदम उठाने का यही सही समय है।’’

पड़ोसी देशों पर शर्तें लागू
अब तक सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों/कंपनियों को ही मंजूरी की जरूरत होती थी। पाकिस्तान का कोई नागरिक अथवा पाकिस्तान में बनी कंपनी केवल सरकारी मंजूरी के जरिए ही प्रतिबंधित क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं। रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा और कुछ अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेश प्रतिबंधित है। वहीं चीन जैसे पड़ोसी देशों के लिए इसकी जरूरत नहीं होती थी। भारत की सीमा से सटे देशों में बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान, भूटान, नेपान और म्यांमार शामिल हैं।

 

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