कोरोना वायरस का कहर दुनिया के साथ-साथ भारत में भी बढ़ता जा रहा है। सरकारी आंकड़ों में अब तक कोरोना संक्रमण के 429 मामले सामने आए हैं। 8 लोगों की मौत भी हो चुकी है। इसी बीच भारत में थोक दवाओं और एपीआई के चीन से आयात पर पूरी तरह रोक लग गई है। इससे यह डर पैदा हो गया है कि अगर महामारी की समय सीमा और भी लंबी खिंच गई तो देश में दवाओं की कमी हो सकती है। इसको ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने बीते शनिवार को देश में ही दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग के लिए 14 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की। इससे फार्मा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने एवं मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
मोदी सरकार ने यह फैसला अपने ही देश में बड़े स्तर पर ड्रग या दवाओं की घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए किया है। इससे देश में सक्रिय फार्मास्युटिकल घटक (एपीआई) के उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा। रसायन व उर्वरक राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनसुख मांडविया ने बताया कि बल्क ड्रग के मद में 9,940 करोड़ रुपये के पैकेज की मंजूरी दी गई है तो मेडिकल उपकरण के लिए 3,820 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
मोदी सरकार के फैसले के अनुसार, ड्रग्स और एपीआई के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चार योजनाओं की शुरुआत की जाएगी। पहली योजना के तहत सरकार ने 1,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है, जो राज्यों में थोक दवाओं को उपलब्ध कराने में मदद करेगा।
राज्य सरकारें मेडिकल डिवाइस पार्क के लिए 1000 एकड़ जमीन उपलब्ध कराएंगी। इसके लिए राज्यों को हर पार्क के लिए अनुदान के रूप में अधिकतम 100 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। इससे देश में उत्पादन लागत में कमी आएगी और बल्क ड्रग (एक साथ बड़ी मात्रा में दवा उत्पादन) के लिए अन्य देशों पर निर्भरता भी कम होगी।
इसके साथ ही ड्रग प्रोत्साहन योजना 6,940 करोड़ रुपए के कुल बजट के साथ चलाई जाएगी। यह योजना चार साल के लिए थोक दवा इकाइयों वाले निवेशकों को उत्पादन लागत पर 20% प्रोत्साहन प्रदान करेगी। पांचवें साल में प्रोत्साहन 15% और छठे साल से 5% हो जाएगा।
कंपनियों द्वारा मेडिकल उपकरण के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए 3,420 करोड़ रुपए का बजट भी निर्धारित किया गया है। घरेलू विनिर्माण के लिए सभी 53 एपीआई की पहचान की गई है।
मेडिकल उपकरण निर्माण के तहत एमआरआइ मशीन, पैथोलॉजी मशीन, एक्स-रे मशीन जैसे उपकरणों का निर्माण किया जाएगा जो अभी भारत में नहीं बनाए जाते हैं। मांडविया ने बताया कि भारत में फार्मा उद्योग का आकार तीन लाख करोड़ रुपये का है। लेकिन कई बल्क ड्रग (जिसकी मदद से दवा का निर्माण किया जाता है, यानी दवाओं के लिए कच्चा माल) का भारी मात्र में आयात किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दवा उद्योग के प्रमुख कारोबारियों के साथ बातचीत की। प्रधानमंत्री मोदी ने दवा उद्योग के दिग्गजों से अनुरोध किया कि वे कोविड-19 के लिए आरएनए डायग्नोस्टिक किट के निर्माण पर युद्ध स्तर पर काम करें।
उन्होंने दवाओं के खुदरा विक्रेताओं और औषध निर्माताओं (फार्मासिस्ट) से निरंतर सतर्कता बरतने को कहा, ताकि दवाओं की कालाबाजारी एवं जमाखोरी से निश्चित तौर पर बचा जा सके और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनी रहे। उन्होंने सुझाव दिया कि जहां भी संभव हो, थोक में दवाओं की आपूर्ति को टाला जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संकट की इस घड़ी में दवा उद्योग के लिए निरंतर काम करना अनिवार्य है और इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि दवा सेक्टर में कर्मचारियों की कोई कमी नहीं हो। उन्होंने दवा दुकानों में सामाजिक दूरी या एक-दूसरे से आवश्यक दूरी बनाए रखने के लिए होम डिलीवरी मॉडल को तलाशने और वायरस को फैलने से रोकने के लिए डिजिटल भुगतान व्यवस्था के उपयोग को बढ़ावा देने का सुझाव दिया।
दवा संगठनों ने संकट की इस बेला में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व के लिए उनका धन्यवाद किया। इन संगठनों ने कहा कि वे आवश्यक दवाओं एवं उपकरणों की आपूर्ति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसके साथ ही वे टीके (वैक्सीन) विकसित करने पर भी काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दवा क्षेत्र के लिए सरकार की नीतिगत घोषणाओं से इस सेक्टर को काफी बढ़ावा मिलेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने दवा उद्योग के समर्पण भाव एवं प्रतिबद्धता के साथ-साथ जिस जज्बे के साथ वे काम कर रहे हैं, उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दवा उद्योग पर लोगों को जो भरोसा है उसे ध्यान में रखते हुए लोगों को वैज्ञानिक सूचनाएं उपलब्ध कराने में भी उद्योग को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
फार्मास्यूटिकल्स सचिव ने आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सरकार के अथक प्रयासों और हवाई अड्डों एवं बंदरगाहों के प्राधिकरणों के साथ मिलकर ठोस काम करने पर प्रकाश डाला। स्वास्थ्य सचिव ने दवा संगठनों का धन्यवाद करते हुए कहा कि अब तक आपूर्ति में कोई कमी नहीं पाई गई है। इसके साथ ही उन्होंने प्रोटेक्टिव वियर मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशनों के साथ सहयोग के बारे में भी बताया।