Home विपक्ष विशेष पहले से तय था मायावती का ‘इस्तीफा ड्रामा’!

पहले से तय था मायावती का ‘इस्तीफा ड्रामा’!

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मंगलवार को राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान मायावती ने गुस्से में आकर सदन से इस्तीफा देने का एलान कर दिया। उन्होंने उपसभापति को अपना त्यागपत्र सौंपते हुए कहा कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जा रहा, दलितों की बात नहीं करने दी जा रही। उसके बाद उन्होंने चार पन्ने के इस्तीफे पर दस्तखत कर दिया। दरअसल राज्यसभा से इस्तीफा देने का एक फॉरमेट तय है। जिसका ज्ञान शायद मायावती को भी पहले से ही रहा होगा। इसके अतिरिक्त ये कि अक्सर मायावती अपना कोई भी स्पीच देती हैं तो उनके पास सबकुछ स्क्रिप्टेड होता है यानि पहले से लिखा हुआ होता है। लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने से पहले बिना स्क्रिप्ट पढ़े ही सारी बातें कह दीं। जाहिर तौर पर मायावती के अचानक और फॉरमेट के बगैर दिये इस्तीफे से कइयों को अचंभा भी हुआ। लेकिन जानकारों की मानें तो ये सब पहले से तय था। क्योंकि वह इस्तीफा देना कम जताना ज्यादा चाहती थीं। 

मायावती की राजनीतिक पुनर्जन्म की कवायद
दरअसल मायावती की बौखलाहट बीते यूपी विधानसभा के नतीजों के बाद से ही है, जिसमें उनकी पार्टी को सिर्फ 19 सीटें मिली थीं। मायावती को लग रहा है कि दलित राजनीति पर उनका एकाधिकार टूट रहा है। यह भी तथ्य है कि बीते चुनाव में दलितों ने मायावती को नकार दिया और बीजेपी को सबसे अधिक बढ़त बीएसपी के मजबूत गढ़ मिली थी। दरअसल पिछले दो चुनावों में उनपर पैसे लेकर टिकट देने के आरोप लगे थे। लेकिन माया के इस इस्तीफा दांव से वे दलितों के बीच में अपनी इमेज को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं। बहरहाल ये तो आनेवाला वक्त बताएगा कि माया के इस कदम से उनके बेस वोट बैंक पर कितना प्रभाव पड़ा है। या फिर ये कि दलित समुदाय ने भी मायावती के इस इस्तीफा के प्रकरण को एक और नौटंकी मान लिया है।

मायावती ने खेला सहानुभूति का दांव
बीएसपी अध्यक्ष के फैसले को सियासत में अपनी जमीन को बचाए रखने की उनकी रणनीति की तौर पर जा देखा रहा है। दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव के लिए NDA ने एक बड़ा दांव खेलते हुए दलित कार्ड के रूप रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया था, जिससे मायावती के दलित कार्ड रणनीति को जोरदार झटका लगा। इससे मायावती को लगने लगा कि बीएसपी का कोर वोट बैंक पूरी तरह उनसे अलग न हो जाए। इसलिए राज्यसभा से मायावती के इस्तीफे को अपनी जमीन बचाने की उनकी कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

विपक्ष की सहानुभूति के लिए इस्तीफे का गेम
दरअसल मायावती के इस्तीफे को कई लोग अपनी शादी से ऊबा हुए आदमी का मरने से कुछ दिन पहले तलाक ले लेने जैसा मानते हैं। अगले साल अप्रैल में मायावती का कार्यकाल खत्म हो रहा है और वह दोबारा राज्य सभा में जा नहीं सकतीं, क्योंकि उनकी पार्टी के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है। चूंकि उत्तर प्रदेश से उन्हें दोबारा राज्यसभा में पहुंचने का अवसर उन्हें दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है। इसलिए उन्होंने इस्तीफा देकर यह एक सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया है। लालू प्रसाद ने उन्हें बिहार से राज्यसभा में भेजने का प्रस्ताव देकर इसी बात की तस्दीक भी कर दी है।

मायावती के बहाने संजीवनी तलाश रहा विपक्ष
मायावती का आधार खत्म होता जा रहा है, दलित वर्ग के बीच उनका विश्वास भी खत्म होता जा रहा है… ऐसे में मायावती के राजनीतिक जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीएसपी के पास अब विकल्प भी बेहद कम हैं। बीएसपी के पास अब क्षमता नहीं है कि अपने एक भी सदस्य को राज्यसभा में भेज सके।

मायावती रोहित वेमुला के लिए चित्र परिणाम

दूसरी तरफ ये भी हकीकत है कि विपक्ष द्वारा सत्तारूढ़ बीजेपी को दलित मसले को लेकर घेरने का प्रयास होता रहा है। रोहित वेमुला कांड हो या ऊना का मामला, विपक्ष हर मुद्दे को दलित से जोड़ कर केंद्र पर हमलावर रहा है। लेकिन भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद के माध्यम से दलित समाज में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है। ऐसे में मायावती के इस्तीफे का यह दांव उनके राजनीतिक पुनर्जागरण के साथ पूरे विपक्ष के लिए संजीवनी साबित करने का एक प्रयास माना जा रहा है। 

मायावती ने भाई आनंद को बचाने के लिए चली चाल
एक तरफ मायावती अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं, तो दूसरी तरफ भाई आनंद कुमार जांच की जद में हैं। उन्होंने वर्ष 2007 से लेकर 2012 के बीच मायावती की सरकार में सत्ता का खूब दुरुपयोग किया। दस-दस एकड़ के दो भूखंड आवंटित कराये, फिर कृषि भूमि को आबादी में परिवर्तित कर करोड़ों कमाए। मुआवजे में भी घपला किया। ग्रामीण क्षेत्र में जबरन जमीनों का अधिग्रहण किया। इसके अलावा कई और भी घोटाले उनके नाम से उजागर हो रहे हैं। योगी आदित्य नाथ की सरकार इस पर कड़ी कार्रवाई का मन बना चुकी है। जाहिर है वे जांच की जद में हैं और उनपर जल्दी ही कार्रवाई हो सकती है। ऐसे में मायावती का ये इस्तीफे वाला दांव भाई आनंद पर कार्रवाई होने की स्थिति में दलित कार्ड खेलने की पूर्व प्लानिंग का हिस्सा हो सकता है।

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