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आर्थिक मोर्चे पर अच्छी खबर, दिवाली पर देश में 3.75 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड कारोबार, पीएम मोदी की ‘वोकल फॉर लोकल’ अपील ने चीन को दिया बड़ा झटका

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था कमाल कर रही है। इस बार दिवाली पर देशवासियों और मोदी सरकार को तिहरी खुशी मिली है। जहां लगातार चौथे महीने खुदरा महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई और लगातार सातवें महीने थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई जीरो से नीचे रही, वहीं दिवाली पर देश में रिकॉर्ड-तोड़ कारोबार हुआ। प्रधानमंत्री मोदी की ‘वोकल फॉर लोकल’ अपील का लोगों पर व्यापक असर हुआ। लोगों ने भारत में बने उत्पादों की दिल खोलकर खरीदारी की। इससे चीन को एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है।

कार्तिक पूर्णिमा तक 4.25 लाख करोड़ के कारोबार की उम्मीद

कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया कॉमर्स ट्रेडर्स यानी कैट के मुताबिक दिवाली के मौके पर लोगों में खरीदारी को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। लोगों ने भारतीय उत्पाद-सबका उस्ताद अभियान को समर्थन दिया। इससे दिवाली के मौके पर देश भर में पौने चार लाख करोड़ यानी 3.75 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का रिकॉर्ड-तोड़ कारोबार हुआ। वहीं कार्तिक पूर्णिमा तक इसके सवा चार लाख यानी 4.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार होने की उम्मीद है।

चीन को 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान

इस साल त्योहारी सीजन पर आत्मनिर्भर भारत की झलक देखने को मिली। त्योहारी सीजन शुरू होते ही प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से स्थानीय और मेक इन इंडिया वस्तुओं को खरीदने के अपील की थी। इसका लोगों पर जबरदस्त असर हुआ। देश के सभी शहरों में स्थानीय निर्माताओं, कारिगरों और कलाकारों के उत्पादों की मांग में बढ़ोतरी देखी गई। लोगों ने जमकर भारतीय वस्तुओं की खरीदारी की। इस बार दिवाली पर चीन को 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के व्यापार का नुकसान हुआ। पहले दिवाली पर चीन से बनी वस्तुओं की भारतीय बाजार का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मिल जाता था। इस बार उसमें काफी गिरावट दर्ज की गई है। व्यापारियों ने भी इस साल दिवाली से संबंधित वस्तुओं का चीन से आयात कम किया है।

स्थानीय उत्पादों की मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि 3.75 लाख करोड़ रुपये के कारोबार में खाद्य और किरान की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत, ज्वेलरी की 9 प्रतिशत, वस्त्र एवं गारमेंट की 12 प्रतिशत, ड्राई फ्रूड, मिठाई एवं नमकीन की 4 प्रतिशत,घर सज्जा की 3 प्रतिशत, कास्मेटिक्स की 6 प्रतिशत, इलेक्ट्रॉनिक एवं मोबाइल की 8 प्रतिशत, पूजन सामग्री एवं पूजा वस्तुओं की 3 प्रतिशत, बर्तन और रसोई के उपकरण की 3 प्रतिशत, कॉन्फेक्शनरी एवं बेकरी की 2 प्रतिशत, गिफ्ट आइटम की 8 प्रतिशत,ऑटोमोबाइल की 20 प्रतिशत भागीदारी रही है। इसके अलावा पैकिंग कारोबार को भी बड़ा बाजार मिला है।

धनतेरस के दिन देशभर में 50 हजार करोड़ रुपये का कारोबार

धनतेरस के मौके पर बाजारों में ग्राहकों की जबरदस्त भीड़ देखने को मिली। इस दौरान बाजारों में सबसे ज्यादा सोने-चांदी, बर्तन और दोपहिया और चार पहिया गाड़ियों की बिक्री हुईं। कैट के मुताबिक धनतेरस के दिन देशभर में 50 हजार करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। ऑल इंडिया ज्वेलर्स एंड गोल्डस्मीथ फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज अरोड़ा ने बताया कि इसमें 27 हजार करोड़ रुपये के सोने की ज्वेलरी की लोगों ने खरीदारी की। 3 हजार करोड़ रुपये के करीब चांदी या उसके सामान की बिक्री हुई। पिछले वर्ष 2022 में धनतेरस पर 25 हजार करोड़ रुपये के सोने-चांदी का कारोबार हुआ था।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश-प्रतिदिन नई उपलब्धियों को हासिल कर रहा है। आइए एक नजर डालते हैं प्रमुख उपलब्धियों पर…

महंगाई के मोर्चे पर राहत,खुदरा और थोक महंगाई दर में गिरावट
महंगाई के मोर्चे पर आम लोगों को बड़ी राहत मिली है। थोक महंगाई में अक्टूबर के महीने में भी गिरावट आई है। अक्तूबर में थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई शून्य से 0.52 प्रतिशत नीचे रहे। सितंबर, 2023 में यह -0.26 के स्तर पर रही। थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल से ही नकारात्मक स्तर पर है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई लगातार सातवें महीने जीरो से नीचे रही है। मुद्रास्फीति की दर में गिरावट मुख्य रूप से रसायनों और रासायनिक उत्पादों, बिजली, कपड़े, बुनियादी धातुओं और खाद्य उत्पादों की कीमतों में कमी के कारण आई है। अक्टूबर महीने में खुदरा महंगाई दर में भी गिरावट आई। अक्टूबर में यह घटकर 4.87 प्रतिशत रही। महंगाई दर में यह गिरावट लगातार तीन महीने से देखने को मिल रही है। सितंबर महीने में महंगाई दर 5.02 प्रतिशत और अगस्त में 6.83 प्रतिशत थी।

आम आदमी को राहत,अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई दर कम होने का सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। इससे आम जरूरत की चीजें सस्ती होने लगती हैं। जो आम जनता के जेब पर पड़ रहे बोझ को कम करती है। यह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत माना जाता है। महंगाई से मिली राहत के लिए मोदी सरकार की नीतियों की तारीफ की जा रही है। कोरोना महामारी, हमास- इजरायल संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से इस समय पूरा विश्व मंदी और महंगाई से जूझ रहा है। अमेरिका जैसे सबसे विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश भी महंगाई को रोक पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। ऐसे में भारत ने महंगाई पर लगाम लगाकर आर्थिक मोर्चे पर बड़ी सफलता हासिल की है। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों, अर्थव्यवस्था में आई तेजी और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई कमी से महंगाई दर में खासी गिरावट देखने को मिली है। इससे मोदी सरकार और देश की जनता को बड़ी राहत मिली है।

प्रत्यक्ष कर संग्रह में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, 12.37 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा
आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को लगातार अच्छी खबरें मिल रही हैं। अब टैक्सपेयर ने सरकार का खजाना भर दिया है। चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में अब तक रिकॉर्डतोड़ प्रत्यक्ष कर संग्रह हुआ है। वित्त मंत्रलाय ने धनतेरस के दिन 10 नवंबर, 2023 को प्रत्यक्ष कर संग्रह का आंकड़ा जारी किया, जिसके मुताबिक प्रत्यक्ष कर संग्रह में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 09 नवंबर, 2023 तक कर संग्रह 12.37 लाख रुपये रहा, जो पिछले साल की इस अवधि के सकल संग्रह से 17.59 प्रतिशत अधिक है। रिफंड के बाद शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 10.60 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 21.82 प्रतिशत अधिक है। यह संग्रह वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए प्रत्यक्ष कर के कुल बजटीय अनुमान का 58.15 प्रतिशत है। 

व्यक्तिगत आयकर और कंपनी कर में उल्लेखनीय वृद्धि
प्रत्यक्ष कर में व्यक्तिगत आयकर और कॉरपोरेट आयकर शामिल है। आयकर विभाग के हवाले से बताया गया है कि कॉरपोरेट आयकर संग्रह इस दौरान 7.13 प्रतिशत बढ़ा, जबकि व्यक्तिगत आयकर में 28.29 प्रतिशत की वृद्धि हुई। करदाताओं को एक अप्रैल से 09 नवंबर,2023 के बीच 1.77 लाख करोड़ रुपये रिफंड किए गए। रिफंड के बाद शुद्ध रूप से कॉरपोरेट आयकर संग्रह में 12.48 प्रतिशत और व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 31.77 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई।

पहली छमाही पूरी होते ही आधे से अधिक बजट लक्ष्य हासिल
गौरतलब है कि चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में केंद्रीय बजट में प्रत्यक्ष कर संग्रह 18.23 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 के 16.61 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 9.75 प्रतिशत अधिक है। इस तरह वित्त वर्ष की पहली छमाही पूरी होते ही आधे से अधिक बजट लक्ष्य हासिल कर लिया गया है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को दर्शाता है। इससे वित्तीय वर्ष के अंत तक बजटीय प्रत्यक्ष कर संग्रह के लक्ष्य को प्राप्त करने की उम्मीद बढ़ गई है। 

प्रत्यक्ष कर संग्रह में उछाल मजबूत आर्थिक विकास का संकेत 
भारत के प्रत्यक्ष कर संग्रह में लगातार वृद्धि देश के बढ़ते आधार और बेहतर अनुपालन उपायों को दर्शाता है। इसके साथ ही प्रत्यक्ष कर संग्रह में यह उछाल कॉर्पोरेट आय में वृद्धि, रोजगार और आय के बढ़ते स्तर को रेखांकित करता है। कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत आयकर संग्रह दोनों में मजबूत वृद्धि बताता है कि भारत का आर्थिक सुधार महत्वपूर्ण गति प्राप्त कर रहा है। भारत की आर्थिक मजबूती विकास को भी गति देने में कारगर साबित होगी। आखिरकार इसका लाभ टैक्सपेयर को ही मिलेगा।

जीएसटी संग्रह अक्टूबर में 13 प्रतिशत बढ़कर 1.72 लाख करोड़ रुपये के पार
टैक्स कलेक्शन के मामले में सरकार को बड़ा फायदा हुआ है। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी कलेक्शन अक्टूबर, 2023 में 13 प्रतिशत बढ़ गया। अक्टूबर में जीएसटी कलेक्शन का आंकड़ा 1.72 लाख करोड़ रुपये का रहा। वित्त मंत्रालय के अनुसार अक्टूबर, 2023 में सकल जीएसटी राजस्व 1,72,003 करोड़ रुपये रहा है। इसमें सीजीएसटी 30,062 करोड़ रुपये, एसजीएसटी 38,171 करोड़ रुपये, आईजीएसटी 91,315 करोड़ रुपये (वस्तुओं के आयात पर एकत्र किए गए 42,127 करोड़ रुपये सहित) और उपकर 12,456 करोड़ रुपये (वस्तुओं के आयात पर एकत्र 1294 करोड़ रुपये सहित) है।

अब तक का दूसरा सबसे ज्यादा कलेक्शन
अक्टूबर 2023 में जीएसटी राजस्व संग्रह अप्रैल 2023 के बाद दूसरी बार सर्वाधिक रहा है। जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से इस साल अप्रैल 2023 में 1.87 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी संग्रह किया गया, जो अब तक का सर्वाधिक कलेक्शन है। यह पांचवीं बार है कि वित्त वर्ष 2023-24 में सकल जीएसटी संग्रह 1.60 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में औसत सकल मासिक जीएसटी संग्रह अब 1.66 लाख करोड़ रुपये है और पिछले वित्तीय वर्ष की समान अवधि की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक है।

अगस्त में 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंचा IIP ग्रोथ
औद्योगिक उत्पादन के ताजा आंकड़े उम्मीद से काफी बेहतर रहे हैं। अगस्त के महीने में देश के औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) में 10.3 प्रतिशत की ग्रोथ देखने को मिली है। यह 14 महीने में सबसे अधिक है। सांख्यिकी मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़े के अनुसार Index of Industrial Production अगस्त माह में 10.3 प्रतिशत बढ़ा है। इससे पिछले महीने जुलाई में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 5.7 प्रतिशत पर रही थी। पिछले साल की तुलना में देखें तो अगस्त 2022 में औद्योगिक उत्पादन की दर 0.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। इस महीने खनन उत्पादन 12.3 प्रतिशत, बिजली उत्पादन 15.3 प्रतिशत और विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 9.3 प्रतिशत की दर से बढ़ा।

61 पर पहुंची सर्विस सेक्टर की पीएमआई
अर्थव्यवस्था के लिए एक और अच्छी खबर यह है कि एसएंडपी ग्लोबल इंडिया सर्विस पीएमआई सितंबर में 61 पर पहुंच गया है। अगस्त में यह 60.1 पर था। सर्विस पीएमआई जुलाई में 62.3 पर रहा जो 13 साल का उच्च स्तर है। इससे पहले सर्विस पीएमआई का इससे ऊंचा स्तर जून 2010 में रहा था। इसके साथ ही यह लगातार 26वां महीना है, जब सर्विसेज पीएमआई 50 से ऊपर है। सर्विसेज पीएमआई करीब दो वर्षों से ब्रेकईवन से ऊपर है, जो अगस्त 2011 के बाद सबसे लंबी अवधि है। ‘परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआई) का 50 से अधिक रहना गतिविधियों में विस्तार और इससे नीचे का आंकड़ा सुस्ती का संकेत है। एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में इकोनॉमिक्स एसोसिएट डायरेक्टर पोलियाना डी लीमा ने ताजा पीएमआई भारत की सेवा अर्थव्यवस्था के लिए और अधिक सकारात्मक खबरें लेकर आई हैं। सितंबर में व्यावसायिक गतिविधियां और नए ऑर्डरों की संख्या बड़ी बढ़त देखने को मिली है।’

अगस्त में 58.6 के स्तर मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई
कारोबार में बढ़त के चलते हर क्षेत्र की गतिविधियों में तेजी आई है। मांग बढ़ने से अगस्त के महीने में विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियों में बंपर तेजी आई है। अगस्त में एसएंडपी ग्लोबल इंडिया विनिर्माण पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्‍स (PMI) 58.6 पर रहा। यह पिछले तीन महीने का उच्च स्तर है। पीएमआई पिछले 26 महीनों से लगातार 50 से ऊपर बना हुआ है। अगस्त में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई में वृद्धि फरवरी 2021 के बाद आई बढ़त में सबसे मजबूत में से एक है। जुलाई में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई का आंकड़ा 57.7 पर रहा था। ‘परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआई) का 50 से अधिक रहना गतिविधियों में विस्तार और इससे नीचे का आंकड़ा सुस्ती का संकेत है। नए ऑर्डर और उत्पादन में तेजी से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गतिविधियां तेज रफ्तार से चल रही है। 

14 महीने के हाई 12.1 प्रतिशत पर पहुंचा कोर सेक्टर उत्पादन
अगस्त 2023 में आठ कोर सेक्टर का उत्पादन 12.1 प्रतिशत बढ़ा है। यह पिछले 14 माह में सबसे अधिक है। इसके पिछले महीने जुलाई 2023 में ग्रोथ रेट 8.4 प्रतिशत थी। जबकि पिछले साल अगस्त में प्रमुख क्षेत्र की वृद्धि 4.2 प्रतिशत थी। इसके पहले आखिरी बार बड़ा ग्रोथ जून 2022 में 13.2 प्रतिशत था। आठ कोर सेक्टर में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्‍पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली शामिल है। औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (आईआईपी) में आठों कोर सेक्टर की हिस्सेदारी 40.27 प्रतिशत है। सरकारी आंकड़े के अनुसार इस साल अगस्त में पिछले साल की तुलना में कोयला का उत्पादन में 17.3 प्रतिशत, बिजली उत्पादन में 14.8 प्रतिशत, सीमेंट उत्पादन में 18.9 प्रतिशत, इस्पात में 10.9 प्रतिशत, रिफाइनरी उत्पाद में 9.5 प्रतिशत,फर्टिलाइजर उत्पादन में 1.48 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस उत्पादन में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

FPI ने जुलाई में किया 45,365 करोड़ रुपये का निवेश
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से देश में कारोबारी माहौल अच्छा हुआ है और पूंजी बाजार में देश के ही नहीं, विदेश के निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। मंदी की आहट के बीच भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI- एफपीआई) भारतीय शेयर बाजार में दिल खोल कर पैसा लगा रहे हैं। जुलाई 2023 में अबतक एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजारों में 45,365 करोड़ रुपये का निवेश किया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत में पैसा लगाना सुरक्षित मान रहे हैं। यह निवेश इस बात का संकेत है कि FPI देश की मजबूत आर्थिक स्थिति, कंपनियों के बेहतर नतीजों और चीन की अर्थव्यवस्था के सामनेष चुनौतियों के बीच भारतीय बाजार में निवेश बढ़ा रहे हैं। यह लगातार तीसरा महीना है जबकि एफपीआई का शेयरों में निवेश का आंकड़ा 40,000 करोड़ रुपये को पार कर गया है। एफपीआई ने मई में शेयरों में 43,838 करोड़ रुपये और जून में 47,148 करोड़ रुपये का निवेश किया था। डिपॉजिटरी के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल अबतक शेयर बाजारों में एफपीआई का निवेश 1.36 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।

रिकॉर्ड स्तर पर सेंसेक्स और निफ्टी
 19 जुलाई, 2023 भारतीय शेयर बाजार के लिए ऐतिहासिक दिन रहा। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी अपने ऑल टाइम हाई लेवल पर बंद हुआ। शेयर बाजार में शुरुआत के साथ ही जोरदार तेजी देखने को मिली और कारोबार के दौरान सेंसेक्स 67,171 के लेवल पर पहुंच गया और बाद में 302 अंक बढ़कर 67,097.44 के स्तर पर बंद हुआ। निफ्टी भी 83 अंक से ज्यादा की छलांग लगा अपने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 19,833 पर बंद हुआ।

अगर शेयर बाजार के रिकॉर्ड पर नजर डाला जाए तो इसके पहले सेंसेक्स 14 जुलाई को 66 हजार का आंकड़ा पार करते हुए 66060.90 पर बंद हुआ। इसके पहले सेंसेक्स 3 जुलाई को 65 हजार का आंकड़ा पार करते हुए 65, 205.05 पर बंद हुआ था और 30 जून, 2023 को 64 हजार के पार पहुंच 64,718.56 के लेवल पर बंद हुआ। भारतीय शेयर बाजार के इतिहास पर नजर डालें तो सेंसेक्स पहली बार 30 नवंबर, 2022 को 63000 के पार बंद हुआ। यह 24 नवंबर,2022 को 62000 के आंकड़े के पार जाकर बंद हुआ है। बंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स ने 01 नवंबर, 2022 को नया रिकॉर्ड कायम करते हुए 61 हजार के ऊपर बंद हुआ। इसके पहले 24 सितंबर, 2021 को सेंसेक्स 60,000 के पार, 16 सितंबर, 2021 को सेंसेक्स 59,000 के पार, 03 सितंबर, 2021 को 58,000 और 31 अगस्त, 2021 को 57,000 के पार गया था।

इसके पहले सेंसेक्स ने 18 अगस्त 2021 को 56,000 और 13 अगस्त, 2021 को 55,000 अंक के स्तर के पार किया। सेंसेक्स इसी महीने 4 अगस्त को पहली बार 54000 के आंकड़े को पार किया। यह 22 जून को 53,000 के लेवल को पार कर नए शिखर पर पहुंचा था। इसके पहले 15 फरवरी, 2021 को शेयर बाजार के बीएसई सेंसेक्स ने 52,000 के लेवल को पार कर रिकॉर्ड बनाया था। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही सेंसेक्स ने जून 2014 में पहली बार 25 हजार के स्तर को छुआ था। मोदी राज में पिछले 6 साल में 25 हजार से 50 हजार तक के सफर तय कर सेंसेक्स दो गुना हो गया है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान अप्रैल 2014 में सेंसेक्स करीब 22 हजार के आस-पास रहता था।

रोज रिकॉर्ड तोड़ता शेयर बाजार इस बात का सबूत है कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में जिस तरह देश आगे बढ़ रहा है, उससे तमाम क्षेत्रों की कंपनियों में विश्वास जगा है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों के कदम उठाने के बाद कोरोना काल में भी आर्थिक जगत में मोदी सरकार की साख मजबूत हुई है, और कंपनियां, शेयर बाजार, आम लोग सभी सरकार की नीतियों पर भरोसा कर रहे हैं। जाहिर है यह भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों के भरोसे को दिखाता है।

भारत बना दुनिया का 5वां सबसे बड़ा शेयर बाजार
29 मई का दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए काफी अहम रहा। शेयर मार्केट में जारी तेजी के चलते भारतीय शेयर बाजार एक बार फिर दुनिया का ‘पांचवां सबसे बड़ा स्टॉक मार्केट’ बन गया है। अडाणी ग्रुप का मार्केट कैप ऊपर जाने और भारतीय बाजार में विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ने से भारत ने 5वीं रैंकिंग हासिल कर ली है। इसके साथ ही भारतीय शेयर बाजार का मार्केट कैप 3.3 ट्रिलियन डॉलर (272 लाख करोड़ रुपये) पर पहुंच गया है। अमेरिका 44.54 लाख करोड़ डॉलर के साथ पहले स्थान पर, जबकि चीन 10.26 लाख करोड़ डॉलर के साथ दूसरे, जापान 5.68 लाख करोड़ डॉलर के साथ तीसरे और हांगकांग 5.14 लाख करोड़ डॉलर के साथ चौथे स्थान पर है। फ्रांस 3.24 लाख करोड़ डॉलर के साथ एक पायदान फिसल कर छठे स्थान पर पहुंच गया है।

11 करोड़ अधिक हुई डीमैट खातों की संख्या
देश में डीमैट खातों की संख्या 11. 82 करोड़ के पार पहुंच गई है। शेयर बाजार में तेजी और और म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने वालों की संख्या में इजाफा होने के साथ ही डीमैट अकाउंट की संख्या भी तेजी से बढ़ रहे हैं। ट्रेडिंग और शेयरों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखने के लिए ये खाते जरूरी होते हैं। डिपॉजिटरी फर्म एनएसडीएल और सीडीएसएल के आंकड़ों के मुताबिक मई, 2023 में 20 लाख 10 हजार नए डीमैट खाता खोले गए, जो इस साल का सबसे अधिक है। इसके साथ ही देश में कुल डीमैट खातों की संख्या 11.82 करोड़ पहुंच गई। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें खुदरा यानी छोटे निवेशकों का योगदान सबसे अधिक है। इसी का परिणाम है कि देश में खुदरा निवेशकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ने विदेशी निवेशकों पर निर्भरता घटेगी और तेज उतार-चढ़ाव को रोकने में मदद करेगी।

विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर
मोदी सरकार की नीतियों के कारण विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बना हुआ है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 सितंबर, 2021 में 642.45 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था। विदेशी मुद्रा भंडार ने 5 जून, 2020 को खत्म हुए हफ्ते में पहली बार 500 अरब डॉलर के स्तर को पार किया था। इसके पहले यह आठ सितंबर 2017 को पहली बार 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया था। जबकि यूपीए शासन काल के दौरान 2014 में विदेशी मुद्रा भंडार 311 अरब डॉलर के करीब था।

आधार के जरिए ई-केवाईसी लेनदेन 18.53 प्रतिशत बढ़कर 84.8 करोड़ पर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। मोदी सरकार की नीतियों के कारण आधार समर्थित ई-केवाईसी अपनाने में लगातार प्रगति देखी जा रही है। आधार के जरिए ई-केवाईसी लेनदेन अक्टूबर से दिसंबर 2022 के बीच तीसरी तिमाही में 18.53 प्रतिशत बढ़कर 84.8 करोड़ हो गया। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार दिसंबर 2022 में 32.49 करोड़ ई-केवाईसी के आधार पर लेनदेन किए गए थे, जो नवम्‍बर 2022 की 28.75 करोड़ तुलना में 13 प्रतिशत अधिक थे। अक्टूबर में आधार ई-केवाईसी लेनदेन की संख्या 23.56 करोड़ थी। दिसंबर में वृद्धि अर्थव्यवस्था में इसके बढ़ते इस्तेमाल और उपयोगिता को दर्शाता है।

दिसंबर 2022 के अंत तक, आधार के जरिए ई-केवाईसी लेनदेन की कुल संख्या 1,382 करोड़ से अधिक पहुंच गई है। इसके साथ ही लोगों के बीच आधार प्रमाणीकरण लेनदेन भी लोकप्रिय होता जा रहा है और ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। अकेले दिसंबर महीने में 208.47 करोड़ आधार प्रमाणीकरण लेनदेन किए गए, जो पिछले महीने की तुलना में लगभग 6.7 प्रतिशत अधिक है। आधार के जरिए ई-केवाईसी सेवा तेजी से बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 105 बैंकों सहित 169 संस्थाएं ई-केवाईसी के जरिए लाइव जुड़ी हुई हैं।

पसंदीदा इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में उभरा भारत
रूस-यूक्रेन संकट और कोरोना महामारी के कारण जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था डांवाडोल हाल में है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था तमाम चुनौतियों के बीच सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों ने अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है, जिससे विदेशी निवेशकों की भारत के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है। रूस-यूक्रेन संकट और कोरोना काल में दुनिया भर के अरबपतियों के लिए भारत एक प्रमुख इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है। इस महीने आई यूबीएस बिलियनेर एंबिशंस रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत जल्द ही निवेश का एक गढ़ बन सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर के अरबपति लोग अपना ज्यादा से ज्यादा पैसा भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में लगाना चाहते हैं क्योंकि यहां की अर्थव्यवास्था मजबूत होने के साथ उनके अनुकूल है। स्विस बैंक की यह रिपोर्ट 75 बाजारों में 2,500 से अधिक अरबपतियों के सर्वेक्षण पर आधारित है। इसमें 58 प्रतिशत अरबपतियों ने निवेश के लिए अपने चुने हुए बाजारों के रूप में भारत और दक्षिण पूर्व एशिया को चुना। भारत में अरबपतियों की संख्या पिछले साल 140 से बढ़कर 166 हो गई है।

विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना
ब्रिटेन को पीछे छोड़कर भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। मार्च तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 854.7 अरब डॉलर, जबकि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 816 अरब डॉलर की थी। एक दशक पहले भारत सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 11वें स्थान पर था, जबकि ब्रिटेन 5वें स्थान पर था। लेकिन सितंबर 2022 में भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया। मौजूदा आर्थिक विकास दर के हिसाब से भारत 2027 में जर्मनी को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वहीं 2029 में जापान को पीछे छोड़ दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर सबसे तेज
सांख्यियकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, आईएमएफ और विश्वबैंक जैसे आर्थिक संगठनों के आंकड़ों के मुताबिक इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था ने सबसे तेज दर से तरक्की की। विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पूर्वानुमान को 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया। अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 11 अक्तूबर को जारी आउटलुक रिपोर्ट में कहा कि दुनियाभर में मंदी के बीच सिर्फ भारत से उम्मीद है। 2022-23 में भारत सात प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरेगा। मूडीज ने 2022 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि के अनुमान का 7.0 प्रतिशत जताया। रेटिंग एजेंसी इक्रा और भारतीय रिजर्व बैंक ने आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत पर कायम रखा। भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर आधार और महामारी का असर कम होने के बाद उपभोग में सुधार से मदद मिली। इसके अलावा महंगाई पर मोदी सरकार के नियंत्रण ने भी राहत दी।

दुनिया पर मंडरा रही मंदी की आशंका, लेकिन भारत को खतरा नहीं- ब्लूमबर्ग
ब्लूमबर्ग के अर्थशास्त्रियों के बीच किए गए ताजा सर्वे के अनुसार अगले एक साल में दुनिया के कई देशों के सामने मंदी का संकट मंडरा रहा है। सर्वे की माने तो एशियाई देशों के साथ दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का खतरा बढ़ता जा रहा है। कोरोना लॉकडाउन और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय देशों के साथ अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों में मंदी का खतरा कहीं ज्‍यादा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि भारत को मंदी के खतरे से पूरी तरह बाहर बताया गया है। ब्लूमबर्ग सर्वे के अनुसार भारत ही ऐसा देश है जहां, मंदी की संभावना शून्य यानी नहीं के बराबर है। ब्लूमबर्ग सर्वे में एशिया के मंदी में जाने की संभावना 20-25 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका के लिए यह 40 और यूरोप के लिए 50-55 प्रतिशत तक है। रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका के अगले वर्ष मंदी की चपेट में जाने की 85 प्रतिशत संभावना है।

चीन को पछाड़कर यूनिकार्न का बादशाह बना भारत
स्टार्ट-अप्स की दुनिया में झंडे गाड़ने के बाद भारत अब उभरते यूनिकॉर्न का ‘बादशाह’ बनने की ओर बढ़ रहा है। मोदी सरकार के लगातार प्रोत्साहन मिलने के कारण भारत के नए यूनिकॉर्न स्टार्टअप दुनिया में नया मुकाम हासिल करते जा रहे हैं। वित्त वर्ष 2022 की पहली छमाही में देश ने यूनिकॉर्न के मामले में चीन को पछाड़ दिया। इस दौरान भारत में 14 यूनिकॉर्न बने, वहीं चीन में यह आंकड़ा 11 रहा। भारत में इन यूनिकॉर्न की संख्या शतक पार करके आगे बढ़ गई है। पिछले साल देश को 44 यूनिकॉर्न मिले थे और इस साल सितंबर तक 22 यूनिकॉर्न मिल चुके हैं। भारत में सितंबर 2022 तक यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या बढ़कर 107 हो गई। खास बात यह है कि इन 107 यूनिकॉर्न में से 60 से अधिक पिछले दो सालों में ही बने हैं। पीएम मोदी की प्रेरणा से भारत के उद्यमशील युवा अब तेजी से जॉब सीकर की बजाय जॉब क्रिएटर बन रहे हैं।

सस्ती मैन्युफैक्चरिंग के मामले में भारत दुनिया में नंबर वन
वर्ष 2022 में सबसे कम मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट वाले देशों की लिस्ट में भारत दुनिया में नंबर वन हो गया। चीन और वियतनाम भारत से पीछे दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जबकि भारत का पड़ोसी बांग्लादेश छठे स्थान पर है। दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के सबसे सस्ते और कम लागत से सामान बनाने वाले देशों में भारत को 100 में से 100 अंक मिला। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को जहां बुस्ट मिलेगा, वहीं विदेशी कंपनियां भी भारत का रूख कर सकती है। दरअसल यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी किया, जिसमें 85 देशों में से भारत समग्र सर्वश्रेष्ठ देशों की रैंकिंग में 31वें स्थान पर है। इसके अलावा, सूची ने भारत को ‘ओपन फॉर बिजनेस’ श्रेणी में 37 वें स्थान पर रखा गया है। हालांकि, ‘open for business’ की उप-श्रेणी के तहत भारत ने सबसे सस्ती मैन्युफैक्चरिंग लागत के मामले में 100 प्रतिशत स्कोर किया। 

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