Home विपक्ष विशेष HYPER-NATIONALISM WORRYING : कांग्रेस का राजनीतिक एजेंडा !

HYPER-NATIONALISM WORRYING : कांग्रेस का राजनीतिक एजेंडा !

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सहारनपुर में दलित-सवर्ण संघर्ष… राहुल गांधी का दौरा। मंदसौर में सड़कों पर किसान… राहुल गांधी का दौरा। केरल में सरेआम गोहत्या…राहुल गांधी ने की निंदा। आर्मी चीफ को सड़क का गुंडा कहा… राहुल गांधी ने की निंदा।… ये राजनीति का एक दृश्य!

‘मुंबई मिरर’ अखबार में लेख- ‘HYPER-NATIONALISM WORRYING’ यानि ‘अति राष्ट्रवाद से चिंता‘। पूर्व आइएएस और आइपीएस अधिकारियों ने पीएम मोदी के कार्यकाल में हो रही घटनाओं पर चिंता जताई है।… ये राजनीति का दूसरा दृश्य!

देश में अराजकता है। समाज में अशांति है। संविधान से खिलवाड़ हो रहा है। धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है। बहुसंख्यकवाद का बोलबाला है।… ये सारे ‘अनमोल वचन’ उन 65 पूर्व अधिकारियों के एक समूह द्वारा कहे गए हैं जिन्हें मोदी सरकार में देश के ‘गड्ढे’ में जाने का डर सता रहा है। दरअसल राजनीति की इन दोनों स्थितियों की समीक्षा जरूरी है कि आप इस बात से अवगत हो सकें कि ये कौन कर रहा है? कैसे कर रहा है? क्यों कर रहा है?

दरअसल ये सारा कुछ ठीक वैसे ही हो रहा है जिसकी बानगी हम बिहार चुनाव के वक्त देख चुके हैं। एक तरफ दादरी में अखलाक की हत्या तो ‘असहिष्णुता ब्रिगेड’ का सक्रिय होना। ठीक वैसे ही हालात अब हैं… आने वाले एक साल में गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं…. एक तरफ किसान उत्पीड़न है… तो दूसरी तरफ ‘असहिष्णुता ब्रिगेड’ की आंख फिर से खुल गई है। यानि दो स्तरों पर राजनीति की बिसात बिछाई जा रही है… उसमें मोहरे किसान हैं… मुसलमान हैं… दलित हैं… शोषित हैं… सेना है… सरकार है… और शह और मात देने की भूमिका कांग्रेस के युवराज की है। एक तरफ ‘मेकिंग ऑफ किंग’ यानि राजनीति में राहुल को स्थापित करने का ड्रामा दूसरी तरफ मुद्दे और माहौल तैयार करना जारी है। 

लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल ये है कि इन 65 पूर्व आइएएस और आइपीएस अधिकारियों ने ‘HYPER-NATIONALISM WORRYING’ में जो सवाल खड़े किए हैं क्या वे निष्पक्ष हैं?

‘असहिष्णुता ब्रिगेड’ के निशाने पर भाजपा सरकारें
दरअसल मुंबई मिरर में छपे इस लेख का मकसद ही भाजपा सरकारों की कमियों को सामने लाना है। इन्होंने एंटी रोमियो स्क्वायड की कमियां देखी… खूबियां नहीं। गौरक्षकों की गुंडागर्दी दिखी लेकिन कानून की कार्रवाई नहीं। केंद्र के कानून का विरोध तो दिखा लेकिन सरेआम बछड़े का कत्लेआम नहीं दिखा। बीफ खाने की आजादी तो चाहिए लेकिन बूचड़खानों के लिए मवेशियों की अवैध तस्करी नहीं दिखी। मुसलमानों का कब्रिस्तान दिखा लेकिन बहुसंख्यकों का श्मशान नहीं दिखा। जाहिर तौर पर इस आलेख के जरिये कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना है… ऐसे में ये रिपोर्ट ‘असहिष्णुता ब्रिगेड’ के मकसद का खुलासा तो कर ही देते हैं।

डिस्क्लेमर के साथ ‘असहिष्णुता’ का एजेंडा
अधिकारियों ने अपने इस असहिष्णुता अभियान को चलाने से पहले डिस्क्लेमर भी दिया है… इन्होंने लिखा है- We should make it clear that as a group, we have no affiliation with any political party, but believe in the credo of impartiality, neutrality and commitment to the Indian Constitution. एक नजर में तो आपको जरूर लगेगा कि ये सीरियस हैं। लेकिन जरा इनके इतिहास पर नजर डालें तो आंखों पर से धुंधलका छंट जाएगा।

इन 65 पूर्व अधिकारियों में से अधिकतर नाम वो हैं, जिनका कांग्रेस शासन में काफी दबदबा रहा है, इन्होंने कांग्रेस के शासनकाल में खूब मलाई खाई है। इनमें से कुछ तो खास ओहदों पर भी रहे हैं  यानि ये ‘गांधी फैमिली’ के वफादार रहे हैं।

 

भास्कर घोष- अनुभवी क्षेत्रीय प्रशासक रहे हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अनुरोध पर इन्हें दिल्ली लाया गया और दूरदर्शन के महानिदेशक नियुक्त किए गए थे।
ये वही भास्कर घोष हैं जो पत्रकार सागरिका घोष के पिता हैं और पत्रकार राजदीप सरदेसाई के ससुर हैं। 36 वर्षों के शासनकाल में इन्होंने कांग्रेस की खूब सेवा की है।

वजाहत हबीबुल्ला- यूपीए-1 में वाजाहत हबीबुल्ला राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रहे हैं। आपको बता दें कि उन्हें ये पद उनके भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृति के बाद दिया गया था।
वजाहत हबीबुल्ला के बारे में यह धारणा आम है कि वे नरेंद्र मोदी के विरोधी हैं। हबीबुल्ला वही अधिकारी हैं जिन्होंने देश के पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण इमारतों में भी नमाज पढ़ने की अनुमति मांगी थी।

हर्ष मंदर- भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के साथ एक पूर्व अधिकारी हर्ष मंदर ने देश भर के छह जनजातीय जिलों में जिला कलेक्टर के रूप में काम किया था। वे यूपीए सरकार में एनएसी के सदस्य भी रहे।
हर्ष मंदर ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में आरोप मुक्त किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

एनसी सक्सेना- कांग्रेस के शासन काल में योजना आयोग के पूर्व सचिव रहे। सेवानिवृत्ति के बाद, सक्सेना ने सामाजिक मुद्दों को उठाने में व्यस्त हो गए।
एनसी सक्सेना राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के एक सदस्य के रूप में कार्य कर चुके हैं। इसके साथ ही वे यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के थिंक टैंक में रहे हैं और सरकार में उनकी प्रभावकारी उपस्थिति थी।

अरुणा रॉय- 1968 से 1975 तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहीं और 28 वर्ष की उम्र में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्हों मजदूर किसान शक्ति संगठन की स्थापना की और RTI लागू करने के लिए अभियान चलाया। अरुणा रॉय- सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद यानि NAC की सदस्य रहीं और यूपीए सरकार के दौरान काफी प्रभावशाली व्यक्तित्व के तौर पर जुड़ी रहीं। कहा जाता है कि सरकार के कई फैसलों में उनकी भी भूमिका रही है।

जूलियो रेबेरो-रिटायर्ड आइपीएस ऑफिसर जूलियो रेबेरो का सूत्र वाक्य था “बुलेट फॉर बुलेट “। पंजाब में आतंकवाद से राज्य को बचाने के लिए उनकी ये नीति काफी चर्चा में रही थी। 1992-93 में वो रोमानिया में भारत के राजदूत रहे और सामाजिक कार्य में शामिल हैं।
जूलियो रेबेरो- 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा और अन्य आरोपियों को क्लीन चिट मिलने के बाद इस केस की जांच कर रहे हेमंत करकरे की भूमिका को लेकर कुछ लोगों ने सवाल उठाए तो उन्होंने उनका बचाव किया।

जवाहर सिरकार- अक्टूबर 2016 तक वे प्रसार भारती के CEO के तौर पर कार्यरत रहे। गोवा फिल्म फेस्टिवल में बदइंतजामी को लेकर जवाहर सिरकार सवालों के घेरे में रहे थे। जवाहर सिरकार-पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के काफी करीबी माने जाते हैं।

ऐसे तो इन 65 अफसरों की यूपीए सरकार में चलती रही है, ये सभी किसी न किसी तरह सरकार में अपना दबदबा रखते थे। सोनिया के करीबी थे… मनमोहन सिंह की नीतियों को निर्धारित करने में भी कुछ की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लेकिन इन्होंने लिखा है कि इनका कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। लेकिन इनकी मोदी विरोधी मानसिकता… इनका मकसद… और इनकी चिट्ठी का मतलब भी साफ जाहिर हो रहा है।

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